रविवार, 24 सितंबर 2017

भाग-22 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर....Shrikhand Mahadev yatra(5227mt)

 भाग-22 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर.....
                               " यात्रा के अनुभवों में तड़का,  चट्टान का गिरना...!"

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                                  22जुलाई 2016 ......सुबह सवा पाँच बजे ही एक दम से उजाला हो गया और मौसम भी साफ था,  मैं और विशाल रतन जी भीमद्वारी से अपने पथप्रदर्शक "केवल" के अंग-संग पार्वती बाग से नयन सरोवर की ओर चढ़ रहे थे.... हमारे आगे-पीछे हर कोई अपनी लय में मगन चल रहा था,  जितनी जिस की आस्था उतना ही वो मगन चल रहा था जैसे एक नवयुवक नंगे पैर चढ़ रहा था.......मेरी निगाहें तो हमेशा ही पर्वतों के इर्दगिर्द ही घूमती रहती है,  सो कभी पीछे मुड़ दिख रही पर्वतों की परतों को देख लेता, क्योंकि मुझे इंतजार था उन पर पड़ने वाली सूर्योदय की स्वर्णिम किरणों का.... ठीक आधे घंटे बाद वो सोने सी पहली किरण भी दिखाई दे गई पर्वत शिखर पर...
                  रास्ते में भाँति-भाँति के हसीन पुष्प मुझे देखकर ऐसे इतरा रहे थे कि जैसे उन्हें पता हो कि वे बहुत हसीन है,  रास्ते के एक पत्थर पर बैठ हम कुछ साँस लेने रुक गए,  तो एक नवविवाहित पहाड़ी जोड़ा ऊपर को चढ़ता हुआ हमारे पास से गुज़रा....मैं नवविवाहिता के गले में सोने का हार देख, हैरान हो उन दम्पति से बोला यदि आप ऐसे ही इस सोने के हार को गले में लटका,  इन पहाडों से उतर हमारे मैदानों में आ जाओ...तो निश्चित है कि आप के गले से यह हार चोर-लुटेरों द्वारा लूट लिया जाएगा....!         मेरे मुख से ऐसी बात सुन भोली-भाली नवविवाहिता ने जल्दी से अपना हार कपड़ों के अंदर कर लिया..... दोस्तों,  उस नवविवाहिता के गले में जेवर का अर्थ है कि हिमाचल के पहाडों में हमारे मैदानों की लुटेरी हवा नही पहुँच पाई है,  मेरे सोहने पंजाब में तो जब से नशाखोरी बढ़ गई है.. हम सब के गहने बैंकों के लॉकरों में पड़े सड़ रहे हैं....!!
                    इस बात से सम्बन्धित एक और अनुभव आप संग बांटता हूँ कि दो साल पहले मैं सपरिवार तमिलनाडु यात्रा के दौरान मदुरई में आकाश मार्ग से उतरा,  अगले दिन मदुरई घूम कर बस में बैठ रामेश्वरम् के लिए चल दिया... तो मेरी आगे वाली सीट पर एक व्यक्ति 6मास के शिशु को उछाल-उछाल कर हंसा रहा था,  उस छोटे से शिशु के गले में सोने की चेन देखकर अपनी पत्नी से बोला, "देखो कैसे बेवकूफ़ लोग हैं इतने छोटे से बच्चे के गले में सोने की कीमती चेन... इस चेन की वजह से ही कोई इस बच्चे को उठा कर ना ले जाए...!! "      
                    तभी मेरी श्रीमती जी ने कहा जरा उस व्यक्ति की अंगुलियाँ भी तो देखो जो इस बच्चे को थाम रही थी,  देखा तो उन अंगुलियों में तीन सोने की अंगुठियाँ सज रही थी.... ऐन वक्त पर परिचालक टिकट काटने आया तो,  उसके हाथ में एक सोने की अंगूठी और कलाई में सोने का बाजूबंद था... फिर नज़र झट से घुमाई बस चालक की ओर तो चालक के सिर के सामने लगे पीछे देखने वाले शीशे में उसके गले में पड़ी सोने की जंजीर की चमक थी... मैने झट से सारी बस ही देख मारी,  सब के पास कुछ ना कुछ सोने का आभूषण था... सच में मुझे ऐसे प्रतीत हुआ जैसे मैं सतयुग में आ गया हूँ और श्रीमती जी से हंस कर बोला, " यदि मुझे पहले पता होता कि यहाँ ऐसा माहौल है,  तो हम भी अपने ज़ेवर बैंक से उठा कर यहीं ले आते... चार दिन पहनतें तो सही, यदि पंजाब में इन्हें पहन कर चलूँ तो हर कोई घूरता है...!!! "          और मेरी पत्नी भी हंस दी मेरी इन मूर्ख सी बातों पर।
                      वह नवविवाहित दम्पति जोड़ा आगे बढ़ गया और हम उनके पीछे-पीछे......कि एकाएक बहुत तीव्र ध्वनि में गर्जना हुई जैसे बादल गरज रहे हो,  मैने आसमान की ओर सिर उठाया तो कहीं भी गरजतें मेघ नही दिखाई पड़े.... और दूसरे क्षण एक आवाज़ सुनाई दी, "भागों, ऊपर से एक चट्टान गिर रही है "      आनन-फानन में ऊपर देखा तो एक बहुत बड़ी चट्टान धूल के गुब्बार में से पर्वत की ऊँचाई की ओर से दडादड आवाज़ करती हुई हमारी ओर गिरती चली आ रही है,  कहाँ तो इतनी ऊँचाई पर एक-एक कदम कछुए सी चाल के माफिक रख चल रहे थे और कहाँ डर की एक सिहरन उस कछुए से बने हमारे शरीर में दौड़ कर हमे चीता बना गई..... सब ने ऐसी रफ्तार पकडी कि जैसे खो-खो खेल रहे हो,  सुरक्षित जगह पर पहुँच.. गिर रही उस चट्टान की मैं वीडियो बनाने लगा, चट्टान गुज़रने के बाद देखा कि हड़बराहट में मैं कैमरे का रिकार्डिंग बटन ही दबाना भूल गया..... विशाल जी मुझ से बोले, " लो विकास जी, इस गिरती चट्टान ने हमारी श्री खंड यात्रा के अनुभवों में तड़का लगा दिया...! "  मैं बोला, " हां जी,  ये गिरती चट्टान देखने का भीषण मंजर भी हमनें जीवन में पहली बार ही देखा है,  जबरदस्त.... यदि कोई इस गिरती हुई चट्टान के रास्ते में आ जाए,  सोच कर ही शरीर में झुनझुनी सी हो रही है...! "             और,  हम सब ने चुप्पी तोड़ी शिव के एक जयकारे से.....सबसे पीछे चल रहे एक लड़के को जिसके बहुत पास से वो चट्टान गुज़री,  एक हल्का सा पत्थर आ लगा,  पल भर पहले चित्कार रहा पर्वत.. पल भर बाद ही ऐसा खामोश हो गया जैसे उसे आराम आ गया हो।
                        आधे घंटे की चढ़ाई के बाद एक मोड़ मुड़ देखा कि कुछ दूर कई सारे लोग जमा थे... वह नयन सरोवर या नैनसर झील थी और हमारे चेहरे भी उस जमी हुई सुंदर झील को देख खिल गए,  क्योंकि मैं अपनी स्वप्न यात्रा में साक्षात जो पहुँच रहा था.... हमारी खुशी देख केवल बोला,  "इस बार तो बर्फ ही बहुत कम है,  पार्वती बाग से नयन सरोवर के मध्य दो-तीन ग्लेशियर आते हैं....जो इस बार बहुत पहले ही पिघल गए, मैने हंसते हुए केवल से कहा, " जो भी मेरे ये नयन देख रहे हैं, मन के मयूर को उकसा रहे है कि तू नाच रे विकास...! "
                         गई पर्वत और जगत पर्वत के बीच में बने नयन सरोवर(4255मीटर) पर हम सुबह पौने सात बजे पहुँच गए और उस समय वहाँ का तामपान 7डिग्री था,  तीन तरफ से पर्वतों में घिरी नयन या आँख के आकार की यह शांत झील,  प्रचण्ड प्रवाह में बह रही कुपरन नदी का उद्गम स्थल है जो हमे पदयात्रा के शुरुआत में मिली थी.... इस झील के जल को गंगा जल के समान ही पवित्र माना जाता है,  पुरातन रीति-रिवाज़ के अनुसार तीर्थ यात्री नयन सरोवर में स्नान कर श्री खंड की ओर प्रस्थान करते है.... परन्तु मैं कहाँ का तीर्थ यात्री और आधी बर्फ व आधे पानी में भला कौन नहायें वो 7डिग्री तापमान में....!
                          दोस्तों यहाँ भी "इतिहास के सबसे बड़े घुमक्कड़ पांडव बंधुओं " की महिमा बिखेरी है कि इस सुंदर झील का तटबंधन भी उन्होंने ही किया,  जिससे जल एक्त्र हो सके..... चलो जिस ने भी किया हो,  पर यह स्थान बेहद मनोरम है.... मैं विशाल जी से बोला, " यदि मेरे बस में हो तो मैं इस झील की सुंदरता को देख इस का नाम नयन सरोवर से बदल "मृगनयन सरोवर " रख दूँ....!!! "      और विशाल जी बस हर बार की तरह हंस कर मेरी फिज़ूल की बातों का मन रख लेते हैं।
                          हम सबने झील के तटबंधन की दीवार पर बने माँ पार्वती के मंदिर पर माथा टेका और केवल सरोवर की ओर बढ़ गया बोतलों में पानी भरने के लिए..... क्योंकि इस स्थान के बाद श्री खंड महादेव शिला तक कहीं भी जल उपलब्ध नही है और मैं भी चल दिया केवल के पीछे-पीछे.... नयन सरोवर या नैनसर से मैने और केवल ने पंचतरणी स्नान की विधि अपनातें हुए जल के चंद छींटें अपने ऊपर फैंक लिये,  पानी भर कर सरोवर के किनारे ऊँची जगह पर बैठ गए और मैने अपने पसंदीदा बिस्कुट खोल लिये,  धीरे-धीरे कर मैने और विशाल जी ने एक-एक लीटर बर्फ सा पानी जबरदस्ती पीया....  क्योंकि अब हमे उस ऊँचाई की ओर बढ़ना था जो भी वनस्पतिहीन है,  सो शरीर में आक्सीजन की कमी को पानी में मिली हुई आक्सीजन पूरी करे.........

                                                                            .............................(क्रमश:) 
पार्वती बाग से आगे सवा पाँच बजे ही उजाला हो गया.... 

पार्वती बाग से आगे की चढ़ाई.... 

और, सोने सी पहली किरण पड़ी पर्वत शिखर पर.... 

राह में आए हसीन फूल... 

मुझे देख ऐसे इतरा रहे थे फूल,  जैसे उन्हें मालूम हो कि वे बहुत हसीन हैं.....

जितनी जिस की श्रद्धा,  उतना ही वो मगन चल रहा था..... जैसे यह नवयुवक नंगे पैर श्री खंड जा रहा था.. 

यदि आप इन पहाडों से उतर कर हमारे मैदानों में आ जाओ,  तो निश्चित ही आपके गले में पड़ा सोने का हार लूट लिया जाएगा.... 

हमारे आगे चल रहे पदयात्री..... 

पार्वती बाग से आगे..... 

वो स्थान जहाँ से बहुत बड़ी चट्टान ऊपर से नीचे गिरी.... 

हम सब तो भाग कर बच लिये,  परन्तु इस लड़के को एक छोटा सा पत्थर आ लगा.... 

ये सब पत्थर ऊपर से तो नीचे गिरे है कभी ना कभी.... भगवान बचाये इस विपदा से... 

राह में आया एक मरणासन्न ग्लेशियर... 

चढ़ जा चढ़ाईआं.......भगतां 

देखो, कितने खुश हम दोनों,  नयन सरोवर पहुँच कर.. 

नयन सरोवर पर कई यात्री जमा थे.....

नयन सरोवर के तटबंधन पर माँ पार्वती का मंदिर....

और, मैं भी केवल के पीछे-पीछे पानी भरने नयन सरोवर की ओर चल दिया.... 

नयन सरोवर के किनारे खड़ा केवल.... 

जल भरते हुए..... 

नयन सरोवर और मैं..... 

एक तीर्थ यात्री,  नयन सरोवर से सूर्य को जल देते हुए... 

इस ऊँची जगह पर हम दोनों बैठ गए,  जहाँ से नयन सरोवर का सम्पूर्ण दृश्य दिखता था.... 

नैनसर या नयन सरोवर का तटबंधन..... 

तटबंधन पर स्थापित माँ पार्वती मंदिर पर माथा टेक, यात्री रास्ते पर बढ़ "गई पर्वत " की ओर चढ़ते है.... 

मेरे प्रिय बिस्कुट,  जिन्हें मैं चार दिन से साथ ढो रहा था.... 

मैने और विशाल जी ने बिस्कुटों के साथ एक-एक लीटर बर्फ सा पानी भी जबरदस्ती पीया,  ताकि शरीर में हो रही आक्सीजन की कमी को पानी में मिली आक्सीजन पूरी करे.... 

ऐसी चार चोटियाँ हमे पार कर श्री खंड पहुँचाना था,  गई पर्वत के बाद बसार गई पर्वत पर चढ़ रहे पदयात्री.....
यदि आप चित्र को बड़ा कर देखे,  तो आप चित्र के दाये हाथ पदयात्रियों को देख सकते हैं.....

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रविवार, 17 सितंबर 2017

भाग-21 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर.... Shrikhand Mahadev yatra(5227mt)

भाग-21 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर.....
                                    "मन में दबी आस्तिकता का, दिमाग की नास्तिकता पर भारी पड़ना "

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                                 23जुलाई, 2016.... मैं और मेरे पर्वतारोही संगी विशाल रतन जी श्री खंड महादेव कैलाश यात्रा के आखिरी पड़ाव "भीमद्वारी" (3630मीटर) में एक टैंट में कई सारे कम्बलों के बीच दुबके पड़े सो रहे थे कि एक चिरपरिचित तीव्र संगीतमय ध्वनि ने हमारी निद्रा तोड़ी,  वो मेरे मोबाइल पर लगा 2बजे का अलार्म था.... घड़ी पर उस समय टैंट के अंदर का तापमान 10डिग्री था,  और अब समय आ चला था...अपने सपने को पूर्ण करने के लिए भीमद्वारी से अंतिम चढ़ाई चढ़ने का, सो उठ कर अपनी कमर कसनी आरंभ कर दी और हमारा पथप्रदर्शक "केवल" भी अपने टैंट से बाहर से निकल आया...
                    उस समय मौसम में ठंडक तो थी पर हवा भी शायद सारा दिन चल-चल कर अब सो चुकी थी और आसमान में चन्द्रदेव मस्कुरा रहे थे...... करीब आधे घंटे भर में हम तैयार हो नवनीत की रसोई में पहुँचें तो नवनीत रात ढाई बजे हमारे लिए परौठें बना रहा था, जो हमे पैक कर साथ दिये जाने वाले थे...... नवनीत और केवल ने कहा कि हम ऐसे ही हर रोज आधी रात को उठ कर परौठें बना कर हमारे पास ठहरे यात्रियों को देते है कि वो रास्ते में अपनी भूख मिटा सकें..... मैने हंसते हुए विशाल जी से कहा कि यात्रियों की यात्रा का सारा पुण्य तो नवनीत जैसे मददगार ही कमा जाते हैं,  जिनकी वजह से इंसानी बस्ती से इतनी दूर हम जैसे यात्रियों को घर जैसी अनुभूति होती है......
                      दोस्तों,  एक बात और बताना चाहता हूँ कि 15जुलाई से 25जुलाई हर साल यात्रा के दौरान श्री खंड सेवा दल की तरफ से यात्रापथ के आखिरी पड़ाव भीमद्वारी में भी लंगर की व्यवस्था होती है,  जहाँ यात्री निशुल्क भोजन व रात्रि विश्राम भी कर सकता है.....
                      तीन बजने में अभी दस मिनट बाकी थे,  शिव भोले का जयकारा लगा अब हम तीनों अंधेरे में पगडंडी पर "प्रकाश गोले"  डाल कर उनका पीछा कर रहे थे.....आँखों में अंधेरा,  नाक में ठंडक की खुशबू और कानों में गिरते झरनों की मधुर ध्वनि सुनाई दे रही थी......आधा घंटा चलते रहने पर पार्वती झरने की मधुर ध्वनि अब शोर में बदल चुकी थी और अब तीनों अकेले नही थे पगडंडी पर हमारे आगे-पीछे अब कई आवाजे़ भी प्रकाश गोलों का पीछा करती हुई आगे बढ़ रही थी,  हमारी बैटरियों के प्रकाश गोले हमे ऊँचाई से गिर रहे पार्वती झरने के दर्शन करवाने में असमर्थ साबित हो चुके थे..... और अब सीधी चढ़ाई हमारी साँसें को उखाड़ रही थी,  वह पार्वती बाग की चढ़ाई थी.... उस चढ़ाई में हमारे पीछे कई सारे व्यक्तियों का दल चल रहा था,  जिसका नेतृत्व दो व्यक्ति कर रहे थे जिन्होंने देसी ढंग से अपनी टोपियों के बीच टार्चें फंसा उन्हें हेड लाइट का रुप दे रखा था... वे दोनों पेशावर जान पड़ते थे जो ग्रुपों को इक्ट्ठा ला कर श्री खंड ले जाते होगें..... उन दोनों में से एक व्यक्ति बार-बार ग्रुप को हिदायतें देता जा रहा था कि ऐसे करो,  वैसे करो.. अब आप सब इतनी ऊँचाई पर पहुँच चुके हो कि आपके व्यवहार में चिड़चिड़ापन आ जाएगा,  आपको गुस्सा आएगा... पार्वती बाग पहुँच कर आप सब को दो-दो गोली खानी है डिसप्रिन की, याद रखना...!!!
                        मैने उस व्यक्ति की बात सुन केवल और विशाल जी को रोक लिया कि इन महाशय और इनके अनुयायियों को आगे जाने दें, इनकी बातें सुन कर हम कहीं पथभ्रष्ट ना हो जाए...हम भी चिड़चड़े हो कर गुस्से में ना आ जाए और हमे भी दो गोली डिसप्रिन की इस ठंडे जंगल में खोजनी पड़े..... और हम उस ग्रुप को अपने आगे निकाल मस्ती की चाल चलने लगे.....
                         डेढ़ घंटे की कठिन चढ़ाई के बाद हम पार्वती बाग के पास पहुँचें तो केवल ने हमे कहा, " वो देखो भैया, ऊपर श्री खंड महादेव शिला "     और उस अंधेरे में हमें दूर पहाड के शिखर पर  श्री खंड शिला के दर्शन हुए,  पर वो दर्शन मात्र अनुमानित ही थे क्योंकि अंधेरे में सिर्फ हमें आकाश के हल्के रंग सी पृष्टभूमि पर श्री खंड शिला का गहरा रंग परछाई सा नजर आ रहा था..... और हम दोनों ने वहीं रुक कर श्री खंड भगवान को नमन किया, कुछ समय श्री खंड शिला को निहारतें रहे और फिर ऊपर की ओर चढ़ने लगे......
                           रास्ते पर कुछ टैंट आए मतलब कि पार्वती बाग आ चुका था.... केवल ने बताया कि यहाँ रेस्कयू वालों के टैंट जो यात्रा के समय तक रहता है और कुछ टैंट दुकानदारों के भी है,  कुछ वर्ष पहले तक तो भीमद्वारी की बजाय पार्वती बाग में ज्यादा टैंट लगे होते थे... परन्तु अब सरकार ने इन्हें सीमित कर दिया है,  क्योंकि इस से पार्वती बाग की प्राकृतिक सुंदरता नष्ट हो रही थी,  अभी तो अंधेरा है... जब हम श्री खंड दर्शन कर वापस आऐंगे तो देखना क्या, देखते ही रह जाओगें भैया पार्वती बाग की सुंदरता को... मान्यता है कि इस स्थल पर माता पार्वती का द्वारा लगाया बग़ीचा है,  जिसमें फूलों की कई सारी किस्में पाई जाती है......
                           भीमद्वारी से 2घंटे की लगातार चलते रहने के बाद हमने पार्वती बाग में बने माँ पार्वती के छोटे से मंदिर पर पहुँच नमन किया.... और अब "नयन सरोवर" की ओर उस रास्ते पर चढ़ रहे थे जिसमें पत्थर-चट्टानें ही थी,  आसमान कालेपन से नीलेपन में आने लग पड़ा था,  जो पौ फूटनें का संकेत दे रहा था.......
                           चलते-चलते राह किनारे उगे उस फूल को देख मेरी बांछें खिल गई,  क्योंकि वो लम्हा जीवन में पहली बार साक्षात "ब्रह्मकमल पुष्प " दर्शन का था,  कुछ ऐसा ही हाल विशाल जी का भी था.... ब्रह्मकमल पुष्प बेहद पवित्र पुष्प माना जाता है जो सामान्यतया समुद्र तट से करीब 4000मीटर की ऊँचाई पर उगता है,  वर्ष में एक बार जुलाई-अगस्त के महीने में ब्रह्मकमल खिलता है.... जैसे संसार में प्रत्येक पौधे-वृक्ष के फूल दिन के समय सूर्य की रोशनी में खिलतें हैं,  केवल ब्रह्मकमल ही ऐसा फूल है जो रात के समय खिलता है और मान्यता है कि ब्रह्मकमल को खिलते देखना अति सौभाग्य की बात है और इस दिव्य दर्शन करने वाले व्यक्ति के जीवन में शुभ ही शुभ होने वाला है.... जैसे-जैसे रात गुज़रती है इस दिव्य पुष्प की पंखूड़ियाँ भी बंद हो जाती है.....
                            परन्तु दोस्तों,  मैने ब्रह्मकमल को छुआ तक नही...बस खुशी से उसे दूर से देखता रहा,  ठीक वैसे ही जैसे हम पालने में पड़े हाथ-पाँव मार रहे नन्हें से शिशु को मंत्रमुग्ध हो देखते रहते है...!!!
                             और,  वहीं एक जगह पत्थर पर भी लिखा था कि फूल तोड़ने मना है...... अभी पिछले महीने ही "किन्नर कैलाश " यात्रा कर आया हूँ,  इस यात्रा के दौरान मुझे तीन स्थानीय लड़के मिले थे... जो किन्नर कैलाश शिला के दर्शन कर वापस आ रहे थे,  उनके हाथों में बहुत सारे ब्रह्मकमल थे जो वे पर्वत की ऊँचाइयों से तोड़ कर ला रहे थे,  मेरे मन की चंचलता भी जाग उठी,  मैने जब उन ब्रह्मकमलों के गुलदस्तों को अपने हाथों में पकड़ एक यादगारी चित्र खिंचवाया....यकीन मानना मित्रों,  इन पुष्पों से आ रही सुगन्ध ने मुझे अलौकिकता का अनुभव करवाया और वह दिव्य सुगन्ध बहुत समय तक मुझे मेरे पास से आती रही......
                              सवा पाँच बजे ही एक दम से प्रकाश होने लगा और पीछे मुड़ कर देखा तो घाटी में जैसे प्रकृति ने किसान बन ब्रह्मकमलों की खेती कर रखी हो,  बहुत अद्भुत दृश्य था इतने सारे ब्रह्मकमलों को एक साथ देखना.... ब्रह्मकमल देखने के पश्चात एकाएक मुझे जाने क्या होने लगा,  कौन सा भाव मुझ नास्तिक की आँखों में पानी भर गया.. शायद मेरे मन में दबी हुई आस्तिकता उभर कर मेरे दिमाग की नास्तिकता पर भारी पड़ रही थी और मैं जोर-जोर से जय शिव भोले चिल्लाने लगा.................... और फिर एकाएक शांत हो पुन: उन पत्थरों की ओर बढ़ने लगा जिस पर पीला रंग कर आगे बढ़ते रहने का संकेत दिया हुआ था।

                                                     .......................................(क्रमश:)
रात 2बजे अलार्म बजा,  और उठ कर घड़ी में देखा कि उस समय टैंट के अंदर का तापमान 10डिग्री था... 

और, रात ढाई बजे देखा तो नवनीत हमारे लिए परौठे बना रहा था... 

लो,  जी मैं तो तैयार हो गया..... 

भीमद्वारी से चलने के समय खींचा चित्र..... और हमारा पथप्रदर्शक केवल

उस समय शायद हवा सारा दिन चल-चल कर सो गई थी..... और आसमान में चंद्रदेव मस्कुरा रहे थे 

हमने अपने पीछे चल रहे एक दल को आगे निकाल दिया.....
आसमान का रंग अब कालेपन से नीलेपन में बदला शुरु हो रहा था.... 

पार्वती बाग से श्री खंड महादेव शिला के दूरदर्शन......


उस अंधेरे में चलते हुए..... बस चाँद ही सबसे खूबसूरत दिख रहा था,  दोस्तों 

पार्वती बाग पहुँच.... माता पार्वती मंदिर पर नमन 

चाँद की चांदनी में माता पार्वती का मंदिर.... 

पार्वती बाग से रास्ता अब पत्थरों-चट्टानों वाला शुरु हो गया.... 

सामने दिख रहा "बसार गई पर्वत" जिसपर चढ़ कर हमे श्री खंड महादेव शिला की ओर बढ़ना था... और पत्थर पर बनाई किसी अभिलाषी की भगवान शिव से नया घर प्राप्त करने की मनोकामना.... 

ब्रह्मकमल........वो दिव्य पुष्प जो रात में ही खिलता है 

ब्रह्मकमल और चाँद.... 

यह अद्भुत दृश्य देख ऐसा आभास हुआ,  कि प्रकृति ने जैसे किसान बन इन ब्रह्मकमलों की खेती कर रखी हो... 

ब्रह्मकमल देखने के उपरांत, नाजाने कौन सा भाव मुझे नास्तिक की आँखों में पानी भर गया...
शायद मेरे मन में दबी आस्तिकता,  दिमाग की नास्तिकता पर भारी पड़ रही थी और मैं जय शिव भोले चिल्लाने लगा...!! 

फिर एकाएक शांत हो इन पीले रंग से रंगे पत्थरों की ओर बढ़ने लगा, जिनपर आगे बढ़ते रहने का संकेत था...

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(1) " चलो चलते हैं, सर्दियों में खीरगंगा " यात्रा वृतांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।
(2) " पैदल यात्रा लमडल झील वाय गज पास " यात्रा वृतांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।
(3) करेरी झील " मेरे पर्वतारोही बनने की कथा " यात्रा वृतांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।

                

शनिवार, 9 सितंबर 2017

भाग-20 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर....Shrikhand Mahadev yatra(5227mt)

भाग-20 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर से.....
                                        " मौसम में ठंडक, पर जज़्बातों में गर्मी..! "

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                                         श्री खंड महादेव यात्रा के अंतिम पड़ाव "भीमद्वारी" में..... मैं और विशाल रतन जी टैंट में बैठे थे कि टैंट मालिक नवनीत ने आ कर कहा कि भैया रात की रोटी यहीं टैंट में ले आऊँ.....तो मैं झट से बोला, " नही भाई,  हम तो आपकी रसोई में जलते हुए चूल्हे के आगे बैठ कर ही खाना खायेंगे....ठीक वैसे, जैसे मैं बचपन में सर्दियों के दिनों में अपने घर में अक्सर खाता था,  मेरी बात सुन विशाल जी उत्साहित हो गए....!!
                         और,  हम दोनों रसोई में पहुँच चूल्हे के आगे बैठ आग सेंकने लगे,  उस वक्त और उस ठण्डी जगह में सबसे प्यारी चीज हमें आग ही तो लग रही थी दोस्तों.... जैसे ही हमारे आगे खाना परोसा गया, क्या कहूँ दोस्तों... गर्मागर्म व ताज़े बने भोजन से जो भाप उठ रही थी,  उस भाप की भीनी-भीनी सुगन्ध ने हाथों को मजबूर कर दिया कि झट से थाली उठा ले विकास नारदा...!!
                          माँह-चनें की काली दाल और चावल.... बेहद ही स्वादिष्ट,  फिर उसी थाली में गर्मागर्म राजमाँह व चावल के तो क्या कहने,  एक से एक बढ़ कर स्वाद की लहरें बह रही थी.... यहाँ तक कि उस समय परोसा गया पानी भी बहुत मीठा लग रहा था,  क्योंकि यदि भोजन खिलानें वाले की नीयत में खुशदिली हो तो भोजन खुद व खुद स्वादिष्ट बन जाता है.... ठीक इसी प्रकार का खुशदिल रवैय्या नवनीत का था,  वह और उसकी बुआ का लड़का " केवल " हमारी खूब मेहमान नवाज़ी कर रहे थे,  और यह "केवल " हमारी शेष बची श्री खंड यात्रा में कल सुबह को गाइड बनने वाला था....
                          तभी रसोई के अंदर एक नेपाली सज्जन आ हमारे सामने बैठ गए,  नवनीत ने उन्हें भी भोजन परोसा... मैने नवनीत से पूछ ही लिया कि यह कौन है, तो नवनीत ने कहा, " इनका नाम भीम बहादुर है,  आज नीचे से हमारे लिए 35किलो आटा उठा कर लाये हैं... सुबह 6बजे हमारे घर से आटा उठा कर शाम साढे सात बजे हमारे पास आ पहुँचें है...! "           हमारे लिए यह बात बिल्कुल अविश्वसनीय थी कि 55साल का अधेड़ आदमी 35किलो वजन उठा एक दिन में ही उस रास्ते को चढ़ आया,  जिसे हम ढाई दिन में चढ़ कर आ रहे है.... भीम बहादुर के इस काम के मेहनताना पूछने पर नवनीत ने कहा कि पूरे श्री खंड मार्ग पर जगह- जगह सामान उठा कर पहुँचने वाले कुलियों का मेहनताना तय है,  यहाँ भीमद्वारी में 55रुपये प्रति किलो के सामान नीचे से लाया जा रहा है.....मैं झट से बोल पड़ा, " तो 25रुपये किलो का आटा यहाँ तक पहुँचतें-पहुँचतें 80रुपये किलो पड़ जाता है...!! "
                           नवनीत ने कहा, " जी हां,  एक गैस का सिलेंडर नीचे से लाने और वापस ले जाने में 500रुपये के सिलेंडर की कीमत 5000रुपये हो जाती है... और इतनी ऊँचाई पर जलावन के लिए लकड़ी का प्रबंध करना भी बेहद ख़र्चीला व कठिन कार्य है...! "        
                            मैने विशाल जी से कहा, " नवनीत की बात सुन कर...मुझे अब प्रति व्यक्ति भरपेट एक समय के भोजन का 120रुपये लेना ज्यादा नही लग रहा,  क्योंकि इतनी ऊँचाई पर जहाँ चीजों का पहुँच-मूल्य पांच से दस गुना तक पहुँच जाता है... इस हिसाब से हम यात्रियों को दी जा रही रहने-खाने की सुविधा तो बिल्कुल जायज़ मूल्यों पर है..... परन्तु मैने अभी पिछले महीने ही अपने परिवार संग कश्मीर भ्रमण किया था,  वहाँ के खाने-पीने के मूल्य भी इसी प्रकार आसमान छूँ रहे थे...सुबह के नाश्ते में मिलने वाला परौठा 55रुपये में एक,  वो आचार के साथ... दही लेना हो तो 30रुपये अलग,  25रुपये का चाय का कप....कुल मिला कर एक व्यक्ति का सुबह का नाश्ता ही दो सौ-सौ के नोट हज़म कर जाता है... किसी दूर-दराज के पहाडी शिखर पर नही, भाई सड़क के किनारे बने ढाबों पर..... !!
                             पूछने पर हर किसी के पास रटा-रटाया जवाब है कि यहाँ तक सामान पहुँचने में बहुत "ट्रांसपोटेशन" पड़ जाती है.... परन्तु जब मैं उनके ढाबें देखता था तो राजस्थान का संगमरमर पत्थर फर्श क्या दीवारों पर भी मढ़ा गया था,  जो उनकी कमाई की मुँह बोली तस्वीर थी....!!
                              "पर्यटकों के भाग्य में ही होता है लुटना,  पर श्री खंड वाले दुकानदार मेरे अनुभव के अनुसार जो भी मूल्य हम यात्रियों से वसूल रहे हैं... वह उनकी "ट्रांसपोटेशन " के अनुसार बिल्कुल उचित है.....!! "
                               बचपन से ही एक फिल्मी गाना सुनता आ रहा हूँ, " यह कश्मीर है, यह कश्मीर है..!!! "     और आधी जिंदगी बीत जाने के बाद कश्मीर जाने का मौका मिला,  परन्तु जिस कश्मीर की शक्ल वो पुराने फिल्मी गानों दिखाई गई थी.... वो मुझे नही दिखाई दी,  क्योंकि कश्मीर का बिगड़ा माहौल आपकी मानसिक स्तिथि को भी बिगाड़ देता है....हमारे साथ भी ऐसा ही हुआ, चंदनवाड़ी में अमरनाथ यात्रा की पहली सीढ़ी पर अपने परिवार सहित नमन कर.... पहलगाँव की सुंदरता को देख कर श्री नगर जाते हुए पता चला कि जिस "पम्पोर" शहर के बंद बाज़ार में कुछ जरुरी सामान खरीदने के लिए हम खड़े हैं... कि अभी आधा घंटा पहले यहीं सात "भारतीय फौजी" मार दिये गए.... स्थानीय लोगों के मुख से "भारतीय फौजी" सुनना मुझे बड़ा अजीब लगा,  ठीक कुछ इसी प्रकार एक शाल बेचने वाले कश्मीरी व्यापारी ने पहलगाँव के होटल में यह कह कर हमें शाल बेचे कि अपने देश के इस गरीब वासी की मदद करो और शाल खरीद लो,  यही बात फिर दोबारा मुझे गुलमर्ग  में सुनने को मिली... कि अपने देशवासी की मदद करो, यह खच्चर किराये पर ले लो..
                               मैं कन्याकुमारी तक घूमा हूँ पर यह बात मुझे किसी ने भी कहीं भी नही कही, "अपने देश के वासी की मदद करो "         अरे जब तुम लोगों को हम पर्यटकों से कुछ लेना-देना होता है तो अखंड देश याद आ जाता है,  नही तो मुझ से एक स्थानीय ने यहाँ तक पूछ लिया, " भारत से आए हो....!!!! "
                                मेरी बातें सुन विशाल जी बोले, " पर लेह-लद्दाख क्षेत्र भी तो जम्मू-कश्मीर का भाग है,  वहाँ ऐसा कोई माहौल नही है और कश्मीर की असली प्राकृतिक सुंदरता तो उसी क्षेत्र में बिखरी पड़ी है विकास जी..! "
                                 मैने जवाब दिया, " मैं अभी तक लेह नही जा पाया, भविष्य में जरूर जाऊँगा.. वैसे जम्मू क्षेत्र भी तो कश्मीर का ही भाग है,  वहाँ के लोग व माहौल बेहद दोस्ताना और शांत है.. मैने अपनी कश्मीर यात्रा से यह अनुभव किया कि जैसे ही आप जम्मू क्षेत्र से पीर-पंजाल पर्वत श्रृंखला में बनी जवाहर टनल को पार कर कश्मीर क्षेत्र में पहुँचतें हैं, मौसम में ठंडक पर जज़्बातों में गर्मी आनी शुरू हो जाती है.... विशाल जी,  सोने की ईंटों से सजे महल के मेहमान क्या बनना..जिसके मालिक का रवैय्या ही उखड़ा हो, उससे तो अच्छा नवनीत का यह कच्चा झोंपड़ा ही है,  जो हमें पूर्ण सत्कार दे रहा है...!! "   मैं हंसते-मस्कुरातें नवनीत के चेहरे की तरफ इशारा कर बोला....
                                 और,  भोजन करने के पश्चात हमने केवल से कल सुबह श्री खंड चलने का कार्यक्रम निश्चित किया,  आगामी सफ़र के लिए तड़के मुँह अंधेरे 3बजे चलने का समय रखा गया.... और हम दोनों साढूं भाई करीब साढे आठ बजे अपने टैंट में आ, आधी रात 2बजे का अलार्म लगा सो गए......

                                                    .................................(क्रमश:)
ताज़े बने भोजन से उठ रही भाप तो देखो.... दोस्तों 

और,  फिर उसी थाली में राजमाँह-चावल परोसे गए.... 

चूल्हे के आगे बैठ खाना खाते हम और नवनीत हमे खाना परोस रहा था.... 

नवनीत की बुआ का लड़का "केवल" जो कल हमारी बाकी बची श्री खंड यात्रा का पथप्रदर्शक बनने वाला था.... और नेपाली भारवाहक "भीम बहादुर "

रात के समय भीमद्वारी के टैंटो में सौर-ऊर्जा से चालित दीप.....

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