भाग8 चलो, चलते हैं...... सर्दियों में खीरगंगा(2960मीटर) 2जनवरी 2016
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खीरगंगा धर्मशाला के कमरे में मेरी रात तो बहुत आराम से कटी, पर विशाल जी कुछ परेशान से रहे...क्योंकि उन्हें पांच कम्बलों में भी ठण्ड लग रही थी। सुबह के सात बजे हमारी नींद खुली और हर बार की तरह पहाड में बिताई रात के बाद हुई सुबह को देखने की जिज्ञासा हमेशा ही होती है...सो दरवाज़ा खोल, बाहर का नज़ारा देखने के लिए हम दोनों उठे.....और अब मेरी आँखों के सामने वो 24साल पहले जैसा ही दृश्य था, बस फर्क इतना था कि उस बेशुमार खुली जगह में अब मौसमी ढाबों की चंद इमारतें सी खड़ी हो चुकी थी। वो ही 24साल पहले गर्मियों में देखा...हरियाली से भरा घास का खुला मैदान, अब बर्फ पड़ने से सफेद ही सफेद हो चुका था।
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खीरगंगा धर्मशाला के कमरे में मेरी रात तो बहुत आराम से कटी, पर विशाल जी कुछ परेशान से रहे...क्योंकि उन्हें पांच कम्बलों में भी ठण्ड लग रही थी। सुबह के सात बजे हमारी नींद खुली और हर बार की तरह पहाड में बिताई रात के बाद हुई सुबह को देखने की जिज्ञासा हमेशा ही होती है...सो दरवाज़ा खोल, बाहर का नज़ारा देखने के लिए हम दोनों उठे.....और अब मेरी आँखों के सामने वो 24साल पहले जैसा ही दृश्य था, बस फर्क इतना था कि उस बेशुमार खुली जगह में अब मौसमी ढाबों की चंद इमारतें सी खड़ी हो चुकी थी। वो ही 24साल पहले गर्मियों में देखा...हरियाली से भरा घास का खुला मैदान, अब बर्फ पड़ने से सफेद ही सफेद हो चुका था।
सामने दिख रहे पर्वत शिखर सूर्योदय की सुनहरी आभा से सुशोभित हो रहे थे, और धर्मशाला से ऊपर की ओर गर्म पानी के दो जलाशय जिन्हें पार्वती कुण्ड कहा जाता है व शिव मंदिर, जिन्हें मैं अब की बार ही देख रहा था, पहले तो यहाँ सिर्फ एक छोटा सा जल-कुंड व एक छोटा सा लकड़ी का बना कमरा ही हुआ करता था।
तभी, विशाल जी की नज़र हमारे कमरे के पास ही बर्फ पर बने पैरों के ताज़ा निशानों पर जा पड़ी.......और वह पैरों के निशान ऐसे कि हट्टे-कट्टे आदमी के भी होश उड़ा दे, क्योंकि वो निशान भालू के पैरों के निशान थे..!!
दोस्तों सोच कर ही रुह कांप गई, कि कल रात हमारे कमरे के बाहर जंगली भालू घूम रहा था, मैने विशाल जी से कहा कि यह जंगली भालू शायद भोजन की तलाश में यहाँ तक आया होगा।एक घंटे के करीब तक हम दोनों अपने कमरे के बाहर खड़े ही आस-पास का नज़ारा अपने कैमरों में भरते रहे। फिर कुछ समय बाद पवित्र पार्वती कुण्ड के गर्म जल में स्नान करने हेतू चल दिये, कि हमे टेक चंद जी ने रोक कर कहा कि, "आप पुरुषों के कुण्ड में नहाने की बजाय स्त्रियों के कुण्ड में नहा लेना, क्योंकि वह कुण्ड लकड़ी के फट्टों की चारदीवारी से घिरा होने से....बाहर चल रही सर्द हवा से बचा जा सकता है, और दोनों कुण्ड एक साथ ही बने हुए हैं।"
हम दोनों टेक चंद जी के कहे अनुसार बगैर किसी झिझक के महिला स्नानघर में दाखिल हो गये, परन्तु वहाँ कुण्ड की सीढियों पर काई जमी होने के कारण काफी फिसलन थी, और उस फिसलन ने मुझे पीठ के बल गिरा दिया। ठण्ड में लगी हल्की सी चोट भी बहुत जोर से लगती है मित्रों....!!!!!
और हम दोनों पार्वती कुण्ड के उष्ण जल के अंदर उस अद्वितीय क्षणों को भोग रहे थे, जो संसार के किसी भी मल्टी स्टार होटल के "तरणताल " में भी नही प्राप्त हो सकते। दो और लड़के वहाँ स्नान करने के लिए आये, तो मैने उनसे पूछा कि आप कहाँ से हो। वे बोले- "दिल्ली से और हम भी कल शाम यहाँ पहुँचेे थे।" यमुनानगर के किसी इंजीनियरिंग कॉलेज के विद्यार्थी थे वह दोनों लड़के.....मैं सोचने लगा, यानि कल रात हमारे अलावा खीरगंगा की धर्मशाला में ये दोनों लड़के और चण्डीगढ़ वाले दो लड़के व लड़की ही पहुँच पाये थे.....हालाँकि बरषैनी से काफी लोग चले थे खीरगंगा के लिये, पर अंततः पहुंचे खीरगंगा हम सात लोग ही...!!
हम दोनों पवित्र स्नान लेकर कुण्ड से बाहर निकले ही थे, कि तीन लड़के और स्नानघर में दाखिल हुए....मैने उनसे हैरान हो पूछा कि कितने मुँह-अंधेरे सुबह बरषैनी से चले थे क्या आप लोग, जो सुबह आठ बजे ही खीरगंगा आ पहुँचें।
तो, उनमें से एक लड़का बोला, "भईया हम तो कल के बरषैनी से चले हुए हैं, रास्ते में ही अंधेरा हो गया और हमारे पास रौशनी के लिए हमारे मोबाइल फोनों की टॉर्चें ही थी, वो बैटरी खत्म होने पर बंद हो गई....फिर क्या था "मैन वरर्सिस वाइल्ड" बन गये हम, एक पत्थर के ओट में हम तीनों आग जला कर सारी बैठे रहे और सुबह होते ही इस ओर चले आये।" विशाल जी बोले, "भाई बड़े हिम्मत वाले हो तुम तीनों।" मैने हंसते हुए विशाल जी से कहा, "जनाब, यह सब चढ़ती जवानी का खेल है....इस उम्र में तो ये लोग पानी भी चबा कर पी रहे हैं......!! "
और, हम पार्वती कुण्ड की चारदीवारी से बाहर निकल कर वापस अपने कमरे में आ गये। टेक चंद जी हमे चाय दे गये, चाय पीने के बाद हम पार्वती कुण्ड से ऊपर की ओर बने शिव मंदिर तथा खीरगंगा गर्म जलस्रोत को देखने के लिए फिर से चल दिये और मैने अपनी बाँसुरियाँ भी साथ में उठा ली, कि इस हसीन दिलकश वादी में बाँसुरीवादन का एक-आध वीडियो ही बनवा लूँ...!
और, हम पार्वती कुण्ड की चारदीवारी से बाहर निकल कर वापस अपने कमरे में आ गये। टेक चंद जी हमे चाय दे गये, चाय पीने के बाद हम पार्वती कुण्ड से ऊपर की ओर बने शिव मंदिर तथा खीरगंगा गर्म जलस्रोत को देखने के लिए फिर से चल दिये और मैने अपनी बाँसुरियाँ भी साथ में उठा ली, कि इस हसीन दिलकश वादी में बाँसुरीवादन का एक-आध वीडियो ही बनवा लूँ...!
मंदिर के आस-पास भी काफी बर्फ थी, मंदिर में माथा टेकने के बाद हम खीरगंगा के जलस्रोत पर आ गये....जो कि पर्वत के मध्य से निकल रही गर्म जल की धारा है और वहाँ दूध की मलाई जैसा सफेद रंग का कोई पदार्थ जमा हुआ था।
दोस्तों, खीरगंगा एक प्राचीन तीर्थ स्थल है...मान्यता है कि शिव-पार्वती के दोनों पुत्रों कार्तिक स्वामी व गणपति गणेश में विवाह सम्बन्धी प्रतियोगिता में कार्तिक जी रुष्ट हो कर, खीरगंगा पर्वत में बनी एक गुफा में आ बैठे और यहीं तपस्या करने लगे, तो माता पार्वती ने मातृमोह में इस घनघोर जंगल में अकेले रह रहे अपने पुत्र के भोजन का प्रबन्ध किया, कि यहाँ पर्वत से ही खीर का फुब्वारा बहना शुरु हो गया। कार्तिक जी की गुफा अभी भी शिव मंदिर से कोई 60मीटर की ऊँचाई पर है, कहा जाता है कि कार्तिक जी इस गुफा में भूमिगत रास्ते से ही 40किलोमीटर दूर पार्वती नदी के उद्गम स्थल "मानतलाई झील" में स्नान करने जाते थे।
दोस्तों, खीरगंगा एक प्राचीन तीर्थ स्थल है...मान्यता है कि शिव-पार्वती के दोनों पुत्रों कार्तिक स्वामी व गणपति गणेश में विवाह सम्बन्धी प्रतियोगिता में कार्तिक जी रुष्ट हो कर, खीरगंगा पर्वत में बनी एक गुफा में आ बैठे और यहीं तपस्या करने लगे, तो माता पार्वती ने मातृमोह में इस घनघोर जंगल में अकेले रह रहे अपने पुत्र के भोजन का प्रबन्ध किया, कि यहाँ पर्वत से ही खीर का फुब्वारा बहना शुरु हो गया। कार्तिक जी की गुफा अभी भी शिव मंदिर से कोई 60मीटर की ऊँचाई पर है, कहा जाता है कि कार्तिक जी इस गुफा में भूमिगत रास्ते से ही 40किलोमीटर दूर पार्वती नदी के उद्गम स्थल "मानतलाई झील" में स्नान करने जाते थे।
ज्यादा बर्फ होने के कारण हम ने उस गुफा को नीचे से ही देखा। 24साल पहले भी मैं उस गुफा को देख नही पाया था, क्योंकि तब एक साधु अपने-आप को उस गुफा में बंद कर कड़ी तपस्या में लीन था, सो तब गुफा पर जाने की मनाही थी। कालान्तर में भगवान परशुराम जी ने यह सोच कर गर्म खीर को जल में तबदील कर दिया, कि कलयुग में इस खीर के लिए झगड़े ना हो।
मैने विशाल जी से कहा कि, यदि आज से केवल एक सदी पहले हमारे पूर्वज यहाँ खीरगंगा आये होगें, तो उनके लिए यह पहाड से निकलता गर्म पानी का यह स्रोत कितना आश्चर्यजनक महत्व रखता होगा ना। विशाल जी बोले, "आश्चर्यजनक आज भी है विकास जी, परन्तु हम दोनों इस गर्म जल के वैज्ञानिक कारण को बखूबी जानते है कि इस जल-सोहते के रास्ते में गंधक की चट्टानों के सम्पर्क में आने से रासायनिक क्रिया कर यह पानी गर्म हो जाता है। मैने विशाल जी से कहा, "हां यह ही अंतिम सत्य है....परन्तु यह हमारे हिन्दू धर्म की आस्था है और इसी अटूट आस्था में बने रहने से, हमें मानसिक व आध्यात्मिक सुख तथा शांति की प्राप्ति होती है....सो सब कुछ जानते हुए भी हम इसका निर्वाह कर रहे हैं और अपनी अगली पीढ़ी को भी इस आस्था से जोड़ रहे है.....!" विशाल जी ने जल-स्रोत पर जमी हुई सफेद काई (मलाई) के बारे में तर्क दिया कि हो सकता है यह मलाई लोग पुराने समय में खाते भी हो........मैने कहा, "हां क्यों नही हो सकता....इस गंधक मिश्रित गर्म जल में बहुत से औषधिकारक गुण है, इसे पीने से पेट सम्बन्धी बीमारियों और नहाने से चर्म रोग ठीक होता है, ऐसा स्थानीय लोगों का मत है....!"
मैने विशाल रतन जी से कहा कि अब आप कृपया मेरा बाँसुरीवादन का वीडियो बनाये, यहाँ इस माहौल में किये इस कर्म को, मैं जीवन भर की याद के रुप में अपने पास संजो कर रखना चाहता हूँ। परन्तु दोस्तों, शुन्य से भी नीचे तापमान में चल रही सर्द हवा से कुछ ही पलों में बाँसुरी पर रखी हुई अँगुलियाँ सुन्न हो अकड़ गई और समुद्र तट से 2960मीटर की ऊँचाई में कम आक्सीजन स्तर लगातार बाँसुरी फूँकनें में विपदा खड़ी कर रहा था, मेरे होठ और जीभ बाँसुरी बजाते हुए खुश्क होते जा रहे थे, इसलिए एक सफल वीडियो बनाने में बार-बार असफलता ही पल्ले पड़ रही थी.....और विशाल जी भी अब बर्फ में खड़े-खड़े परेशान दिख रहे थे। सो मैने उनसे एक आखिरी मौके का आग्रह कर, खीरगंगा जल-स्रोत से गर्म पानी पी तथा हाथों को गर्म कर एक सफल वीडियो बनवा ही डाला, उस वीडियो के बोल भी खीरगंगा की अथाह मनभावन सुरम्यता के अनुसार ही थे....
"छूकर मेरे मन को, किया तूने क्या इशारा.... बदला यह मौसम, बदला जग सारा "
.....................(क्रमश:)
मैने विशाल जी से कहा कि, यदि आज से केवल एक सदी पहले हमारे पूर्वज यहाँ खीरगंगा आये होगें, तो उनके लिए यह पहाड से निकलता गर्म पानी का यह स्रोत कितना आश्चर्यजनक महत्व रखता होगा ना। विशाल जी बोले, "आश्चर्यजनक आज भी है विकास जी, परन्तु हम दोनों इस गर्म जल के वैज्ञानिक कारण को बखूबी जानते है कि इस जल-सोहते के रास्ते में गंधक की चट्टानों के सम्पर्क में आने से रासायनिक क्रिया कर यह पानी गर्म हो जाता है। मैने विशाल जी से कहा, "हां यह ही अंतिम सत्य है....परन्तु यह हमारे हिन्दू धर्म की आस्था है और इसी अटूट आस्था में बने रहने से, हमें मानसिक व आध्यात्मिक सुख तथा शांति की प्राप्ति होती है....सो सब कुछ जानते हुए भी हम इसका निर्वाह कर रहे हैं और अपनी अगली पीढ़ी को भी इस आस्था से जोड़ रहे है.....!" विशाल जी ने जल-स्रोत पर जमी हुई सफेद काई (मलाई) के बारे में तर्क दिया कि हो सकता है यह मलाई लोग पुराने समय में खाते भी हो........मैने कहा, "हां क्यों नही हो सकता....इस गंधक मिश्रित गर्म जल में बहुत से औषधिकारक गुण है, इसे पीने से पेट सम्बन्धी बीमारियों और नहाने से चर्म रोग ठीक होता है, ऐसा स्थानीय लोगों का मत है....!"
मैने विशाल रतन जी से कहा कि अब आप कृपया मेरा बाँसुरीवादन का वीडियो बनाये, यहाँ इस माहौल में किये इस कर्म को, मैं जीवन भर की याद के रुप में अपने पास संजो कर रखना चाहता हूँ। परन्तु दोस्तों, शुन्य से भी नीचे तापमान में चल रही सर्द हवा से कुछ ही पलों में बाँसुरी पर रखी हुई अँगुलियाँ सुन्न हो अकड़ गई और समुद्र तट से 2960मीटर की ऊँचाई में कम आक्सीजन स्तर लगातार बाँसुरी फूँकनें में विपदा खड़ी कर रहा था, मेरे होठ और जीभ बाँसुरी बजाते हुए खुश्क होते जा रहे थे, इसलिए एक सफल वीडियो बनाने में बार-बार असफलता ही पल्ले पड़ रही थी.....और विशाल जी भी अब बर्फ में खड़े-खड़े परेशान दिख रहे थे। सो मैने उनसे एक आखिरी मौके का आग्रह कर, खीरगंगा जल-स्रोत से गर्म पानी पी तथा हाथों को गर्म कर एक सफल वीडियो बनवा ही डाला, उस वीडियो के बोल भी खीरगंगा की अथाह मनभावन सुरम्यता के अनुसार ही थे....
"छूकर मेरे मन को, किया तूने क्या इशारा.... बदला यह मौसम, बदला जग सारा "
.....................(क्रमश:)
पहले चित्र से... सूर्योदय की सुनहरी आभा, हमारे कमरे के बाहर बर्फ पर भालू के पैरों के ताज़ा निशान, खीरगंगा के सुंदर मैदान में बनी मौसमी ढाबों की चंद इमारतें। |
खीरगंगा शिव मंदिर को जाता हुआ रास्ता। |
खीरगंगा की सुंदरता को अपने कैमरे में संजोनें में व्यस्त विशाल रतन जी। |
हर हर महादेव....तेरी कृपा ही हमें खीरगंगा ले आई, वरना हमारी क्या औकात...!! |
खीरगंगा उष्ण जल-स्रोत से जल बह कर पार्वती कुण्ड में एकत्रित होता है, और इस जल में बहुत सारे औषधिक गुण भी है... क्या खूब नज़ारा है.... हैं ना दोस्तों। |
पार्वती कुण्ड के गर्म जल में नहाने के बाद.... बेहद तरो-ताज़ा महसूस हो रहा था, दोस्तों। ( अगला भाग पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें ) |
बहुत बढ़िया पोस्ट..अगर आप टेंट में सोये होते तो भी क्या भालू से बच जाते ?
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी, यह बात तो आपने सही कही, भालू का सामना कौन करना चाहता है जी.... पर यदि भविष्य में हो गया तो, या तो वहाँ से भाग लूगाँ या फिर भालू के साथ जोर-अज़माइश में "भाग" लूगाँ, जी।
हटाएंबहुत ही बढि़या विवरण विकास नारदा जी, दिल खुश हो गया, वैसे आपके सामने भालू आ जाए तो समझ लीजिए वो भालू कितना हिम्मती होगा
जवाब देंहटाएंHaha Haha.... आपने मेरी हिम्मत बढ़ा कर मेरा भी दिल खुश कर दिया, परन्तु भालू और इंसान कभी भी एक दूसरे के आमने-सामने नही आना चाहते.... यदि दोनों में से एक भी दूसरे को पहले देख ले, तो वह अपना रास्ता बदल लेता है.... इसलिए तो मैं हमेशा कहता हूँ जंगल में अपनी मौजूदगी का अहसास करवाते हुए चुस्ती से चलते रहना चाहिए, जी।
हटाएंबहुत सुंदर यात्रा विवरण ऐसा लगा कि हम भी आपके साथ साथ यात्रा कर रहे है आप लोगो की हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी
जवाब देंहटाएंबेहद धन्यवाद जी।
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंअदभुत विकास जी