रविवार, 9 अप्रैल 2017

भाग-25(अंतिम किश्त) पैदल यात्रा लमडल झील वाय गज पास.....Lamdal yatra via Gaj pass(4470mt)


भाग-25 पैदलयात्रा लमडल झील वाय गजपास(4470मीटर)27अगस्त2015
                               (अंतिम किश्त)
 
   इस चित्रकथा को आरंभ से पढ़ने का यंत्र (http://vikasnarda.blogspot.com/2017/04/1-lamdal-yatra-via-gaj-pass-4470mt.html?m=1) स्पर्श करें।          

                 कपरालू माता के मंदिर पर कुछ समय विश्राम करने के उपरांत हम वापसी की राह पर बढ़ गए और गज नदी पर ही बने सत्य साई विद्युत परियोजना, जिस पर चरण सिंह के भाई सुंरिदर राणा जी हमारा इंतजार कर रहे थे, क्योंकि वे हमे सुबह अपने दफ्तर आने का न्यौता दे कर गए थे, सो चरण सिंह हमे लेकर उनके दफ्तर पर पहुंच गए और वहां हमने कुछ समय बैठ उन लोगों से साथ  बातचीत की और कॉफ़ी भी पी...... वहीं आंगन में पड़े व्यायाम करने हेतू जगाडू भारोत्तोलन उपकरण को देख मैं बहुत खुश हुआ..... और गर्व से बोला, मेरा यह पसींदा खिलौना है....जिससे मैं रोज खेलता हूँ.........
                           अब यहां से दो रास्ते वापस जा रहे थे, एक रास्ता वो जिससे हम इस तरफ आए थे, वो घने जंगल व बिच्छू बूटी से भरा पड़ा था और दूसरा वो अलग रास्ता जो गज नदी की दूसरी तरफ से इन परियोजना वालों का ही निजी रास्ता था, जिसपर हमे ऊपर जाते समय स्थानीय लोगों ने पहले रोक दिया  था कि यहां पत्थर गिरते है इसलिए मत जाओ........... परन्तु अब चरण सिंह वापसी पर हमारे साथ थे तो वह बोले,  नही.. हम इसी परियोजना के निजी रास्ते से वापस चलते हैं, क्योंकि यह रास्ता खुला व आसान है......परियोजना वालों ने अपने लिए यह सड़क बनानी शुरू की थी, परन्तु इस बार की बरसात ऋतु ने इनका बहुत नुक़सान कर दिया, काफी जगह से पहाड़ी इस रास्ते पर गिर चुकी है और निरंतर गिरती जा रही है...... इनके वाहनों का रास्ता अब कट गया है, इसलिए गज परियोजना का कार्य भी ठप्प पड़ा है................... हम तो सीधे रास्ते पर ही चल रहे थे, परन्तु चरण सिंह कई जगह पर लघुपथ यानी शोटकट का प्रयोग करते जा रहे थे,  वह उस भारी भरकम लकड़ी को पहले नीचे फेंक कर उसी तरफ से सीधे नीचे उतर जाते,  जबकि हम अपनी हड्डियों की चिंता करते हुए सीधे-सीधे रास्ते पर ही चल रहे थे और आखिर में पहाड़ी गिरने के कारण बंद हुए रास्ते को छोड़ हमे भी चरण सिंह की तरह से ही उल्टे रास्ते का इस्तेमाल करना पड़ा................... आखिर हम जब चरण सिंह के गांव रावा में पहुँचें ही थे, कि एकाएक बरसात होने लगी, तो चरण सिंह बोले....मैं जल्दी से घर को जाता हूँ, आप लोग वर्षा से सुरक्षा करते हुए वो सामने वाला पुल पार कर मेरे घर पर आ जाना....... और चरण सिंह बरसात में ही अपने घर को भाग गए और हम  दोनों भाई वर्षा सुरक्षा कवच के इस्तेमाल में व्यस्त हो गए......... तो धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए जैसे ही गज नदी पर बने पुल को पार किया, तो सामने छाता लेकर एक बालक हमारे स्वागत में खड़ा था,  वह बालक चरण सिंह का बड़ा बेटा अभिषेक था......मेहमान नवाज़ी की शुरुआत अभिषेक ने हमे अभिनंदन कर की और हमे ले अपने घर की ओर चल दिया.........
                             बारिश में ही हम सब चरण सिंह के घर के अंदर दाखिल हुए......... जलपान के साथ ही चरण सिंह ने मुझे अपने घर की सभी निजी फोटो व एलबम एक झटके से ऐसे दिखा दी, जैसे मैं उनका कोई खास रिश्तेदार हूँ....... यह मेरे फ़ला-फ़ला रिश्तेदार की फोटो है आदि आदि...... और मुझे अपनी पत्नी के साथ शादी के समय की फोटो रखने के लिए देने लगे, तो मैने कहा कि, राणा जी... यह फोटो भी तो आप के पास एकमात्र ही है, मैं आपकी भावनाओं को समझता हूँ, लो मैं अपने कैमरे से इस फोटो की फोटो ही खींच लेता हूँ......... तभी चरण सिंह का छोटा बेटा अनिकेत हमारे लिए पेड़ से ताज़ा अखरोट ले आया और उन ताज़ा अखरोटों का स्वाद भी जीवन में प्रथम दफ़ा चखा.....
                              अब बारिश थम चुकी थी, सो चरण सिंह मुझे अपने खेत-खलियान दिखाने ले गए और फिर अपने पुश्तैनी घर में अपनी माँ से मिलाने ले गए....... उनकी माँ के कमरे की दीवार पर लगे दो चित्र मुझे दिखा कर चरण सिंह बोले.....यह मेरे स्वर्गीय पिता जी का चित्र है और यह दूसरा चित्र मेरी स्वर्गीय बड़ी माँ का है..... मेरे पिता जी की दो विवाह हुये थे, क्योंकि बड़ी माँ के कोई संतान ना हो सकी....तो पिता जी ने उमर के तीसरे पड़ाव में संतान प्राप्ति हेतू दूसरी शादी की और मेरी छोटी माँ व मेरे पिता जी की उमर में भी काफी अंतर था......... और हम सब भाई-बहन पैदा हुए, परन्तु हमारी बड़ी माँ हमारी जन्मदात्री माँ से भी बहुत ज्यादा हमे चाहती व प्यार करती थी.......... और मुझे चरण सिंह ने अपने घर-परिवार के प्रत्येक सदस्य से मिलवाया......और मेरे आग्रह पर मुझे देसी सफेद मक्की का कुछ बीज भी दिया, पर बदकिस्मती से जब इस बरसात के मौसम में मैने वो सफेद मक्की को अपने खेतों में बोया, तो वह अनुकूलित मौसम ना होने के कारण मेरे खेतों में उग नही पाया.................... चरण सिंह का बड़ा बेटा अभिषेक भी मुझे अपने दोस्तों से मिलाता जा रहा था और यहां तक कि उसने मुझे अपनी मुर्गियों तक से भी मिला डाला........ हमे हर तरफ से सम्मान ही सम्मान प्राप्त हो रहा था, मुझे ऐसा प्रतीत होने लगा कि कहीं मैं किसी सुंदर स्वप्न में तो नही जी रहा...... तभी चरण सिंह का छोटा बेटा अनिकेत घर से संदेश लाया कि पापा जी, माँ बुला रही है कि खाना तैयार है.......और हम घर वापस चल दिये............
                     दोस्तों, खाने में पेश हुए मेरी कमजोरी "पकौड़े"..........और वो भी गज पर्वत के शिखर से तोड़े गए चुकरी के पत्तों के.... इनका स्वाद भी हमारे लिए बिल्कुल नया था, क्योंकि यह पकौड़े अपने आप में ही खट्टे थे इसलिए कि चुकरी के पत्तों का स्वाद खट्टेपन में होता है....और ऊपर जो बात उन पकौड़ों के बारे में मुझे चरण सिंह ने बताई, वो वाकई हैरान करने वाली थी कि भाई जी,  यह पकौड़े बेसन के नही कनक के आटे से बने हुए हैं.......मैने कहा पकौड़ों में बेसन की जगह कनक का आटा, मुझे तो विश्वास ही नही हो रहा.... क्योंकि इनका स्वाद बिल्कुल भी अलग नही है, यदि आप ना बताते तो मुझे कभी पता नही चलता कि मैं बेसन की बजाय आटे से बने पकौड़ें खा रहा हूँ........ और स्थानीय गनडोली की सब्जी व चुकरी के पकौड़ों संग खाई रोटी का स्वाद बहुत ही अपनापन लिये मेरे दिलो-दिमाग में घुल चुका था..........
                            शाम होने को हो रही थी, तो अब चलने की बात पर चरण सिंह बोले,  मेरी इच्छा थी कि मैं
आपको गेरा गांव में खड़ी आपकी गाड़ी तक छोड़ कर आता, परन्तु रैलधार के मेरे वापसी के रास्ते में गिर कर मरी हुई गाय के कारण मैं मजबूर हो गया हूँ....जल्दी से जल्दी अपने डेरे वापस जाने के लिए,  क्योंकि रात में वहां उस मृत गाय को खाने के लिए भालू इक्ट्ठा हो जाएंगे.........परन्तु आप चिंता ना करे, मेरा बड़ा बेटा अभिषेक आपको नीचे तक छोड़ कर आयेगा,  मैने कहा नही राणा जी, इसकी कोई आवश्यकता नही है...हम अब रास्ता नही भूलने वाले..... खुद ही वापस चले जाएंगे............. परन्तु चरण सिंह ने जोर दे कहा, नही पंडित जी मुझे मेरी मरजी ही करनेे दे, इससे मुझे खुशी मिल रही है.......... सो मैं भी उनकी यह मीठी सी बात सुन कर मना ना कर सका.......... चरण सिंह का छोटा बेटा अनिकेत हमारे लिए कुछ और अखरोट, पेड़ के नीचे से इक्ट्ठा कर लाया और चरण सिंह ने मुझे अपनी माँ के हाथों बनाया देसी घी उपहार में दिया........
                              सो अब चरण सिंह से विदा लेने का वक्त हो चला था, तो मैने बड़े भाई के कर्तव्य का निर्वाह करते हुए चरण सिंह व उनकी पत्नी और बच्चों को शगुन दिया ..........
अब चरण सिंह से दोस्ती का रिश्ता कायम हो चुका है जो जीवन भर चलता रहेगा, मुझे अब भी कुछ दिनों बाद ही चरण सिंह का फोन अक्सर आ ही जाता है........ राजी-खुशी जानने के बारे में......................अब हमारा पथ प्रदर्शक चरण सिंह का बेटा अभिषेक बन हमारे आगे चल रहा था और वह भी अपने पिता की तरह ही हममें अपना ज्ञान बांटता जा रहा था....... कि अंकल यह देखो,  अखरोट के पेड़,  सेब के पेड़,  फला सब्जी का पौधा, बिच्छू बूटी,  फ़ला पेड़-फ़ला बूटा आदि आदि....... और मैं भी उसकी इन भोली बातों का खूब आंनद ले चल रहा था, तो रास्ते में फंगूडी का पेड़ आया, मैने अभिषेक से उस पेड़ की पहचान पूछी, कि बच्चू अब बताओ कि इस पेड़ का क्या नाम है....... पर अभिषेक उस पेड़ का नाम नही बता सका, बस बड़ी मासूमियत से बोला अंकल इस का नही पता.......परन्तु मैं और ऋषभ, अभिषेक के इतनी छोटी उमर में भी पेड़-पोधों के बारे में इतने ज्ञान से काफी प्रभावित हुए.......अभिषेक ने रास्ते में आये श्मशान की तरफ इशारा कर बचपने से कहा, कि अंकल वो देखो यहां हमने अपनी दादी को आग लगाई थी और वहां नीचे नदी के किनारे अपने दादा को...... मैं बस उसकी इस मासूमियत पर मुस्कुराहट ही बिखेर सकता था........................आखिर रावा गांव से बाहर आ जाने पर हमने अभिषेक को वापस घर भेज दिया....... और चलते-चलते हम गेरा गांव में पहुँच गए, यहां हमने वीरूराम दुकानदार के पास अपनी गाड़ी खड़ी कर रखी थी....... हमे वापस आए देेेख वीरूराम के चेहरे पर खुशी छा गई, कि चलो अच्छा हुआ यह सनकी वापस आ गए.......क्योंकि मैने लमडल झील की तरफ जाते समय वीरूराम को हिदायत दे रखी थी कि यदि हम चौथे दिन शाम तक आपके पास वापस नही आते, तो पांचवें दिन हमारे घर के नम्बर पर हमारे गुमशुदा होने की खबर दे देना.....वीरूराम की दुकान पर चाय-नाश्ता करते अंधेरा हो गया और आठ बजे के करीब हम गेरे से वापस गढ़शंकर के लिए चल दिये..........
                              ऋषभ गाड़ी चला रहा था और गाड़ी में बैठे-बैठे मेरे दिमाग में इस यात्रा का प्रत्येक लम्हा चलचित्र सा चल रहा था....... कि कोई कैसे किसी अजनबी पर इतना भरोसा कर उसे अपनों से भी बढ़ कर रखता है.....यह चार दिन मेरे जीवन के अविस्मरणीय दिवस साबित हो चुके थे...... मेरे कपड़े से उठ रही पशुओं की गंध भी मुझे अच्छी लग रही है, क्योंकि उनसे भी अपनापन की महक आ रही थी.......!!!!!
                                ...................................( समाप्त )
         
                                         मित्रों,  अंत में........मैं आप सब का  बहुत आभार व्यक्त करता हूँ, कि आपने मेरी इस यात्रा की चित्र कथा पर सात महीनों तक  मेरे हमराही बन  साथ दिया, क्योंकि मैं कोई लेखक, पत्रकार या साहित्यकार नही हूँ बल्कि एक साधारण व सामान्य बुद्धि व्यक्ति हूँ.......बस हर सप्ताह अपनी इस पदयात्रा को स्मरण कर लिखता गया और आप पढ़ते गए...........अति आभारी हूँ जी आपसब का........ और इच्छा करता हूँ आप इस बार अपनी बहुमुल्य टिप्पणियाँ और सुझाव मुझे जरूर दें......... जी
सत्य साई विद्युत परियोजना की ओर बढ़ते हम...और ऋषभ के पीछे गज नदी के पार सुंरिदर राणा जी हमारे स्वागत में खड़े थे... 

सत्य साई विद्युत परियोजना के दफ्तर पर सब कर्मचारियों के संग एक संयुक्त चित्र... और मेरा प्रिय लोहे का खिलौना 

दो अलग-अलग रास्ते गज नदी के दोनों ओर... जाते समय हमने चित्र के दायें हाथ,  जंगल से गुजरती पगडंडी वाला रास्ता चुना था... और वापस आते समय बायें हाथ, निर्माणाधीन सड़क वाला रास्ता... जिस पर अक्सर पत्थर गिरते रहते हैं... 

चरण सिंह के लिए चाहे रास्ता हो या ना हो,  सब एक समान ही है... वह हर जगह लघुपथ का इस्तेमाल कर रहे थे... और अंत में हमें भी टूटा रास्ता छोड़ चरण सिंह की तरह ही पहाड से नीचे उतरना पड़ा.. 

चरण सिंह के गांव रावा में गज नदी पर बना पुल... व पुल को पार करता हुआ ऋषभ और पुल पार करते ही एक बालक हमारे स्वागत में खड़ा था,  वह चरण सिंह का बड़ा बेटा अभिषेक था.. जो बरसात में भी हमें लेने आया था.. 

चरण सिंह के खेत-खलियान...और चरण सिंह के छोटे बेटे अनिकेत ने हमें ताज़े अखरोट खाने के लिए दिये... 

चरण सिंह का पुश्तैनी घर और माँ से मेरी भेट,
और दीवार पर चरण सिंह के पिता व बड़ी माँ के लगे हुए चित्र... 

अभिषेक ने अपने मित्रों से तो मिलवाया ही,  यहां तक कि अपनी मुर्गियों से भी मिलवा डाला... 

चरण सिंह के परिवार के कुछ बच्चे...जो बारी-बारी से मेरे कैमरे में कैद होते चले गए... 

कनक के आटे से बने हुए चुकरी के पकौड़े और गनडोली की सब्जी के साथ रोटी का परमानंद... 

चरण सिंह के परिवार का संयुक्त चित्र,  ऋषभ, अभिषेक व अनिकेत.... और चरण सिंह से विदाई का मेरा आखिरी चित्र 
आखिर शाम को हम वहीं पहुंचें...यहां से हमने अपनी पदयात्रा शुरू की थी, सूर्यास्त की धीमी लौ गज शिखर पर पड़ रही थी.... और मुझे देख गज शिखर मुस्कुरा रहा था.... मैं व ऋषभ इस मंजर को काफी समय तक निहारते रहे...


44 टिप्‍पणियां:

  1. BAHUT HI SUNDER CHITRAKATHA SAH YATRA VRITANT PADHA . AAPKO SADHUWAD . AISA LAGA KHUD GHOOM AAYE

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  2. दूर हिमालय की चोटियों में आपका मार्गदर्शन करने वाला मित्र राणा चरण सिंह जी के तारीफ में मुझे शब्द नही मिल रहे उनके लिए दिल से सल्यूट

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    1. लोकेन्द्र जी, आपका बेहद शुक्रगुज़ार हूँ कि आप मेरी इस स्मरण यात्रा में हमसफ़र बन मेरे संग-संग चले जी।

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  4. bhai ji rat 10.00 baje pehla bhaag padna shuru kara tha.. rat k 2.30 baj gaye hain, jab tak sare bhaag pad nahi liye, na sone ka dil kara or na he neend ai..

    bhut he acha likhte hain aap. or photos bhi bhut ache hain...

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    1. सुमधुर आभार जी..... जो आपने मुझे अपना कीमती समय दिया जी।

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  5. विकास भाई हतप्रभ हो जाते है हम इन पहाड़ी लोगो के व्यवहार और मेहमाननवाजी से...नमन है चरण सिंह जी को शायद यह बरसो से प्रेम संजोए थे क्योंकि लोगो ने उनके घर का रुख करना छोड़ दिया क्योकि वो पहाड़ में रहते है लेकिन जब कोई अपना से लगा तो सारा प्रेम उढेल दिया...और अभिषेक की उत्सुकता दिख रही है कि उसने कितना कुछ जो जानता था बता सकता था सब बात दिया जबकि आपको उस ज्ञान की ऐसी कोई खास चाह नही थी लेकिन जो उसने उत्साह दिखा कर बताया घुमाया ऐसे प्रेम के सामने नतमस्तक...और वहां का स्थानीय खाना ग़ज़ब ही ग़ज़ब..बहुत बधाई आपको यात्रा की समाप्ति पर....

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    1. प्रतीक जी, मैं खुद हतप्रद था कि कैसे कोई अंजान दूसरे अंजान को अपनो की तरह मानने लगे....चरण सिंह की बजाय से ही मुझे पहाड़ी लोगों की मेहमाननवाज़ी का उचित ज्ञान हुआ.... परन्तु यह अपनापन आपको किसी व्यस्त पर्वतीय स्थल पर कभी नही प्राप्त हो सकता, यह भी एक विडम्बना है जी व्यस्त व मशहूर पहाड़ी स्थल पर तो ज्यादतर सैलानी लूट का शिकार होते हैं, एक अनार सौ बीमार जैसी स्तिथि में पांच सौ के कमरे के पीछे सिर्फ एक जीरो और जोड़ दी जाती है, जी।
      आप का बेहद आभारी हूँ प्रतीक जी, आप मेरे हमसफ़र बन इस शब्द यात्रा पर साथ -साथ चलते रहे जी।

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  6. देशी सफेद मक्का का देशी बीज मेरे पास भी है बरसात में हम इसे ऑर्गेनिक ही बोते है

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    1. वाह लोकेन्द्र जी, देसी मक्की का स्वाद अतुल्य होता है जी।

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    2. वाह लोकेन्द्र जी, देसी मक्की का स्वाद अतुल्य होता है जी।

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    3. वाह लोकेन्द्र जी, देसी मक्की का स्वाद अतुल्य होता है जी।

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  7. Wow.... earlier once read about Charan Singh ji, today read all episodes without taking break.wonderful visit. I understand n very well know about people of hills.my Partner Ram Dass Chaudhray is from Kangra and after death of my mom I asked him to visit his village for few days in 2010. But he always lingered on. One day I insisted I went to his village I was stunned to see his house and hard working of mother how she maintained katcha house.They treated me like their fourth son. So long they lived I continued visited his village. I asked him why you always denied to come to village. He replied that our house is not as per yours standard. I feel ashamed.i replied she how mom had maintained it. I can forget those moments in winter mom used to prepare special meal for me. Today what I m in court that is due to Advocate Rdx. Salute to these innocent people who are still far away from materlistic world. Thanks a lot Bhai Sahib for wonderful series.

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    1. सुस्वागतम् गांधी साहिब,आप का अनुभव पढ़ मन भाव-विभोर हो गया....छोटी जगहों पर रहने वाले लोगों के दिल बड़े है और बड़ी जगहों पर रहने वाले लोगों के दिल ना जाने क्यूँ छोटे होते जा रहे हैं।

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  8. very nice.esa lag raha hai aapke sath hamne bhi pahado ki yatra kar li.really very nice 😀

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    1. बेहद आभारी हूँ आपका जो आप मेरे हमसफ़र बने जी।

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  9. Bahut hi adventurous aur Thrill se bhari aapki yatra ka virtant pad kr man bahut romachit ho gaya..Charan sigh ji ek mukhiy nayak rahe he is yatra ke. Jay Bhole Nath

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    1. बेहद धन्यवाद गोस्वामी जी....इस यात्रा के सूत्रधार ही चरण सिंह है, इनके कारण ही यह यात्रा सम्पूर्ण बन गई ... जय भोलेनाथ।

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  10. भाई साहब, अमूल्य खजाना है ये ब्लॉग आपका। मिलना चाहूंगा आपसे कभी। अपनापन सा हो गया है आपको पढ़ते पढ़ते, बीच बीच मे दोस्तो कहना, क्या बात।

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  11. really liked all your blogs. I am trekker myself but I go through some organized company in group so obviously its less exciting and less fun compared to yours. Read all your blogs but this one stands out. Hopefully I can also spend some time with local pahadi people who are with pure heart like Charan Singh. Keep writing.

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    1. बेहद धन्यवाद दीपक जी, सही कहा आपने.... इन "रोमांच के व्यापारियों" यानि ट्रैकिंग ऐजंसियों के बगैर निकले, उस यात्रा के सारे अनुभव आपके मनोबल को और ज्यादा बढ़ा देंगे, जी।

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  12. भाई आज फिर शुरू से लेकर अंत तक लाम डल झील घूम आया। adv rdx के पिता की को 6 साल v माता जी को 4 साल गए हुए हो गए....उनके बाद केवल एक बार ही उनके गाव जा सका। जब वो थे तो साल में दो तीन बार कांगड़ा हो आता था। Rdx के पिता जी अक्सर कहते थे मैंने तेरे पास आकर रहना है,मै भी कहता पापा जी आप आओ तो सही। मेरे पिता जी 85 के हो गए है।पाकिस्तान से तीन कपड़ों में आए थे।वह हमेशा कहते जब मर्जी और जितने दिन मर्जी रहे उनका अपना घर है। वक्त ही सब कुछ है। इन लोगों का भोलापन, डेडीकेशन, निस्वार्थ प्यार.....omg, किस्मत वालो को ही मिलता है।

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    1. बेहद धन्यवाद वकील साहब, आपने बिल्कुल सही कहा जी....यह सब कुछ किस्मत वालों को ही मिलता है।

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  13. आपकी सुलभ शैली में लिखी हुई कहानी को पढ़ने के साथ साथ छायाचित्र को देखने के तत्पश्चात मानो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मैं भी आपके साथ साथ घूम रहा हूँ, यह मेरी पहली ऐसी कहानी है जो मैंने एक ही बार मे 25 भाग पढ़ डाले।
    इस प्रकार मानसिक यात्रा कराने के लिए धन्यवाद।

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  14. आज facbook के माध्यम से आपका ब्लॉग पढ़ा। बहुत सुंदर। आज सुबह 8 बजे से को पढ़ना शुरू किया तो अभी 11.45 तक निरंतर पढ़ता गया। मात्र स्नान के लिए 15 मिनट के लिए विराम लिया था। आपने इतना अच्छे से लिखा है कि विराम लेने की इच्छा नहीं हुई। बहुत ही प्रेरणादायी व चरण सिंह जी के लिए तो शब्द ही नहीं है।

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  15. भाई जी मुझे अपने फेसबुक पेज पर घुमक्कड़ी जिंदाबाद ग्रुप मिला जिसमे मुझे आप लोगो द्वारा जॉइन करा लिया। वही से आपकी सभी चित्र अनुभव पढ़े । जिनके पढ़ने के दौरान ऐसा लग रहा था मानो सारा घटनाक्रम मेरे सामने घटित हो रहा। वास्तव में आपके सभी यात्राओं के अनुभव बहुत यादगार है। आप अपने अनुभव ऐसे ही लिखते रहे।

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  16. अदभुत, शुरू किया तो फिर रुका ही नही गया.. सारे पार्ट पढ़कर और सभी फोटो देख कर ही रुका गया...

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  17. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  18. बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत ही अच्छी रही मेरी यात्रा आप की मेहरबानी से
    क्यो की मै आप के साथ बिना परिश्रम यात्रा कर लिया बेहतरीन

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  19. विकास दादा मैन सात महीने तो नही दिए मगर पिछले पांच घंटो से बिना पूरी यात्रा समाप्त किये फ़ोन नही रख सका। आप के साथ यात्रा ऐसे लगती है जैसे कि मैं भी आप के साथ ही यात्रा कर रहा हू। आप की लिखने का तरीके मनोहारी एवं आकर्षक है। शुरुआत से अंत तक मजबूती से बांधे रखते है आप। क्या राणा जी का मोबाइल संपर्क सूत्र हमसे शेयर कर सकते है?अगर संभव हो तो। बहुत बहुत आभार।

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  20. Shandar yatra ka shandar samapan, charan singh ji ne dil jeet liya. Itne saral insaan pahado par hee mil sakte h bas

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  21. Bahut mazaa ayea aap ki yatara ka, jis ka real hero sh. Charan Singh rana Ji rahe, soch raha ho agar aap ko charan Singh na milta to rasta bhtak ke kaha chale jathe, per bhagwan aap ke sath thee, jo aap ko bhagwan ke roop me charan singh mil gaye, shyed bhagwan ne hi unko aap ke sath mila diya, hor to hor, agar aap hor rishab dono hote to, rishab ko chhot lagne per, aap ki yatara ka kya hota, ja rishab ko ekele chod jathe yah yatara bich me hi chodni padti, yeh sab bhagwan ki marji hor aap ki dride isha se hova. Aap bahut aach likhte hai, mene aap ki, khirganga, shri khand, kekari hor yeh yatara ka pura vivran padha, maza aa giya Ji,

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  22. अति सुंदर यात्रा विवरण, मजा आ गया कसम से एक बार में ही पूरी पढ़ कर ही चैन आया।

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  23. शानदार जानदार जबर्दस्त। हम भी आपके साथ घूम लिए। निशब्द है ।

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  24. Ek baar phir se puri yaatra ka Anand liya . Behad romanchak aur dil ko chuu jane wali yaatra . Charan Singh ji ne dil jeet liya

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