शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

भाग-2 चलो, चलते हैं....सर्दियों में खीरगंगा Winter trekking to Kheerganga(2960mt)

भाग-2    चलो, चलते है..... सर्दियों में "खीरगंगा"(2960मीटर) 1जनवरी2016
 
इस चित्रकथा को आरंभ से पढ़ने का यंत्र (http://vikasnarda.blogspot.com/2017/04/1-winter-trekking-to-kheerganga2960mt.html?m=1) स्पर्श करें।
                   
                                     31दिसम्बर 2015 की सर्द रात मैं और विशाल रतन जी बस में काट कर सुबह 8बजे मणिकर्ण पहुँच गये। मैने विशाल जी से कहा कि हमें अब देर नही करनी चाहिए और खीरगंगा ट्रैक शुरु करने के लिए सड़क से जुड़ा आखिरी गाँव "बरषैनी" है,  जो मणिकर्ण से 16किलोमीटर की दूरी पर है। परन्तु जब हम बस से उतर रहे थे, तो हमारी आँखों के सामने ही बरषैनी वाली बस निकल गई। अब दूसरी बस एक घंटे बाद आनी थी...सो बरषैनी रोड पर पहले से ही बस की इंतज़ार में खड़ी एक स्थानीय बुजुर्ग महिला व उसकी बहू-पोते के साथ हम दोनों भी खड़े हो गये। कुछ समय बाद ही उन बुजुर्ग महिला ने एक टैक्सी कार को रोका...... और हमे भी उस कार में अपने साथ ही बिठा लिया। कार वाला बहुत जल्दी में था...क्योंकि उसकी कार उस दिन हिमाचल प्रदेश में हो रहे पंचायती चुनाव में लगी हुई थी। हमें बरषैनी तक पहुँचाने के लिए उसने हमसे दो सौ रुपये तय किये और कार दौड़ पड़ी, एक छोटी सी सड़क पर।
                        मेरी नज़र रास्ते पर नही,  बल्कि हर पल बदल रही प्राकृतिक सौंदर्य पर एक जगह ठहर नही पा रही थी....कभी मैं बच्चों की तरह विशाल जी को अपनी खिड़की से बर्फ से ढकी हुई अलग-अलग पहाडों की चोटियाँ दिखाता,  तो कभी विशाल जी मुझे अपनी खिड़की से उन पहाडों के मध्य, उछलती-कुदती हुई पार्वती नदी की धारा दिखाते.....हम दोनों प्रकृति प्रेमी अक्सर प्रकृति की गोद में जा कर बच्चें बन,  ऐसी बच्चों की सी हरकतें करने लग जाते हैं..!
               आधे रास्ते में आये एक गाँव पर, वे बुजुर्ग महिला व उसके बहू-पोते उतर गये....तो कार वाले ड्राइवर ने हमसे कहा, "लगता है जनाब,  ठण्ड मानने 'तोश' जा रहे है..!"
                 मैं झट से समझ गया कि वह ड्राइवर साहिब हम पर चुटकी ले रहे हैं,  क्योंकि "तोश" गाँव पार्वती घाटी का एक बिल्कुल अलग-थलग गाँव है...जिसको सड़क से जोड़ने का काम अभी शुरु हुआ है,  परन्तु इस गाँव में विदेशी सैलानी,  खासकर इस्राइल व इटली के लोग क्यों डेरा जमा लेतें हैं...वो इसलिए कि प्रशासन की नज़रों से दूर वहाँ इन पर्यटकों को "हशीश" मुहैया की जाती है,  जिसकी खेती इन पहाडो की ऊँचाईयों पर चुपचाप ढंग से की जाती है। मणिकर्ण के इलाके में एक और गाँव "मालाना" भी इस हशीश यां गांजा के लिए नशेड़ियों की दुनिया में विश्वप्रसिद्घ है.....और इस मालाना गाँव जाने के लिए अभी तक कोई भी सड़क मार्ग भी नही बना है। मैने हंसते हुए ड्राइवर से कहा, "नही भाई साहिब, हम तोश वाले बंदे नही है...हमें तो खीरगंगा जाना है।"
                मेरी यह बात सुन वे ड्राइवर हैरानी से मेरी तरफ़ देखकर बोले, "इस समय तो कोई भी नही जाता, खीरगंगा.....बर्फ पड़ चुकी है रास्तों पर और इन रास्तों पर जाना बहुत ही खतरनाक हो जाता है,  क्योंकि रास्ते के पत्थरों पर पड़ी कम मात्रा में बर्फ...शीशे सी कठोर हो जाती है,  उस बर्फीले शीशे पर चलना तो मौत को दावत देना भी सिद्ध हो सकता है....क्योंकि पगडंडी के साथ-साथ ही नीचे गहराई में पार्वती नदी बह रही है,  भाई गर्मियों में बहुत लोग खीरगंगा जाते है....इस समय वहाँ जाना तो सनकी लोगों का काम है........!!!"                          और मैं हंसते हुए ही बोला, " बस ऐसा ही समझ लो,  कि हम दोनों भी 'सनकी' ही है...!!!!"
                 बातों-बातों में हम बरषैनी गाँव पहुँच गये। पर यह वो बरषैनी गाँव नही था,  जो मैने 1992 में की हुई खीरगंगा पदयात्रा के समय देखा था। तब सड़क सिर्फ मणिकर्ण तक ही होती थी और मैं अपने एक मित्र के संग मणिकर्ण से 24किलोमीटर पैदल खीरगंगा गया था। उस समय तो बरषैनी एक छोटा सा गाँव,  जिसमें मैने एक छोटी सी दुकान पर स्थानीय राजमाँह संग दोपहर की रोटी खाई थी... परन्तु अब तो पार्वती नदी पर बन रहे "पुल्गा बांध" परियोजना के कारण सब कुछ बदल गया है, कई किस्म की दुकानों से भरा एक लम्बा सा बाज़ार और उसमें खड़ी टैक्सियों की कतार। 
              समय सुबह के 9बज चुके थे,  तो गाड़ी से उतरने से पहले मैने ड्राइवर से पूछा कि,  यहाँ बरषैनी में सबसे अच्छा खाना किस ढाबे पर मिलेगा,  तो जवाब मिला कि प्रेम बहादुर के चले जाना।
              दोस्तों मेरी एक आदत है कि जब भी मैं किसी जगह पर जाता हूँ,  तो सबसे पहले वहाँ स्थानीय लोगों से उस जगह पर मिलने वाले सबसे स्वादिष्ट भोजन के बारे में जानकारी जरूर हासिल करता हूँ। सो अब हम दोनों प्रेम बहादुर का ढाबा ढूंढ़ते-ढूंढ़ते उन की दुकान पर पहुँच गए....... और मैने उन्हें अपना मनपसंद व्यंजन "थूप्पा" बनाने का आग्रह किया और विशाल जी ने पराँठों का। तभी मेरी दृष्टि ढाबे की खिड़की से बाहर के नज़ारों पर जा पड़ी और मैं व विशाल जी ढाबे से बाहर आ कर उन दिलकश नज़ारों को अपनी "मशीनी आँख" में सदा के लिए कैद करने लग पड़े।
                जब हम नाश्ता कर रहे थे,  तो उस समय भी दो अलग-अलग शेयरिंग टैक्सी वालों ने ढाबें के आगे गाड़ी रोक कर हम से पूछा,  "क्यों भाई,  तोश जाना है ".......और हम हंस कर ना में सिर हिलाते रहे। तभी ढाबें पर चंद युवा लड़के-लड़कियों का एक दल आया,  जिनके साथ एक स्थानीय गाइड भी था। वे लोग भी खीरगंगा जाने की बात कर रहे थे....उनके साथ गाइड को देख कर विशाल जी ने मुझ से कहा कि चलो हम भी इनके साथ ही खीरगंगा चलते हैं। मैने विशाल जी को एक तर्क दे कर मना कर दिया और कहा, इनको आगे जाने दो...हम बाद में चलेंगे।  हमने वहाँ स्थानीय लोगों से ट्रैक सम्बन्धी जानकारी लेकर,  उस हिसाब से ट्रैकिंग का फालतू सामान प्रेम ढाबे पर छोड़ जाने में ही भलाई समझी और अपना "लाम-लश्कर" कस कर हम दोनों पर्वतारोही चल पड़े खीरगंगा की ओर,  समय था सुबह के 10:30बजे।
                   मेरी नज़र बारम-बार बर्फ की चोटियों पर जा-जा कर रुक रही थी,  मुझे ऐसा मानसिक आभास होने लगा कि मैं स्वर्ग का राजा "इंद्र" हूँ और ये पर्वत चोटियाँ मुझे मेनका, उर्वशी जैसी स्वर्ग की अप्सराएँ बन लुभा रही हो...!! 
                   तभी मैं नज़रो को सूर्य देव ने काट कर कहा, "औकात में रह विकास नारदा, तू केवल एक साधारण मनुष्य है बस..!"
                    अभी कुछ कदम ही चले थे कि ग्राम-देव "जुगंरू देवता "  का मंदिर हमारे रास्ते में आया,  और हमने उनसे अपनी यात्रा सम्बन्धी आशीर्वाद मांगा। चलते-चलते हम उस मोड़ पर पहुँच गये,  जहाँ से बहुत नीचे गहराई में एक तरफ़ से पार्वती घाटी में बह रही पार्वती नदी का संगम, दूसरी ओर से आ रहे तोश नाले के साथ होता है और उनकर एक बहुत बड़ा बांध निर्माणाधीन है,  इसी बांध का नाम है... "पुल्गा बांध"।
                    हम उस घाटी में जाने के लिए अभी सीढ़ियों पर उतरने लगे, कि हमे पीछे से दो व्यक्तियों ने आवाज़ दे कर पूछा,  "क्या आप फौजी हो..?" क्योंकि हम दोनों ने ही आर्मी पैंट पहन रखी थी,  हमनें कहा "नही"......तो वे सज्जन बोले कि,  अभी टेलीविज़न में आया है कि सरकार ने आम लोगों के फौजी कपड़े डालने पर प्रतिबंध लगा दिया है,  क्योंकि अभी पठानकोट बेस कैंप पर आंतकी हमला हुआ है। यह ख़बर सुन मन विचलित हुआ, कि "जाने कब, थमेंगा यह कत्लेआम"  नामुराद अंग्रेजों ने अपनी काली करतूतों और चंद जनों ने सिर्फ अपने अहम व स्वार्थ के लिए अखंड भारत को धर्म के नाम पर दो टुकड़ों में फाड़ कर...युद्ध व नफ़रत की अग्नि में झोंक दिया।
                 अपने मन की बात बताता हूँ दोस्तों,  जैसे मैं एक साधारण हिन्दुस्तानी,  पाकिस्तान से युद्ध नही चाहता....ठीक वैसे ही एक साधारण पाकिस्तानी भी हिन्दुस्तान से युद्ध नही चाहता। पर इन मौकापरस्त सियासतदानों और अलगावादियों को हम साधारण जनों की क्या कीमत....और मर रहे हैं हम दोनों ही, आज इस ओर तो कल उस ओर.......!!!
                 
                                              ......................(क्रमश:)
लो पहुंच गए, हम दोनों मणिकर्ण।

मणिकर्ण बस अड्डे पर जब मैने, इन दोनों बच्चों की फोटो खींचने के लिए कैमरा ऊपर किया... तो इन्होंने ऐसे मुँह बना कर पोज़ दिया.... और जब बरषैनी के रास्ते में, बुजुर्ग महिला ने गाड़ी से उतरते समय अपना पोता मुझे थमाया..तो उसने भी देखो वैसा ही पोज़ दिया,  वाह रे सैल्फी वाली नई पीढ़ी...!!!

" मेरा मनपसंद व्यंजन थूप्पा.... और विशाल रतन जी की मजबूरी आलू के पराँठे "

मैं मन ही मन स्वर्ग का राजा इंद्र बन बैठा......क्योंकि हिमाच्छादित चोटियाँ मुझे स्वर्ग की अप्सराऐं बन लुभानें लगी...!

यह पर्वत शिखर मुझे.... स्वर्ग की अप्सरा "मेनका" नज़र आ रहा था...!

यह स्वर्ग की अप्सरा... "उर्वशी"

यह पर्वत शिखर.... स्वर्ग की अप्सरा "रम्भा"

तभी सूर्य देव ने मुझे लताड़ा कि,  "तू एक साधारण मनुष्य है विकास,  औकात में रह.......!!!"

लो, चल दिये.... हम दोनों सनकी, खीरगंगा की ओर... 

ग्राम देव "जुगंरू देव" के मंदिर आगे खड़े विशाल रतन जी और ऊपर वाली फोटो में, पक्की सड़क यहीं पर समाप्त हो जाती है.... और यहीं से पार्वती घाटी में उतर कर खीरगंगा की ओर पैदल रास्ता जाता है... 

प्रेम ढ़ाबे, बरषैनी की वो खिड़की... जिससे बाहर का नज़ारा तो बहुत ही दिलकश था....
( अगला भाग पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें )

22 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी खीरगंगा यात्रावर्णन दुबारा पढ़ रहा हूँ, नीचे कोई टिप्पणी नहीं देख बहुत आश्चर्य हुआ। खैर आपने शुरूआत में ही थुप्पा दिखा कर बेचैन कर दिया अब रात्री भोजन संभव नही।
    हमारे यहाँ से सबसे नजदीक थुप्पा देहरादून के जोशी की दुकान पर मिल सकते है और मैं उससे 943 km दूर.. हे राम 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बस हंस कर रहा हूँ.... आपका हे राम पढ़ कर, अनुराग जी।

      हटाएं
    2. और, लोगों ने अब मुझ पर कुछ ध्यान देना शुरुकिया है, यह पोस्ट पुरानी है जब मैं ब्लॉग पर नया था।

      हटाएं
    3. प्रकृति प्रेम शब्दों और फोटो में साफ-साफ दिखाई देता है। शानदार एफर्ड सर।

      हटाएं
    4. बेहद धन्यवाद रोहित जी

      हटाएं
  2. भले ही पुरानी हो या तब नये हो, पर लेखनी की धार कहीं से भी कम नही है। अब तो और भी निखर रही है जी। साथ ही आपको हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
    हिंदी यात्रा ब्लाॅग में आपका योगदान भी अतुलनीय है।😊

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बेहद धन्यवाद अनुराग जी, हिंदी है हम वतन है हिंदुस्तान हमारा... हमारा।

      हटाएं
  3. विकास जी. अच्छा है कि आप मनुष्य हैं. मुक्ति की संभावना तो है. इंद्र को भी मनुष्य जन्म लेना पड़ेगा गर मुक्ति चाहिए तो.

    तोश, मलाना, खिरगंगा- जांकी जैसी भावना

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सोलह आने दुरूस्त बात सही जी आपने.... मुक्ति की संभावना

      हटाएं
  4. चलो एक और बात पता चली जिनकी आप सनकी भी हो क्योकि खाने के शौक़ीन तो पहले से पता है...तैयार हो गए हम गक हिस्से में आपके साथ खीर गंगा चढ़ने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह बहंुत ही सुंदर विवरण विकास नारदा जी फोटो तो एक से बढ़कर एक है।
    आपकी तरह मेरी भी एक आदत है कि साथ चलने वाले लोगों को मैं रास्ते में मिलने वाली चीजों से अवगत कराता हूं, जो चीजें अच्छी लगती है साथ वाले साथी को भी दिखाता हूं, पर कुछ लोगों को मेरी ये हरकत बच्चे जैसी लगती है और वो मेरे साथ जाना ही नहीं चाहते,

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सही है सिन्हा साहिब, हम दोनों एक ही नस्ल के है इसलिए "घुमक्कड़ नस्ल"

      हटाएं
  6. वाह। मैं भी अब पहाड़ों में जाता हूँ तो वाहन की खिड़की से मिनट दर मिनट बदलने वाले दृश्यों को देखता रहता हूँ। बहुत रोचक संस्मरन है

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही सुंदर जगह का आँखों देखा वर्णन।

    जवाब देंहटाएं
  8. क्या खूब लिखा है जितनी प्रंशसा की जाए थोड़ी है

    जवाब देंहटाएं