रविवार, 2 अप्रैल 2017

भाग-3 पैदल यात्रा लमडल झील वाय गज पास.... LamDal yatra via Gaj pass(4470mt)

भाग-3       पैदल यात्रा लमडल झील वाय गज पास(4470मीटर)
                         
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                               मित्रों,  यह मेरी लमडल पैदल यात्रा चित्रकथा की तीसरी किश्त हैं,  24अगस्त 2015 को मैं और ऋषभ धर्मशाला से करेरी गांव की तरफ जा रहे थे..... रास्ते में पूछने के लिए एक जगह रुका, तो वह भाई साहिब बोले.... करेरी गांव तक तो आपकी गाडी जा ही नहीं पाएगी, क्योंकि अभी गए बारिश के मौसम में करेरी गांव के रास्ते में सड़क कई जगह से बह गई हैं, जब मैने कहा कि मैने लमडल जाना हैं... तो वह हैरानी से मेरे तरफ देखते हुए बोले कि,  अभी तो "नाऊन" (पवित्र झील में नहाने का दो दिवसीय पर्व) तो अगले महीने हैं, आप अभी क्यों जा रहे हो.......मैने बोला कि भाई,  मैं तो एक ट्रैकर हूँ और ट्रैकिंग के लिए जा रहा हूँ......... उन्होंने कहा कि आपकी गाडी करेरी गांव से कुछ किलोमीटर पहले 'गेरा' गांव तक ही जा पाएगी, खैर हम चल पड़े आगे...... वही बात हुई गाडी, गेरा गांव से आगे नही जा सकती थी क्योंकि बारिश का पानी सड़क को अपने साथ ही बहा ले गया था......
                        गेरा गांव में एक चाय की दुकान पर हमने रुक कर लमडल के ट्रैक के बारे में पूछा तो वहां खड़े एक स्थानीय लड़के सतीश कुमार ने बताया कि आप यहां से लमडल झील दो रास्तों से जा सकते हैं, एक तो जो आप बता ही रहे हो करेरी वाला, और दूसरा आप करेरी गांव जाने की बजाय गेरा से भी जा सकते हो..... यहां से बग्गा और फिर गज पास नामक धौलाधार हिमालय पर्वत को लांघ कर लमडल झील तक पहुंच सकते हो.......... परन्तु इस दोनों रास्तों में करेरी वाला रास्ता इस रास्ते के कुछ आसान है, पर यह रास्ता गज पास वाले रास्ते से लम्बा हैं...... यानि कि आने-जाने में 6दिन पैदल का रास्ता, और गज पास वाला रास्ता कुछ छोटा तो हैं..... परन्तु बहुत ही कठिन, दुर्गम और सीधी चढाई है,  परन्तु इसमें कम से कम आने -जाने के लिए 4दिन लग जाएंगे........... और हमे दुकान से बाहर आकर सामने तन कर खड़ा "गज पास" दिखाया, जिसकी उँचाई को बादलों ने आधे से ज्यादा तक ढक रखा था ......और सतीश कुमार ने कहा कि इस पर्वत को पार करो, तो लमडल पहुंच जाओगें...... तो मैने झट से कह दिया कि "भाई, धन्यवाद अब मैं इसी गेरे वाले रास्ते से ही जाऊगां, क्योंकि मुझे कठिन रास्ते ही ज्यादा पंसद हैं.......... यदि आप मेरे लिए कोई पथप्रदर्शक या गाइड का प्रबन्ध करवा दो तो, बहुत आभारी हूँगा, जी "
                        तब सतीश जी बोले, इतनी जल्दी गाइड तो नही होगा... आप बस चलना शुरू करो, आगे बढ़ने का रास्ता व मददगार लोग खुद व खुद मिलते रहेंगे, और 13किलोमीटर का पैदल सफर तय कर आज रात तक "बग्गा" पहुंच जाओ....और उससे आगे के रास्ते पर पिछले साल के "नाऊन मेले" के दौरान रास्ता बताने के लिए थोड़ी-थोड़ी दूरी पर रंगे पत्थरों से आपको आगे बढ़ने का मार्ग मिलता रहेगा (परन्तु मित्रों,ऐसा हुआ नही..... क्योंकि एक साल में वर्षा व बर्फ सब कुछ मिटा व दबा देती हैं ) ............
                        बस फिर क्या था, मैं दुकानदार वीरू राम से बोला कि...... भाई, हमारी गाडी कहीं सुरक्षित जगह पर लगवाओ और अपने घर का फोन नम्बर उन्हें लिखवातें हुए बोला कि, "खुदा ना ख़ासता, यदि हम आज से चार दिन बाद वापस ना आए, तो पांचवें दिन हमारे घर में फोन कर देना.... ताकि घरवालें जल्द से जल्द हमे ढूढने की कार्यवाही तो शुरू कर सके, जी "
                        मित्रों, मैं आपको एक बात बताना चाहता हूँ कि,  जब भी हम ट्रैकिंग पर जाते हैं...हमारा सबसे सम्पर्क टूट जाता हैं क्योंकि सम्पर्क का एकमात्र ज़रिया हैं मोबाइल फोन, जो कि पहाड के थोड़ा ऊपर चढ़ने पर ही रेंज से बाहर हो जाते हैं.... और सब कुछ अपने रिस्क और दम पर ही करना होता हैं...... क्योंकि हमारे देश में ट्रैकिंग के लिए सरकार द्वारा कोई सुविधा व सुरक्षा इंतजाम नही है और आतंकवाद के कारण सेटेलाईट फोन पर भी प्रतिबंध हैं..........खैर मैने व  ऋषभ ने जल्दी से अपना सामान पीठ पर लाद कर जोर से "बम बम भोले" का जैकारा लगाया और रवाना हो चले  "लमडल झील" की तरफ.....
                                                                   ........................(क्रमश:)

गेरा गाँव (हिमाचल प्रदेश) में से निकल रही "गज नदी".....और इस नदी के किनारे-किनारे हमे लमडल झील के लिए पैदल चल कर, आज रात बग्गा नामक स्थान पर पहुंचना था..... 

गेरा गाँव में गज नदी पर बनी विद्युत परियोजना..... 



लो जी,  हमने अपना सामान लाद लिया है जी.... और चले लमडल झील की ओर "बम बम भोले " के जैकारे के संग.... 

गेरा गाँव में हमारे मददगार बने, सतीश कुमार जी..... जिनकी सलाह पर हमने लमडल पहुंचने के लिए गज पास वाला रास्ता चुना..... 

चाहे यह फोटो खिंचवाते समय मैं मुस्कराहट बिखरे रहा था... परन्तु भीतर से मेरी ह्रदयगति बहुत तेज थी और मैं उत्साहित होते हुए भी अनजान खतरों व रास्तों से भयभीत था.......

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4 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया शुरुआत... लोग आश्चर्य से देखने लगे गए कि कहा जा रहा है भाई.... वाकई वो भी शॉक हो गए

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    1. हां जी, शायद वो हमें सिरफ़िरे ही समझ बैठे हो... प्रतीक जी।

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  2. गज पास की एक फोटो भी तो डाल देते भाई जी कठिन यात्रा करना ही तो घुम्मकड़ी का हिस्सा है क्योकी पर्यटक तो आसान यात्रा करते है और ट्रेकर इसके उलट

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    1. बिल्कुल सही कहा आपने लोकेन्द्र जी, ट्रैकर को "आसान" शब्द से ज्यादा मुहब्बत कम ही होती है जी। बाकी तब गज पास पर बादलों ने कब्जा कर रखा था जी, जो सबसे पहली फोटो में दिख भी रहा है।

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