मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

भाग-8 पैदल यात्रा लमडल झील वाय गज पास.....Lamdal yatra via Gaj pass(4470mt)

भाग-8 पैदल यात्रा लमडल झील वाय गज पास (4470मीटर)
                     
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                                   अब मैं और ऋषभ नारदा......राणा चरण सिंह जी के साथ बग्गा जाने की बजाय उनके डेरे की तरफ चलने को तैयार थे, तो चरण सिंह की भतीजी ने कहा कि.... चाचू तुम ही इनको लमडल भगवान के दर्शन करवा लाओ....... और हमे खाने के लिए एक-एक कच्चा पहाड़ी फल जो कि आडू जैसा लग रहा था.....दिया, जो बहुत ही स्वादिष्ट था.......
चरण सिंह बोले, अभी तो चलते हैं सुबह देखेगें...कि क्या इंतजाम होगा, सो चल दिये हम दोनों भाई उनके पीछे-पीछे......
                       मेरे मन में बस एक ही ख्याल बार-बार आ रहा था, कि यदि हमारे और चरण सिंह के मिलन में क्षण भर का भी अंतर हो जाता,  और हम उस गलत रास्ते पर बढ़ जाते,  तो भगवान जाने कौन-कौन सी मुसीबत हमारा राह देख रही होती ....... यह सोच मेरे मन को विचलित और तन को कपकपा रही थी........ मुझे चरण सिंह में भगवान शिव के दिव्य दर्शन हो रहे थे,कि उन्होंने ही इन सज्जन को हमे अपने तक पहुंचाने के लिए हमारी सहायता करने हेतू भेजा है.........
                       कुछ आगे चले तो गज नदी पर बना लकड़ी का पुल पार कर एक वीरान छोटी सी जगह आई,  यहां बहुत सारी मशीनें आदि पड़ी थी...क्योंकि वहां सत्य साई गज प्रोजेक्ट का काम चल रहा था जो अब बंद पड़ा था....वहां से पहाड में सुरंग बनाई जा रही थी, जिसमें गज नदी का पानी डाल कर नीचे बन रहे बिजली उत्पादन प्रोजेक्ट में ले जाना था............ आगे फिर से एक छोटा लकड़ी का पुल आया और उसके नीचे गज नदी का पानी तेज प्रवाह में ऐसे बह रहा था, कि मानो पुल पार करने में कोई गलती हुई और वह हमे अपने आप में ही समा ले.....ऋषभ की पूरी जिम्मेदारी अब चरण सिंह ले रहे थे, वह उसके साथ-साथ चल कर उसकी पूर्ण सहायता कर रहे थे, इसलिए मैं अब  निश्चिंत हो कर उनकी भतीजी के साथ और  उन से आगे चल रहा था........
                       चरण सिंह ने मुझे बताया कि इस गज प्रोजेक्ट वाली जगह को हम स्थानीय लोग "नकेडा" कहते हैं और वो देखो सामने दूसरे पहाड पर यह छोटी सी पगडंडी भी.....यही से ही बग्गा के तरफ जाती है....... और यह देख-सुन कर मैं चरण सिंह के आगे अपने कद को छोटा होते हुए महसूस कर रहा था, कि कहां यह एक भेड़-बकरी वाला देहाती पहाड़ी गद्दी और कहां हम सभ्य बने शहरी, जो किसी पूछने वाले को रास्ता बताने के लिए,रुकते तक नही...... क्योंकि हमे तो अपनी ही दौड़ की सनक है और हमे उस राहगीर से क्या लेना-देना होता है........ जबकि राणा चरण सिंह जी से मैने तो सिर्फ रास्ता ही पूछा था, वह हमे बग्गा के इस सही रास्ते पर डाल कर खुद अपने रास्ते भी बढ़ सकते थे, परन्तु उन्होंने ऐसा नही किया...... और हम अनजान अजनबीयों के मददगार बन, हमे साथ ले अपने डेरे की तरफ जा रहे थे.........
                       गज नदी को पार कर अब हम एक पहाड पर चढ़ते जा रहे थे, और इस पहाड का नाम मुझे बताया गया "रैयल धार"......रास्ता तो मुझे कम ही नज़र आ रहा था, बस झाड़ियों के बीच-बीच में से निकल कर आगे बढ़ रहे थे......... और सूर्यास्त के बाद घने जंगल में एक दम से अंधेरे का साम्राज्य छा गया और मैने व ऋषभ ने अपनी टार्च निकाल ली, जबकि चरण सिंह ऐसे ही अंधेरे में चलते जा रहे थे....... मुझे आश्चर्य हुआ, मैने उनसे इस बारे में पूछा, तो वह बोले कि हमे अंधेरे में रास्ते पर पड़े पत्थरों की चमक से रास्ते का ज्ञान होता रहता है, मैने अपनी टार्च बंद कर ली,ताकि एक और नया तजुरबा कर सकूं....... सच में घोर अंधकार में भी रास्ते में गड़े हुए पत्थर एक हल्की सी लौ छोड़ रहे थे........और  चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा और उस ख़ामोशी को चीरता गज नदी के पानी का शोर........
                       हमे लगातार चलते-चलते दो घंटे के करीब हो चुके थे, कि मुझे एक आग की रोशनी सी दिखी, मैने सोचा चलो शुक्र है, कि हम डेरे पहुंच गए.... परन्तु एक गुफा से आ रही रोशनी की तरफ मुख कर दूर से चरण सिंह ने आवाज़ लगाई, "ओ पंजी ओ....ठीक है "  कह कर आगे बढ़ गए और बोले हमारा डेरा अभी और आगे है........
                       दोपहर को हुई बारिश से रास्ता कई जगह तो कीचड़ से बहुत फिसलनदार हो चुका था, कई बार तो फिसल चुके थे हम....... पर इस बार ऋषभ ऐसा फिसला कि उसका पैर आगे एक पत्थर से जा टकराया और अंगूठे का नाखून उखड़ सा गया और अब एक और नई मुसीबत ने घेर लिया हमें.........
           

                                                 
गज प्रोजेक्ट नकेडा में गज नदी की सहायक,  एक और नदी पर बना लकड़ी का पुल 

गज प्रोजेक्ट नकेडा 
हमे यह पुल बहुत खूबसूरत लग रहा था,  कई सारी फोटो इस पुल पर हम दोनों ने एक-दूसरे की खींच डाली.... 

चरण सिंह ने ऋषभ की पूरी जिम्मेदारी संभाल रखी थी.... 

गज नदी पर बने इस खतरनाक पुल से ऋषभ को पार करवाते चरण सिंह... 

जहाँ हम दोनों नकेडा पुल पर अपनी फोटो खींचने में व्यस्त थे.... तो चरण सिंह आगे रुके,  हमारा इंतजार कर रहे थे.. 

गज नदी पर बन रहे प्रोजेक्ट का रैयल धार पर चढ़ाई करते हुए लिया चित्र.... इस चित्र में टनल भी दिखाई दे रही है... 

गज नदी की अनुपम सुंदरता..... बार-बार मेरा ध्यान आकर्षित कर रही थी....

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7 टिप्‍पणियां:

  1. मिला एक ऐसा मित्र जिसे कभी भुलाया नही जा सकता

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    1. बिल्कुल सही कहा लोकेन्द्र जी, अभी परसों ही चरण सिंह का फोन आया था।

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    2. अदभुद और सुंदर, मुझे भी एक बार पैदल लंबी यात्रा करनी है पर समय की कमी के कारण कभी शुरू नही कर पाया,आपकी यात्रा के बारे में पढ़ के मुझे भी अब जल्द किसी पैदल यात्रा पर निकलने का मन हो गया।

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  2. चरण सिंह के रूप में सच मे ही शिव मिल गए क्योकि शायद चरण सिंह के बिना बहुत मुश्किल होता

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    1. राणा चरण सिंह के बिना लमडल जाना तो आत्महत्या का प्रयास ही था।

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  3. वाह क्या बात लिखी विकास जी
    हम शहरियों को तो सिर्फ़ अपनी दोड की सनक है। 😊
    सही मैं बिना आडंबर के देहाती हमसे लाख दर्जे बढ़िया है।

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