शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

भाग-3 चलो, चलते हैं.....सर्दियों में खीरगंगा Winter trekking to Kheerganga(2960mt)

भाग-3  चलो,  चलते है..... सर्दियों में "खीरगंगा"(2960मीटर) 1जनवरी 2016

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                                 पिछली किश्त में मैने आपको बताया था कि मैं और विशाल रतन जी बरषैनी गाँव से पैदल यात्रा शुरू कर,  पार्वती नदी पर निर्माणाधीन "पुल्गा बाँध" पहुँच चुके थे...और अब पार्वती नदी व तोश नाले के संगम की ओर बढ़ने के लिए नीचे घाटी की ओर उतर रहे थे कि हमने इस पदयात्रा में सबसे पहले आई ताज़ी बर्फ को छुआ, यह भी एक अद्भुत अहसास होता है, दोस्तों।
                      विशाल जी ने मुझे बाँध के आस-पास कई जगहों पर कम मात्रा में गिर रहे जल-स्रोत जमें हुए दिखाये,  यह वाकई हैरान करने वाले थे....क्योंकि हम दोनों ने इस प्रकार के जमे हुए जल-प्रपात जीवन में पहली बार जो देखे थे। हमारी आँखों के समक्ष प्रकृति ने अपना एक बहुत ही अनुपम व लुभावना रुप पेश किया हुआ था और वह रुप था....नीचे- घाटी में दो दिशाओं से नृत्य करती आ रही दो नदियों का संगम,  सामने- पार्वती घाटी में दिखाई देती क्रमवार पर्वतों की श्रृंखलाएँ..... ऊपर- उन पर्वत के शिखरों पर पड़ी ताज़ी बर्फ देख, मुझे मेरे सात वर्षीय बेटे की बात याद आ गई। वह जब भी ऐसे हिमानी पर्वत देखता है,  तो कहता है- "पापा, वो देखो वनिला आइसक्रीम...!"
                     सच में दोस्तों, बचपन बहुत खूबसूरत होता है...और मैं कहता हूँ, बचपन से भी खूबसूरत "पहाड" जिनकी अपार सुंदरता स्थिर है और हम इंसान बच्चे से बूढ़े हो,  रुख़सत हो जाते हैं इस जहान से...!!  
                     विशाल जी पहली बार खीरगंगा जा रहे थे,  जबकि मैं एक बार पहले भी 1992 में जा चुका हूँ। सो पुल्गा बाँध से नीचे घाटी में उतरते हुए,  अपनी पहली यात्रा के हल्के से स्मरण से इस ताज़ा स्थिति को मेल रहा था....उस समय इस संगम पर बहुत ज्यादा पानी था,  जो अब की बार बहुत कम मात्रा में बह रहा था।  पार्वती नदी का उद्गम स्थल तो मानतलाई झील है,  जबकि दूसरी दिशा से बह कर आ रहा तोश नाले का उद्गम स्थल हिमाचल प्रदेश का सबसे बड़ा हिमनद "बड़ा शिगरी" ग्लेशियर है। यह हिमनद भारत के दूसरे नम्बर का सबसे बड़ा ग्लेशियर भी है, जबकि सब से बड़े हिमनद का स्थान "गंगौत्री ग्लेशियर" को प्राप्त है। 
                    और जरा से नीचे घाटी में उतर कर,  अब मेरे नयनो में फिर से एक नया मनमोहक दृश्य प्रकट हो रहा था....सामने हमें अब पर्वत के मध्य बसे "तोश" गाँव के दर्शन हो रहे थे और पीछे मुड़ कर देखा, तो पुल्गा बाँध का वो हसीन दृश्य। इसी नजारे को देखते-देखते हमने तोश नाले पर बना सेतू पार किया। अब यह पैदल का रास्ता हमें पार्वती घाटी के आखिरी गाँव "नकथान" की ओर बढ़ा रहा था,  और जितनी उतराई हम उतर कर आये थे,  अब उतनी ही चढ़ाई फिर से चढ़नी शुरू हो गई। थोड़ा ऊपर चढ़ने पर तोश गाँव के पहाड के पीछे कई और हिमानी पर्वत नज़र आने लगे,  इन नज़ारों के दर्शन,  सचमुच हमारी इस यात्रा की यादों में चार चांद लगा रहे थे।
                     कुछ ऊपर चढ़ाई चढ़ते हुए,  अब हम एक खुली सी समतल सी जगह पर पहुँचे....जहाँ पर कुछ कच्ची दुकानों के अवशेष थे,  जो कि गर्मियों के मौसम में स्थानीय लोगों द्वारा लगाई जाती है,  क्योंकि गर्मियों के मौसम में खीरगंगा ट्रैक पर बहुत सारे लोग जाते हैं,  मणिकर्ण पहुँचने वालो में से ज्यादातर हिम्मती व उत्साही लोग खीरगंगा जरूर जाते हैं।  खैर अब तो चढ़ाई ही चढ़ते रहे और एक मोड़ आया,  तो पार्वती घाटी के आखिरी गाँव नकथान के शुरूआती घर नज़र आने लगे......तभी पीछे से तीन नवयुवक आकर हमसे खीरगंगा के रास्ते के विषय में पूछने लगे,  मैं उनके रंग-रूप से पहचान गया कि ये युवक दक्षिण भारतीय है। पर वे सब हिन्दी बहुत अच्छी बोल रहे थे,  तो मैने उनसे पूछा कि कहाँ से हो,  तो उन्होंने कहा कि वे चेन्नई, तमिलनाडु से हैं और जालन्धर पंजाब में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं, नववर्ष मानने के लिए कसोल आये हैं और अब खीरगंगा जा रहे हैं।  मैने हंसते हुए कहा, "पहली बात तो, जब मैं चेन्नई भ्रमण के लिए गया था,  तो मुझे आप सी हिन्दी बोलने वाला कोई नही मिला...एयर पोर्ट पर उतरते ही...पहली बातचीत पर मेरा सामना हुआ, 'नो-हिन्दी'......कुछ मिनट के लिए तो लगा कि मैं किसी अलग दुनिया में आ गया हूँ,  ग़नीमत तो तब हुई....जब चेन्नई घुमाने के लिए एयरपोर्ट के टैक्सी स्टैड पर बड़ी मुश्किल से एक ड्राइवर मिला,  जो अंग्रेजी बोलना जानता था......! "          
                   खैर, वे लड़के खाली हाथ थे और हमारी पीठ पर भार लदा होने के कारण हमारी चाल उनसे कम थी,  तो वे आगे बढ़ गये।मैने विशाल जी से तब कहा कि यह लड़के खीरगंगा नही पहुँच सकते,  क्योंकि इन्होंने कोई खास गर्म कपड़े नही पहन रखे और ना ही इनके पास कोई यात्रा सम्बन्धी उपकरण है......इस शीत ऋतु में खीरगंगा ऐसे ही मुँह उठा कर नही पहुॅंच जा सकता।  तो विशाल जी बोले,  "चलो देखते है, विकास जी....और हमारे साथ भी आगे क्या-क्या होता है"....और हम दोनों इस बात पर अनचाहा हंस पड़े।
                      रास्ते में पानी का एक छोटा सा गड्ढा देख, मुझे अपनी "लमडल पदयात्रा " के दौरान सारा दिन प्यासा रहने के बाद, बड़ी मुश्किल से मिले पानी की याद ताज़ा हो गई। मैं विशाल जी को वो गड्ढा दिखा कर बोला कि, " मैने लमडल यात्रा में गज पर्वत की ऊँचाई पर ऐसे ही एक गड्ढे से पानी पी कर, सारे दिन की प्यास बुझाई थी। लमडल यात्रा की बातें करते-करते, हम दोनों नकथान गाँव में पहुँच गये। एक दम भरा-पूरा गाँव है "नकथान".....ग्रामवासी अपने दैनिक कार्यो में व्यस्त थे। गाँव में कई घर बहुमंज़िला भी थे और उन घरों के आंगन में सेब भरने के लिए इस्तेमाल होने वाली लकड़ी की खाली पेटियों के अम्बार लगे हुए थे,  जो इन घरवालों की समृद्धता की निशानी है। नकथान गाँव में कई जगह पर बंद किये हुए ढ़ाबे,  रेस्टोरेन्ट आदि थे....यहाँ गर्मियों में खूब रौनक हुआ करती होगी। गाँव में बहुत से परम्परागत मकान भी थे,  जिनमें पशुओं के लिए चारा भर रखा था। गाँव की तंग गलियों से गुज़रते हुए,  हम उस घर के आगे रुक गये....जिसके आंगन में घर के मुखिया धूप में बैठ,  धूप सेक रहे थे। मैने उनसे उनकी फोटो खींचने की स्वीकृति मांगी,  उन्होंने सहर्ष अपनी फोटो खिंचवाई और हमारे विषय में भी पूछा।
                             नकथान गाँव की गलियों से गुज़रते हुए,  एक छोटा सा बच्चा हमारे पास भागा हुआ आया और तोतली आवाज़ में कुछ बोला...जो मैं तो नही समझ पाया,  पर विशाल जी समझ गये कि वह अपनी मधुर सी तोतली आवाज़ में  "कोको"(यानि चॉकलेट) मांग रहा है। उसे टॉफी देते देख, दो और बच्चे भी हमारे पास आ गये...  शायद वे सब भाई-बहन थे। मन अति प्रसन्नचित्त हो गया,  उन बच्चों के चेहरों की खुशी देख कर।
                              खैर, अब हम गाँव से बाहर निकल चुके थे और अब "रुधिरनाग " नामक जगह की ओर बढ़ रहे थे। वहाँ पर एक बहुत ही खूबसूरत झरना गिरता है,  जिसकी आकृति नाग के फन सी है और तभी पीछे से कुछ और युवक हम से आगे निकल गये,  बस वे हमारी साज-सज्जा देख आपस में फुसफुसातें हुए बोले......" ये तो, ट्रैकर है भाई...!"

                                             ........................(क्रमश:)
पार्वती घाटी में..... पार्वती नदी व तोश नाले का संगम।

वो पहला चित्र,  जिसमें हमने सड़क छोड़... कच्चे रास्ते पर कदम रखा और पार्वती घाटी में उतरने लगे।

निर्माणाधीन पुल्गा बाँध पर सबसे पहली मिली बर्फ को छूते हुए हम दोनों....और जमे हुए जल-प्रापत।

पार्वती घाटी में तोश-पार्वती नदी संगम स्थल के साथ-साथ आगे बढ़ कर.... तोश नाले पर बने सेतू को पार कर, हमने नकथान गाँव की ओर रूख किया।

दोस्तों....यह खूबसूरती है "तोश" गाँव की,  जो पर्वत के मध्य बसा नज़र आ रहा है।

"वाह रे हिमालय... तू बहुत मनमोहना है"
यह हसीन चित्र विशाल रतन जी ने कैद किया था।

पुल्गा बाँध का दूर दृश्य, सोचो कि जब यहाँ पानी रोका जाएगा.... तो कितनी सुंदर झील नज़र आयेगी, है ना दोस्तों।

इस चित्र में तीन पेड़..... एक- सबसे छोटा पेड़, यानि हमारा खूबसूरत सा बचपन,
दूसरा- भरा व फूलाफला पेड़, यानि हमारी हसीन जवानी,
तीसरा- मृत पेड़, यानि हमारा बुढ़ापा व अंत,
और इस चित्र में ही दिखाई देता गिरिराज, जिसकी सुंदरता युगों से स्थिर है और युगों-युगांतरों तक स्थिर ही रहेगी।

पार्वती घाटी का आखिरी गाँव "नकथान" का दृश्य।

"कोको"......."अंकल कोको....!!!"

नकथान गाँव में अपने घर के आंगन में धूप सेंक रहे बुजुर्ग,
नकथान गाँव की गलियां.... और नकथान गाँव में पहुंच,  विशाल रतन जी की एक अति प्रसन्नचित मुद्रा..!! 

पार्वती घाटी के आख़िरी गाँव "नकथान" के परम्परागत मकान। 

"है ना.... हम दोनों सिर-फिरे से "...........दोस्तों।

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5 टिप्‍पणियां:

  1. कोको
    जब कभी कश्मीर जाना होता था
    बाबा अमरनाथ जी के दर्शन के लिए
    तो पठानकोट पार करते ही कोको की पैकिंग शुरू कर देते थे हम लोग, टोफ़ी चिप्स सूखा पेठा इमली ओर ना जाने क्या क्या। धन्यवाद भैया यादों से जोड़े रखने के लिए।

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