भाग-15 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर.....
" काली घाटी शिखर पर सुखद रात्रि विश्राम "
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डाँडा धार पर्वत के शिखर काली घाटी टॉप पर एकाएक शुरू हुई बारिश से बचने के लिए मैं और विशाल रतन जी, दुकानदार तारा चंद के टैंट में बैठ गरमागरम मैगी का लुत्फ उठा रहे थे कि एक अधेड़ उम्र सज्जन भी बारिश से बचने के लिए टैंट में आ खड़े हो गए.... उन्होंने एनामी-गिनामी कम्पनी के बेहद उम्दा बूट डाल रखे थे, परन्तु एक बूट का तला उखड़ा होने के कारण उसे रस्सियों से बांध गुज़ारा कर रहे थे... मेरे इस सम्बन्ध में पूछने पर उन्होंने कहा कि, "इन जूतों से मैं कैलाश-मानसरोवर की पद यात्रा कर चुका हूँ, परन्तु इस यात्रा की वापसी पर ये बूट मुझे धोखा दे गये...! "
मैने उन्हें तर्क दे कर कहा कि, " दोष आपके जूतों में नही है, आप में है जी... होता क्या है कि हम पर्वतारोहण के लिए विशेष किस्म के जूते खरीद लेते है और साल में एक-दो बार ही पहनतें हैं, तब जब हम पर्वतारोहण पर जाते हैं... आपने भी निश्चित है कि ऐसा ही किया होगा, पिछली यात्रा के एक साल बाद आपने इन जूतों को अलमारी से निकाल और पहन कर इस पद यात्रा पर आ गए...और इनकी पेस्टिंग उखड़ गई, चाहिए तो यह है कि हमें अपने पर्वतारोहण जूतों को निरंतर हर दस दिन बाद एक दिन के लिए जरूर पहनना चाहिए, ताकि उस में लचक बनी रहे..!! " वे सज्जन बोले, " हां जी, आपने बिल्कुल सही कहा... मैं भविष्य में इस बात का ध्यान रखूँगा "
हमारा इरादा तो आज भीम तलाई नामक स्थान तक पहुँचने का था, परन्तु बारिश ने हमें आगे बढ़ने से रोक रखा था.. जबकि काली टॉप की उस ऊँचाई से नीचे घाटी में भीम तलाई भी नज़र आ रहा था... वहीं बैठे-बैठे तकरीबन एक घंटा गुज़र गया, शाम के पांच बज चुके थे... बूंदाबादी अब भी थम नही रही थी और काली टोप से आगे भीम तलाई के लिए जबरदस्त उतराई है और रास्ता भी कीचड़ युक्त हो चुका था, सो मैने विशाल जी को सलाह दी कि क्यों ना आज रात यहीं पर ही रुक जाए.. एक तो इस स्थान की समुद्र तल से ऊँचाई 3740मीटर है, इतनी ऊँचाई पर रात रुकने के कारण हमारे शरीर भी इस कठिन यात्रा की आगामी ऊँचाई के अनूकूल बन जाएंगे.... विशाल जी ने मेरी बात पर सहमति की मोहर लगा दी और दुकानदार तारा चंद जी ने हमे एक अलग व बेहद बढ़िया टैंट किराये पर दे दिया, तारा चंद जी ने वहाँ अलग-अलग कर कई सारे टैंट गाड़ रखे थे....
और, उस टैंट के मखमली कम्बलों में खुद को समेट चाय की चुस्कियाँ मानो ऐसे लग रही थी, कि हम किसी सात सितारा मेहमान खाने के मेहमान हो गए हो.... बारिश की बूँदे अभी भी टपक रही थी, सो हम दोनों टैंट में लेट कर बाहर खत्म हो रहे दिन को देख रहे थे... कि हम दोनों की ही कुछ आँख लग गई, थक चुके शरीर की यही तो एक मात्र प्राकृतिक दवा है "नींद" ......!
और, जाग खुली तो घड़ी को टटोला...तो पाया रात के आठ बज चुके हैं और हमारे टैंट के अंदर का तापमान 13डिग्री था, तो बाहर का तापमान निश्चित तौर 9-10डिग्री के करीब होगा... समुद्र तट से 3740मीटर की अत्यंत ऊँचाई और ठंड से मेरे सिर में वो ही भयंकर दर्द चालू हो चुका था, जो अक्सर मुझे ट्रैकिंग के दौरान ऊँचाई पर होने लग पड़ता है, जिसे हम सामान्य भाषा में ऊँचाई की बीमारी भी कह सकते हैं " High altitude sickness " के लक्षण मुझे अपने में नज़र आने लग पड़े थे, सो झट से अपनी रक्सक से दवा निकाल निगल ली....
कुछ देर बाद हमे रात्रि भोजन का बुलावा भी आ गया और हम फिर से तारा चंद जी की दुकान में आ बैठने लगे, तो पाया कि उस टैंट नुमा दुकान में ग्राहकों के बैठने हेतू सीमित सी जगह पर कोई दो-तीन कम्बल ओढ़े सो रहा था.... सो हमे अलग-अलग बैठा कर भोजन की थालियाँ परोसी गई और पहला निवाला मुँह में रखते ही हमारी वाहवाही के बोल टैंट में गूंज रहे थे... दाल-चावल, रोटी के साथ परोसी गई वो आलू की सब्जी का स्वाद ऐसा था जैसा पान में गलूकंद हो... परन्तु वह आलू की स्वादिष्ट सब्जी हमे केवल एक बार ही मिल पाई, क्योंकि उनके पास बहुत कम मात्रा में आलू रह गए थे, जिस की उन्होंने सब्जी बना डाली थी..... और बातचीत में तारा चंद जी के रसोईये ने यह भी उत्तर दिया कि, " इतनी ऊँचाई पर ताज़ी सब्जी को नीचे से ढो कर लाना बेहद मुश्किल व ख़र्चीला काम है... इसलिए हम ग्राहकों के लिए ज्यादातर दाल व चावल रोटी का ही भोजन बनाते हैं, यह आलू की सब्जी तो हमने अपने निजी भोजन के लिए बनाई थी...बस दिल किया और आपको भी परोस दी.... !"
भोजन करते वक्त मेरा ध्यान कई बार मुँह-सिर ओढ़े लेटे हुए उन शख्स पर जा रहा था, जो एक बार भी नही हिला था... सो रसोईये से पूछ लिया कि ये क्या तारा चंद जी सो रहे हैं.... तो उसने जवाब दिया "नही, तारा चंद जी तो नीचे काली घाटी में जल स्रोत से पानी लेने गए हुए है, ये तो अहमदाबाद गुजरात से श्री खंड हो आई अम्मा सो रही है....ये 60साल की बुजुर्ग महिला अपने साथ एक स्थानीय भार वाहक ले कर निराहार (खाली पेट) श्री खंड महादेव माथा टेक कर वापस आ रही थी, और आज तीसरे दिन की शाम को वापसी पर जहाँ काली टॉप पहुंच कर अपना निराहार व्रत तोड़ा...और खूब दबा कर भोजन किया इन्होंने...!! "
रसोईये की ये बात सुन मैं और विशाल जी एक दूसरे का मुँह देख रहे थे......और मैं मन ही मन बडबडाया कि, लो देख ले विकास.. तू बड़ा पर्वतारोही बना घूम रहा है कि मैं पीठ पर लदा भार काली टॉप पर पहुँचा कर ही दम लूगाँ... और यहाँ ये माई तो बगैर कुछ खाये पिये श्री खंड माथा टेक भी आई..!!! दोस्तों, अटल आस्था कैसे एक कोमल सी नारी में फौलाद भर सकती है... इसकी उदाहरण हमारे समक्ष सो रही थी, मेरा बहुत मन कर रहा था कि मैं अम्मा को जगा कर इनसे ढेरों प्रश्नों के उत्तर पूछूँ.......परन्तु ऐसा करने के लिए मुझे खुद से ही इजाज़त नही मिल पाई...!
सो चाय के गरमागरम गिलास को दोनों हाथों से पकड़, चाय पीने के बाद हम अपने टैंट में लौट आए.... सारे दिन की बातें करते-करते विशाल जी एकाएक सो गए और मुझे तो अब मजबूरन जागना पड़ रहा था, क्योंकि विशाल जी के उच्च निद्रा स्वरों की स्वराजंली "खराटें" अब मुझे कर्ण-अप्रिय हो रहे थे.....!!!
दोस्तों, मजे की बात बतलाता हूँ... हम दोनों सांढू भाई जब भी ट्रैकिंग पर जाते हैं, तो रात को जब सोते है... तो हम में से जो भी पहले सो जाता है, उस के खराटे दूसरे को सोने नही देते...यदि मैं पहले सो गया तो विशाल जी जल्दी नही सो पाते, यदि वे पहले सो गए तो मैं जल्दी सो नही पाता... परन्तु इस मामले में ज्यादातर विशाल जी किस्मत वाले निकलते हैं, क्योंकि मैं सोने से पहले अपने कैमरे पर दिन भर की खींची हुई तस्वीरों को देखने लग जाता हूँ और इतने में विशाल जी सो जाते हैं..... और जब हम सुबह उठते है तो, विशाल जी मुझे अक्सर कहते हैं कि विकास जी आप तो बहुत गहरी नींद में सोये हुए खूब खराटे लगा रहे थे....!!!!
सारी रात ही हल्की-हल्की बारिश होती रही, हम सुबह साढे पांच बजे उठ गए और चाय भी हमारे टैंट में आ पहुँची.... चाय पीने के बाद मुझे हर बार की तरह पहाडों की सुबह देखने की लालसा झट से टैंट के बाहर खींच लाई और विशाल जी को भी आवाज़ लगाई....
चारों नही छेहो तरफ अपनी नज़र दौडाई... चार चारों दिशाओं की ओर... और बाकी दो क्षतिज में मेघ देव व नीचे पहाड की गहराईयों में.... सूर्योदय का कोई भी संकेत अभी क्षितिज में नही था, पहाड की गहराईयों में बादलों ने मिलजुलकर सफेद रंग की झील बना रखी थी..... डाँडा धार पर्वत की चोटी काली टॉप की सुंदरता अब हमें कल शाम से भी कहीं अधिक आकर्षक नज़र आ रही थी, और एक गर्व सा महसूस हो रहा था कि हम इस सुंदरता के आँचल में रात भर चैन की नींद सोये रहे.... तभी हमें कुछ यात्रियों की खुसर-पुसर से पता चला कि यहीं से ही वो सामने की पर्वतमाला में ही श्री खंड महादेव की 72फुट ऊंची शिला के दर्शन हो जाते हैं, परन्तु उस दिशा में बादलों ने अपनी बैठक सजा रही थी, मेरी निगाहें बार-बार इधर-उधर घूमती हुई उस विशेष दिशा की ओर जा रुक जाती..जहाँ से श्री खंड महादेव शिला को बादलों ने अपना रंग दे रखा था.....आधा-पौना घंटा बीत गया परन्तु काली टॉप से श्री खंड महादेव के दूरदर्शन ना हो सके... तभी सूर्य देव की किरण ने बादलों के कवच को भेद कर अपने उग जाने की घोषणा की.... और हम दोनों वापस टैंट में जा अपने सामान को समेटनें में आ जुटे...
मैने ठान रखा था कि अपनी रक्सक को डाँडा धार की चोटी पर पहुँचा कर ही दम लूगाँ... उसके बाद इसे वहीं छोड़ आगे का सफर तय करुँगां, सो अपनी रक्सक से बेहद जरुरी सामान में आपातकालीन भोजन भूने हुए काले चनों का पैकेट, एक बिस्कुट का पैकेट, रैन-कोट व जलरोधी पैजामा ही निकाला.... जब मैं बाकी बचे सामान को रक्सक में भर रहा था तो विशाल जी भी तैयार हो रहे थे, एकाएक मुझसेे बोले "मैने परसो यात्रा शुरू करते समय अपनी बैल्ट को व्यर्थ का भार जान, गाड़ी में ही उतार फेंक कर बेहद बड़ी गलती कर दी है...! "
मैं समझ गया कि दो दिन की चढ़ाई मुश्क्कत से विशाल रतन जी की कमर कुछ हल्की हो गई है.. सो अब इस नई आन पड़ी समस्या का भी हल करना था..... दोस्तों, मैं पर्वतारोहण के दौरान हमेशा अपनी रक्सक में सूई-धागा, झटपट गोंद और पैजामे में डालने वाले "नाले" रखता हूँ..... और आज वो "नाला" विशाल जी की शौटस् में बैल्ट बनने का सम्मान प्राप्त करने जा रहा था.... और एक अन्य नाले को लेकर मैने पानी की बोतल को अपनी कमर पर बांधने के लिए एक जगाड़ू बैल्ट सा बनाया व आपातकालीन भोजन सामग्री को एक लिफाफे में डाल कर अपनी कमर पर बंधे ट्रैकिंग पाउच के संग बांधा....... दुकानदार तारा चंद जी का हिसाब कर, अपनी रक्सक उनके पास रखने का आग्रह किया.....
और, सुबह के सात बज चुके थे... हम लगभग आगे चलने के लिए तैयार ही थे कि मौसम पर पुन: आवारगी सी छाई और बूंदाबादी शुरू हो गई...!!
..............................(क्रमश:)
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मित्रो, अपने ट्रैकिंग शू को केवल ट्रैकिंग के दौरान ही मत पहने.... नही तो ये मौके पर धोखाधड़ी कर जाते हैं, जी |
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दुकानदार तारा चंद जी हमें.... हमारा "झोंपड़ा" दिखाते हुए |
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लो, आ पहुँचें.... हम उन मखमली से कम्बलों के बीच.... |
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कुछ देर आँख लग गई, उठ कर जब घड़ी को टटोला...! |
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रात्रि भोजन.... पान में गुलकंद जैसी स्वादिष्ट आलू की सब्जी |
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विशाल जी के पास कम्बलों में लेटी वही अम्मा गहरी नींद में सो रही थी... जो निराहार श्री खंड महादेव माथा टेक आई थी... |
और, खास जगहों पर खाया खाना.... सारी उम्र आपके स्मरण में खास ही बना रहता है, दोस्तों |
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सुबह उठते ही टैंट से बाहर निकल कर.... देखा यह दृश्य |
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डाँडा धार पर्वत शिखर... और काली टॉप का अति सुन्दर दृश्य |
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काली टॉप ......और तारा चंद जी की दुकान |
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बादलों की झील..... |
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गजब की सुंदरता...... अद्भुत |
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काली घाटी शिखर से नीचे दिख रहा......भीम तलाई |
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तभी ज्ञात हुआ कि सामने ही श्री खंड महादेव शिला के दूरदर्शन हो जाते हैं... परन्तु बादलों ने वहाँ अपनी बैठक सजा रखी थी... |
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अपने अंग्रेजी झोंपड़े के बाहर खड़े हम......!! |
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बहुत देर इंतजार भी किया.... परन्तु बादल नही छटे और श्री खंड महादेव शिला के दूरदर्शन नही हो पाये |
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बादलों के कवच को भेद कर आई सूर्योदय की किरणें.... |
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