रविवार, 30 जुलाई 2017

भाग-15 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर....Shrikhand Mahadev yatra(5227mt)

भाग-15 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर.....
                                        " काली घाटी शिखर पर सुखद रात्रि विश्राम "    
 
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                                     डाँडा धार पर्वत के शिखर काली घाटी टॉप पर एकाएक शुरू हुई बारिश से बचने के लिए मैं और विशाल रतन जी, दुकानदार तारा चंद के टैंट में बैठ गरमागरम मैगी का लुत्फ उठा रहे थे कि एक अधेड़ उम्र सज्जन भी बारिश से बचने के लिए टैंट में आ खड़े हो गए.... उन्होंने एनामी-गिनामी कम्पनी के बेहद उम्दा बूट डाल रखे थे,  परन्तु एक बूट का तला उखड़ा होने के कारण उसे रस्सियों से बांध गुज़ारा कर रहे थे... मेरे इस सम्बन्ध में पूछने पर उन्होंने कहा कि, "इन जूतों से मैं कैलाश-मानसरोवर की पद यात्रा कर चुका हूँ, परन्तु इस यात्रा की वापसी पर ये बूट मुझे धोखा दे गये...! "    
                         मैने उन्हें तर्क दे कर कहा कि, " दोष आपके जूतों में नही है, आप में है जी... होता क्या है कि हम पर्वतारोहण के लिए विशेष किस्म के जूते खरीद लेते है और साल में एक-दो बार ही पहनतें हैं, तब जब हम पर्वतारोहण पर जाते हैं... आपने भी निश्चित है कि ऐसा ही किया होगा,  पिछली यात्रा के एक साल बाद आपने इन जूतों को अलमारी से निकाल और पहन कर इस पद यात्रा पर आ गए...और इनकी पेस्टिंग उखड़ गई,  चाहिए तो यह है कि हमें अपने पर्वतारोहण जूतों को निरंतर हर दस दिन बाद एक दिन के लिए जरूर पहनना चाहिए,  ताकि उस में लचक बनी रहे..!! "   वे सज्जन बोले, " हां जी, आपने बिल्कुल सही कहा... मैं भविष्य में इस बात का ध्यान रखूँगा "
                          हमारा इरादा तो आज भीम तलाई नामक स्थान तक पहुँचने का था, परन्तु बारिश ने हमें आगे बढ़ने से रोक रखा था.. जबकि काली टॉप की उस ऊँचाई से नीचे घाटी में भीम तलाई भी नज़र आ रहा था... वहीं बैठे-बैठे तकरीबन एक घंटा गुज़र गया, शाम के पांच बज चुके थे... बूंदाबादी अब भी थम नही रही थी और काली टोप से आगे भीम तलाई के लिए जबरदस्त उतराई है और रास्ता भी कीचड़ युक्त हो चुका था,  सो मैने विशाल जी को सलाह दी कि क्यों ना आज रात यहीं पर ही रुक जाए.. एक तो इस स्थान की समुद्र तल से ऊँचाई 3740मीटर है,  इतनी ऊँचाई पर रात रुकने के कारण हमारे शरीर भी इस कठिन यात्रा की आगामी ऊँचाई के अनूकूल बन जाएंगे.... विशाल जी ने मेरी बात पर सहमति की मोहर लगा दी और दुकानदार तारा चंद जी ने हमे एक अलग व बेहद बढ़िया टैंट किराये पर दे दिया,  तारा चंद जी ने वहाँ अलग-अलग कर कई सारे टैंट गाड़ रखे थे....
                          और,  उस टैंट के मखमली कम्बलों में खुद को समेट चाय की चुस्कियाँ मानो ऐसे लग रही थी,  कि हम किसी सात सितारा मेहमान खाने के मेहमान हो गए हो.... बारिश की बूँदे अभी भी टपक रही थी,  सो हम दोनों टैंट में लेट कर बाहर खत्म हो रहे दिन को देख रहे थे... कि हम दोनों की ही कुछ आँख लग गई,  थक चुके शरीर की यही तो एक मात्र प्राकृतिक दवा है "नींद" ......!
                          और,  जाग खुली तो घड़ी को टटोला...तो पाया रात के आठ बज चुके हैं और हमारे टैंट के अंदर का तापमान 13डिग्री था,  तो बाहर का तापमान निश्चित तौर 9-10डिग्री के करीब होगा... समुद्र तट से 3740मीटर की अत्यंत ऊँचाई और ठंड से मेरे सिर में वो ही भयंकर दर्द चालू हो चुका था,  जो अक्सर मुझे ट्रैकिंग के दौरान ऊँचाई पर होने लग पड़ता है,  जिसे हम सामान्य भाषा में ऊँचाई की बीमारी भी कह सकते हैं " High altitude sickness " के लक्षण मुझे अपने में नज़र आने लग पड़े थे,  सो झट से अपनी रक्सक से दवा निकाल निगल ली....
                          कुछ देर बाद हमे रात्रि भोजन का बुलावा भी आ गया और हम फिर से तारा चंद जी की दुकान में आ बैठने लगे,   तो पाया कि उस टैंट नुमा दुकान में ग्राहकों के बैठने हेतू सीमित सी जगह पर कोई दो-तीन कम्बल ओढ़े सो रहा था....  सो हमे अलग-अलग बैठा कर भोजन की थालियाँ परोसी गई और पहला निवाला मुँह में रखते ही हमारी वाहवाही के बोल टैंट में गूंज रहे थे... दाल-चावल, रोटी के साथ परोसी गई वो आलू की सब्जी का स्वाद ऐसा था जैसा पान में गलूकंद हो... परन्तु वह आलू की स्वादिष्ट सब्जी हमे केवल एक बार ही मिल पाई,  क्योंकि उनके पास बहुत कम मात्रा में आलू रह गए थे, जिस की उन्होंने सब्जी बना डाली थी..... और बातचीत में तारा चंद जी के रसोईये ने यह भी उत्तर दिया कि, " इतनी ऊँचाई पर ताज़ी सब्जी को नीचे से ढो कर लाना बेहद मुश्किल व ख़र्चीला काम है... इसलिए हम ग्राहकों के लिए ज्यादातर दाल व चावल रोटी का ही भोजन बनाते हैं, यह आलू की सब्जी तो हमने अपने निजी भोजन के लिए बनाई थी...बस दिल किया और आपको भी परोस दी.... !"
                           भोजन करते वक्त मेरा ध्यान कई बार मुँह-सिर ओढ़े लेटे हुए उन शख्स पर जा रहा था,  जो एक बार भी नही हिला था... सो रसोईये से पूछ लिया कि ये क्या तारा चंद जी सो रहे हैं.... तो उसने जवाब दिया "नही, तारा चंद जी तो नीचे काली घाटी में जल स्रोत से पानी लेने गए हुए है, ये तो अहमदाबाद गुजरात से श्री खंड हो आई अम्मा सो रही है....ये 60साल की बुजुर्ग महिला अपने साथ एक स्थानीय भार वाहक ले कर निराहार (खाली पेट) श्री खंड महादेव माथा टेक कर वापस आ रही थी, और आज तीसरे दिन की शाम को वापसी पर जहाँ काली टॉप पहुंच कर अपना निराहार व्रत तोड़ा...और खूब दबा कर भोजन किया इन्होंने...!! "
                            रसोईये की ये बात सुन मैं और विशाल जी एक दूसरे का मुँह देख रहे थे......और मैं मन ही मन बडबडाया कि, लो देख ले विकास.. तू बड़ा पर्वतारोही बना घूम रहा है कि मैं पीठ पर लदा भार काली टॉप पर पहुँचा कर ही दम लूगाँ... और यहाँ ये माई तो बगैर कुछ खाये पिये श्री खंड माथा टेक भी आई..!!!      दोस्तों, अटल आस्था कैसे एक कोमल सी नारी में फौलाद भर सकती है... इसकी उदाहरण हमारे समक्ष सो रही थी,  मेरा बहुत मन कर रहा था कि मैं अम्मा को जगा कर इनसे ढेरों प्रश्नों के उत्तर पूछूँ.......परन्तु ऐसा करने के लिए मुझे खुद से ही इजाज़त नही मिल पाई...!
                            सो चाय के गरमागरम गिलास को दोनों हाथों से पकड़,  चाय पीने के बाद हम अपने टैंट में लौट आए.... सारे दिन की बातें करते-करते विशाल जी एकाएक सो गए और मुझे तो अब मजबूरन जागना पड़ रहा था, क्योंकि विशाल जी के उच्च निद्रा स्वरों की स्वराजंली "खराटें" अब मुझे कर्ण-अप्रिय हो रहे थे.....!!!
                             दोस्तों,  मजे की बात बतलाता हूँ... हम दोनों सांढू भाई जब भी ट्रैकिंग पर जाते हैं, तो रात को जब सोते है... तो हम में से जो भी पहले सो जाता है,  उस के खराटे दूसरे को सोने नही देते...यदि मैं पहले सो गया तो विशाल जी जल्दी नही सो पाते,  यदि वे पहले सो गए तो मैं जल्दी सो नही पाता... परन्तु इस मामले में ज्यादातर विशाल जी किस्मत वाले निकलते हैं,  क्योंकि मैं सोने से पहले अपने कैमरे पर दिन भर की खींची हुई तस्वीरों को देखने लग जाता हूँ और इतने में विशाल जी सो जाते हैं..... और जब हम सुबह उठते है तो, विशाल जी मुझे अक्सर कहते हैं कि विकास जी आप तो बहुत गहरी नींद में सोये हुए खूब खराटे लगा रहे थे....!!!!
                              सारी रात ही हल्की-हल्की बारिश होती रही,  हम सुबह साढे पांच बजे उठ गए और चाय भी हमारे टैंट में आ पहुँची.... चाय पीने के बाद मुझे हर बार की तरह पहाडों की सुबह देखने की लालसा झट से टैंट के बाहर खींच लाई और विशाल जी को भी आवाज़ लगाई....
                              चारों नही छेहो तरफ अपनी नज़र दौडाई... चार चारों दिशाओं की ओर... और बाकी दो क्षतिज में मेघ देव व नीचे पहाड की गहराईयों में.... सूर्योदय का कोई भी संकेत अभी क्षितिज में नही था,  पहाड की गहराईयों में बादलों ने मिलजुलकर सफेद रंग की झील बना रखी थी..... डाँडा धार पर्वत की चोटी काली टॉप की सुंदरता अब हमें कल शाम से भी कहीं अधिक आकर्षक नज़र आ रही थी,  और एक गर्व सा महसूस हो रहा था कि हम इस सुंदरता के आँचल में रात भर चैन की नींद सोये रहे.... तभी हमें कुछ यात्रियों की खुसर-पुसर से पता चला कि यहीं से ही वो सामने की पर्वतमाला में ही श्री खंड महादेव की 72फुट ऊंची शिला के दर्शन हो जाते हैं,  परन्तु उस दिशा में बादलों ने अपनी बैठक सजा रही थी,  मेरी निगाहें बार-बार इधर-उधर घूमती हुई उस विशेष दिशा की ओर जा रुक जाती..जहाँ से श्री खंड महादेव शिला को बादलों ने अपना रंग दे रखा था.....आधा-पौना घंटा बीत गया परन्तु काली टॉप से श्री खंड महादेव के दूरदर्शन ना हो सके... तभी सूर्य देव की किरण ने बादलों के कवच को भेद कर अपने उग जाने की घोषणा की.... और हम दोनों वापस टैंट में जा अपने सामान को समेटनें में आ जुटे...
                             मैने ठान रखा था कि अपनी रक्सक को डाँडा धार की चोटी पर पहुँचा कर ही दम लूगाँ... उसके बाद इसे वहीं छोड़ आगे का सफर तय करुँगां,  सो अपनी रक्सक से बेहद जरुरी सामान में आपातकालीन भोजन भूने हुए काले चनों का पैकेट,  एक बिस्कुट का पैकेट, रैन-कोट व जलरोधी पैजामा ही निकाला.... जब मैं बाकी बचे सामान को रक्सक में भर रहा था तो विशाल जी भी तैयार हो रहे थे,  एकाएक मुझसेे बोले "मैने परसो यात्रा शुरू करते समय अपनी बैल्ट को व्यर्थ का भार जान,  गाड़ी में ही उतार फेंक कर बेहद बड़ी गलती कर दी है...! "
                             मैं समझ गया कि दो दिन की चढ़ाई मुश्क्कत से विशाल रतन जी की कमर कुछ हल्की हो गई है.. सो अब इस नई आन पड़ी समस्या का भी हल करना था..... दोस्तों,  मैं पर्वतारोहण के दौरान हमेशा अपनी रक्सक में सूई-धागा, झटपट गोंद और पैजामे में डालने वाले "नाले" रखता हूँ..... और आज वो "नाला" विशाल जी की शौटस् में बैल्ट बनने का सम्मान प्राप्त करने जा रहा था.... और एक अन्य नाले को लेकर मैने पानी की बोतल को अपनी कमर पर बांधने के लिए एक जगाड़ू बैल्ट सा बनाया व आपातकालीन भोजन सामग्री को एक लिफाफे में डाल कर अपनी कमर पर बंधे ट्रैकिंग पाउच के संग बांधा....... दुकानदार तारा चंद जी का हिसाब कर,  अपनी रक्सक उनके पास रखने का आग्रह किया.....
                          और,  सुबह के सात बज चुके थे... हम लगभग आगे चलने के लिए तैयार ही थे कि मौसम पर पुन: आवारगी सी छाई और बूंदाबादी शुरू हो गई...!!
                                               ..............................(क्रमश:)
मित्रो, अपने ट्रैकिंग शू को केवल ट्रैकिंग के दौरान ही मत पहने.... नही तो ये मौके पर धोखाधड़ी कर जाते हैं,  जी 

दुकानदार तारा चंद जी हमें.... हमारा "झोंपड़ा" दिखाते हुए 

लो, आ पहुँचें.... हम उन मखमली से कम्बलों के बीच....

कुछ देर आँख लग गई, उठ कर जब घड़ी को टटोला...! 

 रात्रि भोजन.... पान में गुलकंद जैसी स्वादिष्ट आलू की सब्जी 


विशाल जी के पास कम्बलों में लेटी वही अम्मा गहरी नींद में सो रही थी... जो निराहार श्री खंड महादेव माथा टेक आई थी... 
और, खास जगहों पर खाया खाना.... सारी उम्र आपके स्मरण में खास ही बना रहता है, दोस्तों 

सुबह उठते ही टैंट से बाहर निकल कर.... देखा यह दृश्य 

डाँडा धार पर्वत शिखर... और काली टॉप का अति सुन्दर दृश्य 

काली टॉप ......और तारा चंद जी की दुकान 

बादलों की झील..... 

गजब की सुंदरता...... अद्भुत 

काली घाटी शिखर से नीचे दिख रहा......भीम तलाई 

तभी ज्ञात हुआ कि सामने ही श्री खंड महादेव शिला के दूरदर्शन हो जाते हैं... परन्तु बादलों ने वहाँ अपनी बैठक सजा रखी थी... 

अपने अंग्रेजी झोंपड़े के बाहर खड़े हम......!!


बहुत देर इंतजार भी किया.... परन्तु बादल नही छटे और श्री खंड महादेव शिला के दूरदर्शन नही हो पाये 

बादलों के कवच को भेद कर आई सूर्योदय की किरणें.... 
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रविवार, 23 जुलाई 2017

भाग-14 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर....Shrikhand Mahadev yatra

भाग-14  श्री खंड महादेव कैलाश की ओर.....
                                         " एक दिव्य अनुभूति.... और डाँडा धार पर्वत शिखर "

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                          मैं और विशाल रतन जी, श्री खंड महादेव कैलाश यात्रा के दूसरे पड़ाव थाचडू में कुछ समय रुक.... अब डाँडा धार पर्वत के शिखर "काली टोप" की ओर बढ़ रहे थे.... और अब तो चारों तरफ घनी धुंध का साम्राज्य हो चुका था,  पहाड की हरियाली को अब धुंध की सफेदी खा चुकी थी... बस कुछ ही दूरी बाद मानों तो हरियाली का रंग मद्धम हो चुका था.... तभी रास्ते में एक सज्जन पानी की पाइपों का निरिक्षण करते मिले,  बातचीत पर उन्होंने कहा कि सर्दियों में बर्फ पड़ी रहने से इन जल आपूर्ति पाइपों की हालत भी कोई ज्यादा अच्छी नही रही है,  परन्तु हमने उनका शुक्रिया कर कहा कि, " जो भी है आप के विभाग की वजह से ही हमें श्री खंड यात्रियों को डाँडा धार की इस खुश्क चढ़ाई में जीवन रक्षक जल मिल रहा है,  जी...! "
                    डाँडा धार पर्वत की चढ़ाई में अब पेड़ों का आना बंद हो गया था,  मतलब कि हम समुद्र तट से साढे तीन हजार मीटर के आस-पास पहुँच चुके थे,  हर तरफ मखमली सी हरी घास और उनमें पीले फूल ऊंचे हो-हो कर शायद हम श्री खंड यात्रियों को देख रहे थे.... इतनी ऊँचाई की ठंडक भी, पसीने से भीगें हमारे तनों को सुखाने में नाकामयाब साबित हो रही थी.... कि एकाएक मुझ में एक परिवर्तन सा हुआ... और मैं भावुक हो रोने लगा, मुझे समझ नही आ रहा था कि मेरे साथ ये क्या हो रहा है और मेरी आँखों में आँसू भर आए.....!
                    मैने अपनी मनोदशा तुरन्त विशाल जी से सांझा की,  तो वे बोले, " किस्मत वालों हो विकास जी, तीर्थ पर यात्री को ऐसी अलौकिक अनुभूति होना एक असाधारण घटना है... आप का अवचेतन मन चंद क्षणों के लिए ही सही, उस परम पिता से तो जुड़ा.....!! "
                    विशाल जी का ये उत्तर उनकी अटल आस्तिकता व अटूट ईश्वरीय विश्वास ही दे रहा था, जबकि मैं तो नास्तिक- वास्तविक सा इंसान हूँ.... इसी सोच में मगन था कि सामने से शिव के प्रिय वाद्य "डमरू" की आवाज़ ने मेरा ध्यान अपनी ओर बंटा लिया.... वो दो मित्र डमरू के साथ "बबम् बम" गाते हुए हमारी ओर बढ़ रहे थे.... और वार्ता के दौरान श्री खंड से वापस आ रहे उन दोनों सज्जनों ने हमें भांग के बीज और बादाम गिरी देते हुए सलाह दी,  कि श्री खंड यात्रा के अंतिम चरण में नयन सरोवर से बेहद कठिन चढ़ाई चढ़ ऊपर जाना पड़ता है,  सो जब आपकी सांस उखड़े शरीर जवाब देने लगे तो ये भांग के बीज व बादाम गिरी इक्ट्ठा चबाऐ,  इसे खाने से आप परिस्थिति के अनुकूलित हो जाएंगे.........उनकी कृतज्ञता का आभार व्यक्त कर हम दोनों फिर से पगडंडी पर बढ़ते जा रहे थे.....
                     हर ओर प्रकृति ने केवल दो रंग ही उड़ेल रख छोड़े थे.. "हरा और सफेद" ...हरा हरियाली से और सफेद बादलों का,  जो अब हमें नीचे की ओर दिखाई दे रहा था...कई दफा हवा के रुख से वो बादल हमे चूम कर भी निकल जाते.... राह पर मिल रहे यात्रियों से बम भोले का सम्बोधन निरंतर मिल रहा था,  मैं कभी बंगलौर से श्री खंड हो गई दयानंदा जी के साथ सैल्फी खिंचता तो कभी हमारी हमराही दस वर्षीय यात्री जवित्रा की रफ्तार से प्रभावित हो उसकी फोटो खींचता.... तो कभी नौ साल की रिती जो अपनी बड़ी बहन व नानी के संग श्री खंड जा रही थी... इन सब की फोटो खींच मैं सब को अपनी यादों में कैद करता जा रहा था.....
                      और,  अब डाँडा धार पर्वत का शिखर काली टोप भी नज़र आना शुरू हो गया था,  यहीं चढ़ते-चढ़ते एक विशेष किस्म की मक्खी बार-बार मेरी बाँहों पर आ बैठती और अपनी जीभ को मेरी त्वचा पर ऐसी घुसाती जैसे कोई सूई सी चुभा रही हो.........थाचडू से तीन घंटे चलते रहने के बाद आखिर हम डाँडा धार पर्वत के शिखर पर फैले बेशुमार पत्थरों के ढेर में से एक पत्थर पर जा बैठ सांस लेने लगे.... तभी नीचे से आ रहा एक दल हमारे पास से गुज़रा, तो उसमें से एक सज्जन ने मुझे कहा, " अरे भाई, यहाँ का मौसम एक दम बदलता है...इसलिए अपने शरीर को ढक कर रखो..! "
मैं उनको झट से पहचान गया कि ये जनाब रस्कयू दल के सदस्य है, जिन्हें मैने डाँडा धार की चढ़ाई पर उस युवक की लाश के पास देखा था,  सो उनके द्वारा कही ये बात मुझे भी वज़नदार लग रही थी... क्योंकि मुझे भी अब एकाएक ठंड लगनी शुरू हो गई थी... सो जल्दी से अपनी रक्सक से गर्म जैकेट निकाल पहन ली,  वे सज्जन फिर बोले, "आपने वज़न भी बहुत ज्यादा उठा रखा है, इसे कम करे "            मैने हंसते हुए उन्हें कहा, " ये वज़न तो मैने अपने-आप को संतुष्ट करने हेतू जानबूझ कर उठा रखा है जी, आज रात जहाँ भी रुकेंगें इसे वहीं छोड़ कल की यात्रा इसके बगैर ही करुँगा जी...!"
                     दोस्तों,  कड़ी मेहनत के बाद पर्वत शिखर पर पहुँचने का परम सुख हम पर्वतारोहियों को बेहद हर्षित व आनंदित करता है,  और इस डाँडा धार पर्वत शिखर की सुंदरता के बारे में....मैं क्या लिखूँ....पहाड के सिर पर बेहद खुली जगह में हरियाली का मैदान,  उस मैदान में प्रकृति ने जहाँ-तहाँ सैंकड़ों छोटी-बड़ी, गोल-चपटी चट्टानों को कलाकृतियों की भाँति सजा रखा था... और पूरे मैदान के श्रृंगार का जिम्मा लाल-पीले व जामुनी रंगी पुष्पों ने उठा रखा था,  चढ़ाई चढ़ कर आ रहे सब यात्रियों के लिए ये स्थान एक ओपन स्टूडियो की भाँति ही था... सब के सब यहाँ-वहाँ खड़े हो या फूलों में लेट कर अपनी यादों को चित्रों का रुप दे रहे थे....... हम दोनों के पास ही पांच स्थानीय औरतों का दल भी बैठा विश्राम कर रहा था,  जब वे चलने लगी तो उन्होंनें हम से कहा कि, "भैया आप भी हमारे साथ ही चलो श्री खंड "      मैने हंसते हुए उन्हें कहा, " बहनों आप तो स्थानीय पहाड़ी हो और हम मैदानी, आपके कदमों से अपने कदम मिला कर चलना हमारे बस से बाहर की बातें है, जी...!! "       और वे सब शिव का जयकारा लगा, आगे की ओर तेज चाल से चल दी और हम भी अपनी सुस्त चाल से उठ फूलों में खड़े हो एक-दूसरे के चित्र खींचने में व्यस्त हो गए......
                        अब आसमान मेघाच्छन्न हो रहा था, सो उस नज़ारे को छोड़ अगले नज़ारे की ओर बढ़ने में ही हमने अपनी भलाई जानी.... डाँडा धार पर्वत शिखर के पार दूसरी ओर का वह नज़ारा भी कम आकर्षक ना था दोस्तों.... "काली घाटी शिखर" पर बना "काली जोगणी" का एक छोटा प्रतीक स्थल व यात्री विश्राम के लिए लगे इक्का-दूक्का टैंट...एकाएक मेघों ने अपना करम दिखना प्रारंभ किया,तो उस हल्की सी बूंदाबादी में हम दोनों काली जोगणी मंदिर के पास ही एक टैंट नुमा दुकान में जा बैठे... और देखते ही देखते मेघों ने अपना राग तीव्र स्वरों में गाना शुरु कर दिया.... टैंट की छत पर धनाधन बारिश की बूँदे गिरने से औरों का तो पता नही,  पर मुझे राग मेघ-मल्हार जरूर सुनाई दे रहा था.....
                          हम दोनों ने दुकानदार तारा चंद जी से कुछ अल्पाहार खिलाने की फ़रमाइश कर डाली... दोस्तों, अब उस दुर्गम स्थल पर मेरे प्रिय पकौड़े तो मिलने से रहे... तो अल्पाहार के नाम पर वही "धक्के से पहाड़ी बना व्यंजन " नमकीन सेवईयों का गुच्छा "मैगी" फिर से हमारे समक्ष प्रकट कर दिया गया,  और काली शिखर की 3740मीटर की ऊँचाई की ठंडक पर अब बादलों ने भी अपना तड़का लगा दिया था... सो गरमागरम मैगी की प्लेटों से उठ रही भाप ने हमारी इच्छुक भूख को वास्तविक भूख में तबदील कर दिया.... और मजे की बात बताता हूँ दोस्तों कि,  विशाल जी उस मैगी की एक लड़ी को मुँह में रख "सू" की आवाज़ कर अंदर खींच रहे थे और मैने भी उनकी नकल करना शुरू कर दिया, शायद श्री खंड महादेव यात्रा की पहली परीक्षा डाँडा धार को पार करने की हमारी कामयाबी अब "चंचलता" का रुप ले चुकी थी....!!
                                                             ..........................(क्रमश:)

थाचडू से आगे....डाँडा धार की चढ़ाई पर छाई धुंध 

रास्ते में कई जगह भगवान शिव की महिमा गाती ऐसी तख्तियाँ पेड़ों से बंधी थी.... 

जल आपूर्ति की पाईप लाइन की देख-रेख करने वाले कर्मचारी... 

विकास जी,  अब तो चारों तरफ धुंध ही धुंध है....! 

ये सैल्फी, मैने ठीक उसी वक्त ली थी.... जब मुझे दिव्य अनुभूति सी हुई और मैं एकाएक मेरी आँखों से आंसू बहने लगे...!     

और बबम् बम, बबम् बम.... डमरू की आवाज़ से मेरा ध्यान टूटा 

डमरू वाले मित्रों से वार्तालाप करते विशाल रतन जी.... 

और, इन डमरू वाले मित्रों ने हमें ये भांग के बीज और बादाम गिरी दी....

बादलों की सफेदी..... हरियाली के हरे रंग को मद्धम करती जा रही थी 

बस दो ही रंग.... हरा और सफेद

डाँडा धार पर्वत शिखर की ओर बढ़ते यात्रिगण...

बंगलौर से श्री खंड महादेव हो आई दयानंदा जी के साथ सैल्फी.... 

श्री खंड महादेव पथ पर दस वर्षीय जवित्रा.....

नौ वर्षीय रिती भी चल रही थी श्री खंड... अपने नानी के साथ 
डाँडा धार शिखर की ओर चढ़ाई करते हुए ऐसी मक्खी बार-बार मेरी बाँह पर बैठ मुझे परेशान कर रही थी... 

लो, दोस्तों हम पहुँच गए डाँडा धार पर्वत शिखर पर.... 

भैया, आप हमारे संग चलो श्री खंड....!
नही बहनों, हम मैदानी भाई आप पहाड़ी बहनें के संग कदम से कदम मिला कर नही चल सकते, जी...! 


और, हम अपने सुस्त चाल से डाँडा धार शिखर की ओर चल दिये, कुछ अपनी हाज़री के चित्र भी तो खींचने थे ना.. 

रंग-बिरंगे फूलों से लदा डाँडा धार पर्वत शिखर "काली टोप"

एक यादगारी अहसास.... 

उसी अहसास में विशाल रतन जी.... 

डाँडा धार पर्वत शिखर पर.... प्रकृति द्वारा निर्मित  "खुले रंगमंच का मंच" 

चलो, अब डाँडा धार पर्वत शिखर के पार दूसरी ओर बढ़ते है....

और, उस पार पहुंच ये नज़ारा आँखों के समक्ष था.... काली घाटी टोप 

डाँडा धार पर्वत पर...... काली घाटी शिखर पर स्थापित "काली जोगणी" का प्रतीक स्थल... 

और, काली घाटी शिखर पर बारिश होने लगी.... और हम दोनों ने भाग कर काली जोगणी मंदिर के पास टैंट नुमा दुकान पर जा शरण ली..... व दुकान के द्वार पर आराम फ़रमा रही हमारी "चरण पादुकाएँ"

और, फिर अल्पाहार के रुप में प्रस्तुत किया गया " नमकीन सेवईयों का गुच्छा ".....!!!
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शनिवार, 15 जुलाई 2017

भाग-13 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर....Shrikhand Mahadev yatra(5227mt)

भाग-13 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर......
                                                  "यात्रा के दूसरे पड़ाव थाचडू में "
     
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                               मैं और विशाल रतन जी श्री खंड महादेव यात्रा के दूसरे पड़ाव "थाचडू"(3375मीटर)में श्री खंड सेवा दल की ओर से चलाए जा रहे लंगर पर दोपहर का भोजन कर चुके थे..... और जब पता चला कि ये लंगर हिमाचल प्रदेश के ही एक शहर "हमीरपुर" वाले लगाते हैं,  तो लंगर प्रबंधक "काका जी" के पास जा मुलाकात की.... और कहा कि आपने जो मूँग की दाल और चावल बना रखे है,  एक तो वह अति स्वादिष्ट है.. दूसरे इस कठिन यात्रा में पाचन-तंत्र पर भी हल्के है.... तो हमारे पीछे खड़े एक और महोदय जो अभी भोजन खा रहे थे, बोले पड़े कि "सच कहा जनाब आपने... यहाँ इस परिस्थिति में ये सादे दाल-चावल अमृत लग रहे हैं,  नही तो अपने घरों में बैठ हम तो पनीर की सब्जी में भी मीन-मेख निकाल डालते है....! "   और हम सब उनकी बात सुन हंस पड़े....
                       मेरा लंगर प्रधान काका जी से मिलने का मुख्य कारण था कि, इनके शहर हमीरपुर से मेरे एक फेसबुकिया मित्र थे... जो उस समय हमारे फेसबुक दायरे में बहुत सरगर्म थे,  बेहद ही रहस्यमय शख्सियत थे वो... जनाब मुझे पहली बार फेसबुक पर एक हिमाचली ग्रुप में मिले थे, लड़की के नाम से अपनी फेसबुक प्रोफ़ाइल चला रहे थे...और कमाल के हाज़िर जवाब, हर बात का शायरी में ही जवाब देना इन महोतरमा बने जनाब का अंदाज़ था और चंद रोज में मैने उन्हें बहन मान अपनी संक्षिप्त फेसबुक मित्र सूची में जोड़ लिया.... परन्तु एक-दो सप्ताह बाद उस फेसबुक ग्रुप में कोई विवाद खड़ा कर ये कथित महोतरमा फेसबुक की दुनिया से ही गायब हो गई,  बात आई-गई हो चली और फिर कुछ खास सूत्रों से पता चला कि वो कवयित्री नही बल्कि एक लड़का था,  जो लड़की के रुप में फेसबुक प्रोफ़ाइल चला रहा था... यह बात सुन बेहद गुस्सा आया कि वह हम सब की भावनाओं से एक लड़की बन खिलवाड करता हुआ खूब हंसता व औरों को भी, हम सब पर हंसाता होगा.....!
                      दोस्तों,  यह भी इस फेसबुक का घिनौना चेहरा है...कि कुछ लोग इसे मजाक बना अपना समय बिताते हैं, खैर फिर एक साल बाद..... फिर से एक अलग ग्रुप जिसका मैं एडमन था, में वही चिरपरिचित भाषा व अंदाज़ में एक अन्य नाम से वही जनाब प्रकट हुए.... और अपनी पहली पोस्ट में केवल मुझे केन्द्रित कर प्रणाम किया,  मैं झट से समझ गया कि वही ये मेरी पुरानी बहन है... जो एक नये नाम व मखौटे संग मेरे समक्ष हाज़िर है, बातचीत में उन्होंने मुझ से माफी माँग अपना पक्ष आगे रखा और फिर से फेसबुकिया दोस्ती कायम हो गई..... परन्तु ना जाने क्यों मुझे अब भी उन महोदय पर विश्वास नही हो रहा था, हालाँकि कई बार उन्होंने मेरे संग फोन पर भी बातचीत की थी,  अब उन्होंने बताया था कि वह हिमाचल पुलिस में कार्यरत है.....
                      सो,  काका जी से उनके विषय में जानकारी हासिल करनी चाही, परन्तु सिग्नल ना होने के कारण मोबाइल पर फेसबुक ना चलने से उनकी फोटो मैं काका जी को दिखा ना सका,  और उस नाम के पुलिस वाले को वो जानते नही थे...... सो बात वहीं समाप्त हो गई,  परन्तु दोस्तों इस घटना के 6महीने बाद इन फेसबुकिया कलाकार व शायर की असलियत तब सामने आ गई, जब हमारे एक सांझा फेसबुक मित्र उन्हें ढूँढते-ढूँढते हमीरपुर ही जा पहुँचें.... और पुलिस थाने पहुँच इनकी फोटो दिखाकर मिलाने की बात की..... और पाया कि ये जनाब पुलिस वाले भी नही निकले, बस उसके बाद से मैने इनको "अमित्र" कर दिया.....
                       कई दफा सोचता हूँ कि जाने क्यों कुछ शरारती तत्व निरंतर सम्पर्क सूत्र के विश्व प्रसिद्ध तंत्र "फेसबुक " में गलत नाम,  किरदार व पहचान छिपा कर लोगों के जज़्बातों से खिलवाड़ कर मजाक उड़ातें है... क्या ये एक प्रकार का मानसिक रोग है या फिर तुच्छ मानसिकता की उपज..!!!
                       इन कथित महापुरुषों की वजह से एक दिन हमारे सोशल मीडिया अकाउंट को भी हमारे आधार कार्ड से जोड़ दिया जाएगा,  और प्रोफ़ाइल की सुंदर सी हमारी तस्वीर आधार कार्ड पर लगी हुई "भावशून्य तस्वीर " में बदल जाएगी...!!
                        दोस्तों,  तीन साल पहले ही फेसबुक पर प्रकट हुआ हूँ.... कुछ अंतर्मुखी स्वभाव का हूँ,  मेरा कोई भी ऐसा जिगरी यार नही है जो मेरे राज जानता हो और मैं उसके..... तीन साल पहले मुझे कोई नही जानता था,  अब आप भी मुझे जानने लगे हो और मैं आपको..... इन तीन वर्षीय फेसबुक जीवन में मैने कई नए अनुभव सीखें, चंद ऐसे मित्र दिये जो मुझे अपने से लगते है.... कुछ के पास मैं पहुँच गया उनसे मिलने, तो कुछ मेरे पास आ पहुँचें मुझ से मिलने...!
                         फेसबुक के खट्टे-मीठे अनुभवों में से एक है कि एक ग्रुप में बढ़ रही मेरी लोकप्रियता से जलन रख,  उस पब्लिक ग्रुप के "मलिक बने एडमन" द्वारा ग्रुप में मेरे किरदार की "हत्या" कर देना..... और दूसरा है कि एक अन्य फेसबुक ग्रुप में मेरी कारगुज़ारी देख,  बगैर पूछें मुझे अनजान व्यक्ति को एडमन बना कर सम्मानित करना...... फेसबुक की ही बदौलत आज मैं भारत व विदेश के मशहूर बाँसुरीवादकों के सम्पर्क में हूँ और वे मुझे पहचानतें है,  जबकि दूसरा पहलू मेरे शहर के चंद फेसबुकिया मित्र मेरे पास से ऐसे गुज़र जाते है,  जैसे कि मुझे जानते ही नही....!!!
                          चलो छोड़ों मित्रों,  मैं कहाँ रोना ले बैठा....इस बुरी लत फेसबुक का, यात्रा-पथ पर फिर से बढ़ते है....    हम थाचडू लंगर पर करीब 15मिनट ही रुके होगे कि आगे का सफर शुरु कर दिया.... थाचडू में बहुत सारे टैंट लगे हुए थे रात्रि विश्राम के लिए,  उन टैंटों में एक टैंट पर मैडिकल सुविधा भी उपस्थित थी....सो वहाँ मौजूद कर्मियों से रास्ते में मिली लाश के विषय में पूछा,  तो वे बोले कि जालन्धर शहर से जतिन नाम का 28वर्षीय युवक पिछले चार दिन से हमारे पास ही था... उसे निमोनिया हो गया था, परन्तु अब तो वह ठीक था फिर क्यों रास्तें में वापस जाते हुए उस की मौत हो गई, समझ से बाहर है......... बातचीत में बाकी दो और मृतकों के बारे में भी जानकारी ली,  तो पाया हिमाचल प्रदेश के ही अन्नी से 35वर्षीय दयाल चंद की मृत्यु पार्वती बाग में सांस रुक जाने से हुई और अयोध्या से श्री खंड दर्शन कर वापस नीचे उतर रहे 24वर्षीय उमेश प्रताप की फिसल कर गिरने से सिर में चोट लग गई,  मौके पर बच गया परन्तु दिमाग में रक्तस्राव होता रहा...... पार्वती बाग में रेस्क्यू टीम के पास दो दिन पड़ा रहा, सेना के किसी बड़े अफसर का बेटा था... सो सेना का हेलीकाप्टर लेने भी आया, परन्तु मौसम साफ ना होने के कारण हेलीकाप्टर नीचे नही उतर सका...और अत: उमेश प्रताप दम तोड़ गया...!
                           ये सब लिखने का मक़सद है कि इस यात्रा पर पूर्ण रुप से स्वस्थ व्यक्ति ही जाए और संयम व चौकना रह कर ही इस यात्रा को पूर्णता तक ले जाए.....
                            थाचडू से चले तो कुछ कदम बाद ही फिर से चढ़ाई आनी शुरू हो गई, मैने विशाल जी से कहा कि "मुझे लगता था कि थाचडू  में ही डाँडा धार की चढ़ाई का अंत हो जाएगा.....परन्तु नही, चलो फिर जोर से बम-बम भोले का जयकारा लगा चढ़ते है इस डाँडा धार शिखर की ओर..! "      और भगवान शिव को समर्पित पहाड़ी भजन जो मुझे बेहद पंसद है, जोर-जोर से गाने लगा "शिव कैलाशों के वासी, धौली धारों के राजा... शंकर संकट हरना "
                             कुछ देर चलते रहने पर ऊपर से उतरता एक लड़का हमारे पास आ रुका, और उसने हम से कहा कि वह हमारी रक्सकों पर "ग्रीन श्री खंड ईको ड्राइव" के स्टीकर लगाना चाहता है.... हमने उसे इसके विषय में पूछा तो वह बोला, " मेरा नाम हर्षशूल शर्मा है और अरसू का रहना वाला हूँ और ग्रीन श्री खंड ईको ड्राइव संस्था का स्वयंसेवक हूँ.. हमारी संस्था ने पूरे श्री खंड मार्ग पर हर दुकान के आगे कचरा एकत्र करने हेतू पीले रंग के थैले बांध रखे है,  जिसे यात्रा के समाप्त होने के बाद इक्ट्ठा कर उचित जगह पर ले जाया जाएगा... और हम स्वंयसवेक रास्ते पर यात्रियों द्वारा फेंका गया कचरा एकत्र भी करते हैं"     हम दोनों ने हर्षशूल व उनकी संस्था की जम कर प्रशंसा की...... और पिछले साल सर्दियों में की हुई खीरगंगा यात्रा में पूरे रास्ते पर यात्रियों द्वारा फेंकें हुए कचरे के ढेर अचानक से याद आ गये.....दोस्तों आप जब भी पहाडों में जाओ, तो प्रण कर के चलो कि हमे अपना कचरा वहाँ ऐसे ही खुले में यहाँ-तहाँ नही फेंक आना है,  बल्कि निधार्रित स्थान पर ही फेंकना है.......
                               हर्षशूल से ये अल्प मुलाकात हमें हर्षित गौरवान्वित  कर गई, कि हमारे युवा इस विषय में भी कार्य कर रहे हैं......... कुछ ओर चढ़ाई चढ़ हम दोनों सांस लेने रुके ही थे, कि ऊपर से तीन युवक व एक युवती खुशी में चिल्लाते व भागते हुए हमारे सामने ही पहाड के किनारे पर बड़ी सी समतल चट्टान पर ऐसे कूदे कि जैसे वहीं से आसमान में उड़ जाना चाहते हो,  मैने उनकी खुशी देख पूछा...... तो जवाब मिला कि "खुश क्यों ना हो... हम श्री खंड माथा टेक वापस जो आ रहे हैं...!!! "

                                                                           ..................................(क्रमश:)







          
                     
                                                       
कढ़ी, मूँग की दाल व चावल का लंगर....

थाचडू में लंगर प्रबंधक काका जी और मैं..... 

श्री खंड महादेव के दूसरे पड़ाव "थाचडू" में लगे कई सारे टैंट.... 

थाचडू में एक दुकान के बाहर खड़े विशाल रतन जी... 

थाचडू से प्रस्थान.... 

हर्षशूल शर्मा "ग्रीन श्री खंड ईको ड्राइव" का स्टीकर लगाते हुए...

और, मेरी रक्सक पर भी हर्षशूल ने स्टीकर लगा दिया..... 
हर दुकान के बाहर "ग्रीन श्री खंड ईको ड्राइव" संस्था ने कचरा डालने के लिए पीले रंग के थैले टांग रखे थे...

खुश क्यों ना हो, हम श्री खंड माथा टेक वापस जो आ रहे हैं....!


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