भाग-1 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर.....
भूमिका - " बीज यात्रा का "
मित्रों....जय हिंद, पुनः लौट आया हूँ आपके समक्ष एक नई पदयात्रा की चित्रकथा ले कर....यह यात्रा देवों के देव महादेव से सम्बन्धित वो यात्रा है, जिसमें मुझ में बेहद धार्मिक व आध्यात्मिक बदलाव हुए....
क्योंकि मैं एक ब्राह्मण अपने जीवन के शुरूआती 17साल तो आस्तिक रहा, परन्तु युवावस्था में "तर्कशील सोसाईटी" की चंद किताबें पढ़ जाने के बाद एक दम से नास्तिक हो गया....और मेरा आलम यह रहा कि, मैं भगवान के अस्तित्व को ही चुनौती देने लगा, हर किसी से इस विषय पर भयंकर बहस करता... भूत-प्रेत, पुर्नजन्म, धार्मिक अडम्बरों व विश्वास से, मैं बहुत आगे निकल चुका था.... हर रीति-रिवाज़ को मैं सिरे से खारिज़ करता और हर बात का मैं वैज्ञानिक तथ्य ढूढंता... और उस पर कभी घर वालों से, तो कभी बाहर वालों से अक्सर बहस करता, कि "यहाँ सब कुछ इंसान ने ही अपने लाभ व स्वार्थ के लिए ही बनाया है, भगवान ने इंसान को नही...अपितु इंसान ने भगवान को गढ़ा....! " अपने धर्म की ही कुरीतियों पर कटाक्ष करता, परिणामस्वरूप मुझे सामने वाला धार्मिक व्यक्ति या मेरे दोस्त व रिश्तेदारों ने "नाशुक्रा" करार दिया, परन्तु मुझ पर इन बातों का कहाँ प्रभाव होता था....मैं तो अपनी धुन का पक्का था और हूँ....
ऐसा करते-करते जीवन के दस साल बीत गए, यदि मेरे माता-पिता मुझ से कोई धार्मिक पूजा, कार्य या दान करवाते तो बस उनका मन रखने के लिए वह सब कर देता परन्तु उसमें एक अहम अहसास नही होता जिसे हम "आस्था" कहते हैं.....
जीवन-च्रक बदला, विवाह हुआ और अर्धागिनी मिली... परम आस्तिक और मैं सिरे का नास्तिक.... खैर उसने मेरे प्रति धैर्य रखा और मुझे बदलना प्रारंभ कर दिया और बदलते वक्त के साथ-साथ मुझे भी धीरे-धीरे अपने रंग में रंगना निरंतर जारी रखा, अत: मेरी अवस्था को नास्तिक से मोड़ " वास्तविक" तक ला खड़ा किया.... पिछले साल ग्रीष्मकालीन ट्रैकिंग के दौरान हुई अनुभूतियों ने मेरे मन को बेहद बदल दिया, हर बात का वैज्ञानिक कारण जानते हुए भी मुझे अब आस्था व परम्परागत रीति-रिवाज़ों में रहना अच्छा लगने लगा, अपने धर्म का सम्मान व उसपर मेरी अटल अडिगता अब हिमालय सी खड़ी है..... परन्तु आज भी मैं एक अंधविश्वासी आस्तिक नही हूँ, बल्कि एक आस्थावान वास्तविक इंसान हूँ..........
मित्रों, मेरी यह पदयात्रा भगवान शिव के एक निवास स्थल की है...हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव के पांच निवास स्थल है,
सर्वप्रथम तिब्बत में स्थित "श्री कैलाश मानसरोवर".....द्वितीय-उत्तराखंड में स्थित "श्री आदि कैलाश"...........बाकी तीन निवास हिमाचल प्रदेश में "श्री मणिमहेश कैलाश", "श्री किन्नर कैलाश" व "श्री खंड महादेव कैलाश".....
मुख्यतः तिब्बत स्थित श्री कैलाश मानसरोवर पदयात्रा को कठिन माना जाता है, परन्तु श्री खंड महादेव कैलाश की पदयात्रा, श्री कैलाश मानसरोवर पदयात्रा से भी कठिन है.......... और इसी दुर्गम व अत्यन्त कठिन पदयात्रा पर मैं अपने पर्वतारोही संगी व सांढू भाई विशाल रतन जी के साथ पिछले साल जुलाई 2016 को गया......
श्री खंड महादेव(5227मीटर) महान हिमालय के शिखर पर खड़ी 72फुट की एक अखण्ड शिला है, जिसे भगवान शिव का शरीर माना जाता है... इस शिला तक पहुंचने के लिए पदयात्री को 36किलोमीटर लम्बा, वो दुर्गम रास्ता कम से कम तीन दिन में तय करना पड़ता है, जो कि प्राकृतिक वाधाओं से भरा पड़ा है... यह यात्रा बहुत धैर्य व धीमी रफ्तार से करने वाली है, इसलिए इस पदयात्रा पर एक सप्ताह लग जाता है..
दोस्तों, हम सब आमतौर पर भारत में भगवान शिव से सम्बन्धित एक यात्रा को ज्यादातर जानते हैं "अमरनाथ यात्रा " या फिर कुछ वर्षो से मणिमहेश कैलाश(चम्बा, हिमाचल प्रदेश) यात्रा भी अब प्रचलित हो चुकी है..... मुझे अपने जीवन में पहली बार श्री खंड महादेव नाम की जानकारी कोई बारह-तेरह साल पहले हुई थी, जब मैने अपने शहर गढ़शंकर में पकौड़ों की एक दुकान पर श्री खंड महादेव यात्रा का स्टीकर दीवार पर चिपका देखा, जिसमें पवित्र शिला के चित्र पर लिखा था, "चलो श्री खंड "
दुकानदार भी मेरे सवाल का संतुष्ट उत्तर नही दे पाया, बस यह ही कह सका कि कोई बाहर का ग्राहक इस स्टीकर को यहाँ लगा गया और मुझे लगता है कि यह भी अमरनाथ यात्रा की तरह ही कोई यात्रा है.... बात आई-गई हो गई, क्योंकि उस समय "जानी जान गूगल देवता " हमारे देश में प्रकट नही हुए थे...... फिर कुछ साल बाद समाचार पत्र में एक छोटा सा लेख श्री खंड महादेव कैलाश के बारे में पढ़ा, सो फिर से श्री खंड महादेव नाम जेहन में अपनी जगह बना बैठ गया, क्योंकि पर्वत मुझे शुरू से ही आर्कषित करते रहे हैं..... परन्तु दोस्तों वो भी क्या समय था कि बगैर इंटरनैट की उस जीवन शैली में, हम में कितना ठहराव, उम्मीद व इंतजार हुआ करता था, जैसे किसी विशेष प्रश्न के लिए ठहराव रख उम्मीद से उसके उत्तर का इंतजार करते.... अपने दिमाग की तृष्णाओं को शांत व पूर्ण करने के लिए अनुभवशील बड़े-बुर्जुगों से साक्षात्कार करते, भिन्न-भिन्न प्रकार की किताबें या साहित्य पढ़ रात की नींद को प्राप्त करना, हर दूजे ज्ञानशील व्यक्ति का नित नियम था...... जब मेरी बेटी छोटी थी, तो उसके सवाल कभी खत्म नही होते थे, क्योंकि उसे गूगल की जानकारी नही थी.. और अाज वह दसवीं कक्षा में पढ़ती है, परन्तु अब उसने मुझ से सवाल पूछने बंद कर दिये है.. क्योंकि उसको जवाब देने के लिए बुद्धिमान गूगल साहिब सदैव तैयार रहते हैं...........हां, मेरा आठ वर्षीय बेटा जरूर कई सारे सवाल तैयार रखता है, क्योंकि उस की दौड़ अभी तक यू-ट्यूब में कार्टून तक ही सीमित है.....
खैर कुछ भी है, विज्ञान की इस खोज ने हम सब की जिंदगी को आसान बना दिया है... मुझे संगीत (बाँसुरीवादन) में बेहद रूचि है, और अब कुछ वर्ष से मेरे गुरु सर्वज्ञाता श्री गुगलेश्वर जी ही है, मैं इनसे ही संगीत को पाठ लेता हूँ.....
मित्रों, मेरे पर्वतारोही जीवन की शुरुआत 2014 में 40 साल की उमर में हुई..... जब मैं और मेरे सांढू विशाल रतन जी खेल-खेल में सर्दियों में हिमाचल प्रदेश धौलाधार हिमालय में स्थित जमी हुई "करेरी झील " देखने के लिए ऐसे ही मुंह उठा कर चल दिये.... और 13किलोमीटर के उस ट्रैक में बीच रास्ते बहुत ज्यादा बर्फ आने पर फंस गए, तो रात ऐसे ही किसी गुफा में आग जला कर काटी और सुबह को वहीं से ही वापस नीचे उतर आए..... पहले ट्रैक की इस नाकामयाबी ने हमे तोड़ा या डराया नही, अपितु हम दोनों ने इसे चुनौती मान गर्मियों में फिर से हिमालय का रूख किया और पहली बार में ही समुद्र तट से 4620मीटर की ऊंचाई के "कलाह पर्वत" को लांघ कर एक अलग व दुर्गम रास्ते से मणिमहेश जा पहुँचें...
इस के बाद भी हमने कई पदयात्राएं की, क्योंकि अब हमारा नियम बन चुका है कि हमे साल में दो बार हिमालय पर जाना है...... श्री खंड महादेव कैलाश की समुद्र तट से ऊंचाई 5227 मीटर है, इसलिए मुझ पर्वतारोही के लिए इस ऊंचाई तक पहुंचना अपने-आप में ही एक उपलब्धि है....36किलोमीटर एक तरफ की इस पदयात्रा में सम्पूर्ण ट्रैकिंग पैकेज है, इस यात्रा में पर्वतारोही पर्वतारोहण के प्रत्येक रंग को महसूस कर सकता है....जैसे 2000मीटर से 5200मीटर समुद्र तट की ऊंचाई के बीच हर प्रकार की भूमि पर चलना.... घास के मैदान, सीधे खड़े पहाड़ी रास्ते, गहरी उतराईयाँ, चट्टानों और ग्लेशियरों से गुज़रना....... आप एक सप्ताह के लिए दीन-दुनिया से कट जाते हैं और रोज-मर्रा की घिसी-पिटी चिंताओं से दूर एक अलग माहौल में रच-बस जाते है....
इसलिए 2015 की गर्मियों में मैने श्री खंड कैलाश जाने की पेशकश विशाल जी के आगे रखी, परन्तु विशाल जी जा नही पा रहे थे क्योंकि वे अपनी नई बदली हुई नौकरी की वजह से विवश थे... सो अकेले जाने का विचार अभी मन में आया ही था, कि खबर आ गई कि श्री खंड महादेव यात्रा बादल फटने के कारण रोक दी गई है...... सो उस बार अपने छोटे भाई ऋषभ नारदा को साथ ले "लमडल यात्रा " पर निकल गया...
2016 की गर्मियाँ आने से पहले ही मैं और विशाल रतन जी ने काना-फूंसी करनी प्रारंभ कर दी थी, कि जो भी हो इस बार श्री खंड महादेव कैलाश की ऊंचाई को छू कर ही आना है..........
........................................(क्रमश:)
भूमिका - " बीज यात्रा का "
मित्रों....जय हिंद, पुनः लौट आया हूँ आपके समक्ष एक नई पदयात्रा की चित्रकथा ले कर....यह यात्रा देवों के देव महादेव से सम्बन्धित वो यात्रा है, जिसमें मुझ में बेहद धार्मिक व आध्यात्मिक बदलाव हुए....
क्योंकि मैं एक ब्राह्मण अपने जीवन के शुरूआती 17साल तो आस्तिक रहा, परन्तु युवावस्था में "तर्कशील सोसाईटी" की चंद किताबें पढ़ जाने के बाद एक दम से नास्तिक हो गया....और मेरा आलम यह रहा कि, मैं भगवान के अस्तित्व को ही चुनौती देने लगा, हर किसी से इस विषय पर भयंकर बहस करता... भूत-प्रेत, पुर्नजन्म, धार्मिक अडम्बरों व विश्वास से, मैं बहुत आगे निकल चुका था.... हर रीति-रिवाज़ को मैं सिरे से खारिज़ करता और हर बात का मैं वैज्ञानिक तथ्य ढूढंता... और उस पर कभी घर वालों से, तो कभी बाहर वालों से अक्सर बहस करता, कि "यहाँ सब कुछ इंसान ने ही अपने लाभ व स्वार्थ के लिए ही बनाया है, भगवान ने इंसान को नही...अपितु इंसान ने भगवान को गढ़ा....! " अपने धर्म की ही कुरीतियों पर कटाक्ष करता, परिणामस्वरूप मुझे सामने वाला धार्मिक व्यक्ति या मेरे दोस्त व रिश्तेदारों ने "नाशुक्रा" करार दिया, परन्तु मुझ पर इन बातों का कहाँ प्रभाव होता था....मैं तो अपनी धुन का पक्का था और हूँ....
ऐसा करते-करते जीवन के दस साल बीत गए, यदि मेरे माता-पिता मुझ से कोई धार्मिक पूजा, कार्य या दान करवाते तो बस उनका मन रखने के लिए वह सब कर देता परन्तु उसमें एक अहम अहसास नही होता जिसे हम "आस्था" कहते हैं.....
जीवन-च्रक बदला, विवाह हुआ और अर्धागिनी मिली... परम आस्तिक और मैं सिरे का नास्तिक.... खैर उसने मेरे प्रति धैर्य रखा और मुझे बदलना प्रारंभ कर दिया और बदलते वक्त के साथ-साथ मुझे भी धीरे-धीरे अपने रंग में रंगना निरंतर जारी रखा, अत: मेरी अवस्था को नास्तिक से मोड़ " वास्तविक" तक ला खड़ा किया.... पिछले साल ग्रीष्मकालीन ट्रैकिंग के दौरान हुई अनुभूतियों ने मेरे मन को बेहद बदल दिया, हर बात का वैज्ञानिक कारण जानते हुए भी मुझे अब आस्था व परम्परागत रीति-रिवाज़ों में रहना अच्छा लगने लगा, अपने धर्म का सम्मान व उसपर मेरी अटल अडिगता अब हिमालय सी खड़ी है..... परन्तु आज भी मैं एक अंधविश्वासी आस्तिक नही हूँ, बल्कि एक आस्थावान वास्तविक इंसान हूँ..........
मित्रों, मेरी यह पदयात्रा भगवान शिव के एक निवास स्थल की है...हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव के पांच निवास स्थल है,
सर्वप्रथम तिब्बत में स्थित "श्री कैलाश मानसरोवर".....द्वितीय-उत्तराखंड में स्थित "श्री आदि कैलाश"...........बाकी तीन निवास हिमाचल प्रदेश में "श्री मणिमहेश कैलाश", "श्री किन्नर कैलाश" व "श्री खंड महादेव कैलाश".....
मुख्यतः तिब्बत स्थित श्री कैलाश मानसरोवर पदयात्रा को कठिन माना जाता है, परन्तु श्री खंड महादेव कैलाश की पदयात्रा, श्री कैलाश मानसरोवर पदयात्रा से भी कठिन है.......... और इसी दुर्गम व अत्यन्त कठिन पदयात्रा पर मैं अपने पर्वतारोही संगी व सांढू भाई विशाल रतन जी के साथ पिछले साल जुलाई 2016 को गया......
श्री खंड महादेव(5227मीटर) महान हिमालय के शिखर पर खड़ी 72फुट की एक अखण्ड शिला है, जिसे भगवान शिव का शरीर माना जाता है... इस शिला तक पहुंचने के लिए पदयात्री को 36किलोमीटर लम्बा, वो दुर्गम रास्ता कम से कम तीन दिन में तय करना पड़ता है, जो कि प्राकृतिक वाधाओं से भरा पड़ा है... यह यात्रा बहुत धैर्य व धीमी रफ्तार से करने वाली है, इसलिए इस पदयात्रा पर एक सप्ताह लग जाता है..
दोस्तों, हम सब आमतौर पर भारत में भगवान शिव से सम्बन्धित एक यात्रा को ज्यादातर जानते हैं "अमरनाथ यात्रा " या फिर कुछ वर्षो से मणिमहेश कैलाश(चम्बा, हिमाचल प्रदेश) यात्रा भी अब प्रचलित हो चुकी है..... मुझे अपने जीवन में पहली बार श्री खंड महादेव नाम की जानकारी कोई बारह-तेरह साल पहले हुई थी, जब मैने अपने शहर गढ़शंकर में पकौड़ों की एक दुकान पर श्री खंड महादेव यात्रा का स्टीकर दीवार पर चिपका देखा, जिसमें पवित्र शिला के चित्र पर लिखा था, "चलो श्री खंड "
दुकानदार भी मेरे सवाल का संतुष्ट उत्तर नही दे पाया, बस यह ही कह सका कि कोई बाहर का ग्राहक इस स्टीकर को यहाँ लगा गया और मुझे लगता है कि यह भी अमरनाथ यात्रा की तरह ही कोई यात्रा है.... बात आई-गई हो गई, क्योंकि उस समय "जानी जान गूगल देवता " हमारे देश में प्रकट नही हुए थे...... फिर कुछ साल बाद समाचार पत्र में एक छोटा सा लेख श्री खंड महादेव कैलाश के बारे में पढ़ा, सो फिर से श्री खंड महादेव नाम जेहन में अपनी जगह बना बैठ गया, क्योंकि पर्वत मुझे शुरू से ही आर्कषित करते रहे हैं..... परन्तु दोस्तों वो भी क्या समय था कि बगैर इंटरनैट की उस जीवन शैली में, हम में कितना ठहराव, उम्मीद व इंतजार हुआ करता था, जैसे किसी विशेष प्रश्न के लिए ठहराव रख उम्मीद से उसके उत्तर का इंतजार करते.... अपने दिमाग की तृष्णाओं को शांत व पूर्ण करने के लिए अनुभवशील बड़े-बुर्जुगों से साक्षात्कार करते, भिन्न-भिन्न प्रकार की किताबें या साहित्य पढ़ रात की नींद को प्राप्त करना, हर दूजे ज्ञानशील व्यक्ति का नित नियम था...... जब मेरी बेटी छोटी थी, तो उसके सवाल कभी खत्म नही होते थे, क्योंकि उसे गूगल की जानकारी नही थी.. और अाज वह दसवीं कक्षा में पढ़ती है, परन्तु अब उसने मुझ से सवाल पूछने बंद कर दिये है.. क्योंकि उसको जवाब देने के लिए बुद्धिमान गूगल साहिब सदैव तैयार रहते हैं...........हां, मेरा आठ वर्षीय बेटा जरूर कई सारे सवाल तैयार रखता है, क्योंकि उस की दौड़ अभी तक यू-ट्यूब में कार्टून तक ही सीमित है.....
खैर कुछ भी है, विज्ञान की इस खोज ने हम सब की जिंदगी को आसान बना दिया है... मुझे संगीत (बाँसुरीवादन) में बेहद रूचि है, और अब कुछ वर्ष से मेरे गुरु सर्वज्ञाता श्री गुगलेश्वर जी ही है, मैं इनसे ही संगीत को पाठ लेता हूँ.....
मित्रों, मेरे पर्वतारोही जीवन की शुरुआत 2014 में 40 साल की उमर में हुई..... जब मैं और मेरे सांढू विशाल रतन जी खेल-खेल में सर्दियों में हिमाचल प्रदेश धौलाधार हिमालय में स्थित जमी हुई "करेरी झील " देखने के लिए ऐसे ही मुंह उठा कर चल दिये.... और 13किलोमीटर के उस ट्रैक में बीच रास्ते बहुत ज्यादा बर्फ आने पर फंस गए, तो रात ऐसे ही किसी गुफा में आग जला कर काटी और सुबह को वहीं से ही वापस नीचे उतर आए..... पहले ट्रैक की इस नाकामयाबी ने हमे तोड़ा या डराया नही, अपितु हम दोनों ने इसे चुनौती मान गर्मियों में फिर से हिमालय का रूख किया और पहली बार में ही समुद्र तट से 4620मीटर की ऊंचाई के "कलाह पर्वत" को लांघ कर एक अलग व दुर्गम रास्ते से मणिमहेश जा पहुँचें...
इस के बाद भी हमने कई पदयात्राएं की, क्योंकि अब हमारा नियम बन चुका है कि हमे साल में दो बार हिमालय पर जाना है...... श्री खंड महादेव कैलाश की समुद्र तट से ऊंचाई 5227 मीटर है, इसलिए मुझ पर्वतारोही के लिए इस ऊंचाई तक पहुंचना अपने-आप में ही एक उपलब्धि है....36किलोमीटर एक तरफ की इस पदयात्रा में सम्पूर्ण ट्रैकिंग पैकेज है, इस यात्रा में पर्वतारोही पर्वतारोहण के प्रत्येक रंग को महसूस कर सकता है....जैसे 2000मीटर से 5200मीटर समुद्र तट की ऊंचाई के बीच हर प्रकार की भूमि पर चलना.... घास के मैदान, सीधे खड़े पहाड़ी रास्ते, गहरी उतराईयाँ, चट्टानों और ग्लेशियरों से गुज़रना....... आप एक सप्ताह के लिए दीन-दुनिया से कट जाते हैं और रोज-मर्रा की घिसी-पिटी चिंताओं से दूर एक अलग माहौल में रच-बस जाते है....
इसलिए 2015 की गर्मियों में मैने श्री खंड कैलाश जाने की पेशकश विशाल जी के आगे रखी, परन्तु विशाल जी जा नही पा रहे थे क्योंकि वे अपनी नई बदली हुई नौकरी की वजह से विवश थे... सो अकेले जाने का विचार अभी मन में आया ही था, कि खबर आ गई कि श्री खंड महादेव यात्रा बादल फटने के कारण रोक दी गई है...... सो उस बार अपने छोटे भाई ऋषभ नारदा को साथ ले "लमडल यात्रा " पर निकल गया...
2016 की गर्मियाँ आने से पहले ही मैं और विशाल रतन जी ने काना-फूंसी करनी प्रारंभ कर दी थी, कि जो भी हो इस बार श्री खंड महादेव कैलाश की ऊंचाई को छू कर ही आना है..........
........................................(क्रमश:)
श्री कैलाश मानसरोवर.......ये सारे चित्र इंटरनैट से प्राप्त किये है, जी |
श्री आदि कैलाश.... |
श्री मणिमहेश कैलाश.... |
श्री किन्नर कैलाश.... |
चलो, मित्रों मेरे संग-संग...... श्री खंड महादेव कैलाश की ओर ( अगला भाग पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें ) |
सच मे श्रीखंड महादेव बहुत कठिन है....लेकिन मेने आपकी यात्रा शायद यही पढ़ी है विकास भाई....
जवाब देंहटाएंजी हां प्रतीक जी, श्री खंड महादेव कैलाश यात्रा सब कैलाश यात्राओं में कठिन मानी जाती है,जी।
हटाएंश्रीखंड महादेव ! आज पहला भाग पढ़ा है यात्रा रोचक होगी इसका अंदेशा है
जवाब देंहटाएंविकास जी कृपया करेरी की अधूरी यात्रा का ब्लॉग भी उपलब्ध कराएं
प्रदीप जी, करेरी यात्रा का वृतांत लिख रहा हूँ जी.... जल्द ही इसे प्रकाशित करूंगा जी।
हटाएंजय भोलेनाथ...🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंजय भोलेनाथ शर्मा जी।
हटाएंWonderful. U changed after marriage, same here brother. I am a poet, no knowledge of earning money, after marriage learlea a lot. Ur way of expressing journey is also interesting . Rajneesh jass
जवाब देंहटाएंबेहद धन्यवाद रजनीश जी।
हटाएंजय भोले नाथ जी.... जय हिन्द ....अच्छी शुरुआत .. जानकर आश्चर्य हुआ की आपने ट्रेकिंग 40 की उम्र में शुरू की ....सही है ...
जवाब देंहटाएंwww.safarhaisuhana.com
जी हां, यदि यह शौक कहीं पहले आ चिपकता तो कुछ और ही बात होती ......बेहद धन्यवाद गुप्ता जी जय भोलेनाथ।
हटाएंकिन्नर कैलाश ओर श्रीखण्डकैलाश मुझे एक ही लगती थी लेकिन आपके कारण दोनो को अलग कर पाई हूँ �� हम भी चल रहे हैं आपके साथ�� जय कैलाश ��
जवाब देंहटाएंजरुर जी, स्वागत है जी।
हटाएंआपकी लेखन शैली इतनी सुंदर है कि लगता है श्री खंड महादेव के दर्शन साक्षात आप हमें ही करवा लायें हो।
जवाब देंहटाएंसुमधुर आभार मित्तल साहिब।
हटाएंश्रीखण्ड महादेव यात्रा बेहद चुनोतिपूर्ण यात्रा है। आपका वृतांत पढ़कर आनंद आ गया।
जवाब देंहटाएंबेहद धन्यवाद जी।
हटाएंKaun se yatra difficult hai- shrikhand yaha kinnaur Kailash? Aur shrikhand kya 5227 m ke height par hai ke less height hai? Kinnaur kailash he height Kya hai aap ke watch Se?
जवाब देंहटाएंविक्रम जी, चाहे किन्नर कैलाश की समुद्र तट से ऊँचाई 4530मीटर है....और श्री खंड महादेव कैलाश की ऊँचाई से भी कम है व रास्ता भी श्री खंड के रास्ते से आधा है, परन्तु मेरे हिसाब से किन्नर कैलाश यात्रा श्री खंड कैलाश यात्रा से दुगुनी कठिन व दुर्गम है.....क्योंकि इन 19किलोमीटर की पदयात्रा में पहले 13 किलोमीटर पानी भी यात्री को साथ में ही ढोना पड़ता है....रास्ते में मिलने वाली सुविधाएं नाममात्र की ही है और सारा रास्ता बस चढ़ाई ही चढ़ाई है....एक रात रास्ते में गुफा में भी काटनी पड़ती है।
हटाएंभाई साहब प्रणाम आपका जो व्यक्तित्व इस लेख में दिखा है वह सराहनीय है और मुझे ऐसा लगता है कि 2020 मैं आपके साथ श्रीखंड महादेव की यात्रा करना चाहता हूं जो आप मुझे इस यात्रा का मार्गदर्शन दे सकें और श्रीखंड महादेव के दर्शन प्राप्त हो सके हर हर महादेव जवाब जरूर दें कृपया कर ����
जवाब देंहटाएंयशवंत जी, क्या आपने इस यात्रा वृतांत धारावाहिक की सभी किश्तें पढ़ ली है, यदि नहीं तो पहले इस यात्रा वृतांत की सभी किश्तें पढ़े जी.....यह धारावाहिक आपका संपूर्ण मार्गदर्शक साबित होगा, जी।
हटाएंहमें इस यात्रा को करने का सौभाग्य 2011 में प्राप्त हुआ खतरों और नरसैंगिक सौंद्रय का मिलाजुला मिश्रण है यह यात्रा फिट लोग ही यात्रा करें
हटाएंसत्य वचन, चौहान साहिब।
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