भाग-10 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर.....
"हरी मिर्च सी तीखी.... डंडा धार की चढ़ाई "
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21जुलाई 2016.....सुबह के सात बज चुके थे, मैं और विशाल रतन जी पिछले ढाई घंटे से डंडा धार पर्वत की डंडा नुमा चढ़ाई चढ़ते जा रहे थे... इस पर्वत की बनावट ऐसी है कि हमें कहीं भी पूर्ण शिखर नही दिखाई देता था, बस ऐसा लगता था कि वो सामने दिख रहा उभार ही इस चढ़ाई का अंत हो.... परन्तु जब हम उस जगह पहुंचतें, तो पाते कि इस चढ़ाई का कहीं कोई अंत ही नही आ रहा है......
विशाल जी बोले, " बड़ी तीखी चढ़ाई है, यह तो विकास जी..!! "
मैं भी हाँफ़ रहा था, फिर भी हंस कर बोला..."हां विशाल जी, हरी मिर्च सी तीखी...!!!"
दोस्तों, भोजन में जिस प्रकार हरी मिर्च का तीखापन स्वादिष्ट लगता है न, ठीक उसी प्रकार ये तीखी चढ़ाइयाँ हम पर्वतारोहियों को हरी मिर्च सी स्वादिष्ट लगती है, क्योंकि इन चढ़ाइयों को चढ़ कर ही हम शिखर-आंनद को प्राप्त होते हैं....
दिन चढ़ने के साथ ही अब पगडंडी पर भी पदयात्रियों की गिनती बढ़ती जा रही थी, हर कोई शिव भक्ति में आस्था व विश्वास ले आगे बढ़ रहा था.... विशाल जी भी पिछले एक घंटे से अपनी अंगुली में डिजिटल कॉऊटर फंसा, पाठ करते हुए चढ़ाई चढ़ रहे थे.... बस एक मैं ही था वास्तविक इंसान जिसकी आस्था तो अभी वास्तविकता में ही विचर रही थी, और वो आस्था थी हर कदम पर बदलते मनमोहक दृश्य से आस्था, उस ऊँचाई से नीचे दिख रहे छोटे-छोटे घरों से आस्था, उन खामोश खड़े हरे-भरे पेड़ों के झुंडों से आस्था, उन पीले व जामुनी फूलों की मुस्कुराहट से आस्था.... ये ही वास्तविकता की आस्था है जो मेरी आँखें देख रही थी और मन महसूस कर रहा था.....!!
तभी मेरा ध्यान टूटा, जब विशाल जी चलते हुए बोले, " इस मक्खी ने मुझे कब का परेशान कर रखा है.... बार-बार मेरे कान के पास आ भुनभुनाना रही है..!! "
मैं खिलखिला कर हंसा और बोला, " महाराज, यह मक्खी आपके कान के पास आ कर 'जय भोलेनाथ ' बोल रही है..!" और हम दोनों खूब हंसे इस बात पर.... विशाल जी भी मस्ती में हो, ऊंची आवाज़ में जय भोलेनाथ- जय भोलेनाथ बोलने लगे....और अब वह मक्खी दोबारा विशाल जी के पास नही आई, शायद किसी और श्रद्धालु के पास चली गई हो......
कुछ ऊपर की ओर चढ़े तो सामने से एक दम्पति जोड़ा पगडंडी से नीचे उतर रहा था, सो हमने उन्हें रोक कर पूछा, कि कहाँ से आए थे दर्शन करने.... तो उन्होंने जवाब दिया "बरौदा गुजरात से...दूसरी बार श्री खंड आए हैं अपने बेटे-बहू को साथ ले कर, मन्नत थी न जो शिव-शम्भू ने पूर्ण कर दी.. हमें पोता दे दिया, उसका ही माथा टिकवा कर वापस आ रहे हैं " बरौदा का नाम सुन कर मैने उनसे कहा कि मैने अब तक जितने भी म्यूजियम देखे है, मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित आपके शहर बरौदा के म्यूजियम ने ही किया है और वहीं से ही मैं पावागढ़ चम्पानेर देखने गया था....... मेरी बात सुन वे सज्जन बोले, " तो भाई, आप भी घुमक्कड़ ही मालूम होते हो..!! "
मैं हंसते हुए बोला, " परन्तु आप गुजरातियों से कम ही घुमक्कड़ हूँ जी " वे सज्जन बोले, " पर मैं गुजराती नही हूँ, राजस्थानी हूँ जोध पुर का.. काम की वजह से बरौदा में बस गया ".......मैं हंसते हुए फिर बोला, " तो फिर राजस्थानी को गुजराती घुमक्कड़ी का तड़का लग ही गया... जी "
उन दम्पति से की हुई यह चंद क्षणों का वार्तालाप हमारे थक रहे शरीरों में नव जोश भर गया और फिर से हम उस चढ़ाई का सामना करने लगे.... अब जैसे-जैसे ऊपर की ओर बढ़ते जा रहे थे, वैसे-वैसे नीचे की ओर दिख रहे दृश्य भी हसीन होते जा रहे थे..... रास्ते के ऊपर एक दुकान पर एक सज्जन हाथ में पापड़ ले, उसे बड़े मजे से खा रहे थे... हिमालय की इस ऊँचाई पर दुकान से तो पापड़ नही मिल सकता, मैने विशाल जी से कहा कि वो सामने बैेठ पापड़ खा रहे सज्जन भी गुजराती ही जान पड़ते हैं, क्योंकि पूरे भारत में गुजराती ही पापड़ के सबसे बड़े शौकीन होते हैं... मैेने गुजरात भ्रमण में तकरीबन हर जगह पर भोजन के साथ पापड़ परोसा देखा है, चलो लगे हाथ इन महाशय से भी मिल लेते हैं........
मैने उनके पास जा कहा, " क्यों भाई गुजरात से हो न..! " वे जनाब बोले, " नही बंगलौर, कर्नाटक से", मैं बोला, " मैं तो आपको पापड़ खाते देख गुजराती समझा था " .....तो वे हंसते हुए हमें भी पापड़ खाने का न्यौता देने लगे, बस हम दोनों उनका शुक्रिया अदा कर फिर से ऊपर की ओर चढ़ने लग पड़े..... आधा घंटा चढ़ते रहने के बाद एक जगह सांस लेने के लिए रुके, तो पीछे से तीन स्थानीय महिलाएँ भी हमारे पास आ कर सांस लेने हेतु रुक गई... पूछने पर पता चला, कि उनके परिवार वालों ने ऊपर यात्रा के रास्ते पर दुकानें लगा रखी हैं... उनके लिए राशन ले जा रही हैं, उनकी पीठ पर चिरपरिचित तथाकथित राष्ट्रीय व्यंजन मैगी की चमक बोरियों में चमक रही थी..... मैने ये सब देख कर विशाल जी से कहा कि हम व्यर्थ में अपने साथ खाने-पीने के सामान को ढो रहे हैं, जबकि इस ट्रैक पर तो खाने की भरपूर व्यवस्था है... क्यों न उन सभी खाने-पीने वाले सामान को खा कर खत्म कर दिया जाए, पीठ पर वजन भी कुछ कम हो जाएगा...
तो, मैने भुने हुए काले चने और अपने प्रिय बिस्कुट के पैकेट को आपातकालीन भोजन की श्रेणी में रख... सबसे पहले हमने लैमन टी की बोतलों को खाली किया..... सच बोलता हूँ मित्रों, श्री खंड महादेव यात्रा के इस प्रथम चरण की परीक्षात्मक चुनौती "डंडा धार " की खड़ी चढ़ाई पर पीठ पर लदे भार की छोटी सी इकाई "रत्ती" भी भारी महसूस हो रही थी... परन्तु जहाँ तो पीठ पर कई किलोग्राम भार लाद रखा था....!!
दोस्तों, इस ट्रैक पर कहीं-कहीं मोबाइल सिग्नल मिल ही जाता है, सो घर वालों को अपनी राज़ी-खुशी दे उन्हें चिंतामुक्त किया... हम सब यात्रियों में जय भोलेनाथ का क्षणिक मिलाप सम्बोधन लगातार चल रहा था, यह अलग बात है कि उतराई उतर रहे यात्री की आवाज़ साफ व चहकदार थी, जबकि चढ़ाई चढ़ने के परिश्रम से हमारी फूली हुई साँसों की वजह से जय भोलेनाथ सम्बोधन का उत्तर मात्र औपचारिकता ही साबित हो रहा था, हम छोड़ी हुई एक साँस में ही धीमे से जय भोलेनाथ बोल पाते......
तभी, ऊपर से उतर रहे एक अधेड़ उमर सज्जन ने हमें कहा कि कहाँ से आये हो... मैने उत्तर दिया, "जी पंजाब से " तो वे सज्जन बोले, " वो तो आपका डील-डोल देख कर ही लगता है कि आप पंजाबी हो..!! "
किसी अनजान व्यक्ति से अपनी प्रशंसा सुनना तो मिश्री से भी मीठा लगता है न मित्रों.... सो मुस्कराते हुए उनका धन्यवाद कर मैने उनके बारे में पूछा तो वे बोले, " मैं तो दाल-भात खाने वाला गुजराती हूँ बेटा, अहमदाबाद से आया हूँ "
अहमदाबाद का नाम सुनते ही मैने चहकते हुए अहमदाबाद में देखे कई सारे पर्यटकीय स्थलों के नाम उनके आगे गिना दिये, तो उनकी प्रसन्नता की सीमा नही रही.... श्री खंड दर्शन के सवाल पर उन्होंने कहा कि, "नही मैं श्री खंड नही जा पाया, बस भीमद्वारी तक जा कर वापस लौट आया हूँ..!! " मैने कहा कि आप इस कठिनाई भरी यात्रा के 23किलोमीटर तो पार कर आखिरी पड़ाव भीमद्वारी पहुंच कर भी क्यों वापस आ गए, जबकि वहाँ से श्री खंड शिला तो 13किलोमीटर ही रह जाती है...! वे बोले, " बस मेरे स्वास्थ्य ने मुझे आगे जाने की अनुमति नही दी "
उनकी ये बात सुन विशाल जी ने दुख व्यक्त किया कि, " 23 किलोमीटर तक प्राकृतिक वाधाओं को पार कर भीमद्वारी पहुंच कर भी, आपको खाली हाथ वापस आना पड़ा... हमें अच्छा नही लग रहा...!!
तो उन्होंने जो जवाब दिया, उसमें बेहद संतोष भरा पड़ा था कि, " बेटा, इस पावन क्षेत्र के प्रत्येक कण में भगवान शिव विद्यमान है, मेरे लिए इतना ही काफी है कि मैं इस कठिन डगर पर भीमद्वारी तक तो जा आया हूँ...! " और हम दोनों को उन्होंने यात्रा सम्बन्धी ढेरों शुभकामनाएं व आशीर्वाद के साथ आगे की ओर रवाना किया.....
और, मैं सोचता हुआ अब आगे बढ़ रहा था कि मुझ में यह तथाकथित "संतोष" कब आयेगा...!!!!!
........................(क्रमश:)
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"हरी मिर्च सी तीखी.... डंडा धार की चढ़ाई "
इस चित्रकथा को आरंभ से पढ़ने का यंत्र (https://vikasnarda.blogspot.com/2017/04/1-shrikhand-mahadev-yatra5227mt.html?m=1) स्पर्श करें।
21जुलाई 2016.....सुबह के सात बज चुके थे, मैं और विशाल रतन जी पिछले ढाई घंटे से डंडा धार पर्वत की डंडा नुमा चढ़ाई चढ़ते जा रहे थे... इस पर्वत की बनावट ऐसी है कि हमें कहीं भी पूर्ण शिखर नही दिखाई देता था, बस ऐसा लगता था कि वो सामने दिख रहा उभार ही इस चढ़ाई का अंत हो.... परन्तु जब हम उस जगह पहुंचतें, तो पाते कि इस चढ़ाई का कहीं कोई अंत ही नही आ रहा है......
विशाल जी बोले, " बड़ी तीखी चढ़ाई है, यह तो विकास जी..!! "
मैं भी हाँफ़ रहा था, फिर भी हंस कर बोला..."हां विशाल जी, हरी मिर्च सी तीखी...!!!"
दोस्तों, भोजन में जिस प्रकार हरी मिर्च का तीखापन स्वादिष्ट लगता है न, ठीक उसी प्रकार ये तीखी चढ़ाइयाँ हम पर्वतारोहियों को हरी मिर्च सी स्वादिष्ट लगती है, क्योंकि इन चढ़ाइयों को चढ़ कर ही हम शिखर-आंनद को प्राप्त होते हैं....
दिन चढ़ने के साथ ही अब पगडंडी पर भी पदयात्रियों की गिनती बढ़ती जा रही थी, हर कोई शिव भक्ति में आस्था व विश्वास ले आगे बढ़ रहा था.... विशाल जी भी पिछले एक घंटे से अपनी अंगुली में डिजिटल कॉऊटर फंसा, पाठ करते हुए चढ़ाई चढ़ रहे थे.... बस एक मैं ही था वास्तविक इंसान जिसकी आस्था तो अभी वास्तविकता में ही विचर रही थी, और वो आस्था थी हर कदम पर बदलते मनमोहक दृश्य से आस्था, उस ऊँचाई से नीचे दिख रहे छोटे-छोटे घरों से आस्था, उन खामोश खड़े हरे-भरे पेड़ों के झुंडों से आस्था, उन पीले व जामुनी फूलों की मुस्कुराहट से आस्था.... ये ही वास्तविकता की आस्था है जो मेरी आँखें देख रही थी और मन महसूस कर रहा था.....!!
तभी मेरा ध्यान टूटा, जब विशाल जी चलते हुए बोले, " इस मक्खी ने मुझे कब का परेशान कर रखा है.... बार-बार मेरे कान के पास आ भुनभुनाना रही है..!! "
मैं खिलखिला कर हंसा और बोला, " महाराज, यह मक्खी आपके कान के पास आ कर 'जय भोलेनाथ ' बोल रही है..!" और हम दोनों खूब हंसे इस बात पर.... विशाल जी भी मस्ती में हो, ऊंची आवाज़ में जय भोलेनाथ- जय भोलेनाथ बोलने लगे....और अब वह मक्खी दोबारा विशाल जी के पास नही आई, शायद किसी और श्रद्धालु के पास चली गई हो......
कुछ ऊपर की ओर चढ़े तो सामने से एक दम्पति जोड़ा पगडंडी से नीचे उतर रहा था, सो हमने उन्हें रोक कर पूछा, कि कहाँ से आए थे दर्शन करने.... तो उन्होंने जवाब दिया "बरौदा गुजरात से...दूसरी बार श्री खंड आए हैं अपने बेटे-बहू को साथ ले कर, मन्नत थी न जो शिव-शम्भू ने पूर्ण कर दी.. हमें पोता दे दिया, उसका ही माथा टिकवा कर वापस आ रहे हैं " बरौदा का नाम सुन कर मैने उनसे कहा कि मैने अब तक जितने भी म्यूजियम देखे है, मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित आपके शहर बरौदा के म्यूजियम ने ही किया है और वहीं से ही मैं पावागढ़ चम्पानेर देखने गया था....... मेरी बात सुन वे सज्जन बोले, " तो भाई, आप भी घुमक्कड़ ही मालूम होते हो..!! "
मैं हंसते हुए बोला, " परन्तु आप गुजरातियों से कम ही घुमक्कड़ हूँ जी " वे सज्जन बोले, " पर मैं गुजराती नही हूँ, राजस्थानी हूँ जोध पुर का.. काम की वजह से बरौदा में बस गया ".......मैं हंसते हुए फिर बोला, " तो फिर राजस्थानी को गुजराती घुमक्कड़ी का तड़का लग ही गया... जी "
उन दम्पति से की हुई यह चंद क्षणों का वार्तालाप हमारे थक रहे शरीरों में नव जोश भर गया और फिर से हम उस चढ़ाई का सामना करने लगे.... अब जैसे-जैसे ऊपर की ओर बढ़ते जा रहे थे, वैसे-वैसे नीचे की ओर दिख रहे दृश्य भी हसीन होते जा रहे थे..... रास्ते के ऊपर एक दुकान पर एक सज्जन हाथ में पापड़ ले, उसे बड़े मजे से खा रहे थे... हिमालय की इस ऊँचाई पर दुकान से तो पापड़ नही मिल सकता, मैने विशाल जी से कहा कि वो सामने बैेठ पापड़ खा रहे सज्जन भी गुजराती ही जान पड़ते हैं, क्योंकि पूरे भारत में गुजराती ही पापड़ के सबसे बड़े शौकीन होते हैं... मैेने गुजरात भ्रमण में तकरीबन हर जगह पर भोजन के साथ पापड़ परोसा देखा है, चलो लगे हाथ इन महाशय से भी मिल लेते हैं........
मैने उनके पास जा कहा, " क्यों भाई गुजरात से हो न..! " वे जनाब बोले, " नही बंगलौर, कर्नाटक से", मैं बोला, " मैं तो आपको पापड़ खाते देख गुजराती समझा था " .....तो वे हंसते हुए हमें भी पापड़ खाने का न्यौता देने लगे, बस हम दोनों उनका शुक्रिया अदा कर फिर से ऊपर की ओर चढ़ने लग पड़े..... आधा घंटा चढ़ते रहने के बाद एक जगह सांस लेने के लिए रुके, तो पीछे से तीन स्थानीय महिलाएँ भी हमारे पास आ कर सांस लेने हेतु रुक गई... पूछने पर पता चला, कि उनके परिवार वालों ने ऊपर यात्रा के रास्ते पर दुकानें लगा रखी हैं... उनके लिए राशन ले जा रही हैं, उनकी पीठ पर चिरपरिचित तथाकथित राष्ट्रीय व्यंजन मैगी की चमक बोरियों में चमक रही थी..... मैने ये सब देख कर विशाल जी से कहा कि हम व्यर्थ में अपने साथ खाने-पीने के सामान को ढो रहे हैं, जबकि इस ट्रैक पर तो खाने की भरपूर व्यवस्था है... क्यों न उन सभी खाने-पीने वाले सामान को खा कर खत्म कर दिया जाए, पीठ पर वजन भी कुछ कम हो जाएगा...
तो, मैने भुने हुए काले चने और अपने प्रिय बिस्कुट के पैकेट को आपातकालीन भोजन की श्रेणी में रख... सबसे पहले हमने लैमन टी की बोतलों को खाली किया..... सच बोलता हूँ मित्रों, श्री खंड महादेव यात्रा के इस प्रथम चरण की परीक्षात्मक चुनौती "डंडा धार " की खड़ी चढ़ाई पर पीठ पर लदे भार की छोटी सी इकाई "रत्ती" भी भारी महसूस हो रही थी... परन्तु जहाँ तो पीठ पर कई किलोग्राम भार लाद रखा था....!!
दोस्तों, इस ट्रैक पर कहीं-कहीं मोबाइल सिग्नल मिल ही जाता है, सो घर वालों को अपनी राज़ी-खुशी दे उन्हें चिंतामुक्त किया... हम सब यात्रियों में जय भोलेनाथ का क्षणिक मिलाप सम्बोधन लगातार चल रहा था, यह अलग बात है कि उतराई उतर रहे यात्री की आवाज़ साफ व चहकदार थी, जबकि चढ़ाई चढ़ने के परिश्रम से हमारी फूली हुई साँसों की वजह से जय भोलेनाथ सम्बोधन का उत्तर मात्र औपचारिकता ही साबित हो रहा था, हम छोड़ी हुई एक साँस में ही धीमे से जय भोलेनाथ बोल पाते......
तभी, ऊपर से उतर रहे एक अधेड़ उमर सज्जन ने हमें कहा कि कहाँ से आये हो... मैने उत्तर दिया, "जी पंजाब से " तो वे सज्जन बोले, " वो तो आपका डील-डोल देख कर ही लगता है कि आप पंजाबी हो..!! "
किसी अनजान व्यक्ति से अपनी प्रशंसा सुनना तो मिश्री से भी मीठा लगता है न मित्रों.... सो मुस्कराते हुए उनका धन्यवाद कर मैने उनके बारे में पूछा तो वे बोले, " मैं तो दाल-भात खाने वाला गुजराती हूँ बेटा, अहमदाबाद से आया हूँ "
अहमदाबाद का नाम सुनते ही मैने चहकते हुए अहमदाबाद में देखे कई सारे पर्यटकीय स्थलों के नाम उनके आगे गिना दिये, तो उनकी प्रसन्नता की सीमा नही रही.... श्री खंड दर्शन के सवाल पर उन्होंने कहा कि, "नही मैं श्री खंड नही जा पाया, बस भीमद्वारी तक जा कर वापस लौट आया हूँ..!! " मैने कहा कि आप इस कठिनाई भरी यात्रा के 23किलोमीटर तो पार कर आखिरी पड़ाव भीमद्वारी पहुंच कर भी क्यों वापस आ गए, जबकि वहाँ से श्री खंड शिला तो 13किलोमीटर ही रह जाती है...! वे बोले, " बस मेरे स्वास्थ्य ने मुझे आगे जाने की अनुमति नही दी "
उनकी ये बात सुन विशाल जी ने दुख व्यक्त किया कि, " 23 किलोमीटर तक प्राकृतिक वाधाओं को पार कर भीमद्वारी पहुंच कर भी, आपको खाली हाथ वापस आना पड़ा... हमें अच्छा नही लग रहा...!!
तो उन्होंने जो जवाब दिया, उसमें बेहद संतोष भरा पड़ा था कि, " बेटा, इस पावन क्षेत्र के प्रत्येक कण में भगवान शिव विद्यमान है, मेरे लिए इतना ही काफी है कि मैं इस कठिन डगर पर भीमद्वारी तक तो जा आया हूँ...! " और हम दोनों को उन्होंने यात्रा सम्बन्धी ढेरों शुभकामनाएं व आशीर्वाद के साथ आगे की ओर रवाना किया.....
और, मैं सोचता हुआ अब आगे बढ़ रहा था कि मुझ में यह तथाकथित "संतोष" कब आयेगा...!!!!!
........................(क्रमश:)
श्री खंड यात्रा पथ...लगी अस्थायी दुकानों में खड़े विशाल रतन जी... |
जैसे-जैसे हम ऊपर चढ़ते जा रहे थे.... मैं आदतन बार-बार पीछे मुड़ देख लेता था, पल-पल बदलती इस खूबसूरती को.... |
डंडा-धार की चढ़ाई.... |
डंडा-धार की चढ़ाई चढ़ते.... ध्यान ऊपर की ओर ही जाता, कि वो सामने दिख रहा उभार ही इस पर्वत की चोटी हो... परन्तु वहाँ पहुंच देखते तो इस पर्वत की चढ़ाई का कहीं कोई अंत ही नही नज़र आ रहा था... |
एक श्रद्धालु भगवान शिव के लिए त्रिशूल ले जाता हुआ... |
बरौदा गुजरात से मन्नत पूर्ण करने आया दम्पति और विशाल जी... |
ऊपर रास्ते में एक सज्जन पापड़ खा रहे थे, जिन्हें मैं गुजराती समझा... परन्तु वो बंगलौर आंध्र प्रदेश के निकले... |
डंडा-धार पर्वत की कठिन चढ़ाई घने जंगल में .... और इस चित्र में आपकी दायें हाथ कुछ यात्री नज़र आ रहे हैं... |
इतनी बड़ी "जोंक "......यदि चिपक जाए तो......!!!! |
ऐसी चढ़ाई......डंडा-धार की, बस चढ़ते जाओ... बस चढ़ते जाओ |
भैया, हम तो राशन पहुंचाने जा रही है... अपनी दुकानों पर, जो हमारे घर वालों ने ऊपर लगा रखी हैं |
इस ट्रैक पर खाने-पीने की भरपूर सुविधा देख कर, अपने साथ उठाये खाने-पीने के सामान के भार को खत्म करने में ही अपनी भलाई समझी.... दोस्तों |
लो भाई, इस ट्रैक में कहीं-कहीं मोबाइल सिग्नल भी मिल जाता है.... अपने घर वालों को चिंतामुक्त करने के लिए |
ऐसा लग रहा था, कि जल्द ही बादलों से हमारा साक्षात्कार होने वाला है..... |
अहमदाबाद वाले सज्जन....... और मैं |