सोमवार, 3 अप्रैल 2017

भाग-7 पैदल यात्रा लमडल झील वाय गज पास.....Lamdal yatra via Gaj pass(4470mt)

भाग-7 पैदल यात्रा लमडल झील वाय गजपास(4470मीटर)
                 
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                                      पिछली किश्त में मैने आपको बताया था कि मैं और ऋषभ नारदा 24अगस्त2015 के दिन, गेरा गांव से पैदल लमडल झील की तरफ जाते हुए कपरालू माता मंदिर तक पहुंच चुके थे और अब वहां से आगे बढ़ रहे थे....
                       जैसे-जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे,अब हमे रास्ते में आया वही खूबसूरत झरना जो सत्य साई बिजली परियोजना के पास था, पूर्ण रुप से दिखाई दे रहा था...... यह एक मानव निर्मित झरना था..... बिजली परियोजना के अनुसार ऊपर पहाड़ पर गज नदी का रुख मोड़ कर एक गुफा और फिर एक बड़े लोहे के पाईप मे डाल कर यहां नीचे उस तीव्र गतिमान पानी के साथ विद्युत उत्पादन जल-चक्की चलाई जाने की योजना चल रही थी....... उस उँचाई से गिरते जल की सुन्दरता पूरी गज घाटी की सुन्दरता को चार चांद लगा रही थी.......
                       कुछ आगे बढ़ने पर पर नदी और घाटी में मोड आया, इस मोड़ को स्थानीय भाषा में लोग "सेला" (यानि सिल्ला.. पानी की वजह से ठंडी जगह) कहते हैं, मैने समय देखने के लिए मोबाइल फोन खोला, तो देखा कि उसपर सिग्नल आ रहा था....... हैरानी हुई कि शहर से इतना दूर जंगल में आने पर भी.... यह सिग्नल मुझे चमत्कारी सा लगा, और वही गज नदी के किनारे बैठ कुछ सांस ली और अपनी श्रीमती जी को फोन कर अपनी स्थिति के बारे में अवगत कराया......और यह मेरी फोन पर आखिरी बातचीत थी, क्योंकि इसके बाद चार दिन कहीं कोई सिग्नल ही नहीं मिला........
                       उस स्थान से उठकर आगे बढ़ा ही था, कि दो रास्ते हो गए....... और मैने ऊपर वाला रास्ता चुन लिया, ऋषभ मेरे पीछे आ रहा था, परन्तु 50मीटर ऊपर चढ़ने के बाद वह रास्ता बहुत छोटा और कीचड़युक्त हो गया..... और उस पर मवेशियों के पैरों के निशान,  मैं सोच में पड़ गया कि क्या यह वही रास्ता है, जो कपरालू माता मंदिर पर मिले लड़को ने बताया था.... तभी मुझे याद आया कि मेरे पास पीने का पानी खत्म है, तो पीछे आ रहे ऋषभ की तरफ अपनी पानी की बोतल उछाली.....कि रास्ते में बह रही एक छोटी जल धारा से पानी भर लाओ.......
                       और, मैं एक ऊँचे पत्थर पर खड़ा हो कर दोनों रास्तों का मुआइना करने लगा...... कि तभी मुझे दूर सेला के मोड पर नीचे वाले रास्ते पर एक लड़की और एक आदमी आते हुए नजर आए,  वह आदमी अपने कंधों पर एक लाठी और उसपर अपने दोनों हाथ रख कर मस्ती सी चाल चल रहा था...... मैने ऊंची आवाज में उनसे पूछा कि "भाई,  बग्गा को कौन सा रास्ता " ......वह आदमी बोला, "नीचे आ जाओ, गलत जा रहे हो "...........बस उसी क्षण मैं ऋषभ को छोड़ पीछे की तरफ ऐसे भाग लिया, जैसे कोई मुसाफिर  छूट रही रेलगाड़ी के पीछे भागता है, और वह सज्जन व लड़की कुछ आगे एक पत्थर पर बैठे मेरा इंतजार कर रहे थे......
                        जैसे ही मैं उनके पास पहुँचा, वह सज्जन पहाड़ी भाषा में बोले कि, "तुम कौन 'पखला' (अंजान)  आदमी इस समय जंगल में घूम रहे हो, अंधेरा होने को है, कोई रिछ (भालू) तुम्हें काट खाऐंगा " उनकी यह बात मुझे स्थिर करने के लिए काफी थी.... मैने उन्हे बताया हम ट्रैकर हैं और लमडल झील की तरफ जा रहे हैं बग्गा होते हुए..... तो वह सज्जन बोले जिस रास्ते से आप जा रहे थे, वह बग्गा का रास्ता नही है, आगे बहुत घना जंगल पड़ता है.... आप दोनों उस में गुम हो कर मर-मरा जाते, घर वाले आपके परेशान और पुलिस वाले हम गद्दी लोगों को परेशान करते......
                        उनके मुख से निकली यह बात मुझे अजीब परन्तु एक कड़वा सत्य लग रही थी, तभी सारे दिन की थकान से थका-हारा ऋषभ धीरे-धीरे लडखडाता और झूमता हुआ हमारे पास आ पहुंचा..... ऋषभ को देख वह सज्जन बोले, "यह आपके साथ वाला बंदा झूमता सा चल रहा है, क्या इसने शराब पी रखी हैं.......!"        मैं गर्व से बोला, नहीं हम ब्राह्मण हैं......मांस-शराब नहीं पीते और यह मेरा छोटा भाई है,जो सारा दिन पैदल चलने की वजह थकान से चूर है, इसलिए ऐसे चल रहा है........ बस "हम ब्राह्मण हैं " यह वाक्य बोलने के बाद उन सज्जन का मेरे प्रति रव्वैया एक दम से बदल गया और वह हाथ जोड़ कर बोले, "आप ब्रह्म हो, तो मुझे आप सेवा करने का मौका दें "
                        उन सज्जन की बात सुन कर मैने कहा कि, "आप मुझे राजपूत जान पड़ते हो " वह बोले, "हां....मैं राजपूत गद्दी हूँ " और मेरा नाम है, "राणा चरण सिंह कौशल " रावा मेरा गांव और जहां से आगे रैयल धार पहाड पर मेरा पशुओं का डेरा है, आप लोग अभी तो मेरे साथ मेरे डेरे चलो, रात होने वाली है......कल सुबह आपको बग्गा के रास्ते पर डाल दूगां और बग्गा से ही कोई जानकार आदमी को लेकर लमडल चले जाना, मुझे उनका यह प्रस्ताव एक वरदान की तरह लग रहा था और इसको मानने के अलावा कोई भी चारा नज़र नहीं आ रहा था, सो मैने आभार सहित राणा चरण सिंह को अपनी सहमति दे दी....
                        साथ चलने से पहले चरण सिंह मुझ से मेरी पीठ पर लदा सामान जबरदस्ती लेने लगे, मैने उन्हें मना कर दिया ......तो वह हंसते हुए बोले कि लगता हैं, पंडितजी... आपको मुझ पर विश्वास नही है, कि यह पहाड़ी आदमी कहीं मेरा सामान लेकर रफूचक्कर ना हो जाए....... मैं हंसा और बोला, राणा जी मैं अपना बोझ खुद उठाना चाहता हूँ...भला आपको क्यों तकलीफ दूँ  जी............तभी चरण सिंह बोले,तो आपके छोटे भाई का सामान मैं उठा लेता हूँ... मैने खुशी से कहा, हां यह अच्छा है और ऋषभ ने भी देरी नही की, अपनी पीठ पर लदा सामान चरण सिंह को देने के लिए......... और हम सब चल दिये आगे की ओर....

                                          ............................(क्रमश:)

एक खूबसूरत नज़ारा... गज नदी व घाटी का 
               
                                                           
सत्य साई बिजली परियोजना पर ऊंचाई से गिरता झरना.... 

सेला मोड़..... यहाँ से मैने गलत रास्ता लिया और यहीं मेरी राणा चरण सिंह से भेट हुई... 

सेला मोड़ पर यहीं बैठ कुछ सांस ली... और किस्मत से यहाँ फोन पर सिग्नल था, आखिरी बातचीत एक बार फिर हुई घर वालों से... 

गज नदी के निर्मल जल का रंग तो देखो.... दोस्तों 

और,  आखिर हम राणा चरण सिंह के साथ गज नदी के किनारे-किनारे....बग्गा जाने की बजाय उनके डेरे, जो कि रैयल धार पर्वत पर था.... पर चल दिये

( अगला भाग पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें ) 

7 टिप्‍पणियां:

  1. चरण सिंह ने सही रास्ता बताया लेकिन बिना गाइड पोर्टर और रास्ते की जानकारी न होकर आप इतना कठिन ट्रेक कैसे कर रहे थे...आपकी सांची वाली पोस्ट पर आपने कहा गाइड जरूरी है तो पोर्टर भी जरूरी है पहाड़ो में विकास भाई....

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    1. आप सही कह रहे प्रतीक जी, परन्तु जहाँ गाइड ही ना मिले ...वहाँ तो..!!!!!

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    2. प्रतीक जी.... बैगर चरण सिंह के मैं कभी भी लमडल नही पहुँच सकता था, इस बात का इल्म मुझे यात्रा समाप्त करने के बाद ही हुआ।
      आप की बात सोलह आने दुरुस्त है कि अंजान व दुर्गम पहाड़ी पदयात्रों में गाइड का होना जरुरी है, परन्तु जब कहीं गाइड ही ना मिले तो मुझ से चल भी देते हैं मुँह उठा कर...किस्मत के सहारे।
      परन्तु हर किसी की किस्मत में "राणा चरण सिंह " से मददगार नही मिल सकते, इसलिए यह कदम उठाने से पहले कई बार सोचना चाहिए।

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    3. प्रतीक जी.... बैगर चरण सिंह के मैं कभी भी लमडल नही पहुँच सकता था, इस बात का इल्म मुझे यात्रा समाप्त करने के बाद ही हुआ।
      आप की बात सोलह आने दुरुस्त है कि अंजान व दुर्गम पहाड़ी पदयात्रों में गाइड का होना जरुरी है, परन्तु जब कहीं गाइड ही ना मिले तो मुझ से चल भी देते हैं मुँह उठा कर...किस्मत के सहारे।
      परन्तु हर किसी की किस्मत में "राणा चरण सिंह " से मददगार नही मिल सकते, इसलिए यह कदम उठाने से पहले कई बार सोचना चाहिए।

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