भाग-4 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर....
" ख्वाब में राग "
इस चित्रकथा को आरंभ से पढ़ने का यंत्र (https://vikasnarda.blogspot.com/2017/04/1-shrikhand-mahadev-yatra5227mt.html?m=1) स्पर्श करें।
मैं और विशाल रतन जी अब श्री खंड महादेव यात्रा के लिए निरमण्ड नामक पहाड़ी गाँव की ओर बढ़ रहे थे...रास्ते में सड़क किनारे फौज द्वारा पत्थरों को गाढ कर लगाये पर्वतों के नमूने बहुत सुंदर थे, ये माडल तिब्बत, लद्दाख व हिमाचल प्रदेश को जोड़ते "माऊट गया"(6795मीटर) से सम्बन्धित थे...
समय दो पहर यानि 12बज चुके थे.... और दूर पहाडों की गोद में खेलता हुआ गाँव निरमण्ड नज़र आने लगा, सड़क अब सेबों के बागों से हो गुज़र रही थी, दोस्तों पेड़ों पर पत्ते कम और सेब ज्यादा नज़र आ रहे थे.. सच कहूँ तो पेडों पर इतने सारे सेबों के गुच्छों को इक्ट्ठा देख मेरी तो आँखें ही फट गई.... अलग-अलग नस्ल के सेब के पेड़, यहाँ तक कि मैने विशाल जी को एक पेड़ ऐसा भी दिखाया, जिस पर दो अलग-अलग किस्म के सेब,यानि आधे हरे रंग के गोल्डन जाति के सेब और गहरे लाल रंग के रॉयल रेड डिलिशियस जाति के सेब लगे थे.....और कहा, " देखो यह है कृषि विज्ञान का कमाल".........वह सारा इलाका ही फलदार पेड़ों से भरा पड़ा था...अख़रोट, बब्बूगोशें, आडू आदि के पेड़ों के बीच में से निकल कर हमारी गाड़ी निरमण्ड(1450मीटर) में जा पहुँची.....एक व्यस्त बाज़ार की तंग सड़क से निकल कर हमारी दौड़ जारी रही, क्योंकि हमे हमारा लक्ष्य यानि "जांओं" गाँव (यहाँ से श्री खंड महादेव की पैदल यात्रा आरम्भ होती है) कहीं भी रुकने नही दे रहा था, हांलाकि निरमण्ड कोई साधारण गाँव नही.... यह गाँव हिमाचल प्रदेश का दूसरा बडा गाँव है, जिसे हिमालय की काशी नाम प्राप्त है, जो भगवान परशुराम मंदिर, माता अम्बिका मंदिर व दख्णी महादेव मंदिर के कारण प्रसिद्ध है..... जबकि हिमाचल प्रदेश का सबसे बड़ा गाँव "देहला"(जिला- ऊना) है, जो मेरे शहर गढ़शंकर (पंजाब) से मात्र 35किलोमीटर की दूरी पर है....
बस एक मशीनी मानव की तरह बेदिल सा बन, रास्ते में खड़ी हर सुंदर "रुकावट" को लांघता हुआ आगे ही आगे बढ़ता जा रहा था, क्योंकि जब भी मैं और विशाल जी इक्ट्ठा चल देते हैं इन पहाडों की ओर.... तो विशाल जी अपने संग "समय सीमा" नामक "नामुराद बीमारी" दिल्ली से ही ले आते हैं, क्योंकि वे एक नौकरीपेशा सज्जन है और वो भी दिल्ली की अत्यंत निष्ठुर जीवनशैली की व्यस्तता में...... जबकि मैं अपने काम का खुद सरदार हूँ और अपने बड़े सरदार यानि मेरे पिता जी के दम पर बहुत लम्बी-लम्बी छलांगें लगा जाता हूँ.......... सो, मुझे विशाल जी की छुट्टियों को देख कर ही " समय सीमा" नामक फ़रमान का आदर करना होता है....
और, दोपहर एक बजे के करीब "बागीपुल" नामक स्थान से मात्र 6किलोमीटर रह गए जांओं गाँव की ओर गाड़ी चढ़ा दी..... एक छोटी सी नई बनी सड़क पर एक पहाड के कंधे से उतर दूसरे पहाड के कंधे पर चढ़ रही थी मेरी गाड़ी..... लाख कोशिश के बाद भी मशीनी मानव बने मेरे शरीर का बाया पैर विद्रोह कर जाता... और गाड़ी के ब्रेक पैडल को दबा देता था, ताकि राह में निरंतर आती जा रही खूबसूरत रुकावटों को निहार सके, कभी झरने की सुरम्यता गाड़ी के ब्रेक पैडल पर भारी पड़ती, तो कभी राह में आई गद्दियों की भेड़े....आखिर उस जगह से गुज़रा, जहाँ उस छोटी सी सड़क के किनारे कई सारी गाड़ियाँ खड़ी थी, यह बात सिद्ध कर रही थी कि हमारी मंजिल यानि जांओं गाँव(2000मीटर)आ चुका है..... परन्तु गाड़ी खड़ी करने की कोई भी खुली जगह कहीं नही थी... मैने सड़क के किनारे-किनारे दो किलोमीटर आगे जा कर भी देखा, परन्तु कोई खुली जगह नही मिली.... सो वापस वही आकर खाई की दूसरी तरफ पहाड की ओर एक जगह ढूँढ कर गाड़ी को सटा कर खड़ा कर दिया....सुना है दोस्तों कि जांओं गाँव ऋषि जमदग्नि की तपस्थली रहा है......
और, अपना यात्रा सम्बन्धी सामान इक्ट्ठा करने में व्यस्त हो गए...अपने कपड़े बदल पहले से ही तैयार कर रखे सामान की रक्सक मैने गाड़ी से निकाल बाहर सड़क किनारे पत्थर पर रख दिया, जबकि विशाल जी अपनी तैयारी में मगन थे....मैने कुछ समय पहले ही इस यात्रा सम्बन्धी अपडेट अपनी फेसबुक प्रोफ़ाइल पर डाला था, तो मेरे एक फेसबुक मित्र ने हमे उस पोस्ट पर सलाह दी, वे अभी दो सप्ताह पहले ही इस यात्रा पर गए थे... कि विकास जी, कोई भी फालतू सामान इस यात्रा पर साथ ले कर मत जाना, सब कुछ आपको इस यात्रा के दौरान मिलता रहेगा.. खाने व रहने के पूरे इंतजाम है इस पूरी यात्रा पर, जितना हो सके कम से कम भार अपने साथ उठा के ले जाना जनाब...!
समझदार को इशारा ही बहुत...मैं जहाँ विशाल जी की बात कर रहा हूँ और उन्होंने मेरे मुख से यह बात सुनतें ही अपने सारे सामान से बेहद जरुरी सामान छांट लिया और मैने भी टैंट व स्लीपिंग मैट अपनी रक्सक से निकाल गाड़ी में रख दिया.... जहाँ तक कि विशाल जी ने अपनी "कमर पेटी" यानि बैल्ट भी यह कह कर उतार गाड़ी में फेंक दी, कि छोड़ों विकास जी इसका भी वजन बगैर मतलब के क्यों ढोना है...मुझे उस समय तो समझ नही आ रहा था, कि विशाल जी की इस कारगुज़ारी को समझदारी कहूँ या नही... पर मैने अपनी कमर पर बंधी बैल्ट को और कस कर बांध लिया, कि वर्षो से जिस ख्वाब को मैं देखता आ रहा हूँ... आज उस ख्वाब की असलियत में चलने का समय आ गया है, उस ख्वाब में "राग" गाने का वक्त आ चुका है.... और उस उल्लासी राग के बोल थे "जय शिव भोले, बम बम भोले "
यह उद्घोष लगा, हमने 3बजे अपनी 36 किलोमीटर लम्बी श्री खंड महादेव कैलाश पदयात्रा को प्रथम कदम दिया....
और, पक्की सड़क से चैल घाटी में उतर कर कुरपन नदी की ओर चलना शुरू कर दिया, ट्रैक शुरू होने वाली जगह पर ही लंगर व कुछ यात्रा सम्बन्धी कच्ची दुकाने थी, हमारी रक्सकों पर बंधी घंटियों की आवाज़ और हमारा पहरावा हमे बाकी यात्रियों से अलग कर रहा था... इस वजह से उस छोटे से बाज़ार में हमे कई लोगों ने भगवान शिव जयकारें लगा, उत्साहित कर आगे की ओर भेजा.... कुछ उतराई उतरे तो सामने से वापस आ रहे दो पदयात्रियों ने हमे देख जोर से शिव भोले का जयकारा लगाया, उनके पास आने पर मैने पूछा, "भक्तों दर्शन कर आए "...तो वे बोले, "हां हमारी यात्रा सफल हो गई... परन्तु बहुत कठिन है भाई यह यात्रा, आज सातवें दिन वापस पहुँचें है....! "
मैने फिर से पूछा कि आप लोग कहाँ से हो... तो जवाब सुन हमारी हैरानी की सीमा नही रही कि वे दोनों दोस्त अहमदाबाद गुजरात से श्री खंड महादेव यात्रा के लिए आए थे, मैं सोच में पड़ गया कि आस्तिकता में इसे भगवान शिव का बुलावा ही कहेंगें.... और हम जैसे पर्वत प्रेमियों को तो बस बहाना चाहिए पर्वत पर चढ़ने के लिए....
विशाल जी ने उनसे आगे के रास्ते के बारे में सलाह- मशवरा करना शुरू कर दिया, तो उन्होंने हमे सलाह दी, कि आज आप लोग श्री खंड यात्रा के प्रथम पड़ाव "सिंहगाड़" जो जहाँ से तीन किलोमीटर दूर है, पर पहुंच कर श्री खंड महादेव सेवा दल के द्वारा चलाये जा रहे लंगर में रात्रि विश्राम करे, वहाँ से सुबह और यात्रियों के साथ ही यात्रा के अगले दिन के रात्रि पड़ाव "थाचडू" के लिए चल देना.....सिंहगाड़ लंगर पर पहुंच कर लंगर कमेटी के मुख्य प्रबंधक से मिल लेना, वह बहुत सहयोगी सज्जन है और यात्रियों की सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहते है......
अभी कुछ कदम ही चले थे कि, आवाज़ आई..."भक्तों पूरी-छौले"...यह शुरुआत साबित कर रही थी कि यात्रा में भोजन की कमी नही होगी और उस छोटे से लंगर में प्रबंधकों ने राति विश्राम हेतू कम्बल आदि भी रखे हुए थे, परन्तु हम उन आवाज़ देने वाले सज्जन को हाथ जोड़ कर यात्रा प्रथम चढ़ाई चढ़ने लगे... ऊपर की ओर चढ़ कर दूसरी तरफ देखा तो, चैल घाटी में बह रही कुरपन नदी की तीव्र धारा पर्वतों के चरण धोती हुई बह रही थी और दूर सामने पहाड केे सीने पर बसा छोटा सा रंग-बिरंगा गाँव मस्कुरा रहा था... कि मेरे पीछे एक लड़का आ बोला, " सर ट्रेकरस् का ग्रुप जा रहा है श्री खंड " ......तो मैने कहा नही भाई, हम दोनों ही आजाद पंरिदें जा रहे है श्री खंड महादेव यात्रा पर...
और, जो भी मुझे रास्ते में मिल जाता है...मैं उस का साथ नही छोड़ता दोस्तों, क्योंकि इसमें मेरा स्वार्थ छिपा होता है कि उस शख्स से अपने सवालों के जवाब और जानकारियाँ हासिल करनी होती है... और उस लड़के ने अपना नाम बताया... "आशु" और गाँव थरला......
........................................(क्रमश:)
" ख्वाब में राग "
इस चित्रकथा को आरंभ से पढ़ने का यंत्र (https://vikasnarda.blogspot.com/2017/04/1-shrikhand-mahadev-yatra5227mt.html?m=1) स्पर्श करें।
मैं और विशाल रतन जी अब श्री खंड महादेव यात्रा के लिए निरमण्ड नामक पहाड़ी गाँव की ओर बढ़ रहे थे...रास्ते में सड़क किनारे फौज द्वारा पत्थरों को गाढ कर लगाये पर्वतों के नमूने बहुत सुंदर थे, ये माडल तिब्बत, लद्दाख व हिमाचल प्रदेश को जोड़ते "माऊट गया"(6795मीटर) से सम्बन्धित थे...
समय दो पहर यानि 12बज चुके थे.... और दूर पहाडों की गोद में खेलता हुआ गाँव निरमण्ड नज़र आने लगा, सड़क अब सेबों के बागों से हो गुज़र रही थी, दोस्तों पेड़ों पर पत्ते कम और सेब ज्यादा नज़र आ रहे थे.. सच कहूँ तो पेडों पर इतने सारे सेबों के गुच्छों को इक्ट्ठा देख मेरी तो आँखें ही फट गई.... अलग-अलग नस्ल के सेब के पेड़, यहाँ तक कि मैने विशाल जी को एक पेड़ ऐसा भी दिखाया, जिस पर दो अलग-अलग किस्म के सेब,यानि आधे हरे रंग के गोल्डन जाति के सेब और गहरे लाल रंग के रॉयल रेड डिलिशियस जाति के सेब लगे थे.....और कहा, " देखो यह है कृषि विज्ञान का कमाल".........वह सारा इलाका ही फलदार पेड़ों से भरा पड़ा था...अख़रोट, बब्बूगोशें, आडू आदि के पेड़ों के बीच में से निकल कर हमारी गाड़ी निरमण्ड(1450मीटर) में जा पहुँची.....एक व्यस्त बाज़ार की तंग सड़क से निकल कर हमारी दौड़ जारी रही, क्योंकि हमे हमारा लक्ष्य यानि "जांओं" गाँव (यहाँ से श्री खंड महादेव की पैदल यात्रा आरम्भ होती है) कहीं भी रुकने नही दे रहा था, हांलाकि निरमण्ड कोई साधारण गाँव नही.... यह गाँव हिमाचल प्रदेश का दूसरा बडा गाँव है, जिसे हिमालय की काशी नाम प्राप्त है, जो भगवान परशुराम मंदिर, माता अम्बिका मंदिर व दख्णी महादेव मंदिर के कारण प्रसिद्ध है..... जबकि हिमाचल प्रदेश का सबसे बड़ा गाँव "देहला"(जिला- ऊना) है, जो मेरे शहर गढ़शंकर (पंजाब) से मात्र 35किलोमीटर की दूरी पर है....
बस एक मशीनी मानव की तरह बेदिल सा बन, रास्ते में खड़ी हर सुंदर "रुकावट" को लांघता हुआ आगे ही आगे बढ़ता जा रहा था, क्योंकि जब भी मैं और विशाल जी इक्ट्ठा चल देते हैं इन पहाडों की ओर.... तो विशाल जी अपने संग "समय सीमा" नामक "नामुराद बीमारी" दिल्ली से ही ले आते हैं, क्योंकि वे एक नौकरीपेशा सज्जन है और वो भी दिल्ली की अत्यंत निष्ठुर जीवनशैली की व्यस्तता में...... जबकि मैं अपने काम का खुद सरदार हूँ और अपने बड़े सरदार यानि मेरे पिता जी के दम पर बहुत लम्बी-लम्बी छलांगें लगा जाता हूँ.......... सो, मुझे विशाल जी की छुट्टियों को देख कर ही " समय सीमा" नामक फ़रमान का आदर करना होता है....
और, दोपहर एक बजे के करीब "बागीपुल" नामक स्थान से मात्र 6किलोमीटर रह गए जांओं गाँव की ओर गाड़ी चढ़ा दी..... एक छोटी सी नई बनी सड़क पर एक पहाड के कंधे से उतर दूसरे पहाड के कंधे पर चढ़ रही थी मेरी गाड़ी..... लाख कोशिश के बाद भी मशीनी मानव बने मेरे शरीर का बाया पैर विद्रोह कर जाता... और गाड़ी के ब्रेक पैडल को दबा देता था, ताकि राह में निरंतर आती जा रही खूबसूरत रुकावटों को निहार सके, कभी झरने की सुरम्यता गाड़ी के ब्रेक पैडल पर भारी पड़ती, तो कभी राह में आई गद्दियों की भेड़े....आखिर उस जगह से गुज़रा, जहाँ उस छोटी सी सड़क के किनारे कई सारी गाड़ियाँ खड़ी थी, यह बात सिद्ध कर रही थी कि हमारी मंजिल यानि जांओं गाँव(2000मीटर)आ चुका है..... परन्तु गाड़ी खड़ी करने की कोई भी खुली जगह कहीं नही थी... मैने सड़क के किनारे-किनारे दो किलोमीटर आगे जा कर भी देखा, परन्तु कोई खुली जगह नही मिली.... सो वापस वही आकर खाई की दूसरी तरफ पहाड की ओर एक जगह ढूँढ कर गाड़ी को सटा कर खड़ा कर दिया....सुना है दोस्तों कि जांओं गाँव ऋषि जमदग्नि की तपस्थली रहा है......
और, अपना यात्रा सम्बन्धी सामान इक्ट्ठा करने में व्यस्त हो गए...अपने कपड़े बदल पहले से ही तैयार कर रखे सामान की रक्सक मैने गाड़ी से निकाल बाहर सड़क किनारे पत्थर पर रख दिया, जबकि विशाल जी अपनी तैयारी में मगन थे....मैने कुछ समय पहले ही इस यात्रा सम्बन्धी अपडेट अपनी फेसबुक प्रोफ़ाइल पर डाला था, तो मेरे एक फेसबुक मित्र ने हमे उस पोस्ट पर सलाह दी, वे अभी दो सप्ताह पहले ही इस यात्रा पर गए थे... कि विकास जी, कोई भी फालतू सामान इस यात्रा पर साथ ले कर मत जाना, सब कुछ आपको इस यात्रा के दौरान मिलता रहेगा.. खाने व रहने के पूरे इंतजाम है इस पूरी यात्रा पर, जितना हो सके कम से कम भार अपने साथ उठा के ले जाना जनाब...!
समझदार को इशारा ही बहुत...मैं जहाँ विशाल जी की बात कर रहा हूँ और उन्होंने मेरे मुख से यह बात सुनतें ही अपने सारे सामान से बेहद जरुरी सामान छांट लिया और मैने भी टैंट व स्लीपिंग मैट अपनी रक्सक से निकाल गाड़ी में रख दिया.... जहाँ तक कि विशाल जी ने अपनी "कमर पेटी" यानि बैल्ट भी यह कह कर उतार गाड़ी में फेंक दी, कि छोड़ों विकास जी इसका भी वजन बगैर मतलब के क्यों ढोना है...मुझे उस समय तो समझ नही आ रहा था, कि विशाल जी की इस कारगुज़ारी को समझदारी कहूँ या नही... पर मैने अपनी कमर पर बंधी बैल्ट को और कस कर बांध लिया, कि वर्षो से जिस ख्वाब को मैं देखता आ रहा हूँ... आज उस ख्वाब की असलियत में चलने का समय आ गया है, उस ख्वाब में "राग" गाने का वक्त आ चुका है.... और उस उल्लासी राग के बोल थे "जय शिव भोले, बम बम भोले "
यह उद्घोष लगा, हमने 3बजे अपनी 36 किलोमीटर लम्बी श्री खंड महादेव कैलाश पदयात्रा को प्रथम कदम दिया....
और, पक्की सड़क से चैल घाटी में उतर कर कुरपन नदी की ओर चलना शुरू कर दिया, ट्रैक शुरू होने वाली जगह पर ही लंगर व कुछ यात्रा सम्बन्धी कच्ची दुकाने थी, हमारी रक्सकों पर बंधी घंटियों की आवाज़ और हमारा पहरावा हमे बाकी यात्रियों से अलग कर रहा था... इस वजह से उस छोटे से बाज़ार में हमे कई लोगों ने भगवान शिव जयकारें लगा, उत्साहित कर आगे की ओर भेजा.... कुछ उतराई उतरे तो सामने से वापस आ रहे दो पदयात्रियों ने हमे देख जोर से शिव भोले का जयकारा लगाया, उनके पास आने पर मैने पूछा, "भक्तों दर्शन कर आए "...तो वे बोले, "हां हमारी यात्रा सफल हो गई... परन्तु बहुत कठिन है भाई यह यात्रा, आज सातवें दिन वापस पहुँचें है....! "
मैने फिर से पूछा कि आप लोग कहाँ से हो... तो जवाब सुन हमारी हैरानी की सीमा नही रही कि वे दोनों दोस्त अहमदाबाद गुजरात से श्री खंड महादेव यात्रा के लिए आए थे, मैं सोच में पड़ गया कि आस्तिकता में इसे भगवान शिव का बुलावा ही कहेंगें.... और हम जैसे पर्वत प्रेमियों को तो बस बहाना चाहिए पर्वत पर चढ़ने के लिए....
विशाल जी ने उनसे आगे के रास्ते के बारे में सलाह- मशवरा करना शुरू कर दिया, तो उन्होंने हमे सलाह दी, कि आज आप लोग श्री खंड यात्रा के प्रथम पड़ाव "सिंहगाड़" जो जहाँ से तीन किलोमीटर दूर है, पर पहुंच कर श्री खंड महादेव सेवा दल के द्वारा चलाये जा रहे लंगर में रात्रि विश्राम करे, वहाँ से सुबह और यात्रियों के साथ ही यात्रा के अगले दिन के रात्रि पड़ाव "थाचडू" के लिए चल देना.....सिंहगाड़ लंगर पर पहुंच कर लंगर कमेटी के मुख्य प्रबंधक से मिल लेना, वह बहुत सहयोगी सज्जन है और यात्रियों की सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहते है......
अभी कुछ कदम ही चले थे कि, आवाज़ आई..."भक्तों पूरी-छौले"...यह शुरुआत साबित कर रही थी कि यात्रा में भोजन की कमी नही होगी और उस छोटे से लंगर में प्रबंधकों ने राति विश्राम हेतू कम्बल आदि भी रखे हुए थे, परन्तु हम उन आवाज़ देने वाले सज्जन को हाथ जोड़ कर यात्रा प्रथम चढ़ाई चढ़ने लगे... ऊपर की ओर चढ़ कर दूसरी तरफ देखा तो, चैल घाटी में बह रही कुरपन नदी की तीव्र धारा पर्वतों के चरण धोती हुई बह रही थी और दूर सामने पहाड केे सीने पर बसा छोटा सा रंग-बिरंगा गाँव मस्कुरा रहा था... कि मेरे पीछे एक लड़का आ बोला, " सर ट्रेकरस् का ग्रुप जा रहा है श्री खंड " ......तो मैने कहा नही भाई, हम दोनों ही आजाद पंरिदें जा रहे है श्री खंड महादेव यात्रा पर...
और, जो भी मुझे रास्ते में मिल जाता है...मैं उस का साथ नही छोड़ता दोस्तों, क्योंकि इसमें मेरा स्वार्थ छिपा होता है कि उस शख्स से अपने सवालों के जवाब और जानकारियाँ हासिल करनी होती है... और उस लड़के ने अपना नाम बताया... "आशु" और गाँव थरला......
........................................(क्रमश:)
तिब्बत,लद्दाख व हिमाचल की संयुक्त सीमा पर स्थित पर्वतों के माडल... जो एक सैन्य छावनी के बाहर लगे हुए थे |
निरमण्ड......दो किलोमीटर से कुछ मीटर कम |
इस इलाके की सुंदरता को चार चांद लगते ये फलों से लदे हुए पेड़... |
दोस्तो, सच बताना... पेड़ पर लगे हुए सेब ज्यादा सुंदर दिखतें है या फिर किसी दुकान में फलों की टोकरियों में...! |
निरमण्ड गाँव को देख.... मेरा कैमरा भी मस्कुरा दिया, और यह हसीन दिलकश यादगार मुझे भेट की |
खूबसूरत रुकावटे...!!! |
निरमण्ड से आगे बागी पुल की ओर..... |
बागी पुल गाँव के सुंदर दर्शन.... |
मित्रों...सोचों कि हमारी जगह आप लोग इस हसीन वादी में जा रही सड़क पर गाड़ी में जा रहे हैं, और यह सुंदर रुकावट आप के सामने खड़ी है....!!! |
कभी आगे देखूँ, तो कभी पीछे....हे प्रकृति,तेरी सुंदरता मन को मोह रही थी.... |
जांओं पहुंच...सड़क के किनारे गाड़ी को लावारिस ही छोड़ दिया... |
मैने झट से अपना रक्सक गाड़ी से निकाल... बाहर पत्थर पर रख दिया, जबकि विशाल जी अपना बेहद जरुरी सामान चुनने में व्यस्त थे... |
लो जी, तैयार हो गए हम.... "दो पर्वतारोही " |
यही रास्ता श्री खंड महादेव जाता है, सड़क से नीचे उतर कर.... |
लो जी, सड़क छोड़ कच्चे रास्ते पर पहुंच गए.... दोनों पर्वतारोही |
अहमदाबाद(गुजरात) से आए श्री खंड यात्रियों के संग.... |
भक्तों....छोले-भूटरे |
श्री खंड महादेव की ओर....प्रथम सीढ़ियाँ चढ़ते हम दोनों... |
कुछ ऊपर चढ़ कर देखा कि... चैल घाटी में कुरपन नदी पर्वतों के चरण धोती हुई बह रही थी.... |
और, सामने पर्वत के सीने पर बसा गाँव मस्कुरा रहा था... |
इस शक्स को तो आप लोग आसानी से पहचान लो गे ना, दोस्तों....! |
सर, ट्रेकरस् का ग्रुप जा रहा है श्री खंड.......मेरे पीछे चढ़ रहे आशु ने पूछा.... |
हिमाचल के दो बड़े गाव की सुंदर जानकारी और समय सीमा नामक नामुराद बीमारी के साथ बढ़िया लेख...भक्तो छोले भटूरे वाह हर हर महादेव.
जवाब देंहटाएंहर हर महादेव, प्रतीक जी।
हटाएंजब मंजिल पर पहुचना हो तब अच्छे अच्छे नजारे भी देखने छोड़ने पड़ते है ..... आपकी श्री खंड यात्रा आरम्भ हुई.... हर हर महादेव
जवाब देंहटाएंमन कर रहा है झोला उठाकर चल दु😊 नामुराद टांगो को यही काटकर फेंक दू... हर हर महादेव...
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