भाग-23 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर.....
संकट का "स".....!
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नयन सरोवर पर करीब आधा घंटा रुकने के उपरांत मैं, विशाल रतन जी व पथप्रदर्शक केवल पुनः श्री खंड शिला की ओर अग्रसर होते हुए "गई पर्वत " पर चढ़ाई करने लगे, बेहद सीधी चढ़ाई और रास्ते के नाम पर एक पत्थर से उछल दूसरे पत्थर पर चढ़ो-उतरो.......बस ऊपर दिख रहे अन्य पदयात्रियों की दिशा ही हमारे रास्ते की दिशा को तय कर रही थी, मैने ऐसी स्थिति को अपनी "होली-मनीमहेश यात्रा" के दौरान "सुखड़ली" के बाद आई "कलाह पर्वत" की चढ़ाई से मेल कर विशाल जी को याद करवा कर बोला कि देखो कलाह पर्वत सी चढ़ाई है ना, तो विशाल जी बोले, " हां, परन्तु वहाँ तो एक कलाह पर्वत की कठिन चढ़ाई थी, यहाँ तो चार कलाह पर्वतों के जैसी चढ़ाई आगे नज़र आ रही है विकास जी...! " और मैं जोश से बोला, " बम बोल... कोई चिंता नही...!! "
परन्तु दोस्तों "चिंता" तो ऊपर बैठी एक निश्चित जगह पर हमारा इंतजार कर रही थी.... बस उस चिंता की ओर हम कदम-दर-कदम बढ़ते जा रहे थे... विशाल जी की रफ्तार बेहद कम हो चली थी, सो पथप्रदर्शक केवल उनकी निरंतर सहायता करता जा रहा था..... मेरा हाल वही पुराना, कभी ऊपर की फोटो खींचूँ तो कभी पीछे मुड़ कर कैमरे के बटन दबाता.... ऐसा करने पर मुझे यात्रा के दौरान साँस लेने का अवसर खुद व खुद ही मिल जाता है जबकि विशाल जी मस्त हो निरंतर चले रहते हैं।
पौने घंटे चढ़ते रहने पर गई पर्वत के मध्य में पहुँच कर वहाँ से नयन सरोवर का जो दृश्य नज़र आ रहा था, वह बेहद दिलकश था और वहीं से ही हमे दूर भीरद्वारी के भी दर्शन होने लगे, जहाँ से हम सुबह 3बजे के चले हुए थे... तभी नीचे पार्वती बाग की ओर से कुछ लड़कों का दल चढ़ता हुआ नयन सरोवर की ओर आता दिखा, जिन की मस्ती भरी चीखों से पूरी घाटी गूंज रही थी.....मैं विशाल जी से बोला, " लो आ गए गढ़शंकरियें... ये लोग निश्चित पम्मा और उसके साथी है, जो हमे कल रास्ते में मिले थे... विशाल जी हम पंजाबियों की यह ही पहचान है कि हम लोग जब बेहद खुश होते हैं, तो चीखें व हुंकारें हमारे मुख से खुद व खुद ही निकलती है, किसी विशेष स्थान या मौके पर पहुँच कर हम पंजाबी अपनी चंचलता को काबू में नही रख पाते, जैसे मैने तमिलनाडु यात्रा के दौरान ऐलौरा की गुफाओं में देखा था कि एक तरफ तो देश-विदेश से आए सैलानी विश्वप्रसिद्ध गुफा मंदिरों के साथ अपनी फोटो खिंचवा रहे थे और दूसरी तरफ दो पंजाबी नौजवान एक पेड़ पर चढ़ कर उससे लटक-लटक कर अपनी फोटो खिंचवाने में मस्त-व्यस्त थे...!!! "
मेरी बात फिर से विशाल जी को हंसने के लिए मजबूर कर गई... और नयन सरोवर पर भी मेरे गढ़शंकरिये पंजाबी भाइयों ने ठीक वैसे ही अपनी चंचलता का परिचय दिया, सारे-के-सारे जमी हुई नयन सरोवर पर चढ़ कर मस्ती में शिव के जयकारें और चीखों की मिश्रित बोली बोलने लगे।
नयन सरोवर के करीब एक घंटे चलते रहने के बाद जैसे ही गई पर्वत के शिखर पर पैर रखा, दूसरी तरफ नज़ारा अलौकिक ही था दोस्तों, महान हिमालय की हिमाच्छादित चोटियाें की लम्बी कतार देख कर जैसे मेरा सम्पूर्ण शरीर ही एक जगह पत्थर बन जम गया हो... मैं पलकें झपकाना ही भूल गया, क्योंकि वह नज़ारा जीवन में पहली बार देखा था....और पीछे एक चिरपरिचित शब्द कानों में आ गूँजा, "ओसम्" ...............विशाल जी भी हक्के-बक्के से खड़े पर्वत के दूसरी ओर दिख रही नई सुंदरता को अपनी आँखों में समेट रहे थे और आखिर उनका कैमरा भी कुछ समय के लिए सांसें लेने लगा, जबकि मेरे कैमरे को तो उल्टा आक्सीजन देनी पड़ती है दोस्तों।
करीब आधा घंटा तो हम दोनों प्रकृति प्रेमी उस अनुपम दृश्यावली की महिमा गाते रहे क्योंकि पर्वत में सबसे खूबसूरत भाग उसका शिखर ही होता है, पर यहाँ तो हमें महान हिमालय के कई सारे शिखर एक साथ दिख रहे थे।
सो, अब गई पर्वत से "बसार गई पर्वत " की चढ़ाई की ओर रूख किया, तो हमारे पास से ऊपर से नीचे उतर रहे तीन लड़के जिनमें एक के पास "गिटार" थी, को मैने कहा कि क्यों भाई...भोले बाबा को सुना आए गिटार की धुन, तो वह लड़का बोला, " कहाँ जी, ऊपर तो बहुत ज्यादा ठंड है, गिटार बजाने की कोशिश भी की परन्तु हाथ सुन्न हो गए...! "
और तभी एक व्यक्ति और ऊपर से उतरा जिसकी फौजी सी पोशाक देख मैं बोला, "फौजी साहिब दर्शन हो गए, तो वे बोले, " हाँ, पर मैं फौजी नही हूँ " मैं झट से बोला, " तो फिर क्या हुआ, चलो हम सब मिल कर भारत माता की जय का उद्घोष लगाते है " और एक दम से मैने आस-पास सब में जोश भर दिया।
वहीं रास्ते में विश्राम हेतू बैठे कुछ नवयुवकों के दल ने मुझ से पूछा कि हम कितनी ऊँचाई पर पहुँच चुके हैं, मैने अपनी घड़ी देख इतराते हुए कहा, "4395मीटर....और आप में से जो भी लोग पहली बार इतनी ऊँचाई पर पहुँचें है, यह अपने-आप में ही किसी उपलब्धि से कम नही है। " वे सब एक सुर में बोले, " हम सभी पहली दफा जा रहे हैं श्री खंड...!"
बसार गई पर्वत पर चढ़ते हुए अभी केवल पांच मिनट ही हुए थे कि एकाएक मौसम में तबदीली आनी प्रारंभ हो गई..... नील गगन अपनी नीलिमा खोता सा नज़र आना आरंभ हो गया, मानों अकस्मात ही मेघों की सेना ने अम्बर को घेर लिया हो.... और झट से अपना प्रहार भूमि पर कर दिया, हम दोनों ने तीव्रता से अपने जलरोधी वस्त्र "पोंचूँ" धारण कर लिये व गाइड केवल ने अपनी छतरी तान ली...... पर यह क्या बारिश के साथ अब बर्फ भी गिरने लगी, खैर हौसले से मैं सबसे आगे चढ़ता रहा......
अब ताज़ा बनी प्रतिकूल परिस्थिति में मुझ नास्तिक में जाने फिर से "भाव" जाग उठा कि देख विकास, भोले बाबा ने तेरा क्या खूब स्वागत किया, तुझे इस यात्रा में हर रंग दिखा दिया... ले अब बर्फबारी का अनुभव भी ग्रहण कर...!! "
और, मैं वही अपना मनपसंद पहाड़ी भजन, " शिव कैलाशों के वासी, धौली धारों के राजा, शंकर संकट हरना.......! " "संकट" शब्द का केवल "स " ही बोल पाया कि भावुकता ने नेत्रों से नीर बहा दिया और शब्द कंठ में ही दब गये...... वह चंद क्षण अलौकिक चुप्पी के बहुत भारी व लम्बे लग रहे थे, कि अपनी मनोदशा को पीछे आ रहे विशाल जी तथा केवल से छुपातें हुए जोर-जोर से बम-बम भोले के जयकारे लगाने लगा, पर अपनी चलने की गति को कम नही होने दिया...... परन्तु विशाल जी को चलने में दिक्कत थी क्योंकि उनका पोंचूँ चढ़ाई चढ़ते समय उनके पैरों में बार-बार फंसता जा रहा था, तो मैने उनके पोंचूँ को ऊपर कर गांठें बांध दी।
मौसम अब हर पल अपना जोर बढ़ाता सा जा रहा था, सफेद शरीफ बादलों का रंग बदमाशी पर आ काला होने लगा था, रही- सही कसर अब हवा ने चल कर निकाल दी थी...उस अत्यन्त सर्द हवा के प्रहार हमारे शरीर को तोड़ रहे थे, परन्तु मैं रुक नही रहा था...कदम-दर-कदम ऊपर की ओर बढ़ाता जा रहा था, और निरंतर अपनी घड़ी पर तापमान भी देखता जा रहा था, मौसम बिगड़ने से पहले गई पर्वत पर तापमान 8डिग्री था जो अब पिछले दस मिनट में लगातार घट कर 4डिग्री के करीब आ चुका था............ !
................................(क्रमश:)
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संकट का "स".....!
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नयन सरोवर पर करीब आधा घंटा रुकने के उपरांत मैं, विशाल रतन जी व पथप्रदर्शक केवल पुनः श्री खंड शिला की ओर अग्रसर होते हुए "गई पर्वत " पर चढ़ाई करने लगे, बेहद सीधी चढ़ाई और रास्ते के नाम पर एक पत्थर से उछल दूसरे पत्थर पर चढ़ो-उतरो.......बस ऊपर दिख रहे अन्य पदयात्रियों की दिशा ही हमारे रास्ते की दिशा को तय कर रही थी, मैने ऐसी स्थिति को अपनी "होली-मनीमहेश यात्रा" के दौरान "सुखड़ली" के बाद आई "कलाह पर्वत" की चढ़ाई से मेल कर विशाल जी को याद करवा कर बोला कि देखो कलाह पर्वत सी चढ़ाई है ना, तो विशाल जी बोले, " हां, परन्तु वहाँ तो एक कलाह पर्वत की कठिन चढ़ाई थी, यहाँ तो चार कलाह पर्वतों के जैसी चढ़ाई आगे नज़र आ रही है विकास जी...! " और मैं जोश से बोला, " बम बोल... कोई चिंता नही...!! "
परन्तु दोस्तों "चिंता" तो ऊपर बैठी एक निश्चित जगह पर हमारा इंतजार कर रही थी.... बस उस चिंता की ओर हम कदम-दर-कदम बढ़ते जा रहे थे... विशाल जी की रफ्तार बेहद कम हो चली थी, सो पथप्रदर्शक केवल उनकी निरंतर सहायता करता जा रहा था..... मेरा हाल वही पुराना, कभी ऊपर की फोटो खींचूँ तो कभी पीछे मुड़ कर कैमरे के बटन दबाता.... ऐसा करने पर मुझे यात्रा के दौरान साँस लेने का अवसर खुद व खुद ही मिल जाता है जबकि विशाल जी मस्त हो निरंतर चले रहते हैं।
पौने घंटे चढ़ते रहने पर गई पर्वत के मध्य में पहुँच कर वहाँ से नयन सरोवर का जो दृश्य नज़र आ रहा था, वह बेहद दिलकश था और वहीं से ही हमे दूर भीरद्वारी के भी दर्शन होने लगे, जहाँ से हम सुबह 3बजे के चले हुए थे... तभी नीचे पार्वती बाग की ओर से कुछ लड़कों का दल चढ़ता हुआ नयन सरोवर की ओर आता दिखा, जिन की मस्ती भरी चीखों से पूरी घाटी गूंज रही थी.....मैं विशाल जी से बोला, " लो आ गए गढ़शंकरियें... ये लोग निश्चित पम्मा और उसके साथी है, जो हमे कल रास्ते में मिले थे... विशाल जी हम पंजाबियों की यह ही पहचान है कि हम लोग जब बेहद खुश होते हैं, तो चीखें व हुंकारें हमारे मुख से खुद व खुद ही निकलती है, किसी विशेष स्थान या मौके पर पहुँच कर हम पंजाबी अपनी चंचलता को काबू में नही रख पाते, जैसे मैने तमिलनाडु यात्रा के दौरान ऐलौरा की गुफाओं में देखा था कि एक तरफ तो देश-विदेश से आए सैलानी विश्वप्रसिद्ध गुफा मंदिरों के साथ अपनी फोटो खिंचवा रहे थे और दूसरी तरफ दो पंजाबी नौजवान एक पेड़ पर चढ़ कर उससे लटक-लटक कर अपनी फोटो खिंचवाने में मस्त-व्यस्त थे...!!! "
मेरी बात फिर से विशाल जी को हंसने के लिए मजबूर कर गई... और नयन सरोवर पर भी मेरे गढ़शंकरिये पंजाबी भाइयों ने ठीक वैसे ही अपनी चंचलता का परिचय दिया, सारे-के-सारे जमी हुई नयन सरोवर पर चढ़ कर मस्ती में शिव के जयकारें और चीखों की मिश्रित बोली बोलने लगे।
नयन सरोवर के करीब एक घंटे चलते रहने के बाद जैसे ही गई पर्वत के शिखर पर पैर रखा, दूसरी तरफ नज़ारा अलौकिक ही था दोस्तों, महान हिमालय की हिमाच्छादित चोटियाें की लम्बी कतार देख कर जैसे मेरा सम्पूर्ण शरीर ही एक जगह पत्थर बन जम गया हो... मैं पलकें झपकाना ही भूल गया, क्योंकि वह नज़ारा जीवन में पहली बार देखा था....और पीछे एक चिरपरिचित शब्द कानों में आ गूँजा, "ओसम्" ...............विशाल जी भी हक्के-बक्के से खड़े पर्वत के दूसरी ओर दिख रही नई सुंदरता को अपनी आँखों में समेट रहे थे और आखिर उनका कैमरा भी कुछ समय के लिए सांसें लेने लगा, जबकि मेरे कैमरे को तो उल्टा आक्सीजन देनी पड़ती है दोस्तों।
करीब आधा घंटा तो हम दोनों प्रकृति प्रेमी उस अनुपम दृश्यावली की महिमा गाते रहे क्योंकि पर्वत में सबसे खूबसूरत भाग उसका शिखर ही होता है, पर यहाँ तो हमें महान हिमालय के कई सारे शिखर एक साथ दिख रहे थे।
सो, अब गई पर्वत से "बसार गई पर्वत " की चढ़ाई की ओर रूख किया, तो हमारे पास से ऊपर से नीचे उतर रहे तीन लड़के जिनमें एक के पास "गिटार" थी, को मैने कहा कि क्यों भाई...भोले बाबा को सुना आए गिटार की धुन, तो वह लड़का बोला, " कहाँ जी, ऊपर तो बहुत ज्यादा ठंड है, गिटार बजाने की कोशिश भी की परन्तु हाथ सुन्न हो गए...! "
और तभी एक व्यक्ति और ऊपर से उतरा जिसकी फौजी सी पोशाक देख मैं बोला, "फौजी साहिब दर्शन हो गए, तो वे बोले, " हाँ, पर मैं फौजी नही हूँ " मैं झट से बोला, " तो फिर क्या हुआ, चलो हम सब मिल कर भारत माता की जय का उद्घोष लगाते है " और एक दम से मैने आस-पास सब में जोश भर दिया।
वहीं रास्ते में विश्राम हेतू बैठे कुछ नवयुवकों के दल ने मुझ से पूछा कि हम कितनी ऊँचाई पर पहुँच चुके हैं, मैने अपनी घड़ी देख इतराते हुए कहा, "4395मीटर....और आप में से जो भी लोग पहली बार इतनी ऊँचाई पर पहुँचें है, यह अपने-आप में ही किसी उपलब्धि से कम नही है। " वे सब एक सुर में बोले, " हम सभी पहली दफा जा रहे हैं श्री खंड...!"
बसार गई पर्वत पर चढ़ते हुए अभी केवल पांच मिनट ही हुए थे कि एकाएक मौसम में तबदीली आनी प्रारंभ हो गई..... नील गगन अपनी नीलिमा खोता सा नज़र आना आरंभ हो गया, मानों अकस्मात ही मेघों की सेना ने अम्बर को घेर लिया हो.... और झट से अपना प्रहार भूमि पर कर दिया, हम दोनों ने तीव्रता से अपने जलरोधी वस्त्र "पोंचूँ" धारण कर लिये व गाइड केवल ने अपनी छतरी तान ली...... पर यह क्या बारिश के साथ अब बर्फ भी गिरने लगी, खैर हौसले से मैं सबसे आगे चढ़ता रहा......
अब ताज़ा बनी प्रतिकूल परिस्थिति में मुझ नास्तिक में जाने फिर से "भाव" जाग उठा कि देख विकास, भोले बाबा ने तेरा क्या खूब स्वागत किया, तुझे इस यात्रा में हर रंग दिखा दिया... ले अब बर्फबारी का अनुभव भी ग्रहण कर...!! "
और, मैं वही अपना मनपसंद पहाड़ी भजन, " शिव कैलाशों के वासी, धौली धारों के राजा, शंकर संकट हरना.......! " "संकट" शब्द का केवल "स " ही बोल पाया कि भावुकता ने नेत्रों से नीर बहा दिया और शब्द कंठ में ही दब गये...... वह चंद क्षण अलौकिक चुप्पी के बहुत भारी व लम्बे लग रहे थे, कि अपनी मनोदशा को पीछे आ रहे विशाल जी तथा केवल से छुपातें हुए जोर-जोर से बम-बम भोले के जयकारे लगाने लगा, पर अपनी चलने की गति को कम नही होने दिया...... परन्तु विशाल जी को चलने में दिक्कत थी क्योंकि उनका पोंचूँ चढ़ाई चढ़ते समय उनके पैरों में बार-बार फंसता जा रहा था, तो मैने उनके पोंचूँ को ऊपर कर गांठें बांध दी।
मौसम अब हर पल अपना जोर बढ़ाता सा जा रहा था, सफेद शरीफ बादलों का रंग बदमाशी पर आ काला होने लगा था, रही- सही कसर अब हवा ने चल कर निकाल दी थी...उस अत्यन्त सर्द हवा के प्रहार हमारे शरीर को तोड़ रहे थे, परन्तु मैं रुक नही रहा था...कदम-दर-कदम ऊपर की ओर बढ़ाता जा रहा था, और निरंतर अपनी घड़ी पर तापमान भी देखता जा रहा था, मौसम बिगड़ने से पहले गई पर्वत पर तापमान 8डिग्री था जो अब पिछले दस मिनट में लगातार घट कर 4डिग्री के करीब आ चुका था............ !
................................(क्रमश:)
नयन सरोवर से ऊपर की ओर गई पर्वत पर चढ़ाई.... |
गई पर्वत पर चढ़ाई करते हम "कीड़े-मकोड़े" से इंसान.... |
गई पर्वत से नीचे दिखाई देती पार्वती बाग घाटी और इनमें मेरे गढ़शंकिरयें पंजाबी भाइयों की मस्ती भरी चीखें गूँज रही थी... |
ऊँचाई से क्या खूबसूरत नज़र आ रहा था "नयन सरोवर " |
गई पर्वत पर चढ़ते हुए हम दोनों साढूं भाई... |
विशाल जी की सहायता को तत्पर पथप्रदर्शक केवल... |
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जमी हुये नयन सरोवर पर पहुँच मेरे गढ़शंकिरये पंजाबियों की चंचलता चरम पर पहुँच चुकी थी और उनके द्वारा लगाये जा रहे शिव के जयकारों व चीखों की मिश्रित आवाजें चारों दिशाओं में पहुँच रही थी... |
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गई पर्वत की एक निश्चित ऊँचाई पर पहुँच, अब नीचे भीमद्वारी भी दिखाई देना लग पड़ा था... |
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भीमद्वारी का दृश्य.... कैमरे की बड़ी आँख से |
लो, भाई मेरी फोटो इस बर्फ के साथ भी खींच लो... |
गई पर्वत से दिख रहा "बसार गई पर्वत " |
विश्राम के पल... |
गई पर्वत को पार करने से कुछ पहले का चित्र... |
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और, गई पर्वत के सिर पर पहुँच कर पहली नज़र से उस पार का नज़ारा.... |
बहुत सुंदर, मैं तो अपनी पलकें झपकाना भी भूल गया... |
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और, विशाल जी अपना चिरपरिचित शब्द "ओसम्" बोले बिना नही रह सके... क्योंकि अब हमारी आँखों के समक्ष महान हिमालय की बहुत सारी हिमाच्छादित चोटियाँ जो थी... |
लो, भाई मेरा कैमरा... और खींच डाल मुझे भी... |
यहाँ पहुँच, विशाल जी का कैमरा भी संजीव हो गया... |
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अरे भईया, फोटो सैशन भी बनता है ना... |
बसार गई पर्वत की चढाई.... यदि आप इस चित्र को बड़ा कर देखे तो, आप को पर्वत के शिखर पर यात्री नज़र आएेंगें... |
क्यों....प्यारे, सुना आये भोले बाबा को गिटार की धुन... |
कोई बात नही, चलो हम सब मिल कर "भारत माता की जय " बोलते हैं... |
और, खुशगवार मौसम को शायद मेरी ही नज़र लग गई.... |
बारिश, बर्फबारी और सर्द तेज हवा....!!! |
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