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गज पर्वत के शिखर से उतरते-उतरते सूर्य देव की ऊंचाई काफी बढ़ चुकी थी और उस तीखी रोशनी में नीचे की ओर के दृश्यों की सुन्दरता भी चरम सीमा पर थी....... और हम ओखराल माता मंदिर पर कुछ समय विश्राम के लिए रुक गए, अब भुख भी तो सता रही थी..... सो रक्सक में रखा फ्रुट केक, मुंगफली पकौड़ा व तले हुए काजू निकाले......चरण सिंह ने काजू देखकर कहा कि "क्या ये काजू ही है"... मैने आश्चर्य से देखा और कहा "यह काजू है भाई, मेरी पत्नी ने इन्हें तल कर मुझे दिया था"..... चरण सिंह ने कहा, "परन्तु धर्मशाला शहर में जो हलवाई की दुकान पर जो काजू मिलते है, वो तो कुछ ओर तरह के होते है"......मैं झट से समझ गया कि वे मैदे के बने काजूओं की बात कर रहे..... पहले पल मेरे मन में आया कि यह कैसा आदमी है, जिसने काजू पहली बार देखे या खाऐं हैं...... दूसरे पल अपनी ही सोची बात पर फिर से सोचते हुए मन ही मन अपने आप को कोसने लगा, कि तू मजाक बना रहा है कि, चरण सिंह ने पहली बार काजू खाए है, असली मजाक तो तू खुद है विकास...... देख तुझे राणा चरण सिंह कौशल जी तीन दिन से कैसी चीजें खिला रहे हैं, जो तूने भी जिंदगी में पहली बार ही खाई है और वो-वो अनुभव करा रहे है, जो तू सोच कर भी नही कर सकता था.......... और मैं मन ही मन अपनी मूर्खता पर शर्मिंदा हो गया......
चरण सिंह को काजू बहुत स्वादिष्ट लग रहे थे, उन्होनें मुंगफली का एक दाना भी नही खाया..... जबकि मुझे मुंगफली पकौड़ा बहुत ज्यादा भाता है..... कुछ पेट-पूजा के बाद फिर से नीचे की तरफ उतरना आरंभ कर दिया.... जिस प्रकार जाते समय... चढाई ही चढाई.... उस प्रकार वापस आते हुए... उतराई ही उतराई...... मैं जिम में जितना मरज़ी अपनी टांगों की मांसपेशीयों को पर्वतारोहण के लिए अनुकुल बना लूँ..... चढाई तो बड़े आराम से चढ़ता हूँ, पर उतराई पर सब मांसपेशिआँ जबाब देने लग जाती है..... कहने का तात्पर्य यह है कि चढाई से भी कठिन उतराई होती है दोस्तों.....उन सीधी उतराईयों का असर मेरी टांगों को कपकपा रहा था.......
आधी उतराई उतरने के बाद नीचे की तरफ से दो आदमी ऊपर की ओर चढ़ते हुए नजर आए, जिन्हें देखकर चरण सिंह ने कहा, यह तो मेरा छोटा भाई है....गांव से आया है ऊपर राशन आदि लेकर जा रहे हैं..... पास आने पर उन्होंने सब से पहले हमसे पानी की ही मांग की, क्योंकि बरकोट के बाद (जैसे मैं आपको पहले भी बता चुका हूँ ) कहीं पानी ही नही है, उन लोगों ने पानी पिया औरर हमने साथ कुछ समय बैठकर बातें की..................... जैसे ही हम नीचे की ओर उतर रहे थे, उतराई भी बहुत कठिन होती जा रही थी, वापसी पर फिर दीवारों जैसी चट्टानें आ गई, जिन पर मैं पहले बड़ी मुशक्कत से चढ़ा था, अब उतनी ही मुशक्कत उनसे वापस उतरने में हो रही थी......नीचे दिख रहा पहाडों से घिरा "बकरोट" व "बग्गा" सोने के झूमकें में लगे नग से चमक रहे थे.......और घाटी में ग्लेशियर को फाड़ कर निकली गज नदी की बुलबुलाती दुधिया धारा भी उस प्राकृतिक झूमकें में नक्काशी का काम कर रही थी........
बकरोट इस यात्रा की सबसे खूबसूरत जगह हैं, मैं उस जगह बर्फ के गोले बना....हवा में उछलने लगा, क्योंकि मन बहुत प्रसन्न था अपनी सफलता पर, कि मैं लमडल देख आया हूँ.....उस जगह की सुंदरता इतनी कि मैं बार-बार पीछे मुड़-मुड़ कर देखता जा रहा था, कि सामने "बग्गा" आ गया और गज नदी को एक जगह से पार किया, रैलधार पहाड पर जाने के लिए यहां चरण सिंह का डेरा है......... वही रास्ते से चरण सिंह लिंगडू (पहाडी जंगली सब्जी) तोड़ने लगे और मुझे बोले कि, मैं अब डेरा की तरफ आप से पहले जा कर आपके लिए खाना बनाता हूँ.... आप धीरे-धीरे आ जाओ..... मेरे हां में सिर हिलाते ही चरण सिंह मेरी आँखों से एक दम से ही ओझल हो गए..... और मैं थकी सी चाल चलता रहा और एक जगह बकरियाँ देख कर ठहर गया और हैरानी की बात वह बकरियाँ भी मेरे पास चल कर आ गई जैसे मेरी कोई जानकार हो..........
खैर मैं अपनी धीमी चाल चलता-चलता आखिर डेरे के समीप पहुंच गया, तो दूर से देखा कि मेरा छोटा भाई ऋषभ नारदा व चरण सिंह के पारिवारिक सदस्य बाहर आँगन में बैठ मेरी राह देख रहे थे..... जैसे ही मैं उन्हें नजर आया, तो उन सब के चहरों पर मुस्कान थी और ऋषभ ने आगे बढ़ कर मेरे चरण स्पर्श किया व मेरी खेरिअत जानी.... व उन सब लोगों से मिलवाया, जो अब ऋषभ के इन दो दिनों में अच्छे जानकार बन चुके थे...... मैने ऋषभ के पैर की चोट का मुआइना किया तो पाया कि, सूजन अब बहुत कम हो चुकी थी..... और तभी झोपड़ी से चरण सिंह की आवाज़ आई, "भाई जी, हाथ-मुंह धोकर अंदर आ जाओ... "खाना तैयार है"..........खाने में लिंगडू की सब्जी, मक्खन, लस्सी और कनक की रोटी.... मेरा यह लिंगडू की सब्जी खाने का दूसरा अवसर था..... पहला अवसर मुझे हिमाचल प्रदेश के एक खूबसूरत हिल स्टेशन "बरोट" में लिंगडू खाने का मिला था, जब मैने सड़क किनारे बेच रहे दो छोटे-छोटे भाई-बहन से 20रुपये का लिंगडू खरीद कर बरोट में रस्टोरेंट पर उस लिंगडू की सब्जी बनवा कर खुद व अपने परिवार को पहली बार चखाई थी.....पर यह चरण सिंह द्वारा तैयार की हुई लिंगडू की सब्जी उस रेस्टोरेन्ट के माहिर रसोईयों से कई गुणा स्वादिष्ट थी... क्योंकि इस सब्जी में अपनेपन का एक अद्भुत मसाला डाला गया था....... मुंह में पहला कोर रखते ही मेरे ज़ुबान से एक ही शब्द निकला "वाह"..........तभी चरण सिंह बोले, लिंगडू का असली स्वाद तो मक्की की रोटी के साथ आयेगा,भाई जी........बस फिर क्या था, मेरे देखते ही देखते चरण सिंह ने "सफेद मक्की " के आटे की रोटी बना कर परोस दी, जो मैने अपने जीवन में पहली बार खाई व मक्खन और लिंगडू का जो मुंह में स्वाद धुला..... उस स्वाद की स्मृति अभी भी मेरे स्मरण में है....... और चरण सिंह की मेहमान नवाजी तो तमाम उमर ही स्मरणीय है मेरे लिए और आप के लिए भी.....
.........................(क्रमशः)
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गज पर्वत से उतरने के कुछ दृश्य... |
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सुबह खिली-खिली धूप में हर नज़ारा बिल्कुल स्पष्ट दिखाई दे रहा था... और ओखराल माता मंदिर पर पहुंच कर किया कुछ नाश्ता... |
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रास्ते में मिले चरण सिंह के छोटे भाई और सीधी खड़ी दीवारों जैसी चट्टानों से वापस उतरना.... |
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बकरोट व बग्गा कभी ना भूलने वाले अति सुन्दर नज़ारे.... |
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बकरोट ग्लेशियर पर खुशी में बर्फ के गोले हवा में हवा में उछालता मैं... और गज नदी के नीचे की ओर दिखाई देता धुंधला सा बग्गा.... |
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लिंगडू (पहाड़ी सब्जी) तोड़ते हुए चरण सिंह.... |
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गज नदी को पार करने का दृश्य, बकरियाँ मुझ से जानपहचान निकालती हुई और चरण सिंह के पारिवारिक सदस्य मेरी राह देख रहे थे... |
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रैलधार पहाड पर चरण सिंह के पारिवारिक डेरे...और मुझे दूर से ही देख मुस्कराहट बखेरते सब लोग.. |
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लिंगडू, मक्खन, सफेद मक्की की रोटी व लस्सी.... क्या कहने, बस चित्र ही सब कुछ बयान कर रहे हैं...जी और मक्की की सफेद रोटी बनाते हुए चरण सिंह... ( अगला भाग पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें ) |
शानदार
जवाब देंहटाएंजी बेहद आभार।
हटाएंभाई बधाई हो lamdal झील देख आने की और एक शानदार अपने अंत की और...
जवाब देंहटाएंबेहद धन्यवाद प्रतीक जी।
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