रविवार, 2 अप्रैल 2017

भाग-2 पैदल यात्रा लमडल झील वाय गज पास.....Lamdal yatra via Gaj pass(4470mt)

भाग-2   पैदल यात्रा लमडल झील वाय गजपास (4470मीटर)

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                          जैसे कि मैने आपको पिछली किश्त में बताया था, कि........ आखिर 24अगस्त 2015 सुबह साढे चार बजे मैं और मेरा छोटा भाई ऋषभ नारदा  हिमाचल प्रदेश की धौलाधार हिमालय पर्वतमालाओं की सब से बड़ी व लम्बी झील....  लमडल झील के लिए करेरी गांव(धर्मशाला) की तरफ रवाना हो गए........... और रास्ता लिया अपने शहर गढ़शंकर (पंजाब) से होशियारपुर जाने की बजाय सीमावर्ती हिमाचल प्रदेश के गांवों से ......... और मैं ऊना के पास "झलेड़ा" गांव से गुजर रहा था, कि सड़क किनारे कुछ जाना-पहचाना सा एक चेहरा सुबह की सैर करते हुए मेरे सामने से गुजरा.......तो, मैं चलती गाड़ी से एक झलक में ही उन्हें पहचान गया, कि वह मेरे फेसबुक फ्रैंड हैं....  सुबोध अंगरा जी, परन्तु हम आपस में कभी भी व्यक्तिगत रुप में नहीं मिले थे और सुबोध जी मेरी तरह पर्वतारोहण का शौंक रखते हैं....... और गाड़ी वापस मोड़ कर उनके पास जा कर, जोर से आवाज़ दे कर बोला......मिस्टर सुबोध, और वह चेहरा मेरी आवाज़ की तरफ घूमा और हाथ उठा कर बोले, "यस "
                            मैं झट से गाड़ी से उतरा, और उनके पास जा कर बोला.... सुबोध जी, मुझे पहचानिए... पर सुबोध जी मुझे नही पहचान पाए..... आखिर जब मैने अपना नाम बोला कि, विकास नारदा......... बस फिर क्या था, उनकी आंखों में  चमक देखने वाली थी और हम दोनों ऐसे मिले, जैसे कि दो बिछडे यार आपस में मिलते हैं...... देखो यह कमाल हैं फेसबुक का,  हम कैसे एक-दूसरे से जुडते जा रहे हैं..... और शायद मैं या आप मुझे...कहीं इसी प्रकार मिल जाए, जिस प्रकार मुझे सुबोध जी मिले............. खेर वहीं खड़े-खड़े ढेरों बातें हुई, उन्होनें मेरा ट्रैकिंग सम्बन्धी सजोसामान देखा...... और फिर रूखस्त हुआ, सुबोध जी से यह कह कर...... कि फिर कभी आपके घर भी आऊगां, जी..... 
                              झलेड़ा से मुबारकपुर होते हुए जब आगे बढ़े, तो उस समय नवरात्रे चल रहे थे और जगह-जगह लंगर सेवा चल रही थी....... और हम रुके गुरुहर सराय वालों के लंगर पर, जो कि एक पंजाबी ढाबे के रुप में सजाया गया था.......... लंगर छकने के बाद रवाना होते हुए "कांगड़े के किले" के कुछ चित्र खींचे और आगे बढ़ गए...............क्योंकि मैं जल्दी से जल्दी करेरी गांव पहुंचना चाहता था, कि मैं कोई पथप्रदर्शक या गाइड का प्रबन्ध कर उसे ले लमडल ट्रैक पर रवाना हो सकूं....... और यदि गाइड ना भी मिले, तो भी इतना समय हो कि मैं करेरी गांव से 13किलोमीटर पैदल चढाई चढ़ कर करेरी झील तक पहुंच सकूं और अगले दिन आगे लमडल झील की ओर........... 
                                 धर्मशाला पहुंचने पर मैने एक सड़क किनारे विश्राम कर रहे एक बुजुर्ग व्यक्ति से करेरी गांव का रास्ता और लमडल के बारे में पूछा, तो वह बोले.....मैं दो साल पहले,  लमडल झील पर हर वर्ष लगने वाले दो दिवसीय मेला "नाऊन" (जिसका मतलब पवित्र झील में नहाना) पर गया था,  यह बात सुनकर मानो कि,  जैसे मेरी लाटरी ही निकल आई हो...... मैने उनसे विस्तार में सब पता करना शुरू कर दिया, उन्होनें बताया कि..... आप चार अलग-अलग रास्तों से लमडल झील तक पहुंच सकते हैं.... 
पहला रास्ता... धर्मशाला -तरूंड,  दूसरा रास्ता .... गेरा -बग्गा, 
तीसरा रास्ता....करेरी, और चौथा रास्ता  - सल्ली गांव से............और वह सज्जन बोले,  सब से आसान रास्ता "सल्ली" गांव वाला हैं और मैं इसी रास्ते से लमडल गया था....... 
                             उन बुजुर्ग सज्जन की बातों ने मेरे अंधेरे रास्ता में प्रकाश कर दिया था.... और उसी प्रकाश में हम दोनों चल दिए, धर्मशाला से करेरी गांव की ओर............ 
...............................(क्रमश:)
मुबारक पुर (हिमाचल प्रदेश) से आगे नवरात्रों के उपलक्ष्य में चल रहे कई सारे लंगरों में से एक.... गुरुहर सराय (पंजाब) वालों का लंगर,  जिसकी सजावट एक पंजाबी ढाबे की तर्ज पर की गई हुई थी.... 
सुबोध जी और उनके एक मित्र,  जो हमे झलेड़ा गांव(हिमाचल प्रदेश) में सड़क किनारे सैर करते हुए मिले.... यह एक आनंदमय पल था, उनसे इस प्रकार पहली बार मिलना..... क्योंकि हम दोनों एक दूसरे को सिर्फ फेसबुक के माध्यम से ही जानते हैं....
4000साल पुराने "नगरकोट दुर्ग" यानि कांगड़े का किला,  जिस की दीवारें अपना हजारों साल का इतिहास बयान करती है.... बशर्ते उस इतिहास को सुनने वाला चाहिए.... 


पठानकोट से जोगिंधरनगर जाती खिलौना गाड़ी का पुल..... जो कांगड़ा में स्थित है.... 

धर्मशाला शहर से पहले एक गांव के चौक पर लगा..... "मजनू" का यह खूबसूरत सा पेड़..... 

प्रथम दर्शन...... हिमालय की धौलाधार पर्वत माला का,  जो कांगड़े के बाद दिखना शुरू हो गया.... और मुझे यह दृश्य बहुत उत्साहित व आनंदित कर रहा था...

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8 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार प्रस्तुति भाई जी फेसबुक तो बिछड़ो को मिलाने का काम बखूबी करती है मेरे कई सारे स्कूल टाइम के मित्र आज भी कॉन्टेक्ट में है और यह सब कमाल फेसबुक ने किया है

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    1. सुमधुर आभार लोकेन्द्र जी, जय फेसबुक देवता की।

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  2. बहुत बढ़िया सर,fb तो आज के समय मे अपनी पसंद वालो को एक जगह इकट्ठा होने का मंच उपलब्ध करा रहा है...... ये नही होता तो हमे आपके लेख पढ़ने को कैसे मिलते .…..👍

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  3. Very interesting. I m also like u, meet different types of persons.

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