सोमवार, 20 मार्च 2017

अडलाज बाव(कलात्मक कुँआ) वास्तुकला का एक आश्चर्यजनक नमूना और इसके निमार्ण से जुड़ी अद्भुत कथा

        अडलाज बाव (बावडी या कुँआ).....अहमदाबाद (गुजरात)
               
               अहमदाबाद से गांधी नगर की तरफ 18किलोमीटर जाने के बाद अडलाज गाँव में वास्तुकला का अनूठा, नायाब तथा आश्चर्यजनक नमूना "अडलाज बाव " स्थित है....मैंने अपने जीवन में इतना अद्भुत कुँआ कहीं ओर नही देखा। यह एक ऐसा कुँआ जिसमें पांच मंजिलें नीचे की तरफ भूमिगत महल हैं.... और वो भी मुस्लिम तथा हिन्दू शैली की कारीगरी के साथ।
                    इस अडलाज बाव को बनवाने में और हिन्दू-मुस्लिम शैली की कारीगरी के मिश्रण के पीछे एक राजपूत विधवा रानी का क्या मक़सद था, मैं आपको बताता हूँ कि 14वीं सदी के अन्त में अहमदाबाद के साथ ही स्थित दांडईदेश राज्य के राजपूत राजा वीर सिंह बघेंला की अहमदाबाद के सुल्तान महमूद बेगड़ा के साथ युद्ध लड़ते मृत्यु हो गई। राजा वीर सिंह की पत्नी रूदा बाई की सुन्दरता पर मोहित हो सुल्तान बेगड़े ने उससे निकाह का प्रस्ताव रख दिया,  परन्तु रानी रूदा ने कहा कि शादी तो वह जरूर करेगी आप से....पर मैं पहले वीरगति को प्राप्त अपने पति की याद में एक कुँआ खुदवाऊंगी और आप को मेरी इस में सहायता भी करनी पड़ेगी, कुँआ पूर्ण होने पर मैं आप जाऊँगी...! सुल्तान बेगड़ा रानी रूदा बाई की मन की बात ना समझ पाया और उसके रूप के दीवाना हो, रानी रूदा की शर्त अनुसार सहमत हो गया।
                    रानी रूदा बाई ने कुँऐ का कार्य 20साल तक लम्बा खींच दिया और सुल्तान बेगड़ा ने भी पूरे इमान से उस का साथ दिया....आखिर जो इमारत बन रही हैं, उसने पूर्ण भी तो होना था। अडलाज बाव आखिर 1499में पूर्णता बन कर तैयार हो गया। सुल्तान बेगड़े ने रानी रूदा की शर्त पूरी कर दी थी,  और अब उसने रानी रूदा बाई को अडालज बाव पर बुला कर, कहा- "लो मैने तुम्हारी शर्त पूर्ण कर दी हैं, अब तुम मुझ से निकाह करो"
                  परन्तु रानी रूदा के मन में तो शुरु से ही कुछ और चल रहा था, उसने सुल्तान से कभी शादी ही नही करनी थी। बुलावे पर पहुँची रानी रूदा बाई ने अपने राजपूताना धर्म निभाते हुए मर जाना बेहतर समझा......... और सुल्तान बेगड़ा के आगे ही नवनिर्मित अडलाज बाव के कुँऐ में सबसे ऊपर वाली पांचवी मंजिल से छलांग ला जल समाधि ले ली और सुल्तान बेगड़ा खड़ा हाथ मलता रह गया...!!
                      अडलाज बाव का पांच मंजिला और अष्टभुजाकार यह ढांचा 16स्तम्भों पर खड़ा हैं और बाव के हर स्तम्भ, दीवार पर शानदार नक्काशी की हुई है...जैसे फूल, पंछी, मछली,बेल-बूटियां और आभूषणों के डिजाइन बनाए गए हैं और बाव में ही नव ग्रह की प्रतिमाएँ भी स्थापित हैं...जिन्हें इस कुँऐ का रक्षक भी बना जाता हैं और इस कुँऐ में बने महल के कमरो का तापमान बाहर के तापमान से 6-7डिग्री तक कम रहता है। गाँव वाले अक्सर गर्मी के दिनों में यहां बैठ कर अपनी गर्म दोपहर बिताते देखे जाते हैं।
अडलाज बाव का ऊपरी हिस्सा और लम्बाई।
अडलाज बाव के स्वागत द्वार के दोनों तरफ के कमरो के नक्काशीदार झरोखे।
अडलाज बाव की पांच में से दो मंजिलों का बरामदा।
अडलाज बाव का महल जैसा बरामदा।
वह स्थान यहां से रानी रूदा बाई ने छलांग लगा कर जल समाधि ले ली थी... और सुल्तान महमूद बेगड़ा खड़ा हाथ मलता रह गया...!

गुरुवार, 16 मार्च 2017

पांडवों द्वारा स्थापित पांच शिव लिंगों का मंदिर... सोमेश्वर महादेव

हिमालय की दूसरी परत शिवालिक में स्थापित.... "सोमेश्वर महादेव"........ प्राचीन शिव मंदिर, स्वामीपुर बाग नजदीक "नंगल"(पंजाब)
           यह प्राचीन स्थान एवम मंदिर,  नंगल झील की पिछली तरफ हिमाचल प्रदेश की सीमा से लगते गांव स्वामीपुर बाग में है और इस मंदिर का इतिहास पांडवो से जुड़ा है।
           कहते हैं कि, वनवास के दौरान एक वर्ष  शिवरात्रि के समय पांडवो ने यहां से गुज़रते हुए पांच अलग-अलग आकार के शिव लिंगों को एक दिशा और एक ही रेखा में  स्थापित कर शिवरात्रि की पूजा-अर्चना की थी।
             परन्तु समय के कालचक्र में, आज यहां पर पांच में चार शिवलिंग ही नजर आते हैं, पांचवां शिवलिंग भूमिगत हो गया............ और अब एक विशालकाय वट वृक्ष इन शिवलिंगों के ऊपर खड़ा है।
             इस प्राचीन स्थान पर मंदिर बनाने और रखरखाव में...... पास के ही हिमाचल प्रदेश के गांव के बाह्रमण,  बाबा रोशन लाल जी ने अपनी तमाम उमर लगा दी....बतातें हैं, कि वह चायपत्ती का छोटा-मोटा व्यापार आस-पास के गांवों में करते थे.... जो भी उस व्यापार से कमाया... घर कुछ नही लेकर गए,  बस सब कुछ यही लगा दिया।
               मैने कोई दस साल पहले यह मंदिर देखा था...... और अब देखा, तो काफी कुछ नया बन चुका है यहां पर.............बाबा रोशन लाल जी की मृत्यु के बाद अब गांव की कमेटी ही इस मंदिर के प्रबंधन के देख रही हैं और बाबा रोशन लाल जी की खूबसूरत समाधि भी मंदिर में बनाई गई है।
सोमेश्वर महादेव मंदिर स्वामीपुर बाग की ओर जाती हुई सड़क पर बना द्वार.... 
सोमेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण....
सोमेश्वर महादेव मंदिर में... भगवान शिव की बेहद सुंदर मूर्ति.... 
सीधी रेखा और समान दूरी पर स्थापित है अलग-अलग आकार के चार शिवलिंग... सोमेश्वर महादेव 
बाबा रोशन लाल जी की समाधि.... जिन्होंने अपनी सारी जिंदगी इस मंदिर के निर्माण और देखरेख में लगा दी.... 
सोमेश्वर महादेव मंदिर में एक रेखा में ही स्थापित सभी शिव लिंग...


(1) "श्री खंड महादेव कैलाश की ओर ".....यात्रा वृत्तांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।
(2) "पैदल यात्रा लमडल झील वाय गज पास ".....यात्रा वृत्तांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।
(4) "चलो, चलते हैं सर्दियों में खीरगंगा " ....यात्रा वृत्तांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।
  (4) करेरी झील "मेरे पर्वतारोही बनने की कथा "......यात्रा वृत्तांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें

बुधवार, 15 मार्च 2017

दो सौ साल की मेहनत व सादे औजारों से पहाड को तराश कर निकला एक अद्भुत अजूबा..... कैलाशनाथ गुफा मंदिर, एलोरा(महाराष्ट्र)

कैलाशनाथ गुफा मंदिर...... एलोरा (महाराष्ट्र)
              कैलाशनाथ गुफा मंदिर, एलोरा की सौ से अधिक गुफाओ में से दखने योग्य 34गुफाओ में क्रमवार 16नम्बर गुफा है......... जो कि एक शिव मंदिर की अद्भुत इमारत हैं, जिसका  निर्माण ज्वालामुखी लावा के ठण्डे होने के बाद बने चट्टानी पहाड़ को ऊपर से नीचे काट कर तथा बाहर से अंदर गढा या तराशा गया .......दोस्तों, जैसा आप जानते हैं...कि किसी भी इमारत का निर्माण कार्य हमेशा जमीन यानि नींव से शुरू हो कर ऊपर की ओर जाता हैं,   पर कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण पहाड़ के शिखर पर से शुरू हो कर नीचे की तरफ किया गया
               इस गुफा मंदिर के निर्माण का श्रेय मुख्यतः राष्ट्रकूट नरेश दंतिदुर्ग और कृष्ण प्रथम को जाता हैं..... कोई 200साल तक 10पीढ़ीयां इस मंदिर के निर्माण में जुटी रही......... मुख्यत: भगवान शिव को समर्पित इस गुफा मंदिर में बहुत सारे देवी देवताओं की मूर्तियों के अलावा, पुराण महाकाव्य दृश्य, पशु-पक्षी और मिथुन-गजराज मूर्तियाँ, बेल-बूटियां की कलाकारी तथा रामायण-महाभारत के दृश्य दिखाते मूर्ति चित्र बने हुए हैं और उस समय पूरे मंदिर को प्लास्टर व रंग भी किया गया, परन्तु समय की मार ने बहुत कुछ इस मंदिर से उतार दिया, कुछ निशान बचे हैं ..... जिन के चित्र आप चित्रों में देख सकते हैं .......मंदिर प्रांगण में विशाल गजराज की मूर्ति तथा कृति स्तम्भ राष्ट्रकूट राज्य के गौरवता को दर्शाते हैं
कैलाशनाथ गुफा मंदिर के प्रांगण में राष्टकूट राज्य के गौेरवशाली इतिहास को दरशाते कृति स्तम्भ व गजराज की विशाल मूर्ति.... 

                  मुख्य मंदिर का गर्भगृह बहुत ही साधारण ढंग से बनाया गया है, जिस में बहुत बड़े आकार का शिवलिंग स्थापित हैं ......और मंडप की छत पर नृत्य मग्न नटराज की मूर्ति बहुत शोभनीय हैं....  कितनी हैरानी की बात है मित्रों कि, आज से हजार साल पहले साधारण हथौड़ा-छेनी से कैसे इतने बड़े पहाड़ को तराश दिया कारीगरों ने..........हमारा देश भारत ऐसी अद्भुतता से भरा पड़ा है, मैं खुद एलोरा को देखने से पहले मिस्र के पिरामिड को संसार की आश्चर्यजनक इमारत समझता था, परन्तु इन एलोरा की गुफाओ को देखने के बाद मेरी सोच और पसंद बदल गई तथा मुझे अपने भारतीय होना का गौरव महसूस होता हैं....
कैलाशनाथ गुफा मंदिर ...कैसे साधारण औजारों से पहाड को चीर कर, राष्ट्रकूट नरेश की दस पीढ़ियों ने दौ सौ साल की मेहनत के बाद राष्ट्र को यह एक अद्भुत देन दी..... 
कैलाशनाथ गुफा मंदिर के प्रांगण में पहाड को भीतर तक तराश कर बनाया गया विशाल गलियारा... 
हैरान कर देने वाली बात कि सारे मंदिर को प्लास्टर व ऊपर रंगीन चित्रकारी भी की हुई थी.... जो काल की बलि चढ़ चुकी है... 
रामायण-महाभारत की घटनाओं को दर्शाते मूर्ति कथा चित्र... कैलाशनाथ गुफा मंदिर... 
कैलाशनाथ गुफा के सादे से गर्भगृह में स्थापित विशाल शिव लिंग.....और मैं
(1) " श्री खंड महादेव कैलाश की ओर "....यात्रा वृत्तांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।
(2) "पैदल यात्रा लमडल झील वाय गज पास "......यात्रा वृत्तांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।
(3) "चलो, चलते हैं सर्दियों में खीरगंगा ".....यात्रा वृतांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।
(4) करेरी झील, " मेरे पर्वतारोही बनने की कथा " ....यात्रा वृत्तांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।

सोमवार, 13 मार्च 2017

एक बेहद खूबसूरत मंदिर.... हटी सिंह जैन मंदिर, अहमदाबाद(गुजरात)




हटी सिंह जैन मंदिर....... अहमदाबाद (गुजरात) ........ मैने अपने जीवन में बहुत सारे जैन मंदिर देखे है,  परन्तु हटी सिंह जैन मंदिर की इमारत की नक्काशी बहुत ही महीन और खूबसूरत हैं ....इस मंदिर का निर्माण अहमदाबाद के एक धनी जैन व्यापारी सेठ हटी सिंह ने करवाना शुरू किया, परन्तु मंदिर पूर्ण होने से पहले ही सेठ जी की 49साल में मृत्यु हो गई.... फिर उन की धर्मपत्नी सेठानी हरकूनवर ने इस मंदिर को सन् 1848में पूर्ण किया...... और  इस मंदिर निमार्ण पर आठ लाख रुपये का खर्चा आया, जो कि उस समय बहुत बड़ी राशि थी........सेठ हटी सिंह ने  अपने प्रिय अराध्य जैन धर्म के 15वे तीर्थाकंर श्री धर्मनाथ जी की मूर्ति को सम्पूर्ण मंदिर के प्रांगण में मध्य  स्थित दो मंजिला मंदिर में  मुख्यत: स्थापित किया और बाकी तीर्थाकंर जैन भगवानों की मूर्तियां पूरे मंदिर के खूब महीन नक्काशीदार गलियारों में स्थापित की गई है..... और इस मंदिर का एक और मुख्य आकर्षण है... इस का कृति स्तम्भ....... जो कि चितौड़ दुर्ग के विजय स्तम्भ की भांति ही हैं......
हटी सिंह जैन मंदिर के मुख्य द्वार के नक्काशीदार स्तम्भ.... मैं 
हटी सिंह जैन मंदिर अहमदाबाद 
हटी सिंह जैन मंदिर में बना कृति स्तम्भ 
हटी सिंह जैन मंदिर का सुंदर गलियारा...जिसमें सभी जैन तीर्थाकरों के मंदिर बने हुए हैं 

हटी सिंह जैन मंदिर का गलियारा और मुख्य मंदिर का एक भाग 

शनिवार, 11 मार्च 2017

ताजमहल देखने जब आगरा जाऐ, तो बादशाह अकबर का मक़बरा "सिकन्दरा " जरूर देखें..

"सिकन्दरा".......बादशाह अकबर का मक़बरा (आगरा)
                   
             जलालुदीन मुहम्मद अकबर (1542-1605)मध्यकालीन भारतीय इतिहास में वो बादशाह थे, जिन्होंने सन् 1556-1605 तक राज किया...... तथा एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की,  जो कि काबुल से आसाम व कश्मीर से अहमदनगर तक फैला हुआ।  उन्होंने युद्धरत राजपूत राजाओं को मुगल छत्र के नीचे एकत्रित किया और खुद भी विशुद्ध देसी बन देश को एक सी सांस्कृतिक, राजनीतिक तथा प्रशासनीय व्यवस्था के अन्तर्गत जोड़ दिया।
              बादशाह अकबर ने अपने जीते-जी ही अपने मक़बरे का निर्माण शुरू करवा दिया,  परन्तु मक़बरा निर्माण सन् 1605 में शुरू होते ही अकबर की मृत्यु हो गई, तो उनके बेटे बादशाह जहाँगीर ने इस मक़बरे के निर्माण को चालू रख. सन् 1612 में सम्पूर्ण किया।
              बादशाह अकबर की एक अग्रणीय सोच थी, कि उनके पूरे परिवार का एक ही सामूहिक मक़बरा बने....... जो भी पारिवारिक सदस्य मृत्यु को प्राप्त हो, वह इस मक़बरे में दफन होता जाए........और अाने वाली पीढ़ी मक़बरों के बेशुमार खर्च से बच सके।
               इसलिए अपनी राजधानी आगरा में ही अकबर ने एक बहुत बड़ी जगह (119एकड़)जो कि सन् 1488-1517 तक हिन्दुस्तान के बादशाह रहे सिकन्दर लोदी द्वारा बनाए हुए ....एक बहुत खूबसूरत बाग "सिकन्दरा" में इस मक़बरे का निर्माण आरम्भ किया।  यह मक़बरा पांच मंजिला बना हुआ है और इसके भीतरी या मध्य, एक सादे से मुख्य कक्ष में बादशाह अकबर की सफेद संगमरमर की बनी हुई सादी सी कब्र है।  जब कि इस कक्ष के अलावा सारा ही मक़बरा बेहद सुन्दर व महीन नक्काशी से भरा पड़ा है। कब्र कक्ष की छत की ऊँचाई कोई 70फुट के करीब होने के कारण,  अंदर बोला एक-एक शब्द अपनी गूंज सुनाता है...... और इस मुख्य कक्ष के चारो तरफ कई सारे कक्ष और बनाए गए हैं।
                 इन बाहरी कक्षों की विशेषता यह है कि इन के फर्श खोखले रखे गए है,  ताकि जो भी पारिवारिक सदस्य काल का ग्रास बने... तो उसकी मृत देह को एक कक्ष प्राप्त हो,  परन्तु एेसा हो ना सका। बादशाह अकबर के सिर्फ तीन वंशज ही इस मक़बरे में दफन हैं...... जिन में अकबर की दो पुत्रियां, सकरूल निशा बेगम और अराम बानो बेगम तथा तीसरी कब्र हैं जहाँगीर के एक कम उमर पुत्र की है।
                 मेरे गाइड द्वारा जब यह बात बताई गई कि अकबर की एक पुत्री ईरान देश में विवाहित थी.... की मृत देह को ईरान से आगरा ला कर दफन किया गया, यह बात सुन मैं हैरत में पड़ गया और बोला, " क्यों मजाक कर रहे हो भाई.... कहाँ ईरान और कहाँ आगरा की दूरी और वो भी उस पुराने समय में....!!!"
                गाइड हंसा और बोला, " दूरीयां तो हम साधारण लोगों के लिए होती हैं जनाब,  वह तो राजे-महाराजे थे, जैसे आज हमारे देश के राजे यानि सरकार के लोग, नाश्ता तो दिल्ली में करते हैं और रात्रिभोज सात समुद्र पार किसी और देश में.....!!!!!"
बादशाह अकबर के मक़बरे में सोने-चांदी से की शानदार नक्काशी और स्वर्ण अक्षरों से लिखी कुरान की आएतें।
                बादशाह अकबर के अंतिम विश्राम कक्ष को छोड़ सारे मक़बरे में सोने, चांदी और रत्नों के साथ मीनाकारी की गई थी,  जो कि समय-समय पर लूट की बलि चढ़ते गए। मुगल साम्राज्य के अन्त के बाद ....एक जाट राजा
बादशाह अकबर की दोनों पुत्रियाँ... सकरुल निशा बेगम और अराम बानो बेगम की कब्रें। 
राम जाट मुगलों के प्रति अपना भयंकर गुस्सा को इस मक़बरे पर निकाला।
इस चित्र में, मैं आपको दिखाना चाहता हूँ... कि सिर्फ पहले कक्ष को नक्काशीदार ज़ालियों से बंद किया गया है,  क्योंकि इस कक्ष में बादशाह अकबर की दोनों पुत्रियाँ दफन है... और बाकी बने बेशुमार कक्ष खाली ही पड़े रह गए।
                    उसने मक़बरे के भीतर भूसा भर कर उसे आग लगा दी.... और दीवारों और छतों पर लगा सोना-चांदी पिघला कर इकटठा किया।  खजाने के लालच में अकबर की कब्र को भी तोड़ा और आग लगाई,  इससे मक़बरे में भारी क्षति हुई।
                    फिर बाद में अंग्रेजी हुकूमत के लार्ड करज़न ने इस मकब़रे की मुरम्मत करवाई, शायद यही बजह हैं कि भीतरी कक्ष इतना सादा है।
बादशाह अकबर की सफेद संगमरमर से बनी कब्र.... सिकन्दरा। 
सिकन्दरा के मुख्य द्वार और मकबरे के मार्ग का मध्य भाग... पूरा रास्ता कई सौ मीटर लम्बा है, और इसमें बहुत खूबसूरत पानी के फव्वारें लगे हुए हैं।
                   मक़बरे में हर तरफ बहुत बढ़िया मुगलिया वास्तुकला देखने को मिलती है, जैसे गलियारो की बात करें तो....जब आप उस की एक दीवार के कोने की तरफ मुंह कर धीरे से कुछ फुसफुसाते हो, तो वह सब सामने के दीवार के कोने पर कान लगा कर खड़े व्यक्ति को सुनाई देता है, जबकि कमरे में खड़े किसी भी व्यक्ति को सुनाई नही देता।
                   मकबरे के विशाल बाग  में खुले आज़ाद घूम रहे हिरण बाग की सुन्दरता को चार चांद लगा देते हैं। सिकन्दरा बाग में दाखिल होने से पहले सिकन्दर लोदी द्वारा निर्मित एक दोमंजिला  मक़बरा भी बना हुआ है,  जिस पर यह स्पष्ट नही है कि अंदर स्थित दो कब्रें किस दंपत्ति की है।
सिकन्दरा... बादशाह अकबर का पांच मंजिला मक़बरा।
                 पूरे का पूरा सिकन्दरा  मुगलों द्वारा निर्मित प्रमुख इमारतो में से एक सुन्दरतम इमारत हैं..... मैं दो बार इसे देख चुका हूँ और सच कहता हूँ कि मुझे यह ताजमहल से भी ज्यादा पसंद है।
सिकन्दरा आगरा... का मुख्य द्वार, जिसकी वास्तुकला हैदराबाद के चार मीनार से प्रेरित लगती है। 
सिकन्दर लोदी द्वारा निर्मित "लोदी मक़बरा ".....जो कि सिकन्दरा बाग में एक तरफ बना हुआ है।
इस चित्र में देखें...  मुख्य द्वार के आगे एक छोटा द्वार....इस द्वार को ऐसा इसलिए बनाया गया,  कि जब कोई भी व्यक्ति इन सीढ़ियों से ऊपर चढ़ कर द्वार से निकले,  तो क़ुदरती रुप में उसका सिर बादशाह अकबर के सम्मान में खुद ब खुद झुक जाए.... और इस द्वार की सीधी रेखा में ही बादशाह अकबर की कब्र है,  और बादशाह अकबर की कब्र के पीछे खड़े हो.. यदि आप कब्र कक्ष के द्वार की तरफ देखें तो,  उस द्वार के बीच कई सौ मीटर दूर यही पहला छोटा सा द्वार ही नज़र आता है.... भवन वास्तुकला की शानदार उदाहरण है... यह साधारण सा दिखने वाला छोटा सा द्वार।
¤¤¤¤¤¤¤



 यदि आप मेरी साहसिक यात्राओं की चित्रकथाएें पढ़ना चाहते हैं तो निम्नलिखित यंत्रों द्वारा आप मेरे संग शब्दों पर सवार हो वह यात्रा खुद भी कर सकते हैं...

    (1) "श्री खंड महादेव कैलाश की ओर ".... यात्रा वृत्तांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।
(2) " पैदल यात्रा लमडल झील वाय गज पास "...यात्रा वृत्तांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।
(3) "चलो, चलते हैं सर्दियों में खीरगंगा ".....यात्रा वृत्तांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।

(4) करेरी झील " मेरे पर्वतारोही बनने की कथा "....यात्रा वृत्तांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।
(5)" मणिमहेश, एक दुर्गम रास्ते से..! " यात्रा वृत्तांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।

गुरुवार, 9 मार्च 2017

पुष्कर के अलावा एक और ब्रह्मा जी का मंदिर.. ब्रह्मोती (हिमाचल प्रदेश)


   " ब्रह्मोती...... भगवान ब्रह्मा जी का मंदिर "
             पुष्कर (राजस्थान) स्थित ब्रह्मा जी के एकमात्र मंदिर को कौन नहीं जानता,  परन्तु मित्रों हमारे इलाके में भी एक बहुत प्राचीन ब्रह्मा जी का मंदिर हैं,  नाम हैं "ब्रह्मोती मंदिर",गांव हंड़ोला, हिमाचल प्रदेश..... ये स्थान नंगल(पंजाब) से मात्र 5किलोमीटर की दूरी पर हैं।
ब्रह्मोती मंदिर का स्वागत द्वार।
                  शिवालिक की पहाड़ियों से घिरा इलाका और मध्य में भाखड़ा बांध से निकला सतलुज दरिया का निर्मल जल,  उसके किनारे बना यह सुन्दर स्थान बहुत ही रमणीक है,जो हर किसी के मन को मोह लेता है।
ब्रह्मोती मंदिर के घाट से लिया गया चित्र।
                   इस प्राचीन मंदिर का इतिहास कुछ इस प्रकार है, कि ब्रह्मा जी द्वारा इस दिव्य स्थान पर चिरकाल तप करने के बाद जो तेज पुंज निकला, वह मां ज्वाला जी में परिवर्तित हो गया और ब्रह्मा जी व अन्य देवताओ ने दिव्य मंत्रों द्वारा मां ज्वाला जी की यहीं स्तुति की और बाद में इसी स्थान पर ब्रह्मा जी के पुत्र वशिष्ठ मुनि जी ने तप किया और यहीं वास करते हुए उन्हें सौ पुत्रों की प्राप्ति हुई।
ब्रह्मोती मंदिर का मोड़ और यह सड़क आगे एक गाँव जराद खाना तक जा कर बंद हो जाती है... क्योंकि आगे सीना ताने शिवालिक पर्वत श्रृंखला खड़ी है।

                    राजर्षि विश्वामित्र जी,  वशिष्ठ मुनि जी की ब्रह्मर्षि होने की उपाधि के कारण द्वेष भावना रखते थे,  इसी द्वेष या रंजिश के कारण विश्वामित्र जी ने वशिष्ठ मुनि जी के सौ पुत्रों का वध इसी स्थान पर ही कर दिया था........विश्वामित्र जी को ब्रह्म हत्या का दोष लगा,  पश्चाताप और ब्रह्म दोष के निवारण हेतू विश्वामित्र जी ने ब्रह्मा जी की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर, साक्षात प्रकट किया और ब्रह्म हत्या दोष निवारण हेतू वर मांगने पर.... ब्रह्मा जी ने विश्वामित्र जी से कहा, राजन यहां पर आप यज्ञ का अनुष्ठान कराओ, मेरी तपस्थली होने के कारण मैं भी और देवताओ सहित यज्ञ में आहुतियां डाल कर तुम्हारे द्वारा वध किए अपने सौ पौत्रो का उद्घार करूंगा और मेरे स्वयं द्वारा आहुतियां डालने के कारण यह तीर्थ ब्रह्मोती के नाम से विख्यात होगा।
ब्रह्मोती मंदिर की तरह नीचे उतरती सीढ़ियाँ। 
ब्रह्मोती मंदिर का मुख्य द्वार... जिस में प्रवेश के बाद कई सारी सीढ़ियां उतर कर नीचे मंदिर प्रांगण में पहुंचा जाता है... 
हण्डोला गाँव में बना... ब्रह्मोती मंदिर का स्वागत द्वार।
                     मुख्य मंदिर में ब्रह्मा जी,  शिव जी और गंगा माता जी प्रतिष्ठित हैं....इस के अलावा मंदिर प्रांगण में श्री कृष्ण-राधा मंदिर, महापुरुषों की समाधियां  और एक अखंड धूना भी है। इस स्थान के घाट  को गंगा नदी के समान माना जाता हैं, इसलिए यहां अस्थि विसर्जन भी होता हैं और वैशाखी पर यहां घाट पर नहाना शुभ माना जाता है।
शिवालिक की पहाड़ियों में सतलुज दरिया पर बना ब्रह्मोती मंदिर का घाट।

(1) करेरी झील, मेरे पर्वतारोही बनने की कथा..... यात्रा वृत्तांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।
(2) "श्री खंड महादेव कैलाश की ओर "......यात्रा वृत्तांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।
(3) "पैदल यात्रा लमडल झील वाय गज पास ".....यात्रा वृत्तांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।
(4) चलो, चलते हैं सर्दियों में खीरगंगा..... यात्रा वृत्तांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।
  (5) "मणिमहेश, एक दुर्गम रास्ते से...!" यात्रा वृतांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।

मंगलवार, 7 मार्च 2017

एक झूलता पुल, जिसने भाखड़ा बांध के बनने में अहम भूमिका निभाई....(हण्ड़ोला पुल, Handola Bridge)

                   नंगल (पंजाब) के साथ लगते हिमाचल प्रदेश के एक गांव "हण्ड़ोला" में स्थित एक झूला पुल ..... इस पुल का नाम भी इसके गांव के नाम पर ही है... यानी कि "हण्ड़ोला पुल"
              मित्रों, इस पुल ने एशिया के नम्बर वन, "भाखड़ा बांध" के बनने में अहम भूमिका निभाई है।
             भाखड़ा बांध का निर्माण कार्य अमेरिका निवासी चीफ इंजीनियर, सर सुलोकम की देखरेख में हुआ था,  जिन्हें उस समय के हिसाब से देश का सबसे ज्यादा मासिक वेतन मिलता था...यानि कि उस समय के राष्ट्रपति से भी ज्यादा......!!
              बांध निर्माण अधीन समय,  इस पुल पर वो कनवेयर बैल्ट, जो कि निर्माण सामग्री आदि ले कर जाती थी... चलती थी और कई किलोमीटर लम्बी भी थी। कनवेयर बैल्ट की राह में आते सतलुत दरिया से पार,  निर्माणाधीन भाखड़ा बांध तक सामान ले जाने के लिए ही इस पुल का निर्माण किया गया था।
स्कूली बच्चों और गाँव वालो का रोज का रास्ता... हण्ड़ोला पुल 
सतलुज दरिया में चल रही नाव... क्या नज़ारा है... 
जूम कर देखे... टनल से निकलती नंगल-भाखड़ा खिलौना गाड़ी 
सतलुज तट पर भगवान ब्रह्मा जी का मंदिर.... ब्रह्मोती 
हण्ड़ोला पुल.... चढ़े अपनी जिम्मेबारी पर.... 
               अब यह पुल....हण्ड़ोला और नहेला गांव को जोड़ने का काम कर रहा है, इस पर सिर्फ पैदल ही जा सकते हैं, वो भी अपनी जिम्मेबारी पर.....!!!
               जब मैं पुल पर चढ़ा तो सरकारी स्कूल नहेला से बच्चे पढ़ कर वापस हण्ड़ोला की ओर आ रहे थे, और उनके चलने से पुल भी झूल रहा था।  सतलुज दरिया के ऊपर बने इस पुल के एक तरफ तो भगवान ब्रह्मा जी का मंदिर.. "ब्रह्मोती"  दूर सतलुज के तट पर नजर आता हैं और दूसरी दिशा में दरिया किनारे नंगल-भाखड़ा खिलौना गाड़ी के रेलवे ट्रैक की टनल दिखाई देती हैं, मेरी खुशकिस्मती से उसी समय टनल से गाड़ी भी आ निकली, जो भाखड़ा जा रही थी। मैने बिना देर किए उसे भी चित्र में कैद कर लिया।
सिर्फ पैदल ही मान्य... हण्ड़ोला पुल