अडलाज बाव (बावडी या कुँआ).....अहमदाबाद (गुजरात)
अहमदाबाद से गांधी नगर की तरफ 18किलोमीटर जाने के बाद अडलाज गाँव में वास्तुकला का अनूठा, नायाब तथा आश्चर्यजनक नमूना "अडलाज बाव " स्थित है....मैंने अपने जीवन में इतना अद्भुत कुँआ कहीं ओर नही देखा। यह एक ऐसा कुँआ जिसमें पांच मंजिलें नीचे की तरफ भूमिगत महल हैं.... और वो भी मुस्लिम तथा हिन्दू शैली की कारीगरी के साथ।
इस अडलाज बाव को बनवाने में और हिन्दू-मुस्लिम शैली की कारीगरी के मिश्रण के पीछे एक राजपूत विधवा रानी का क्या मक़सद था, मैं आपको बताता हूँ कि 14वीं सदी के अन्त में अहमदाबाद के साथ ही स्थित दांडईदेश राज्य के राजपूत राजा वीर सिंह बघेंला की अहमदाबाद के सुल्तान महमूद बेगड़ा के साथ युद्ध लड़ते मृत्यु हो गई। राजा वीर सिंह की पत्नी रूदा बाई की सुन्दरता पर मोहित हो सुल्तान बेगड़े ने उससे निकाह का प्रस्ताव रख दिया, परन्तु रानी रूदा ने कहा कि शादी तो वह जरूर करेगी आप से....पर मैं पहले वीरगति को प्राप्त अपने पति की याद में एक कुँआ खुदवाऊंगी और आप को मेरी इस में सहायता भी करनी पड़ेगी, कुँआ पूर्ण होने पर मैं आप जाऊँगी...! सुल्तान बेगड़ा रानी रूदा बाई की मन की बात ना समझ पाया और उसके रूप के दीवाना हो, रानी रूदा की शर्त अनुसार सहमत हो गया।
रानी रूदा बाई ने कुँऐ का कार्य 20साल तक लम्बा खींच दिया और सुल्तान बेगड़ा ने भी पूरे इमान से उस का साथ दिया....आखिर जो इमारत बन रही हैं, उसने पूर्ण भी तो होना था। अडलाज बाव आखिर 1499में पूर्णता बन कर तैयार हो गया। सुल्तान बेगड़े ने रानी रूदा की शर्त पूरी कर दी थी, और अब उसने रानी रूदा बाई को अडालज बाव पर बुला कर, कहा- "लो मैने तुम्हारी शर्त पूर्ण कर दी हैं, अब तुम मुझ से निकाह करो"
परन्तु रानी रूदा के मन में तो शुरु से ही कुछ और चल रहा था, उसने सुल्तान से कभी शादी ही नही करनी थी। बुलावे पर पहुँची रानी रूदा बाई ने अपने राजपूताना धर्म निभाते हुए मर जाना बेहतर समझा......... और सुल्तान बेगड़ा के आगे ही नवनिर्मित अडलाज बाव के कुँऐ में सबसे ऊपर वाली पांचवी मंजिल से छलांग ला जल समाधि ले ली और सुल्तान बेगड़ा खड़ा हाथ मलता रह गया...!!
अडलाज बाव का पांच मंजिला और अष्टभुजाकार यह ढांचा 16स्तम्भों पर खड़ा हैं और बाव के हर स्तम्भ, दीवार पर शानदार नक्काशी की हुई है...जैसे फूल, पंछी, मछली,बेल-बूटियां और आभूषणों के डिजाइन बनाए गए हैं और बाव में ही नव ग्रह की प्रतिमाएँ भी स्थापित हैं...जिन्हें इस कुँऐ का रक्षक भी बना जाता हैं और इस कुँऐ में बने महल के कमरो का तापमान बाहर के तापमान से 6-7डिग्री तक कम रहता है। गाँव वाले अक्सर गर्मी के दिनों में यहां बैठ कर अपनी गर्म दोपहर बिताते देखे जाते हैं।
अहमदाबाद से गांधी नगर की तरफ 18किलोमीटर जाने के बाद अडलाज गाँव में वास्तुकला का अनूठा, नायाब तथा आश्चर्यजनक नमूना "अडलाज बाव " स्थित है....मैंने अपने जीवन में इतना अद्भुत कुँआ कहीं ओर नही देखा। यह एक ऐसा कुँआ जिसमें पांच मंजिलें नीचे की तरफ भूमिगत महल हैं.... और वो भी मुस्लिम तथा हिन्दू शैली की कारीगरी के साथ।
इस अडलाज बाव को बनवाने में और हिन्दू-मुस्लिम शैली की कारीगरी के मिश्रण के पीछे एक राजपूत विधवा रानी का क्या मक़सद था, मैं आपको बताता हूँ कि 14वीं सदी के अन्त में अहमदाबाद के साथ ही स्थित दांडईदेश राज्य के राजपूत राजा वीर सिंह बघेंला की अहमदाबाद के सुल्तान महमूद बेगड़ा के साथ युद्ध लड़ते मृत्यु हो गई। राजा वीर सिंह की पत्नी रूदा बाई की सुन्दरता पर मोहित हो सुल्तान बेगड़े ने उससे निकाह का प्रस्ताव रख दिया, परन्तु रानी रूदा ने कहा कि शादी तो वह जरूर करेगी आप से....पर मैं पहले वीरगति को प्राप्त अपने पति की याद में एक कुँआ खुदवाऊंगी और आप को मेरी इस में सहायता भी करनी पड़ेगी, कुँआ पूर्ण होने पर मैं आप जाऊँगी...! सुल्तान बेगड़ा रानी रूदा बाई की मन की बात ना समझ पाया और उसके रूप के दीवाना हो, रानी रूदा की शर्त अनुसार सहमत हो गया।
रानी रूदा बाई ने कुँऐ का कार्य 20साल तक लम्बा खींच दिया और सुल्तान बेगड़ा ने भी पूरे इमान से उस का साथ दिया....आखिर जो इमारत बन रही हैं, उसने पूर्ण भी तो होना था। अडलाज बाव आखिर 1499में पूर्णता बन कर तैयार हो गया। सुल्तान बेगड़े ने रानी रूदा की शर्त पूरी कर दी थी, और अब उसने रानी रूदा बाई को अडालज बाव पर बुला कर, कहा- "लो मैने तुम्हारी शर्त पूर्ण कर दी हैं, अब तुम मुझ से निकाह करो"
परन्तु रानी रूदा के मन में तो शुरु से ही कुछ और चल रहा था, उसने सुल्तान से कभी शादी ही नही करनी थी। बुलावे पर पहुँची रानी रूदा बाई ने अपने राजपूताना धर्म निभाते हुए मर जाना बेहतर समझा......... और सुल्तान बेगड़ा के आगे ही नवनिर्मित अडलाज बाव के कुँऐ में सबसे ऊपर वाली पांचवी मंजिल से छलांग ला जल समाधि ले ली और सुल्तान बेगड़ा खड़ा हाथ मलता रह गया...!!
अडलाज बाव का पांच मंजिला और अष्टभुजाकार यह ढांचा 16स्तम्भों पर खड़ा हैं और बाव के हर स्तम्भ, दीवार पर शानदार नक्काशी की हुई है...जैसे फूल, पंछी, मछली,बेल-बूटियां और आभूषणों के डिजाइन बनाए गए हैं और बाव में ही नव ग्रह की प्रतिमाएँ भी स्थापित हैं...जिन्हें इस कुँऐ का रक्षक भी बना जाता हैं और इस कुँऐ में बने महल के कमरो का तापमान बाहर के तापमान से 6-7डिग्री तक कम रहता है। गाँव वाले अक्सर गर्मी के दिनों में यहां बैठ कर अपनी गर्म दोपहर बिताते देखे जाते हैं।
अडलाज बाव का ऊपरी हिस्सा और लम्बाई। |
अडलाज बाव के स्वागत द्वार के दोनों तरफ के कमरो के नक्काशीदार झरोखे। |
अडलाज बाव की पांच में से दो मंजिलों का बरामदा। |
अडलाज बाव का महल जैसा बरामदा। |
वह स्थान यहां से रानी रूदा बाई ने छलांग लगा कर जल समाधि ले ली थी... और सुल्तान महमूद बेगड़ा खड़ा हाथ मलता रह गया...! |
बहुत अच्छा डिटेल इसके बारे में...हालांकि बहुत पहले बचपन में गया हु पर यह सब जानकारी आज प्राप्त हुई
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया जानकारी है कभी उधर जाना हुआ तो दर्शन अवश्य किया जायेगा
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