भाग-12 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर.....
" उस अभागे युवक की लाश...!"
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पिछली किश्त में आप लोगों ने पढ़ा कि... मुझे और विशाल रतन जी को डाँडा धार पर्वत की चढ़ाई पर एक व्यक्ति ने कहा कि वे ऊपर जंगल में पड़ी "लाश" उठाने जा रहे है...लाश का नाम सुन कर कल शाम को बराहटी नाले पर लगे जूना अखाड़ा लंगर पर मिले इन दोनों लड़कों द्वारा नशे की हालत में बोले बोल एकाएक से याद आ गये, "भाजी हमे मरना नही है, ऊपर तीन आदमी मर गये हैं.. एक की लाश अभी दोपहर को ही यहीं से नीचे निकली है सिंहगाड की ओर... दो दिन पहले भी एक लाश ऊपर से नीचे लाई गई, और अभी एक और जवान लड़के की लाश पड़ी है ऊपर थाचडू के जंगल में..!!! "
दोस्तों, सच बताता हूँ कि मैं और विशाल जी इस बात को भूल ही गए थे क्योंकि डाँडा धार पर चढ़ने से हो रहे परिश्रम व हर कदम पर बदल रही प्राकृतिक सुंदरता को देखने का उत्साह और राह पर निरंतर सज्जन लोगों से हो रही क्षणिक मुलाकातें.... हमारे दिमाग में भरती जा रही थी और इस कटु सत्य को इन सब बातों ने कहीं दबा ही दिया था....
कोई पांच-सात मिनट ही ऊपर की ओर चढ़े थे हम दोनों, देखा कि जंगल में पड़ी उस अभागे युवक की लाश को कफन में लपेट, दो लोहे की पाइपों के मध्य बांधा जा रहा था... उस लाश की कद-अच्छी-खासी थी, मैं सुन्न सा छट से अपना कैमरा निकाल उस लाश के सामने जा बैठा... तो लाश को बांध रहे एक व्यक्ति ने तीव्र स्वर से मुझसे कहा कि, " मेरी फोटो इस लाश के साथ मत खींचना, जब मैं अपना काम खत्म कर उठ जाऊँ.. फिर खींच लेना..!! "
मैं गुमसुम सा वहीं बैठा रहा, फिर एकाएक यह कहता हुआ उठ खड़ा हुआ कि, "अब मुझे भी इस की फोटो नही खींचनी है, क्योंकि अब मैं भी इस कटु याद को जीवन भर संजोना नही चाहता..!! "
और, विशाल जी को लेकर उसी समय वहाँ से ऊपर की ओर चल दिया, क्योंकि मैं खुद एक बहुत भावनात्मक किस्म का प्राणी हूँ और शायद मैं भाग ही रहा था वहाँ के माहौल से..... विशाल जी से भी कोई बातचीत नही की, बस चुपचाप से उस तीखी चढ़ाई पर अपने कदम तेज से कर दिये......
दिमाग में बस यही सोच चल रही थी, कि एक नवयुवक घर से चला श्री खंड महादेव... उन घर वालों पर क्या गुज़रेगी, जब यह जवान लाश उनकी दहलीज़ पर जा रखी जाएगी.... मैं ठहरा नास्तिक-वास्तविक बुद्धि, अब दोष किसे दूँ... आस्था का कफन पहने इन विकट परिस्थितियों में "आत्महत्या " की कोशिश करने आए हम लोगों को या फिर.......!!!!
मेरी बात कड़वी लगी ना दोस्तों, पर ये ही सच्चाई है...आस्था मृत्यु के डर पर भी भारी है, इसका प्रमाण ये है कि ये मृत्यु, यात्रा पथ पर श्रद्धालुओं को आगे बढ़ने से रोकने के लिए असमर्थ है... और मेरी तरह ही इस कठिन यात्रा पर चला रहा प्रत्येक व्यक्ति सोच रहा होगा कि ये तो मर गए, पर मैं नही मरूगाँ.....!!
तभी दो व्यक्ति पास से गुज़रे और मुझ से कुछ पीछे चल रहे विशाल जी के पास रुक कर बातचीत करने लगे, मैं दूर वहीं रुका उनकी बातचीत सुनने लगा... वे मुम्बई से थे और बेहद रुष्ट व अफसोस ज़ाहिर कर रहे थे कि इस यात्रा पर हमने आज की युवा पीढ़ी को नशे के समुद्र में डूबते देखा है.... "उड़ता पंजाब" फिल्म का ज़िक्र कर बोले कि मैं तो समझता था कि ये फिल्म बनाने वाले ऐसे ही झूठ-मूठ फिल्मों में दिखाते रहते हैं... पर अब तो सब सच इन आँखों से देख लिया... सच में ही यह उड़ता हुआ पंजाब है नशे के बादलों में.... हम तो पंजाबियों को बहुत दलेर मानते है, भगत सिंह की तरह जानते है...परन्तु ऐसे ही हालात रहे तो फिर कहाँ से पैदा होंगे, और नए भगत सिंह....!!! "
विशाल जी और उनमें इस विषय पर वार्तालाप होता रहा, पर मैं दूर खामोश सा खड़ा उन्हें सुनता रहा..... शायद उस लाश को देखने के बाद मेरी मनोदशा ही ऐसी हो गई थी, कि मैं मौन रहना चाहता था... और फिर से हम चुपचाप से चढ़ाई चढ़ते हुये जंगल में रास्ते पर लगे एक तम्बू पर रुक गए और बैठ चाय पी, क्योंकि अभी थाचडू पहुंचने के लिए एक घंटे का और रास्ता शेष था......
आधा घंटा चलते रहने पर राह में एक सज्जन मिले, जिन्होंने माहौल को कुछ खुशगवार बना दिया... उनका नाम विपन कुमार और वे शिमला से थे, हमें रोक अपने बैग से ग्लुकोज की खुली डिब्बी विशाल जी के हाथ में थमा कर हंसते हुए बोले, " मैं तो श्री खंड महादेव हो आया हूँ और आप लोग जा रहे हो, ये ग्लुकोज आप लोग ही रख लो... इसे पीने से चढ़ाई चढ़ने की ताकत हासिल होगी " विपन कुमार जी की सरल सज्जनता और इस भावनात्मक सहयोग का हम दोनों ने कोटी-कोटी धन्यवाद किया....
कुछ और ऊपर चढ़े, तो रास्ते के एक पेड़ पर लगे बोर्ड पर शिव की महिमा में बेहद खूबसूरत लिखावट में पंक्ति लिखी पढ़ी...."जय गिरिजा पति दीन दियाला, सदा करत सन्तन प्रतिपाला,
भाल चन्द्रमा सहित नीके, कानन कुण्डल नाफफनी के"
मुझ श्रद्धाशून्य को उस बोर्ड की लिखावट सुंदर लग रही थी और श्रद्धापूर्ण विशाल जी को उस लिखावट के भावार्थ....... खैर अब मेरा मन कुछ हल्का महसूस कर रहा था और दोपहर एक बजने से कुछ पहले हम श्री खंड महादेव यात्रा के दूसरे पड़ाव "थाचडू"(3375मीटर) तक जा पहुँचे....थाचडू में भगवान शिव का छोटा मंदिर और कई सारे टैंट लगे हुए थे, एक पुरानी खस्ताहाल झोपड़ीनुमा इमारत की छत पर प्लास्टिक की तिरपालें डाल, श्री खंड सेवा दल द्वारा लंगर व रात्रि विश्राम का इंतजाम किया हुआ था....... और हमने भी दोपहर के भोजन के लिए वहीं लंगर पर रुकना मुनासिब समझा, हाथ धोने के बाद जैसे ही मैं मुड़ा तो देखा कि पानी से भरे एक खुले मुंह वाले बड़े से बर्तन में एक नन्हा सा कीट डूब रहा है, सो झट से उसे बचाने के लिए अपना हाथ उस बर्तन में डुबोया ही था, कि एक सेवादार ने मुझे रोका कि इसमें पीने वाला पानी है... हाथ उस दूसरे बर्तन से पानी ले कर धोओ..... मैं बोला, " मैं हाथ नही धो रहा था, ये एक छोटा सा कीट इस पानी में जीवन की जंग मौत के हाथों हार रहा था..सो उसे बचा लिया..! "
तो, वे सेवादार उखड़ी सी आवाज़ में बोले, " जहाँ तो लोग मर रहे हैं, और तुम इस कीड़े-मकौड़े की चिंता में हो...!! " मैं बोला, " सही कहा जी आपने, पर जिसे मैं मरने से बचा सकता हूँ...कम से कम उसे तो बचा लूँ..! "
उन सेवादार ने ही मुझे बताया कि यहाँ से भी श्री खंड शिला के दर्शन हो जाते है, पर इस समय सब कुछ बादलों ने ढक रखा है...... साबुत मूँग की दाल व चावल का लंगर बेहद ही स्वादिष्ट व पाचन तंत्र पर हल्का था, जब हम भोजन कर रहे थे तो हमारे पास अमृतसर से आए एक जीजा-साला भी खड़े भोजन कर रहे थे....और उनमें निरंतर बहस सी चल रही थी, सो साले साहिब ने मुझे बीच में ले कर कहा कि, "अब आप ही बताओ भाई साहिब... श्री खंड से वापसी आते-आते मेरे दोनों पैर सूज चुके है.... घुटनों में भयंकर दर्द हो रहा है और ये मेरे जीजा जी मुझ से कह रहे हैं कि मैं बहुत धीरे-धीरे चल रहा हूँ... हमारे सारे साथी हमें छोड़ आगे निकल गए है, अब मुझ से चला ही नही जाता तो मैं क्या करूँ...मैने तो पहले ही कहा था कि मुझे इस कठिन यात्रा पर मत ले कर आओ, पर ये नही माने...मैं जीजा जी से कहता हूँ कि वो मुझे छोड़, आगे गये साथियों के पास चले जाए...मैं जैसे-तैसे कर धीरे-धीरे नीचे पहुंच ही जाऊँगा, पर ये मान ही नही रहे मुझ पर लगातार दबाव बनाते जा रहे है कि मैं ही तेज चलूँ... मुझ से तो अब खड़ा भी नही हुआ जा रहा है और ये तेज चलने की ज़िद पर अड़े है...!!!! "
ये सब बातें सुन मैने उनसे कहा कि, "आपके जीजा जी आपकी जिम्मेदारी ले कर चल रहे हैं जनाब... ये रास्ता कोई आम रास्ता नही खतरों से भरा हुआ रास्ता है, सो कृपया उनकी बात मान व उनका सहयोग ले यात्रा को इक्ट्ठा ही पूर्ण करे " ...........और उन जीजा-साले की जोड़ी को फिर से यात्रा-पथ पर रुख़सत किया.....
.........................(क्रमश:)
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" उस अभागे युवक की लाश...!"
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पिछली किश्त में आप लोगों ने पढ़ा कि... मुझे और विशाल रतन जी को डाँडा धार पर्वत की चढ़ाई पर एक व्यक्ति ने कहा कि वे ऊपर जंगल में पड़ी "लाश" उठाने जा रहे है...लाश का नाम सुन कर कल शाम को बराहटी नाले पर लगे जूना अखाड़ा लंगर पर मिले इन दोनों लड़कों द्वारा नशे की हालत में बोले बोल एकाएक से याद आ गये, "भाजी हमे मरना नही है, ऊपर तीन आदमी मर गये हैं.. एक की लाश अभी दोपहर को ही यहीं से नीचे निकली है सिंहगाड की ओर... दो दिन पहले भी एक लाश ऊपर से नीचे लाई गई, और अभी एक और जवान लड़के की लाश पड़ी है ऊपर थाचडू के जंगल में..!!! "
दोस्तों, सच बताता हूँ कि मैं और विशाल जी इस बात को भूल ही गए थे क्योंकि डाँडा धार पर चढ़ने से हो रहे परिश्रम व हर कदम पर बदल रही प्राकृतिक सुंदरता को देखने का उत्साह और राह पर निरंतर सज्जन लोगों से हो रही क्षणिक मुलाकातें.... हमारे दिमाग में भरती जा रही थी और इस कटु सत्य को इन सब बातों ने कहीं दबा ही दिया था....
कोई पांच-सात मिनट ही ऊपर की ओर चढ़े थे हम दोनों, देखा कि जंगल में पड़ी उस अभागे युवक की लाश को कफन में लपेट, दो लोहे की पाइपों के मध्य बांधा जा रहा था... उस लाश की कद-अच्छी-खासी थी, मैं सुन्न सा छट से अपना कैमरा निकाल उस लाश के सामने जा बैठा... तो लाश को बांध रहे एक व्यक्ति ने तीव्र स्वर से मुझसे कहा कि, " मेरी फोटो इस लाश के साथ मत खींचना, जब मैं अपना काम खत्म कर उठ जाऊँ.. फिर खींच लेना..!! "
मैं गुमसुम सा वहीं बैठा रहा, फिर एकाएक यह कहता हुआ उठ खड़ा हुआ कि, "अब मुझे भी इस की फोटो नही खींचनी है, क्योंकि अब मैं भी इस कटु याद को जीवन भर संजोना नही चाहता..!! "
और, विशाल जी को लेकर उसी समय वहाँ से ऊपर की ओर चल दिया, क्योंकि मैं खुद एक बहुत भावनात्मक किस्म का प्राणी हूँ और शायद मैं भाग ही रहा था वहाँ के माहौल से..... विशाल जी से भी कोई बातचीत नही की, बस चुपचाप से उस तीखी चढ़ाई पर अपने कदम तेज से कर दिये......
दिमाग में बस यही सोच चल रही थी, कि एक नवयुवक घर से चला श्री खंड महादेव... उन घर वालों पर क्या गुज़रेगी, जब यह जवान लाश उनकी दहलीज़ पर जा रखी जाएगी.... मैं ठहरा नास्तिक-वास्तविक बुद्धि, अब दोष किसे दूँ... आस्था का कफन पहने इन विकट परिस्थितियों में "आत्महत्या " की कोशिश करने आए हम लोगों को या फिर.......!!!!
मेरी बात कड़वी लगी ना दोस्तों, पर ये ही सच्चाई है...आस्था मृत्यु के डर पर भी भारी है, इसका प्रमाण ये है कि ये मृत्यु, यात्रा पथ पर श्रद्धालुओं को आगे बढ़ने से रोकने के लिए असमर्थ है... और मेरी तरह ही इस कठिन यात्रा पर चला रहा प्रत्येक व्यक्ति सोच रहा होगा कि ये तो मर गए, पर मैं नही मरूगाँ.....!!
तभी दो व्यक्ति पास से गुज़रे और मुझ से कुछ पीछे चल रहे विशाल जी के पास रुक कर बातचीत करने लगे, मैं दूर वहीं रुका उनकी बातचीत सुनने लगा... वे मुम्बई से थे और बेहद रुष्ट व अफसोस ज़ाहिर कर रहे थे कि इस यात्रा पर हमने आज की युवा पीढ़ी को नशे के समुद्र में डूबते देखा है.... "उड़ता पंजाब" फिल्म का ज़िक्र कर बोले कि मैं तो समझता था कि ये फिल्म बनाने वाले ऐसे ही झूठ-मूठ फिल्मों में दिखाते रहते हैं... पर अब तो सब सच इन आँखों से देख लिया... सच में ही यह उड़ता हुआ पंजाब है नशे के बादलों में.... हम तो पंजाबियों को बहुत दलेर मानते है, भगत सिंह की तरह जानते है...परन्तु ऐसे ही हालात रहे तो फिर कहाँ से पैदा होंगे, और नए भगत सिंह....!!! "
विशाल जी और उनमें इस विषय पर वार्तालाप होता रहा, पर मैं दूर खामोश सा खड़ा उन्हें सुनता रहा..... शायद उस लाश को देखने के बाद मेरी मनोदशा ही ऐसी हो गई थी, कि मैं मौन रहना चाहता था... और फिर से हम चुपचाप से चढ़ाई चढ़ते हुये जंगल में रास्ते पर लगे एक तम्बू पर रुक गए और बैठ चाय पी, क्योंकि अभी थाचडू पहुंचने के लिए एक घंटे का और रास्ता शेष था......
आधा घंटा चलते रहने पर राह में एक सज्जन मिले, जिन्होंने माहौल को कुछ खुशगवार बना दिया... उनका नाम विपन कुमार और वे शिमला से थे, हमें रोक अपने बैग से ग्लुकोज की खुली डिब्बी विशाल जी के हाथ में थमा कर हंसते हुए बोले, " मैं तो श्री खंड महादेव हो आया हूँ और आप लोग जा रहे हो, ये ग्लुकोज आप लोग ही रख लो... इसे पीने से चढ़ाई चढ़ने की ताकत हासिल होगी " विपन कुमार जी की सरल सज्जनता और इस भावनात्मक सहयोग का हम दोनों ने कोटी-कोटी धन्यवाद किया....
कुछ और ऊपर चढ़े, तो रास्ते के एक पेड़ पर लगे बोर्ड पर शिव की महिमा में बेहद खूबसूरत लिखावट में पंक्ति लिखी पढ़ी...."जय गिरिजा पति दीन दियाला, सदा करत सन्तन प्रतिपाला,
भाल चन्द्रमा सहित नीके, कानन कुण्डल नाफफनी के"
मुझ श्रद्धाशून्य को उस बोर्ड की लिखावट सुंदर लग रही थी और श्रद्धापूर्ण विशाल जी को उस लिखावट के भावार्थ....... खैर अब मेरा मन कुछ हल्का महसूस कर रहा था और दोपहर एक बजने से कुछ पहले हम श्री खंड महादेव यात्रा के दूसरे पड़ाव "थाचडू"(3375मीटर) तक जा पहुँचे....थाचडू में भगवान शिव का छोटा मंदिर और कई सारे टैंट लगे हुए थे, एक पुरानी खस्ताहाल झोपड़ीनुमा इमारत की छत पर प्लास्टिक की तिरपालें डाल, श्री खंड सेवा दल द्वारा लंगर व रात्रि विश्राम का इंतजाम किया हुआ था....... और हमने भी दोपहर के भोजन के लिए वहीं लंगर पर रुकना मुनासिब समझा, हाथ धोने के बाद जैसे ही मैं मुड़ा तो देखा कि पानी से भरे एक खुले मुंह वाले बड़े से बर्तन में एक नन्हा सा कीट डूब रहा है, सो झट से उसे बचाने के लिए अपना हाथ उस बर्तन में डुबोया ही था, कि एक सेवादार ने मुझे रोका कि इसमें पीने वाला पानी है... हाथ उस दूसरे बर्तन से पानी ले कर धोओ..... मैं बोला, " मैं हाथ नही धो रहा था, ये एक छोटा सा कीट इस पानी में जीवन की जंग मौत के हाथों हार रहा था..सो उसे बचा लिया..! "
तो, वे सेवादार उखड़ी सी आवाज़ में बोले, " जहाँ तो लोग मर रहे हैं, और तुम इस कीड़े-मकौड़े की चिंता में हो...!! " मैं बोला, " सही कहा जी आपने, पर जिसे मैं मरने से बचा सकता हूँ...कम से कम उसे तो बचा लूँ..! "
उन सेवादार ने ही मुझे बताया कि यहाँ से भी श्री खंड शिला के दर्शन हो जाते है, पर इस समय सब कुछ बादलों ने ढक रखा है...... साबुत मूँग की दाल व चावल का लंगर बेहद ही स्वादिष्ट व पाचन तंत्र पर हल्का था, जब हम भोजन कर रहे थे तो हमारे पास अमृतसर से आए एक जीजा-साला भी खड़े भोजन कर रहे थे....और उनमें निरंतर बहस सी चल रही थी, सो साले साहिब ने मुझे बीच में ले कर कहा कि, "अब आप ही बताओ भाई साहिब... श्री खंड से वापसी आते-आते मेरे दोनों पैर सूज चुके है.... घुटनों में भयंकर दर्द हो रहा है और ये मेरे जीजा जी मुझ से कह रहे हैं कि मैं बहुत धीरे-धीरे चल रहा हूँ... हमारे सारे साथी हमें छोड़ आगे निकल गए है, अब मुझ से चला ही नही जाता तो मैं क्या करूँ...मैने तो पहले ही कहा था कि मुझे इस कठिन यात्रा पर मत ले कर आओ, पर ये नही माने...मैं जीजा जी से कहता हूँ कि वो मुझे छोड़, आगे गये साथियों के पास चले जाए...मैं जैसे-तैसे कर धीरे-धीरे नीचे पहुंच ही जाऊँगा, पर ये मान ही नही रहे मुझ पर लगातार दबाव बनाते जा रहे है कि मैं ही तेज चलूँ... मुझ से तो अब खड़ा भी नही हुआ जा रहा है और ये तेज चलने की ज़िद पर अड़े है...!!!! "
ये सब बातें सुन मैने उनसे कहा कि, "आपके जीजा जी आपकी जिम्मेदारी ले कर चल रहे हैं जनाब... ये रास्ता कोई आम रास्ता नही खतरों से भरा हुआ रास्ता है, सो कृपया उनकी बात मान व उनका सहयोग ले यात्रा को इक्ट्ठा ही पूर्ण करे " ...........और उन जीजा-साले की जोड़ी को फिर से यात्रा-पथ पर रुख़सत किया.....
.........................(क्रमश:)
डाँडा धार की चढ़ाई में उस अभागे की लाश देखने के बाद मेरी मनोदशा बयान करती हुई सैल्फी |
सच में "उड़ता पंजाब " देखा हमने भाई, इस यात्रा के दौरान... विशाल जी से वार्तालाप करते मुम्बई वाले यात्री और मैं दूर मौन खड़ा इनकी बातें सुनता रहा... |
डाँडा धार पर्वत की चढ़ाई में.... |
और इस चढ़ाई में... जंगल में आई एक दुकान पर हम दोनों चाय पीने जा बैठे, क्योंकि थाचडू के लिए अभी एक घंटे का पैदल रास्ता शेष था... |
भगवान शिव की महिमा गाती ये तख्ती, मुझ श्रद्धाशून्य को इस की लिखावट अच्छी लग रही थी, तो दूसरी ओर श्रद्धापूर्ण विशाल जी को इसके भावार्थ अच्छे लग रहे थे.... |
सरलता, सज्जनता और भावात्मकता की मिसाल ..... विशाल जी को ग्लूकोज की डब्बी देते विपन कुमार जी |
श्री खंड महादेव यात्रा के दूसरे पड़ाव "थाचडू" (3375मीटर) की आरंभिकता में खड़ा मैं |
थाचडू की दुकानों में खड़े विशाल रतन जी... |
श्री खंड यात्रा के दौरान थाचडू में कई सारी दुकानें लगी होती हैंं, जो यात्रियों को खाने और रात्रि विश्राम की सुविधा प्रदान करती हैं......ऐसी ही एक दुकान में अपने फोन पर व्यस्त एक दुकानदार.... |
थाचडू में भगवान शिव का मंदिर..... |
थाचडू में श्री खंड सेवा दल की ओर से लगाये गये लंगर की रसोई... |
एक खंडहर नुमा झोपड़ी पर तिरपालें डाल.... लंगर की व्यवस्था की गई थी |
और, लंगर ग्रहण करते विशाल रतन जी.... |
Sir ji jis laash ka jikar Aaap ne kiya uski muuat ka koi karan .. agr.. kuch.. Pata.hai.. to.. spatsh.. ki jiya
जवाब देंहटाएंआगमी किश्त में मौत के कारण का भी खुलासा होगा, रोहित जी।
हटाएंइतनी ऊपर लंगर की व्यवस्था करने वाले धन्य हैं फ्री का लंगर होता हैं सारा पुण्य तो यही कमा रहे है विकाश 😊
जवाब देंहटाएंसत्य वचन जी।
हटाएंबेहद शानदार वर्णन, मजा आ गया आपके साथ यात्रा करने का ।
जवाब देंहटाएंबेहद धन्यवाद सुधीर जी, मेरे हमसफ़र बनने हेतू।
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