गुरुवार, 6 अप्रैल 2017

भाग-19 पैदल यात्रा लमडल झील वाय गज पास.....Lamdal yatra via Gaj pass(4470mt)

भाग-19 पैदलयात्रा लमडल झील वाय गज पास (4470मीटर)26अगस्त2015
             
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                                लमडल झील से छठी झील टान झील के सामने राणा चरण सिंह के बड़े भाई राणा ब्रजराज की गज गोट नामक स्थान पर स्थित गद्दी गुफा डेरे में....... सुबह साढे पांच बजे मेरी नींद टूटी, चरण सिंह के नींद नें बुदबुदाने से... जनाब स्वप्न में जौहरी से नीलम और पन्ने का मोलभाव कर रहे थे.....मैने गुफा के बाहर की तरफ देखा, तो काफी रौशनी हो चुकी थी और बाहर का नज़ारा देखने की मेरी उत्सुकता तीव्र हो गई.... मेरे  उठते ही चरण सिंह भी मेरे साथ ही उठ गए और हम दोनों गुफा से बाहर निकल,आस-पास के सौंदर्य को निहारनें लगे, रात के समय तो बस कानों में जल के गिरने की मधुर आवाजें खनखना रही थी एक रेडियो संगीत की भांति...... पर अब तो पूरा चलचित्र ही चल रहा था मेरी आँखों के समक्ष........सूर्योदय से पहले फैले प्रकाश में जगमगाते पर्वतों के शूल से शिखर और उनमें जहाँ-तहाँ सजे हुए ग्लेशियर, पत्थरों के बेतरतीब ढेर और उनमें उछता-कूदता आता लमडल झील का पानी, कई जगह झरनों का सुन्दर रूप ले मेरे मन को भा रहा था तथा मध्य में टान झील व हरियाली का मैदान अनुपम छटा दर्शा रहा था....... टान झील में गज पर्वत की छवि देखकर मैं चरण सिंह से बोला, कि देखो यह झील नही गिरिराज का आईना है..... जिसमें पर्वत बर्फ गिरने से हुए अपने श्रृंगार को देखकर प्रफुल्लित हो उठता है........तभी उसी पल सूर्य देव की पहली किरण से गज पर्वत का शीश नहाते देखना, तो मानो सुन्दरता की चरम सीमा को प्राप्त करना प्रतीत हो रहा था .......
                         मैने और चरण सिंह ने पहले तय किया था कि वापसी हम गज पर्वत वाले रास्ते से ना करके, एक और अलग रास्ते "करेरी झील" की तरफ से करेंगे,  परन्तु चरण सिंह ने मुझ से कहा कि यदि हम करेरी झील वाले रास्ते से वापस जाते हैं तो हम आज किसी भी हालत में वापस अपने डेरे पर पहुंच नही सकते, हमे रात कहीं मध्य में रुकना पड़ेगा और मुझे मेरे पशुओं की चिंता सता रही है, मैं उनका बोझ ज्यादा समय तक अपने बाकी घरवालों पर देना नही चाहता हूँ और आपका छोटा भाई ऋषभ भी तो डेरे पर अकेला ही है, इसलिए भाई जी हम यहीं से टानवतगार होते हुए गज वाले रास्ते से ही वापस चलते हैं और शाम तक आसानी से हम डेरे पर पहुंच जाएगें...... मैने चरण सिंह की बात को सिर-आँखों पर रख और मशहूर करेरी झील को देखने का मोह त्याग कर कहा, कि जैसा आप अच्छा समझे राणा जी, मैं तो आपके पीछे-पीछे ही यहां  तक पहुंचा हूँ और पीछे-पीछे ही वापस जाऊगाँ............... बातों-बातों में मैने ध्यान दिया कि गुफा या डेरा पहाड से गिरे दो बड़े पत्थरों के बीच की खाली जगह में बनाया गया था और डेरे के आसपास भेड़ो के झुंड बैठे थे, उसमें चरण सिंह ने अपनी 50भेड़ो का झुंड भी दिखाया........ और अपने झुंड का मुख्य नर भेडू भी दिखाया, जो बडी शान से बैठा मुझे घूर रहा था......
                        सुबह के 6बजने को थे और जल्दी से हमने अपना सामान इक्ट्ठा कर वापस चलने की तैयारी पकड़ ली, तो चरण सिंह के कहने पर मैने अपने पास रखी हुई एक दर्द निवारक दवा ब्रजराज जी को दी और तब महसूस किया कि इस बीहड़ वीराने में एक साधारण सिर दर्द की गोली भी कितना महत्व रखती है......... और जाते हुए ब्रजराज जी ने एक खाली बैग भी चरण सिंह को दिया कि इसे घर में दे देना और हम उनसे विदा लेकर टान वतगार की एक दम सीधी चढ़ाई चढ़ने लगे, अब सूर्य का प्रकाश पर्वत चोटियों से उतर नीचे की ओर बढ़ रहा था...... एक पर्वत की दूसरे पर्वत पर पड़ती परछाई भी कितनी हसीन लगती है, यह इन आँखों ने बखूबी महसूस किया....थोड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद मेरे कदम एक दम से ठहर गये, क्योंकि अब पांचवी झील का एक दिलकश नज़ारा सामने था और झील के दूसरे छोर पर ग्लेशियर तथा दूर ऊंचाई से गिर रहा जल प्रपात मेरे आकर्षण का केन्द्र बन चुके थे.......... और टान वतगार की आधी चढ़ाई चढ़ने के बाद मुझे एकाएक याद आया कि हमने बोतल में पानी तो भरा ही नही है, फिर क्या था चरण सिंह धड़ाधड़ नीचे उतर कर कुछ ही समय में पांचवी झील से पानी की बोतल भर लाये और मैं देखता ही रह गया...
                           जैसे-जैसे हम शिखर की ओर बढ़ रहे थे, हर कदम की ऊंचाई पर नीचे घाटी का दृश्य हर पल बदल रहा था, अब चौथी झील आँखों की गहराईयों में समा चुकी थी और उसमें गिर रहा वो ऊंचा जल प्रपात देख मैं कुछ समय एक जगह बंधा सा खड़ा रहा......... मेरी अंगुलियाँ तो कैमरे पर बस ऐसे नाच रही थी कि मैं सब कुछ कैद कर अपने साथ ले चलूँ..... और आखिर हम टान वतगार के शिखर पर पहुंच गए, उस ऊंचाई से नीचे दिखते झीलों के दृश्य मुझे मनभावन, ललित व कमनीय आनंद प्रदान कर रहे थे............
                                      .............................(क्रमशः)
सुबह उठ कर गुफा से बाहर निकला,  तो टान झील का यह दृश्य सामने पाया... 

फिर नज़र ऊपर उठाई,  तो सूर्योदय की प्रथम किरण को पर्वत शिखर पर पाया.... 

राणा ब्रजराज का गद्दी गुफा डेरा....

वापसी के समय खींचा, यह संयुक्त चित्र.... 

चरण सिंह की भेड़े.... और मध्य शान से बैठा झुंड का, लाल मुंह वाला मुख्य नर भेडू 

पांचवी झील के सामने स्वयं चित्रण... 

टान झील.... 

यह दृश्य बहुत ही सुंदर था,  कि पांचवी व चौथी झील एक साथ दिखाई देने लगी... . 

टान वतगार शिखर की ओर चढ़ रहे चरण सिंह... 

पर्वत की परछाई में चमक रही टान झील... 
रास्ते में मिला... एक मुस्कुराता हुआ पुष्प

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