भाग-22 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर.....
" यात्रा के अनुभवों में तड़का, चट्टान का गिरना...!"
इस चित्रकथा को आरंभ से पढ़ने का यंत्र का(https://vikasnarda.blogspot.com/2017/04/1-shrikhand-mahadev-yatra5227mt.html?m=1) स्पर्श करें।
22जुलाई 2016 ......सुबह सवा पाँच बजे ही एक दम से उजाला हो गया और मौसम भी साफ था, मैं और विशाल रतन जी भीमद्वारी से अपने पथप्रदर्शक "केवल" के अंग-संग पार्वती बाग से नयन सरोवर की ओर चढ़ रहे थे.... हमारे आगे-पीछे हर कोई अपनी लय में मगन चल रहा था, जितनी जिस की आस्था उतना ही वो मगन चल रहा था जैसे एक नवयुवक नंगे पैर चढ़ रहा था.......मेरी निगाहें तो हमेशा ही पर्वतों के इर्दगिर्द ही घूमती रहती है, सो कभी पीछे मुड़ दिख रही पर्वतों की परतों को देख लेता, क्योंकि मुझे इंतजार था उन पर पड़ने वाली सूर्योदय की स्वर्णिम किरणों का.... ठीक आधे घंटे बाद वो सोने सी पहली किरण भी दिखाई दे गई पर्वत शिखर पर...
रास्ते में भाँति-भाँति के हसीन पुष्प मुझे देखकर ऐसे इतरा रहे थे कि जैसे उन्हें पता हो कि वे बहुत हसीन है, रास्ते के एक पत्थर पर बैठ हम कुछ साँस लेने रुक गए, तो एक नवविवाहित पहाड़ी जोड़ा ऊपर को चढ़ता हुआ हमारे पास से गुज़रा....मैं नवविवाहिता के गले में सोने का हार देख, हैरान हो उन दम्पति से बोला यदि आप ऐसे ही इस सोने के हार को गले में लटका, इन पहाडों से उतर हमारे मैदानों में आ जाओ...तो निश्चित है कि आप के गले से यह हार चोर-लुटेरों द्वारा लूट लिया जाएगा....! मेरे मुख से ऐसी बात सुन भोली-भाली नवविवाहिता ने जल्दी से अपना हार कपड़ों के अंदर कर लिया..... दोस्तों, उस नवविवाहिता के गले में जेवर का अर्थ है कि हिमाचल के पहाडों में हमारे मैदानों की लुटेरी हवा नही पहुँच पाई है, मेरे सोहने पंजाब में तो जब से नशाखोरी बढ़ गई है.. हम सब के गहने बैंकों के लॉकरों में पड़े सड़ रहे हैं....!!
इस बात से सम्बन्धित एक और अनुभव आप संग बांटता हूँ कि दो साल पहले मैं सपरिवार तमिलनाडु यात्रा के दौरान मदुरई में आकाश मार्ग से उतरा, अगले दिन मदुरई घूम कर बस में बैठ रामेश्वरम् के लिए चल दिया... तो मेरी आगे वाली सीट पर एक व्यक्ति 6मास के शिशु को उछाल-उछाल कर हंसा रहा था, उस छोटे से शिशु के गले में सोने की चेन देखकर अपनी पत्नी से बोला, "देखो कैसे बेवकूफ़ लोग हैं इतने छोटे से बच्चे के गले में सोने की कीमती चेन... इस चेन की वजह से ही कोई इस बच्चे को उठा कर ना ले जाए...!! "
तभी मेरी श्रीमती जी ने कहा जरा उस व्यक्ति की अंगुलियाँ भी तो देखो जो इस बच्चे को थाम रही थी, देखा तो उन अंगुलियों में तीन सोने की अंगुठियाँ सज रही थी.... ऐन वक्त पर परिचालक टिकट काटने आया तो, उसके हाथ में एक सोने की अंगूठी और कलाई में सोने का बाजूबंद था... फिर नज़र झट से घुमाई बस चालक की ओर तो चालक के सिर के सामने लगे पीछे देखने वाले शीशे में उसके गले में पड़ी सोने की जंजीर की चमक थी... मैने झट से सारी बस ही देख मारी, सब के पास कुछ ना कुछ सोने का आभूषण था... सच में मुझे ऐसे प्रतीत हुआ जैसे मैं सतयुग में आ गया हूँ और श्रीमती जी से हंस कर बोला, " यदि मुझे पहले पता होता कि यहाँ ऐसा माहौल है, तो हम भी अपने ज़ेवर बैंक से उठा कर यहीं ले आते... चार दिन पहनतें तो सही, यदि पंजाब में इन्हें पहन कर चलूँ तो हर कोई घूरता है...!!! " और मेरी पत्नी भी हंस दी मेरी इन मूर्ख सी बातों पर।
वह नवविवाहित दम्पति जोड़ा आगे बढ़ गया और हम उनके पीछे-पीछे......कि एकाएक बहुत तीव्र ध्वनि में गर्जना हुई जैसे बादल गरज रहे हो, मैने आसमान की ओर सिर उठाया तो कहीं भी गरजतें मेघ नही दिखाई पड़े.... और दूसरे क्षण एक आवाज़ सुनाई दी, "भागों, ऊपर से एक चट्टान गिर रही है " आनन-फानन में ऊपर देखा तो एक बहुत बड़ी चट्टान धूल के गुब्बार में से पर्वत की ऊँचाई की ओर से दडादड आवाज़ करती हुई हमारी ओर गिरती चली आ रही है, कहाँ तो इतनी ऊँचाई पर एक-एक कदम कछुए सी चाल के माफिक रख चल रहे थे और कहाँ डर की एक सिहरन उस कछुए से बने हमारे शरीर में दौड़ कर हमे चीता बना गई..... सब ने ऐसी रफ्तार पकडी कि जैसे खो-खो खेल रहे हो, सुरक्षित जगह पर पहुँच.. गिर रही उस चट्टान की मैं वीडियो बनाने लगा, चट्टान गुज़रने के बाद देखा कि हड़बराहट में मैं कैमरे का रिकार्डिंग बटन ही दबाना भूल गया..... विशाल जी मुझ से बोले, " लो विकास जी, इस गिरती चट्टान ने हमारी श्री खंड यात्रा के अनुभवों में तड़का लगा दिया...! " मैं बोला, " हां जी, ये गिरती चट्टान देखने का भीषण मंजर भी हमनें जीवन में पहली बार ही देखा है, जबरदस्त.... यदि कोई इस गिरती हुई चट्टान के रास्ते में आ जाए, सोच कर ही शरीर में झुनझुनी सी हो रही है...! " और, हम सब ने चुप्पी तोड़ी शिव के एक जयकारे से.....सबसे पीछे चल रहे एक लड़के को जिसके बहुत पास से वो चट्टान गुज़री, एक हल्का सा पत्थर आ लगा, पल भर पहले चित्कार रहा पर्वत.. पल भर बाद ही ऐसा खामोश हो गया जैसे उसे आराम आ गया हो।
आधे घंटे की चढ़ाई के बाद एक मोड़ मुड़ देखा कि कुछ दूर कई सारे लोग जमा थे... वह नयन सरोवर या नैनसर झील थी और हमारे चेहरे भी उस जमी हुई सुंदर झील को देख खिल गए, क्योंकि मैं अपनी स्वप्न यात्रा में साक्षात जो पहुँच रहा था.... हमारी खुशी देख केवल बोला, "इस बार तो बर्फ ही बहुत कम है, पार्वती बाग से नयन सरोवर के मध्य दो-तीन ग्लेशियर आते हैं....जो इस बार बहुत पहले ही पिघल गए, मैने हंसते हुए केवल से कहा, " जो भी मेरे ये नयन देख रहे हैं, मन के मयूर को उकसा रहे है कि तू नाच रे विकास...! "
गई पर्वत और जगत पर्वत के बीच में बने नयन सरोवर(4255मीटर) पर हम सुबह पौने सात बजे पहुँच गए और उस समय वहाँ का तामपान 7डिग्री था, तीन तरफ से पर्वतों में घिरी नयन या आँख के आकार की यह शांत झील, प्रचण्ड प्रवाह में बह रही कुपरन नदी का उद्गम स्थल है जो हमे पदयात्रा के शुरुआत में मिली थी.... इस झील के जल को गंगा जल के समान ही पवित्र माना जाता है, पुरातन रीति-रिवाज़ के अनुसार तीर्थ यात्री नयन सरोवर में स्नान कर श्री खंड की ओर प्रस्थान करते है.... परन्तु मैं कहाँ का तीर्थ यात्री और आधी बर्फ व आधे पानी में भला कौन नहायें वो 7डिग्री तापमान में....!
दोस्तों यहाँ भी "इतिहास के सबसे बड़े घुमक्कड़ पांडव बंधुओं " की महिमा बिखेरी है कि इस सुंदर झील का तटबंधन भी उन्होंने ही किया, जिससे जल एक्त्र हो सके..... चलो जिस ने भी किया हो, पर यह स्थान बेहद मनोरम है.... मैं विशाल जी से बोला, " यदि मेरे बस में हो तो मैं इस झील की सुंदरता को देख इस का नाम नयन सरोवर से बदल "मृगनयन सरोवर " रख दूँ....!!! " और विशाल जी बस हर बार की तरह हंस कर मेरी फिज़ूल की बातों का मन रख लेते हैं।
हम सबने झील के तटबंधन की दीवार पर बने माँ पार्वती के मंदिर पर माथा टेका और केवल सरोवर की ओर बढ़ गया बोतलों में पानी भरने के लिए..... क्योंकि इस स्थान के बाद श्री खंड महादेव शिला तक कहीं भी जल उपलब्ध नही है और मैं भी चल दिया केवल के पीछे-पीछे.... नयन सरोवर या नैनसर से मैने और केवल ने पंचतरणी स्नान की विधि अपनातें हुए जल के चंद छींटें अपने ऊपर फैंक लिये, पानी भर कर सरोवर के किनारे ऊँची जगह पर बैठ गए और मैने अपने पसंदीदा बिस्कुट खोल लिये, धीरे-धीरे कर मैने और विशाल जी ने एक-एक लीटर बर्फ सा पानी जबरदस्ती पीया.... क्योंकि अब हमे उस ऊँचाई की ओर बढ़ना था जो भी वनस्पतिहीन है, सो शरीर में आक्सीजन की कमी को पानी में मिली हुई आक्सीजन पूरी करे.........
.............................(क्रमश:)
" यात्रा के अनुभवों में तड़का, चट्टान का गिरना...!"
इस चित्रकथा को आरंभ से पढ़ने का यंत्र का(https://vikasnarda.blogspot.com/2017/04/1-shrikhand-mahadev-yatra5227mt.html?m=1) स्पर्श करें।
22जुलाई 2016 ......सुबह सवा पाँच बजे ही एक दम से उजाला हो गया और मौसम भी साफ था, मैं और विशाल रतन जी भीमद्वारी से अपने पथप्रदर्शक "केवल" के अंग-संग पार्वती बाग से नयन सरोवर की ओर चढ़ रहे थे.... हमारे आगे-पीछे हर कोई अपनी लय में मगन चल रहा था, जितनी जिस की आस्था उतना ही वो मगन चल रहा था जैसे एक नवयुवक नंगे पैर चढ़ रहा था.......मेरी निगाहें तो हमेशा ही पर्वतों के इर्दगिर्द ही घूमती रहती है, सो कभी पीछे मुड़ दिख रही पर्वतों की परतों को देख लेता, क्योंकि मुझे इंतजार था उन पर पड़ने वाली सूर्योदय की स्वर्णिम किरणों का.... ठीक आधे घंटे बाद वो सोने सी पहली किरण भी दिखाई दे गई पर्वत शिखर पर...
रास्ते में भाँति-भाँति के हसीन पुष्प मुझे देखकर ऐसे इतरा रहे थे कि जैसे उन्हें पता हो कि वे बहुत हसीन है, रास्ते के एक पत्थर पर बैठ हम कुछ साँस लेने रुक गए, तो एक नवविवाहित पहाड़ी जोड़ा ऊपर को चढ़ता हुआ हमारे पास से गुज़रा....मैं नवविवाहिता के गले में सोने का हार देख, हैरान हो उन दम्पति से बोला यदि आप ऐसे ही इस सोने के हार को गले में लटका, इन पहाडों से उतर हमारे मैदानों में आ जाओ...तो निश्चित है कि आप के गले से यह हार चोर-लुटेरों द्वारा लूट लिया जाएगा....! मेरे मुख से ऐसी बात सुन भोली-भाली नवविवाहिता ने जल्दी से अपना हार कपड़ों के अंदर कर लिया..... दोस्तों, उस नवविवाहिता के गले में जेवर का अर्थ है कि हिमाचल के पहाडों में हमारे मैदानों की लुटेरी हवा नही पहुँच पाई है, मेरे सोहने पंजाब में तो जब से नशाखोरी बढ़ गई है.. हम सब के गहने बैंकों के लॉकरों में पड़े सड़ रहे हैं....!!
इस बात से सम्बन्धित एक और अनुभव आप संग बांटता हूँ कि दो साल पहले मैं सपरिवार तमिलनाडु यात्रा के दौरान मदुरई में आकाश मार्ग से उतरा, अगले दिन मदुरई घूम कर बस में बैठ रामेश्वरम् के लिए चल दिया... तो मेरी आगे वाली सीट पर एक व्यक्ति 6मास के शिशु को उछाल-उछाल कर हंसा रहा था, उस छोटे से शिशु के गले में सोने की चेन देखकर अपनी पत्नी से बोला, "देखो कैसे बेवकूफ़ लोग हैं इतने छोटे से बच्चे के गले में सोने की कीमती चेन... इस चेन की वजह से ही कोई इस बच्चे को उठा कर ना ले जाए...!! "
तभी मेरी श्रीमती जी ने कहा जरा उस व्यक्ति की अंगुलियाँ भी तो देखो जो इस बच्चे को थाम रही थी, देखा तो उन अंगुलियों में तीन सोने की अंगुठियाँ सज रही थी.... ऐन वक्त पर परिचालक टिकट काटने आया तो, उसके हाथ में एक सोने की अंगूठी और कलाई में सोने का बाजूबंद था... फिर नज़र झट से घुमाई बस चालक की ओर तो चालक के सिर के सामने लगे पीछे देखने वाले शीशे में उसके गले में पड़ी सोने की जंजीर की चमक थी... मैने झट से सारी बस ही देख मारी, सब के पास कुछ ना कुछ सोने का आभूषण था... सच में मुझे ऐसे प्रतीत हुआ जैसे मैं सतयुग में आ गया हूँ और श्रीमती जी से हंस कर बोला, " यदि मुझे पहले पता होता कि यहाँ ऐसा माहौल है, तो हम भी अपने ज़ेवर बैंक से उठा कर यहीं ले आते... चार दिन पहनतें तो सही, यदि पंजाब में इन्हें पहन कर चलूँ तो हर कोई घूरता है...!!! " और मेरी पत्नी भी हंस दी मेरी इन मूर्ख सी बातों पर।
वह नवविवाहित दम्पति जोड़ा आगे बढ़ गया और हम उनके पीछे-पीछे......कि एकाएक बहुत तीव्र ध्वनि में गर्जना हुई जैसे बादल गरज रहे हो, मैने आसमान की ओर सिर उठाया तो कहीं भी गरजतें मेघ नही दिखाई पड़े.... और दूसरे क्षण एक आवाज़ सुनाई दी, "भागों, ऊपर से एक चट्टान गिर रही है " आनन-फानन में ऊपर देखा तो एक बहुत बड़ी चट्टान धूल के गुब्बार में से पर्वत की ऊँचाई की ओर से दडादड आवाज़ करती हुई हमारी ओर गिरती चली आ रही है, कहाँ तो इतनी ऊँचाई पर एक-एक कदम कछुए सी चाल के माफिक रख चल रहे थे और कहाँ डर की एक सिहरन उस कछुए से बने हमारे शरीर में दौड़ कर हमे चीता बना गई..... सब ने ऐसी रफ्तार पकडी कि जैसे खो-खो खेल रहे हो, सुरक्षित जगह पर पहुँच.. गिर रही उस चट्टान की मैं वीडियो बनाने लगा, चट्टान गुज़रने के बाद देखा कि हड़बराहट में मैं कैमरे का रिकार्डिंग बटन ही दबाना भूल गया..... विशाल जी मुझ से बोले, " लो विकास जी, इस गिरती चट्टान ने हमारी श्री खंड यात्रा के अनुभवों में तड़का लगा दिया...! " मैं बोला, " हां जी, ये गिरती चट्टान देखने का भीषण मंजर भी हमनें जीवन में पहली बार ही देखा है, जबरदस्त.... यदि कोई इस गिरती हुई चट्टान के रास्ते में आ जाए, सोच कर ही शरीर में झुनझुनी सी हो रही है...! " और, हम सब ने चुप्पी तोड़ी शिव के एक जयकारे से.....सबसे पीछे चल रहे एक लड़के को जिसके बहुत पास से वो चट्टान गुज़री, एक हल्का सा पत्थर आ लगा, पल भर पहले चित्कार रहा पर्वत.. पल भर बाद ही ऐसा खामोश हो गया जैसे उसे आराम आ गया हो।
आधे घंटे की चढ़ाई के बाद एक मोड़ मुड़ देखा कि कुछ दूर कई सारे लोग जमा थे... वह नयन सरोवर या नैनसर झील थी और हमारे चेहरे भी उस जमी हुई सुंदर झील को देख खिल गए, क्योंकि मैं अपनी स्वप्न यात्रा में साक्षात जो पहुँच रहा था.... हमारी खुशी देख केवल बोला, "इस बार तो बर्फ ही बहुत कम है, पार्वती बाग से नयन सरोवर के मध्य दो-तीन ग्लेशियर आते हैं....जो इस बार बहुत पहले ही पिघल गए, मैने हंसते हुए केवल से कहा, " जो भी मेरे ये नयन देख रहे हैं, मन के मयूर को उकसा रहे है कि तू नाच रे विकास...! "
गई पर्वत और जगत पर्वत के बीच में बने नयन सरोवर(4255मीटर) पर हम सुबह पौने सात बजे पहुँच गए और उस समय वहाँ का तामपान 7डिग्री था, तीन तरफ से पर्वतों में घिरी नयन या आँख के आकार की यह शांत झील, प्रचण्ड प्रवाह में बह रही कुपरन नदी का उद्गम स्थल है जो हमे पदयात्रा के शुरुआत में मिली थी.... इस झील के जल को गंगा जल के समान ही पवित्र माना जाता है, पुरातन रीति-रिवाज़ के अनुसार तीर्थ यात्री नयन सरोवर में स्नान कर श्री खंड की ओर प्रस्थान करते है.... परन्तु मैं कहाँ का तीर्थ यात्री और आधी बर्फ व आधे पानी में भला कौन नहायें वो 7डिग्री तापमान में....!
दोस्तों यहाँ भी "इतिहास के सबसे बड़े घुमक्कड़ पांडव बंधुओं " की महिमा बिखेरी है कि इस सुंदर झील का तटबंधन भी उन्होंने ही किया, जिससे जल एक्त्र हो सके..... चलो जिस ने भी किया हो, पर यह स्थान बेहद मनोरम है.... मैं विशाल जी से बोला, " यदि मेरे बस में हो तो मैं इस झील की सुंदरता को देख इस का नाम नयन सरोवर से बदल "मृगनयन सरोवर " रख दूँ....!!! " और विशाल जी बस हर बार की तरह हंस कर मेरी फिज़ूल की बातों का मन रख लेते हैं।
हम सबने झील के तटबंधन की दीवार पर बने माँ पार्वती के मंदिर पर माथा टेका और केवल सरोवर की ओर बढ़ गया बोतलों में पानी भरने के लिए..... क्योंकि इस स्थान के बाद श्री खंड महादेव शिला तक कहीं भी जल उपलब्ध नही है और मैं भी चल दिया केवल के पीछे-पीछे.... नयन सरोवर या नैनसर से मैने और केवल ने पंचतरणी स्नान की विधि अपनातें हुए जल के चंद छींटें अपने ऊपर फैंक लिये, पानी भर कर सरोवर के किनारे ऊँची जगह पर बैठ गए और मैने अपने पसंदीदा बिस्कुट खोल लिये, धीरे-धीरे कर मैने और विशाल जी ने एक-एक लीटर बर्फ सा पानी जबरदस्ती पीया.... क्योंकि अब हमे उस ऊँचाई की ओर बढ़ना था जो भी वनस्पतिहीन है, सो शरीर में आक्सीजन की कमी को पानी में मिली हुई आक्सीजन पूरी करे.........
.............................(क्रमश:)
पार्वती बाग से आगे सवा पाँच बजे ही उजाला हो गया.... |
पार्वती बाग से आगे की चढ़ाई.... |
और, सोने सी पहली किरण पड़ी पर्वत शिखर पर.... |
राह में आए हसीन फूल... |
मुझे देख ऐसे इतरा रहे थे फूल, जैसे उन्हें मालूम हो कि वे बहुत हसीन हैं..... |
जितनी जिस की श्रद्धा, उतना ही वो मगन चल रहा था..... जैसे यह नवयुवक नंगे पैर श्री खंड जा रहा था.. |
यदि आप इन पहाडों से उतर कर हमारे मैदानों में आ जाओ, तो निश्चित ही आपके गले में पड़ा सोने का हार लूट लिया जाएगा.... |
हमारे आगे चल रहे पदयात्री..... |
पार्वती बाग से आगे..... |
वो स्थान जहाँ से बहुत बड़ी चट्टान ऊपर से नीचे गिरी.... |
हम सब तो भाग कर बच लिये, परन्तु इस लड़के को एक छोटा सा पत्थर आ लगा.... |
ये सब पत्थर ऊपर से तो नीचे गिरे है कभी ना कभी.... भगवान बचाये इस विपदा से... |
राह में आया एक मरणासन्न ग्लेशियर... |
चढ़ जा चढ़ाईआं.......भगतां |
देखो, कितने खुश हम दोनों, नयन सरोवर पहुँच कर.. |
नयन सरोवर पर कई यात्री जमा थे..... |
नयन सरोवर के तटबंधन पर माँ पार्वती का मंदिर.... |
और, मैं भी केवल के पीछे-पीछे पानी भरने नयन सरोवर की ओर चल दिया.... |
नयन सरोवर के किनारे खड़ा केवल.... |
जल भरते हुए..... |
नयन सरोवर और मैं..... |
एक तीर्थ यात्री, नयन सरोवर से सूर्य को जल देते हुए... |
इस ऊँची जगह पर हम दोनों बैठ गए, जहाँ से नयन सरोवर का सम्पूर्ण दृश्य दिखता था.... |
नैनसर या नयन सरोवर का तटबंधन..... |
तटबंधन पर स्थापित माँ पार्वती मंदिर पर माथा टेक, यात्री रास्ते पर बढ़ "गई पर्वत " की ओर चढ़ते है.... |
मेरे प्रिय बिस्कुट, जिन्हें मैं चार दिन से साथ ढो रहा था.... |
मैने और विशाल जी ने बिस्कुटों के साथ एक-एक लीटर बर्फ सा पानी भी जबरदस्ती पीया, ताकि शरीर में हो रही आक्सीजन की कमी को पानी में मिली आक्सीजन पूरी करे.... |
ऐसी चार चोटियाँ हमे पार कर श्री खंड पहुँचाना था, गई पर्वत के बाद बसार गई पर्वत पर चढ़ रहे पदयात्री..... यदि आप चित्र को बड़ा कर देखे, तो आप चित्र के दाये हाथ पदयात्रियों को देख सकते हैं..... ( अगला भाग पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें ) |
नैन सरोवर के आगे थाचडू का भाई खाचडू आता है यह चढाई भी बहुत के गले सूखा देती है,
जवाब देंहटाएंपत्थर का धमाका हमें भी मिला था। लेकिन नजदीक आने से पहले बिखर गया था।
अब खतरनाक मार्ग की शुरुआत हो रही है।
Haha Haha.... सही कहा जी आपने, थाचडू का भाई खाचडू।
हटाएंजय हो जाट देवता आपकी
हटाएंआपके कई सारे यात्रा वृतांत पढ़ लिए है बस एक बार आपसे बात करने की दिली इच्छा है
देखते है वो कब पूरी हो
महेश भाई आपकी भी जय हो।
हटाएंप्रतीक्षा रहेगी आपके फोन की....
uttar se dakshin aane par esa hi hota hai...yahan sharafat abhi baki hai. bahut samay baad comment likh pa rahi hun halanki aapki lamdal yatra puri padhi thi.
हटाएंविकास ,यही संदीप हैं जिसने मुझे जगत बुआ बनाया जय हो😊😊😊
हटाएंबढ़िया संस्मरण विकास भाई। शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंबेहद धन्यवाद, ललित जी।
हटाएंअदभुद सर
जवाब देंहटाएंबेहद धन्यवाद महेश जी।
हटाएंबहुत ही बढ़िया यात्रा स्मरण
जवाब देंहटाएंबेहद धन्यवाद लोकेन्द्र जी।
हटाएंवाह कितना सुन्दर लगता होगा जब रास्ते में मिलने वाले हसीन फूल आपकी तरफ देख कर इतरा रहे होंगे, फूल के साथ आपका भी दिल खिल उठता होगा, दक्षिण में सोना पहनने की प्रथा उत्तर से बहुत ही ज्यादा है, यहां तो लोग सन्दूक में बंद करते रखते हैं, पर दक्षिण में पहने रहते हैं, मुझे भी तिरुपति जाते हुए एक दम्पत्ति ने बताया था कि दक्षिण में बिना सोने की शादी ही नहीं होती, चाहे कुछ भी हो जाए, बिल्कुल सही कहा जी आपने ‘‘घुम्मकड़ पांडव बंधुओं, हम लोग तो चार-आठ दिन घूमते हैं, वे लोग तो 13 साल घूमे
जवाब देंहटाएंअभयानंद जी, सुमधुर सा धन्यवाद जी......कई बार सोचता हूँ कि 13साल के वनवास और एक साल के अज्ञात वास में पांडव बंधु कहाँ कहाँ नही घूम गए.... मैने मध्य प्रदेश के एक मात्र पर्वतीय स्थल पचमड़ी में भी पांडव गुफाएँ देखी है.... इसे सत्य मान लूँ या नही, समझ ही नही पाता... इस बात का दूसरा पहलू वनवास के दौरान पांडवों ने यह बनवाया, वो बनाया... हज़म नही होता क्योंकि जो व्यक्ति घर से बेघर हो, पैसे और कमाई ना हो... वनवासी हो चुका है वो कैसे इतना कुछ कर सकता है, उसे तो रोटी के लाले होगें जी, उदाहरण के तौर पर जब भगवान कृष्ण वनवास के दौरान उनसे मिलने आए तो द्रौपदी के पास केवल उन्हें खिलाने के लिए एक अन्न का दाना ही था...!!!
हटाएंगिरती चट्टान का तड़का अच्छा लगा...बढ़िया पोस्ट
जवाब देंहटाएंबेहद धन्यवाद प्रतीक जी।
हटाएंAwesome..... Falling of rock.... Apprehension of some mishappenings
जवाब देंहटाएंबेहद धन्यवाद गांधी साहब।
हटाएंपानी से ऑक्सीजन वाली बात मुझे हेमकुंड यात्रा में याद रहती तो मुझे आक्सीजन कम की शिकायत न होती। चारो ओर पत्थर और पत्थरों की सुंदरता वाह 😊 यदि टाईम पर तुम्हारा कैमरा चल जाता तो हमको घर बैठे चट्टान का आतंक दिखाई दे जाता ।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने , हड़बड़ी में मैं कैमरा का रिकॉर्डिग बटन ही नही दबा पाया।
हटाएं