रविवार, 4 जून 2017

भाग-7 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर....Shrikhand Mahadev yatra(5227mt)

 भाग-7 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर....
                              " हाय ओ रब्बा, मेरे सोहने पंजाब दी जवानी....!!!"
     
इस चित्रकथा को आरंभ से पढ़ने का यंत्र (https://vikasnarda.blogspot.com/2017/04/1-shrikhand-mahadev-yatra5227mt.html?m=1) स्पर्श करें।        
                                                 
                                      मैं और विशाल रतन जी, श्री खंड महादेव कैलाश पदयात्रा पर पहले दिन के रात्रि ठहराव के लिए जूना अखाड़ा बराहटी नाले की ओर चलते जा रहे थे...... श्री खंड से वापसी कर रहे यात्रियों से निरंतर पूछ रहे थे, कि अभी कितना और चलना है... क्योंकि शाम तो होने चली थी और घने पेड़ों के नीचे पहुंच रही सूरज की रौशनी, भी लगता था सारा सारा दिन भाग-भाग कर थक सी गई हो.....  
                    और,  सामने हम जिस टेढ़ी उतराई को उतर रहे थे....दूसरी तरफ से उस खड़ी चढ़ाई पर एर बेहद थक चुके सज्जन बड़ी मुश्किल से अपने-आप को ढोतें हुए चढ़ रहे थे,  रास्ता सिर्फ एक व्यक्ति के निकलने योग्य था....सो हम ऊपर ही रुक उनके ऊपर आने की प्रतीक्षा में खड़े हो गए..... हमारा सामना जैसे ही उनसे हुआ,  वे बोले, " क्या आपके पास कोई दर्द निवारक दवा है,  मेरे तो घुटनों ने जवाब ही दे दिया है... बहुत परेशान हूँ, अब तो चला भी नही जा रहा....!"
                    मैने थकान से टूट चुके उन सज्जन को वहीं रास्ते में बैठा कर,  उनके घुटनों पर दर्द निवारक स्प्रे किया और एक दर्द नाशक दवा खिलाई.... व उन्हें हौसला दे, फिर से पथ पर खड़ा कर....  बम भोले का जयकारा लगा, हम नदी की ओर ले जा रही उस सीधी खड़ी उतराई पर अपने-आप को ही रोकते हुए उतरने लगे...... और अभी मिले सज्जन व सिंहगाड से जहाँ तक पहुँचें सिर्फ ढाई किलोमीटर लम्बे रास्ते को देख मेरे दिमाग में,  सिंहगाड में केरल वाले जय चन्द्रन जी की बात घूम गई,  कि " मैं कैलाश मानसरोवर भी जा चुका हूँ.. पर यह यात्रा उससे 'सौ गुणा' कठिन है...! " 
                     और,  एक बड़े वृक्ष पर चढ़ी एक घूमती-घूमाती सी बेल के जैसी उस अत्यन्त कठिनाई युक्त पगडंडी से नन्ही सी चींटी की तरह उतर कर हम नदी के तट के पास लगे, खन्ना(पंजाब) से आए जूना अखाड़ा लंगर (2175मीटर) पर शाम 6बजे के करीब पहुंच ही गए..... और अनजान लोगों के बीच ऐसे किसी व्यक्ति को हमारी नज़र तलाश रही थी,  जिसे मिल हम कह सके कि हमें आज की रात आपके लंगर में शरण चाहिए..... 
                       एक नौजवान साधु रसोई में सेवादारों को निर्देश दे रहे थे,  सो उनसे जा कर प्रार्थना की... तो उन्होंने कहा,  "अभी आप बैठ कर चाय व अल्प आहार ग्रहण करे...और लंगर आयोजक फलाहारी बाबा अशोक गिरी जी से मिल कर ले,  वे आपके यहाँ रुकने की व्यवस्था कर देंगे "  
                        कुरपन नदी के किनारे कुछ ऊँची समतल जगह पर रास्ते के दोनों ओर पक्के कमरे डाल कर 21वी बार यह लंगर लगा हुआ था..... तकरीबन सब किस्म की सुविधाएं लंगर में मौजूद थी,  बिजली के लिए जेनरेटर का प्रबंध,  रात्रि-विश्राम के लिए बड़े-बड़े जलरोधक तम्बू और उनमें पड़े बिस्तर आदि....... ताज़ा बने बेसन के लड्डू के संग हमे चाय परोसी गई और आदतन मैने कैमरा चालू किया,  उस बेसन के लड्डू और चाय को यादगार बनाने के लिए....  सारा दिन दौड़-दौेड़ कर मेरा कैमरा भी थक चुका था,परन्तु मैं अड़ियल कैमरे की बात सुन ही नही रहा था... मुझे तो वो बेसन के स्वादिष्ट लड्डू की तस्वीर चाहिए थी,  तो कैमरे से जोर-जबरदस्ती पर उतारू हो गया.... नतीजा यात्राओं का साक्षी व परम मित्र मेरा "छायाकान यंत्र " मृत पड़ गया,  उसका मुख खुला का खुला रह गया और मेरे लाख मनाने पर भी कोई प्रतिक्रिया नही....
                        दोस्तों,  यात्रा के दौरान कैमरा खराब हो जाए,  इससे बड़ी कोई बदकिस्मती और नही हो सकती...क्योंकि यात्रा के समय अपनी आँखों से देखे गए सुंदर दृश्य कुछ समय बाद ही मृत पड़ जाते हैं,  यदि उन दृश्यों को मशीनी आँख से सदा के लिए कैद कर रखा है,  तो वे चित्र रुपी दृश्य धुंधली हुई स्मृति को पुर्नजीवित कर जाते हैं....
                         मेरा हाल मेरे कैमरे की रुकी हुई सांसों जैसा ही हो चुका था उस समय,  सब कुछ छोड़ कर कैमरे की ही उधेड़बुन में मगन था, कि विशाल जी बाबा अशोक गिरी जी से मिल कर रात रुकने की बात भी कर आए....और हमे खुद बाबा जी ने एक अलग बड़े से तम्बू में पहुँचाया...... तम्बू के एक कौने में अपना सामान रख अपनी जगह निश्चित की और हमने अपने स्लीपिंग बैग खोल कर कुछ समय आराम करना ही मुनासिब जाना....... और विशाल जी के हाथ में जाते ही मेरे कैमरे ने अपनी नाराजगी खत्म कर दी, और मेरे चेहरे की तरह ही उसकी स्क्रीन भी अब खुशी से लाल हो चुकी थी..... कैमरे को पावर बैंक का साथ दें,  हम दोनों अपनी पीठ सीधी करने हेतू लेटे ही थे,  कि हमारे तम्बू के दरवाजे पर दो 17-18 साल के नवयुवक आ बैठे........ और पंजाबी में बोले, " कि पहली बार चलो ओ,  श्री खंड "......हमने हाँ में उत्तर दिया,  तो बातचीत का दौर शुरू हो गया....
                           खन्ना(पंजाब) से उन जैसे कई लड़के लंगर में सेवा करने हेतू यहाँ आए हुए थे,  तभी एक ने दूसरे को इशारा किया... तो वे वही काम करने लगे,  जिसके लिए वे इस तम्बू में आ बैठे थे.... एक ने काले रंग की छोटी सी गोली को जेब से निकाल,  उसे माचिस की तीलियों से आग लगा-लगा कर पिघलाने लगे और जब वह पदार्थ कुछ जल कर धुआँ छोड़ने लगा... तो उसे सिगरेट के साथ मिलाकर उन दोनों बारी-बारी कश खींचने शुरू कर दिये..... वह काला पदार्थ "हशीश" या उनकी भाषा में शिव जी का प्रसाद "सूटा" था.....इसी सूटों को मैने अभी कुछ समय पहले इसी लंगर में जहाँ हम बैठे चाय पी रहे थे, दो साधुओं को भी सिगरेट में भरते देखा था... पर मैने इनकी तरफ कोई तव्वजो नही दी,  क्योंकि साधु समुदाय में इस प्रकार की बातें सामान्य है,  परन्तु यहाँ तो मेरे सामने ही "मेरे सोहने पंजाब" की जवानी "बम भोले" की आड़ में धूऐं के गोले उड़ा रही थी.....!!
                            उन लड़कों के इस रवाइयें ने मन व्याकुल सा कर दिया..... मुझ से रहा नही जा रहा था,  सो पूछ ही बैठा, कि यह बुरी लत कैसे लगा ली,  तो उनमें से एक लड़का पंजाबी में बोला, " भाजी,  टैंट दा कम्म करदे आं बेहरा गिरी दा.. बस ऐदां ई इक-दूजे तो इह आदत लग गई... जी "
                               विशाल जी ने उनको समझना शुरू किया कि, " ये नशे का रास्ता बहुत खतरनाक है... इस पर तो पैसे और जान की बर्बादी है, बस और कुछ नही.. छोड़ क्यों नही देते इस जहर को...!! "
                                विशाल जी की बात सुन उन लड़कों ने बस हमें इतना ही आश्वासन दे दिया कि...हाँ भाजी,  छोड़ देंगे..परन्तु मैं उन लोगों के बोलने के अंदाज़ से समझ गया कि वे "छोड़ देंगे" शब्द सिर्फ इच्छा से ही बोले है निश्चय से नही... किसी नशेड़ी के लिए नशा छोड़ देना, "उसकी इच्छा " तो हो सकती है "निश्चय " नही.....जब तक वह खुद नशा छोड़ने का अटल निश्चय नही लेगा, उसकी या किसी और की इच्छा उसका नशा नही छुड़वा सकती....!!
                                 मैने उन्हें कुरेदा, तो पता चला... कि और भी कुछ लड़के है जो सिर्फ नशे की पूर्ति के लिए पंजाब से यहाँ सेवा करने के बहाने आए हुए हैं..... सो बातचीत बदलने के लिए मैने इनसे पूछा,  कि आप दोनों श्री खंड महादेव के दर्शन कर आये हैं.... तो उनके जवाब ने हमारी अब तक की यात्रा के उल्लास को ग्रहण लगा दिया...!!
                                 क्योंकि वे लड़के अब हल्के से नशे में बोल रहे थे कि, "भाजी हमे मरना नही है,  ऊपर तीन आदमी मर गये हैं..एक की लाश अभी दोपहर को ही यहीं से निकली है सिंहगाड की ओर,  दो दिन पहले भी एक लाश ऊपर से नीचे लाई गई.. और अभी एक और जवान लाश पड़ी है ऊपर थाचडू के जंगल में,  सुना है कि वह जालन्धर शहर का है.... हम दोनों भी आज सुबह यहाँ से श्री खंड के लिए चले थे,  परन्तु बराहटी नाले से आगे की चढ़ाई जिसे 'डंडाधार की चढ़ाई' कहते है, मतलब डंडे के ऊपर चढ़ना.. एक दम सीधी चढ़ाई... उस चढ़ाई ने तो जान ले ली हमारी और ऊपर से उस जालन्धर वाले की लाश हमने देख ली,  फिर क्या था... दोनों वापस ही आ गए कि कहीं रास्ते में मर-मरा गए तो कोई नही पूछने वाला.....!!!!! "
                                  उनके मुख से निकली बात हमारे यात्रा के जोश को एक दम से ठण्डा कर गई.... मैं विशाल जी का मुख देंखूँ और वो मेरे मुखमण्डल को..... हवाईयाँ तो हम दोनों की ही उड़ चुकी थी,  कि तम्बू में लगा बिजली का बल्ब जग उठा...और वो एक लड़का दूसरे से बोला, " चल उठ अब शेरा, रात का लंगर भी तो अब बरतना है "
                                  और....... हम दोनों सुन्न से तम्बू में अब अकेले बैठे शून्य में घूर रहे थे.......!!!    

                                                                       ...............................(क्रमश:)
इस उतराई को उतरने के लिए..... केवल एक व्यक्ति योग्य रास्ता ही था, और दूसरी ओर से एक व्यक्ति बड़ी मुश्किल से अपने-आप को ढोता हुआ इस चढ़ाई को चढ़ रहा था..... 

और......उस व्यक्ति के ऊपर चढ़ने के इंतज़ार में खड़े-खड़े... मैने विशाल रतन जी से यह फोटो खिंचवा डाली.... 

हमारे पास पहुंचतें ही उन्होनें हमें अपने दर्द का सांझीदार बनाया..... और थक चुके उनके घुटनों पर दर्द निवारक स्प्रे करता हुआ मैं....... 

श्री खंड रास्ते के दोनों बराहटी नाले के पास पड़ा...जूना अखाड़ा लंगर 

तकरीबन हर किस्म की सुविधा थी इस लंगर में..... दोस्तों 

             ( अगला भाग पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें )
               
                  

8 टिप्‍पणियां:

  1. छायाकान यंत्र....कैलाश मान सरोवर से 100 गुना कठिन चढ़ाई...डण्डे की धार पर चढ़ना...बाप रे... में कभी गया किस्मत से तो हर 5 मिनट के बाद पूछुंगा भाई कितना है अब...

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    1. नही ऐसा नही होगा प्रतीक भाई....आप चढ़ जाओगें श्री खंड।

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  2. कल से लगातार पढ़ रहा हूँ आपकी पोस्ट को। समय अभाव में थोड़ा ही पढ़ पा रहा हूँ। बहुत़ ही बेहतरीन पोस्ट लेखन कला

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  3. उफ्फ्फ! जान के लाले पड़ गए ये तो 🤔पहाड़ जितना सुंदर हैं उतना ही कठोर भी हैं। पंजाब तो पूरी तरह निल हो गया जनाब

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