भाग-13 पैदलयात्रा लमडल झील वाय गज पास (4470मीटर)
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ग्लेशियर को पार कर राणा चरण सिंह एक खड़े पहाड पर चढ़ने लगे और मैं उनके पीछे-पीछे...... जहां हम अब चढ़ रहे थे, वहां बहुत ज्यादा हरियाली थी... हर तरफ तरुड़ घास ने सब कुछ ढक रखा था......यदि मैं अकेला होता तो मेरा इस जगह पर सही रास्ते को ढूंढ पाना ही मुश्किल हो जाता, पर चरण सिंह की मेहरबानी से सब कुछ आसान हो रहा था....... दोस्तों अब हम जिस रास्ते पर चढ़ रहे थे, वह एक दम से सीधी चढ़ाई थी और सिर्फ एक पांव रखने हेतू ही जगह थी, यानि पहला पांव गलत जगह पड़ा और "फोटो पर हार" चढ़ने वाली स्थिति....गज गिरिराज की पूरी चढ़ाई ही ऐसी है कि जैसे आप किसी खड़ी दीवार पर चढ़ रहे हो.......परन्तु इस रोमांच का अनुभव हम पर्वतारोहियों के लिए बहुत ही प्रिय व मीठा होता है, इस अनुभव को पाने के लिए हम पर्वतारोही बार-बार पर्वतारोहण के लिए जाते हैं........ऊपर चढ़ते-चढ़ते नीचे का दृश्य अब धुंध में विलीन हो रहा था, परन्तु नीचे गिर रहे जल प्रपातों के मधुर स्वर सम्पूर्ण वादी में गूंज रहे थे..... और मुझ संगीत-प्रेमी को वह गिरते जल की ध्वनि को सुनना शास्त्रीय राग "होंसध्वनि" से कम नही लग रहा था......
पिछली किश्त में मैंने आपको बताया था कि मुझ से मेरा रक्सक(पीठू बैग) चरण सिंह ने ले लिया था..... यह कह कर कि हम दोनों इस भार को बारी-बारी उठा लेते है...परन्तु दोस्तों मुझे मेरा रक्सक चरण सिंह ने वापस नही दिया, मेैंने जबरदस्ती भी अपना बैग वापस मांगा खुद उठाने के लिए....... परन्तु चरण सिंह ने यह मुझे हर बार मना दिया और कहा कि...... "ब्राह्मण देवता, आप मेरे अतिथि हो और मैं कैसे आपको भार उठाने दूँ...... मुझे आपकी सेवा करने का पुण्य कमाने दे और इस बात को दोबारा मत दोहरायें, क्योंकि यह बैग मैं आपको तब वापस दूँगा..... जब हम वापस अपने डेरे पर ऋषभ के पास पहुंच जाएगें "......दोस्तों, चरण सिंह की इस बात पर मैं तब भी निशब्द था और अब भी निशब्द हूँ....मेरे पास राणा चरण सिंह के अद्भुत अतिथि सत्कार की व्याख्या करने हेतू शब्द ही नही हैं....
गज पर्वत के ऊपर कुछ चढ़ने के बाद हम दोनों कुछ समय विश्राम के लिए रुके और हिमाचल प्रदेश के एक वियावान पहाड पर गुजरात की मशहूर कम्पनी की लस्सी, क्या आनंद था मित्रों...... पसीने से मैं तो एक दम नहा चुका था, पर चरण सिंह ने तो ऊपर से एक गर्म कोट भी डाल रखा था, मैने हैरानी से चरण सिंह से पूछा कि राणा जी, इस कोट में क्या आपको गर्मी नही लग रही, तो बोले.... "यह कोट मैने खुद अपनी भेड़ो के ऊन से बनाया है, यह हमारे शरीर को सर्दियों में गर्म तो गर्मियों में पसीना आने के बाद ठण्डा ही बनाए रखने में मदद करता है....इस कोट की वजह से एक दफा पसीना आने के बाद शरीर ठण्डे का ठण्डा ही बना रहता है और सूर्यास्त के बाद ठण्ड में फिर से मुझे गर्म रखता है"....... चरण सिंह की यह बात सुन अब मेरी समझ में आया कि जब भी मैं गर्मियों में पहाड पर जाता हूँ तो वहां के लोग अक्सर स्वेटर पहने नजर क्यों आते हैं.........
रास्ता तो बस, चढाई ही चढाई..... और हर तरफ बादल कहूं या धुंध कुछ समझ नही पा रहा था, क्योंकि ना तो मुझे ऊपर की ओर कुछ नज़र आ रहा था और ना ही नीचे की ओर, बस कुछ दूर तक ही दिखाई दे पा रहा था.... और खामोशी को तोड़ती हम दोनों की आवाजें..... कुछ समय बाद मैं भगवान शिव का उदघोष लगा कर वादी में अपनी आवाज़ फैला देता...... चरण सिंह ने मुझे रास्ते में एक पौधा दिखाया और बोले, कि यह "भूजलू" है..... एक अति ज्वलनशील पौधा है, इसे हरे को ही आग लग जाती है... इसे दोनों हाथों मे मल कर बस आग तो दिखाओ,फिर देखो यह पेट्रोल की तरह जलता है.... मेरे लिए तो यह जानकारियां लाभप्रदता से भरपूर सिद्ध हो रही थी, हर क्षण मैं राणा चरण सिंह से कुछ ना कुछ नया सीख रहा था..... कभी मुझे चरण सिंह "सर्प की मक्की" जिस की जड़ भालू बहुत चाव से खाता है,दिखाते....और कभी मवेशियों के लिए टॉनिक "निर घास" दिखाते...... तो कभी रास्ते से हट कर दरारों को पकड़ कर ऊपर चढ़ने का गुर सिखाते....... चरण सिंह बातों के धनी होने के साथ-साथ एक ज्ञानी व्यक्ति है, वह कभी मुझे महाभारत के किस्से तो कभी राजाओं की कहानियाँ सुना रहे थे....मैने पूछा कि यह सब आपने कहां से सीखा, तो चरण सिंह ने कहा....."मैं तो सातवीं जमात तक पढ़ा हूँ परन्तु मैने सब कुछ अपने स्वर्गीय पिता राणा पुन्नू राम जी से सीखा है.... और हां मेरे पिता मुझे बताते थे कि हमारे पूर्वज जम्मू इलाके के किसी रियासत के शासक थे और हम कालान्तर में यहां आकर बसे है".... और हंसते हुए बोले कि मुझे एक स्वप्न बार-बार आता है कि मुझे मेरा खोया हुआ राजवंश दोबारा मिलेगा...... मैने महसूस किया कि चरण सिंह स्वप्नों में बहुत विश्वास करते हैं... उन्होंने मुझे यहां तक भी कह दिया.....कि पिछली रात मुझे सपने में वाणी हुई कि तेरे पास आया यह व्यक्ति (यानि मैं) साधारण व्यक्ति नही है......... मैं जोर-जोर से हंसने लगा, पर उन्होंने जो कुछ भी मेरे बारे में उस स्वप्न से सम्बधिंत कहा, वह सौ प्रतिशत सत्य था..........
धुंध और बादलों में से आगे बढ़ते हुए पगडंडी पर एक छोटी सी समतल जगह आई, तो चरण सिंह ने बताया कि इस जगह को हम "खराडी" नाम से बुलातें हैं... यहां नौयोन (दो दिवसीय वार्षिक मेला) के दौरान तीर्थ यात्रियों के लिए पहला लंगर लगाया जाता है....... मैने महसूस किया कि यह लंगर बिल्कुल सही जगह लगाया जाता है, कि जैसे ही पदयात्री यहां तक थका-हारा सा पहुंचे, उस में फिर से जोश व शक्ति भर कर उसके लक्ष्य की तरफ रवाना कर दो........
गज पर्वत पर चढ़ते-चढ़ते 3घंटे से भी ज्यादा हो चले थे और मेरे पास जो 1लीटर पानी की बोतल थी, वह खत्म हो चुकी थी........ मैने चरण सिंह से कहा कि, राणा जी, ध्यान रखना पानी खत्म हो गया है...... तो चरण सिंह ने कहा, अब तो शाम को लमडल झील पर जा कर ही पानी मिलेगा, क्योंकि गज नदी की सभी धाराऐं तो हम कब के नीचे छोड़ आए हैं........ उनकी यह बात सुन कर कि पानी अब रास्ते में कहीं नही मिलेगा, प्यास अति तीव्र रुप में तबदील हो गई......ऊपर से चढाई चढ़ते रहने की कठिनता और गज का शिखर तो कहीं दिखाई भी नही दे रहा था ....... समुद्र तट से बढ़ रही ऊँचाई से कम हो रहा आक्सीजन का स्तर, बहुत तेज गति से चल रही ह्रदयगति, सूख रहा मुंह-गला और मेरे पास पानी की खाली बोतल .....बहुत विकट परिस्थिति आन पड़ी थी मुझ पर अब........
.............................(क्रमश:)
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ग्लेशियर को पार कर राणा चरण सिंह एक खड़े पहाड पर चढ़ने लगे और मैं उनके पीछे-पीछे...... जहां हम अब चढ़ रहे थे, वहां बहुत ज्यादा हरियाली थी... हर तरफ तरुड़ घास ने सब कुछ ढक रखा था......यदि मैं अकेला होता तो मेरा इस जगह पर सही रास्ते को ढूंढ पाना ही मुश्किल हो जाता, पर चरण सिंह की मेहरबानी से सब कुछ आसान हो रहा था....... दोस्तों अब हम जिस रास्ते पर चढ़ रहे थे, वह एक दम से सीधी चढ़ाई थी और सिर्फ एक पांव रखने हेतू ही जगह थी, यानि पहला पांव गलत जगह पड़ा और "फोटो पर हार" चढ़ने वाली स्थिति....गज गिरिराज की पूरी चढ़ाई ही ऐसी है कि जैसे आप किसी खड़ी दीवार पर चढ़ रहे हो.......परन्तु इस रोमांच का अनुभव हम पर्वतारोहियों के लिए बहुत ही प्रिय व मीठा होता है, इस अनुभव को पाने के लिए हम पर्वतारोही बार-बार पर्वतारोहण के लिए जाते हैं........ऊपर चढ़ते-चढ़ते नीचे का दृश्य अब धुंध में विलीन हो रहा था, परन्तु नीचे गिर रहे जल प्रपातों के मधुर स्वर सम्पूर्ण वादी में गूंज रहे थे..... और मुझ संगीत-प्रेमी को वह गिरते जल की ध्वनि को सुनना शास्त्रीय राग "होंसध्वनि" से कम नही लग रहा था......
पिछली किश्त में मैंने आपको बताया था कि मुझ से मेरा रक्सक(पीठू बैग) चरण सिंह ने ले लिया था..... यह कह कर कि हम दोनों इस भार को बारी-बारी उठा लेते है...परन्तु दोस्तों मुझे मेरा रक्सक चरण सिंह ने वापस नही दिया, मेैंने जबरदस्ती भी अपना बैग वापस मांगा खुद उठाने के लिए....... परन्तु चरण सिंह ने यह मुझे हर बार मना दिया और कहा कि...... "ब्राह्मण देवता, आप मेरे अतिथि हो और मैं कैसे आपको भार उठाने दूँ...... मुझे आपकी सेवा करने का पुण्य कमाने दे और इस बात को दोबारा मत दोहरायें, क्योंकि यह बैग मैं आपको तब वापस दूँगा..... जब हम वापस अपने डेरे पर ऋषभ के पास पहुंच जाएगें "......दोस्तों, चरण सिंह की इस बात पर मैं तब भी निशब्द था और अब भी निशब्द हूँ....मेरे पास राणा चरण सिंह के अद्भुत अतिथि सत्कार की व्याख्या करने हेतू शब्द ही नही हैं....
गज पर्वत के ऊपर कुछ चढ़ने के बाद हम दोनों कुछ समय विश्राम के लिए रुके और हिमाचल प्रदेश के एक वियावान पहाड पर गुजरात की मशहूर कम्पनी की लस्सी, क्या आनंद था मित्रों...... पसीने से मैं तो एक दम नहा चुका था, पर चरण सिंह ने तो ऊपर से एक गर्म कोट भी डाल रखा था, मैने हैरानी से चरण सिंह से पूछा कि राणा जी, इस कोट में क्या आपको गर्मी नही लग रही, तो बोले.... "यह कोट मैने खुद अपनी भेड़ो के ऊन से बनाया है, यह हमारे शरीर को सर्दियों में गर्म तो गर्मियों में पसीना आने के बाद ठण्डा ही बनाए रखने में मदद करता है....इस कोट की वजह से एक दफा पसीना आने के बाद शरीर ठण्डे का ठण्डा ही बना रहता है और सूर्यास्त के बाद ठण्ड में फिर से मुझे गर्म रखता है"....... चरण सिंह की यह बात सुन अब मेरी समझ में आया कि जब भी मैं गर्मियों में पहाड पर जाता हूँ तो वहां के लोग अक्सर स्वेटर पहने नजर क्यों आते हैं.........
रास्ता तो बस, चढाई ही चढाई..... और हर तरफ बादल कहूं या धुंध कुछ समझ नही पा रहा था, क्योंकि ना तो मुझे ऊपर की ओर कुछ नज़र आ रहा था और ना ही नीचे की ओर, बस कुछ दूर तक ही दिखाई दे पा रहा था.... और खामोशी को तोड़ती हम दोनों की आवाजें..... कुछ समय बाद मैं भगवान शिव का उदघोष लगा कर वादी में अपनी आवाज़ फैला देता...... चरण सिंह ने मुझे रास्ते में एक पौधा दिखाया और बोले, कि यह "भूजलू" है..... एक अति ज्वलनशील पौधा है, इसे हरे को ही आग लग जाती है... इसे दोनों हाथों मे मल कर बस आग तो दिखाओ,फिर देखो यह पेट्रोल की तरह जलता है.... मेरे लिए तो यह जानकारियां लाभप्रदता से भरपूर सिद्ध हो रही थी, हर क्षण मैं राणा चरण सिंह से कुछ ना कुछ नया सीख रहा था..... कभी मुझे चरण सिंह "सर्प की मक्की" जिस की जड़ भालू बहुत चाव से खाता है,दिखाते....और कभी मवेशियों के लिए टॉनिक "निर घास" दिखाते...... तो कभी रास्ते से हट कर दरारों को पकड़ कर ऊपर चढ़ने का गुर सिखाते....... चरण सिंह बातों के धनी होने के साथ-साथ एक ज्ञानी व्यक्ति है, वह कभी मुझे महाभारत के किस्से तो कभी राजाओं की कहानियाँ सुना रहे थे....मैने पूछा कि यह सब आपने कहां से सीखा, तो चरण सिंह ने कहा....."मैं तो सातवीं जमात तक पढ़ा हूँ परन्तु मैने सब कुछ अपने स्वर्गीय पिता राणा पुन्नू राम जी से सीखा है.... और हां मेरे पिता मुझे बताते थे कि हमारे पूर्वज जम्मू इलाके के किसी रियासत के शासक थे और हम कालान्तर में यहां आकर बसे है".... और हंसते हुए बोले कि मुझे एक स्वप्न बार-बार आता है कि मुझे मेरा खोया हुआ राजवंश दोबारा मिलेगा...... मैने महसूस किया कि चरण सिंह स्वप्नों में बहुत विश्वास करते हैं... उन्होंने मुझे यहां तक भी कह दिया.....कि पिछली रात मुझे सपने में वाणी हुई कि तेरे पास आया यह व्यक्ति (यानि मैं) साधारण व्यक्ति नही है......... मैं जोर-जोर से हंसने लगा, पर उन्होंने जो कुछ भी मेरे बारे में उस स्वप्न से सम्बधिंत कहा, वह सौ प्रतिशत सत्य था..........
धुंध और बादलों में से आगे बढ़ते हुए पगडंडी पर एक छोटी सी समतल जगह आई, तो चरण सिंह ने बताया कि इस जगह को हम "खराडी" नाम से बुलातें हैं... यहां नौयोन (दो दिवसीय वार्षिक मेला) के दौरान तीर्थ यात्रियों के लिए पहला लंगर लगाया जाता है....... मैने महसूस किया कि यह लंगर बिल्कुल सही जगह लगाया जाता है, कि जैसे ही पदयात्री यहां तक थका-हारा सा पहुंचे, उस में फिर से जोश व शक्ति भर कर उसके लक्ष्य की तरफ रवाना कर दो........
गज पर्वत पर चढ़ते-चढ़ते 3घंटे से भी ज्यादा हो चले थे और मेरे पास जो 1लीटर पानी की बोतल थी, वह खत्म हो चुकी थी........ मैने चरण सिंह से कहा कि, राणा जी, ध्यान रखना पानी खत्म हो गया है...... तो चरण सिंह ने कहा, अब तो शाम को लमडल झील पर जा कर ही पानी मिलेगा, क्योंकि गज नदी की सभी धाराऐं तो हम कब के नीचे छोड़ आए हैं........ उनकी यह बात सुन कर कि पानी अब रास्ते में कहीं नही मिलेगा, प्यास अति तीव्र रुप में तबदील हो गई......ऊपर से चढाई चढ़ते रहने की कठिनता और गज का शिखर तो कहीं दिखाई भी नही दे रहा था ....... समुद्र तट से बढ़ रही ऊँचाई से कम हो रहा आक्सीजन का स्तर, बहुत तेज गति से चल रही ह्रदयगति, सूख रहा मुंह-गला और मेरे पास पानी की खाली बोतल .....बहुत विकट परिस्थिति आन पड़ी थी मुझ पर अब........
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बकरोट ग्लेशियर से गुज़रते राणा चरण सिंह... |
गज गिरिराज पर पहले कदम.... चरण सिंह के पीछे दिखाई दे रहा गज नदी का झरना... |
इतनी हरियाली में रास्ता मिलना, मेरे अकेले के बस से बाहर की बात थी.... |
परन्तु कई जगह तो पगडंडी ही नही थी... ऐसी ही खतरनाक चट्टानों पर ऊपर की ओर चढ़ रहे थे हम, सांप-सीढ़ी के खेल की तरह अगला कदम गलत रख दिया... तो नतीजा भयंकर |
थकान के बाद...पी हुई लस्सी के आंनद को तो, मैं उमर भर नही भूल सकता... दोस्तों |
सर्प की मक्की, जिसकी जड़ भालू को बेहद पंसद है.... |
भूजलू का पौधा.... एक ज्वलनशील पहाड़ी मदद |
बस चढ़ाई ही चढ़ाई... |
नौआन यात्रा के दौरान लगते, पहले लंगर वाली जगह "खराडी" और यहां एक लोहे का पाईप पड़ा था, जिस पर कपड़ा डाल यात्रियों के विश्राम हेतू कक्ष बनाया जाता है... ( अगला भाग पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें ) |
राणा जी तो रामदेव और उनके साथी को भी पीछे छोड़ गए जड़ी बूटियों ओर पोधो के बारे में जानकारी के मामले में
जवाब देंहटाएंHaha Haha.... सही कहा आपने लोकेन्द्र जी।
हटाएंवाह सर्प की मक्की...राणा जी के अथित्य के सामने सच में निशब्द है हम भी...पानी के कमी ने रोमांच ला दिया और इसी kick के लिए आप पर्वतारोहण करते है और यह आपकी आत्मा की खुराक है...
जवाब देंहटाएंसत्य वचन प्रतीक जी, राणा चरण सिंह के मेहमान नवाज़ी का कोई सानी नही है.... बाकी रोमांच हासिल करने ही तो मेरी पर्वतारोहण की चाबी है, जी।
हटाएंस्थानीय लोगो के साथ पहाड़ों की यात्रा बहुत ही ज्ञान वर्धक और सुविधाजनक होता हैं। एक शानदार साथी के साथ शानदार यात्रा।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने कपिल जी, बेहद धन्यवाद जी।
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