भाग-20 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर से.....
" मौसम में ठंडक, पर जज़्बातों में गर्मी..! "
इस चित्रकथा को आरंभ से पढ़ने का यंत्र ( https://vikasnarda.blogspot.com/2017/04/1-shrikhand-mahadev-yatra5227mt.html?m=1 )स्पर्श करें।
श्री खंड महादेव यात्रा के अंतिम पड़ाव "भीमद्वारी" में..... मैं और विशाल रतन जी टैंट में बैठे थे कि टैंट मालिक नवनीत ने आ कर कहा कि भैया रात की रोटी यहीं टैंट में ले आऊँ.....तो मैं झट से बोला, " नही भाई, हम तो आपकी रसोई में जलते हुए चूल्हे के आगे बैठ कर ही खाना खायेंगे....ठीक वैसे, जैसे मैं बचपन में सर्दियों के दिनों में अपने घर में अक्सर खाता था, मेरी बात सुन विशाल जी उत्साहित हो गए....!!
और, हम दोनों रसोई में पहुँच चूल्हे के आगे बैठ आग सेंकने लगे, उस वक्त और उस ठण्डी जगह में सबसे प्यारी चीज हमें आग ही तो लग रही थी दोस्तों.... जैसे ही हमारे आगे खाना परोसा गया, क्या कहूँ दोस्तों... गर्मागर्म व ताज़े बने भोजन से जो भाप उठ रही थी, उस भाप की भीनी-भीनी सुगन्ध ने हाथों को मजबूर कर दिया कि झट से थाली उठा ले विकास नारदा...!!
माँह-चनें की काली दाल और चावल.... बेहद ही स्वादिष्ट, फिर उसी थाली में गर्मागर्म राजमाँह व चावल के तो क्या कहने, एक से एक बढ़ कर स्वाद की लहरें बह रही थी.... यहाँ तक कि उस समय परोसा गया पानी भी बहुत मीठा लग रहा था, क्योंकि यदि भोजन खिलानें वाले की नीयत में खुशदिली हो तो भोजन खुद व खुद स्वादिष्ट बन जाता है.... ठीक इसी प्रकार का खुशदिल रवैय्या नवनीत का था, वह और उसकी बुआ का लड़का " केवल " हमारी खूब मेहमान नवाज़ी कर रहे थे, और यह "केवल " हमारी शेष बची श्री खंड यात्रा में कल सुबह को गाइड बनने वाला था....
तभी रसोई के अंदर एक नेपाली सज्जन आ हमारे सामने बैठ गए, नवनीत ने उन्हें भी भोजन परोसा... मैने नवनीत से पूछ ही लिया कि यह कौन है, तो नवनीत ने कहा, " इनका नाम भीम बहादुर है, आज नीचे से हमारे लिए 35किलो आटा उठा कर लाये हैं... सुबह 6बजे हमारे घर से आटा उठा कर शाम साढे सात बजे हमारे पास आ पहुँचें है...! " हमारे लिए यह बात बिल्कुल अविश्वसनीय थी कि 55साल का अधेड़ आदमी 35किलो वजन उठा एक दिन में ही उस रास्ते को चढ़ आया, जिसे हम ढाई दिन में चढ़ कर आ रहे है.... भीम बहादुर के इस काम के मेहनताना पूछने पर नवनीत ने कहा कि पूरे श्री खंड मार्ग पर जगह- जगह सामान उठा कर पहुँचने वाले कुलियों का मेहनताना तय है, यहाँ भीमद्वारी में 55रुपये प्रति किलो के सामान नीचे से लाया जा रहा है.....मैं झट से बोल पड़ा, " तो 25रुपये किलो का आटा यहाँ तक पहुँचतें-पहुँचतें 80रुपये किलो पड़ जाता है...!! "
नवनीत ने कहा, " जी हां, एक गैस का सिलेंडर नीचे से लाने और वापस ले जाने में 500रुपये के सिलेंडर की कीमत 5000रुपये हो जाती है... और इतनी ऊँचाई पर जलावन के लिए लकड़ी का प्रबंध करना भी बेहद ख़र्चीला व कठिन कार्य है...! "
मैने विशाल जी से कहा, " नवनीत की बात सुन कर...मुझे अब प्रति व्यक्ति भरपेट एक समय के भोजन का 120रुपये लेना ज्यादा नही लग रहा, क्योंकि इतनी ऊँचाई पर जहाँ चीजों का पहुँच-मूल्य पांच से दस गुना तक पहुँच जाता है... इस हिसाब से हम यात्रियों को दी जा रही रहने-खाने की सुविधा तो बिल्कुल जायज़ मूल्यों पर है..... परन्तु मैने अभी पिछले महीने ही अपने परिवार संग कश्मीर भ्रमण किया था, वहाँ के खाने-पीने के मूल्य भी इसी प्रकार आसमान छूँ रहे थे...सुबह के नाश्ते में मिलने वाला परौठा 55रुपये में एक, वो आचार के साथ... दही लेना हो तो 30रुपये अलग, 25रुपये का चाय का कप....कुल मिला कर एक व्यक्ति का सुबह का नाश्ता ही दो सौ-सौ के नोट हज़म कर जाता है... किसी दूर-दराज के पहाडी शिखर पर नही, भाई सड़क के किनारे बने ढाबों पर..... !!
पूछने पर हर किसी के पास रटा-रटाया जवाब है कि यहाँ तक सामान पहुँचने में बहुत "ट्रांसपोटेशन" पड़ जाती है.... परन्तु जब मैं उनके ढाबें देखता था तो राजस्थान का संगमरमर पत्थर फर्श क्या दीवारों पर भी मढ़ा गया था, जो उनकी कमाई की मुँह बोली तस्वीर थी....!!
"पर्यटकों के भाग्य में ही होता है लुटना, पर श्री खंड वाले दुकानदार मेरे अनुभव के अनुसार जो भी मूल्य हम यात्रियों से वसूल रहे हैं... वह उनकी "ट्रांसपोटेशन " के अनुसार बिल्कुल उचित है.....!! "
बचपन से ही एक फिल्मी गाना सुनता आ रहा हूँ, " यह कश्मीर है, यह कश्मीर है..!!! " और आधी जिंदगी बीत जाने के बाद कश्मीर जाने का मौका मिला, परन्तु जिस कश्मीर की शक्ल वो पुराने फिल्मी गानों दिखाई गई थी.... वो मुझे नही दिखाई दी, क्योंकि कश्मीर का बिगड़ा माहौल आपकी मानसिक स्तिथि को भी बिगाड़ देता है....हमारे साथ भी ऐसा ही हुआ, चंदनवाड़ी में अमरनाथ यात्रा की पहली सीढ़ी पर अपने परिवार सहित नमन कर.... पहलगाँव की सुंदरता को देख कर श्री नगर जाते हुए पता चला कि जिस "पम्पोर" शहर के बंद बाज़ार में कुछ जरुरी सामान खरीदने के लिए हम खड़े हैं... कि अभी आधा घंटा पहले यहीं सात "भारतीय फौजी" मार दिये गए.... स्थानीय लोगों के मुख से "भारतीय फौजी" सुनना मुझे बड़ा अजीब लगा, ठीक कुछ इसी प्रकार एक शाल बेचने वाले कश्मीरी व्यापारी ने पहलगाँव के होटल में यह कह कर हमें शाल बेचे कि अपने देश के इस गरीब वासी की मदद करो और शाल खरीद लो, यही बात फिर दोबारा मुझे गुलमर्ग में सुनने को मिली... कि अपने देशवासी की मदद करो, यह खच्चर किराये पर ले लो..
मैं कन्याकुमारी तक घूमा हूँ पर यह बात मुझे किसी ने भी कहीं भी नही कही, "अपने देश के वासी की मदद करो " अरे जब तुम लोगों को हम पर्यटकों से कुछ लेना-देना होता है तो अखंड देश याद आ जाता है, नही तो मुझ से एक स्थानीय ने यहाँ तक पूछ लिया, " भारत से आए हो....!!!! "
मेरी बातें सुन विशाल जी बोले, " पर लेह-लद्दाख क्षेत्र भी तो जम्मू-कश्मीर का भाग है, वहाँ ऐसा कोई माहौल नही है और कश्मीर की असली प्राकृतिक सुंदरता तो उसी क्षेत्र में बिखरी पड़ी है विकास जी..! "
मैने जवाब दिया, " मैं अभी तक लेह नही जा पाया, भविष्य में जरूर जाऊँगा.. वैसे जम्मू क्षेत्र भी तो कश्मीर का ही भाग है, वहाँ के लोग व माहौल बेहद दोस्ताना और शांत है.. मैने अपनी कश्मीर यात्रा से यह अनुभव किया कि जैसे ही आप जम्मू क्षेत्र से पीर-पंजाल पर्वत श्रृंखला में बनी जवाहर टनल को पार कर कश्मीर क्षेत्र में पहुँचतें हैं, मौसम में ठंडक पर जज़्बातों में गर्मी आनी शुरू हो जाती है.... विशाल जी, सोने की ईंटों से सजे महल के मेहमान क्या बनना..जिसके मालिक का रवैय्या ही उखड़ा हो, उससे तो अच्छा नवनीत का यह कच्चा झोंपड़ा ही है, जो हमें पूर्ण सत्कार दे रहा है...!! " मैं हंसते-मस्कुरातें नवनीत के चेहरे की तरफ इशारा कर बोला....
और, भोजन करने के पश्चात हमने केवल से कल सुबह श्री खंड चलने का कार्यक्रम निश्चित किया, आगामी सफ़र के लिए तड़के मुँह अंधेरे 3बजे चलने का समय रखा गया.... और हम दोनों साढूं भाई करीब साढे आठ बजे अपने टैंट में आ, आधी रात 2बजे का अलार्म लगा सो गए......
.................................(क्रमश:)
" मौसम में ठंडक, पर जज़्बातों में गर्मी..! "
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श्री खंड महादेव यात्रा के अंतिम पड़ाव "भीमद्वारी" में..... मैं और विशाल रतन जी टैंट में बैठे थे कि टैंट मालिक नवनीत ने आ कर कहा कि भैया रात की रोटी यहीं टैंट में ले आऊँ.....तो मैं झट से बोला, " नही भाई, हम तो आपकी रसोई में जलते हुए चूल्हे के आगे बैठ कर ही खाना खायेंगे....ठीक वैसे, जैसे मैं बचपन में सर्दियों के दिनों में अपने घर में अक्सर खाता था, मेरी बात सुन विशाल जी उत्साहित हो गए....!!
और, हम दोनों रसोई में पहुँच चूल्हे के आगे बैठ आग सेंकने लगे, उस वक्त और उस ठण्डी जगह में सबसे प्यारी चीज हमें आग ही तो लग रही थी दोस्तों.... जैसे ही हमारे आगे खाना परोसा गया, क्या कहूँ दोस्तों... गर्मागर्म व ताज़े बने भोजन से जो भाप उठ रही थी, उस भाप की भीनी-भीनी सुगन्ध ने हाथों को मजबूर कर दिया कि झट से थाली उठा ले विकास नारदा...!!
माँह-चनें की काली दाल और चावल.... बेहद ही स्वादिष्ट, फिर उसी थाली में गर्मागर्म राजमाँह व चावल के तो क्या कहने, एक से एक बढ़ कर स्वाद की लहरें बह रही थी.... यहाँ तक कि उस समय परोसा गया पानी भी बहुत मीठा लग रहा था, क्योंकि यदि भोजन खिलानें वाले की नीयत में खुशदिली हो तो भोजन खुद व खुद स्वादिष्ट बन जाता है.... ठीक इसी प्रकार का खुशदिल रवैय्या नवनीत का था, वह और उसकी बुआ का लड़का " केवल " हमारी खूब मेहमान नवाज़ी कर रहे थे, और यह "केवल " हमारी शेष बची श्री खंड यात्रा में कल सुबह को गाइड बनने वाला था....
तभी रसोई के अंदर एक नेपाली सज्जन आ हमारे सामने बैठ गए, नवनीत ने उन्हें भी भोजन परोसा... मैने नवनीत से पूछ ही लिया कि यह कौन है, तो नवनीत ने कहा, " इनका नाम भीम बहादुर है, आज नीचे से हमारे लिए 35किलो आटा उठा कर लाये हैं... सुबह 6बजे हमारे घर से आटा उठा कर शाम साढे सात बजे हमारे पास आ पहुँचें है...! " हमारे लिए यह बात बिल्कुल अविश्वसनीय थी कि 55साल का अधेड़ आदमी 35किलो वजन उठा एक दिन में ही उस रास्ते को चढ़ आया, जिसे हम ढाई दिन में चढ़ कर आ रहे है.... भीम बहादुर के इस काम के मेहनताना पूछने पर नवनीत ने कहा कि पूरे श्री खंड मार्ग पर जगह- जगह सामान उठा कर पहुँचने वाले कुलियों का मेहनताना तय है, यहाँ भीमद्वारी में 55रुपये प्रति किलो के सामान नीचे से लाया जा रहा है.....मैं झट से बोल पड़ा, " तो 25रुपये किलो का आटा यहाँ तक पहुँचतें-पहुँचतें 80रुपये किलो पड़ जाता है...!! "
नवनीत ने कहा, " जी हां, एक गैस का सिलेंडर नीचे से लाने और वापस ले जाने में 500रुपये के सिलेंडर की कीमत 5000रुपये हो जाती है... और इतनी ऊँचाई पर जलावन के लिए लकड़ी का प्रबंध करना भी बेहद ख़र्चीला व कठिन कार्य है...! "
मैने विशाल जी से कहा, " नवनीत की बात सुन कर...मुझे अब प्रति व्यक्ति भरपेट एक समय के भोजन का 120रुपये लेना ज्यादा नही लग रहा, क्योंकि इतनी ऊँचाई पर जहाँ चीजों का पहुँच-मूल्य पांच से दस गुना तक पहुँच जाता है... इस हिसाब से हम यात्रियों को दी जा रही रहने-खाने की सुविधा तो बिल्कुल जायज़ मूल्यों पर है..... परन्तु मैने अभी पिछले महीने ही अपने परिवार संग कश्मीर भ्रमण किया था, वहाँ के खाने-पीने के मूल्य भी इसी प्रकार आसमान छूँ रहे थे...सुबह के नाश्ते में मिलने वाला परौठा 55रुपये में एक, वो आचार के साथ... दही लेना हो तो 30रुपये अलग, 25रुपये का चाय का कप....कुल मिला कर एक व्यक्ति का सुबह का नाश्ता ही दो सौ-सौ के नोट हज़म कर जाता है... किसी दूर-दराज के पहाडी शिखर पर नही, भाई सड़क के किनारे बने ढाबों पर..... !!
पूछने पर हर किसी के पास रटा-रटाया जवाब है कि यहाँ तक सामान पहुँचने में बहुत "ट्रांसपोटेशन" पड़ जाती है.... परन्तु जब मैं उनके ढाबें देखता था तो राजस्थान का संगमरमर पत्थर फर्श क्या दीवारों पर भी मढ़ा गया था, जो उनकी कमाई की मुँह बोली तस्वीर थी....!!
"पर्यटकों के भाग्य में ही होता है लुटना, पर श्री खंड वाले दुकानदार मेरे अनुभव के अनुसार जो भी मूल्य हम यात्रियों से वसूल रहे हैं... वह उनकी "ट्रांसपोटेशन " के अनुसार बिल्कुल उचित है.....!! "
बचपन से ही एक फिल्मी गाना सुनता आ रहा हूँ, " यह कश्मीर है, यह कश्मीर है..!!! " और आधी जिंदगी बीत जाने के बाद कश्मीर जाने का मौका मिला, परन्तु जिस कश्मीर की शक्ल वो पुराने फिल्मी गानों दिखाई गई थी.... वो मुझे नही दिखाई दी, क्योंकि कश्मीर का बिगड़ा माहौल आपकी मानसिक स्तिथि को भी बिगाड़ देता है....हमारे साथ भी ऐसा ही हुआ, चंदनवाड़ी में अमरनाथ यात्रा की पहली सीढ़ी पर अपने परिवार सहित नमन कर.... पहलगाँव की सुंदरता को देख कर श्री नगर जाते हुए पता चला कि जिस "पम्पोर" शहर के बंद बाज़ार में कुछ जरुरी सामान खरीदने के लिए हम खड़े हैं... कि अभी आधा घंटा पहले यहीं सात "भारतीय फौजी" मार दिये गए.... स्थानीय लोगों के मुख से "भारतीय फौजी" सुनना मुझे बड़ा अजीब लगा, ठीक कुछ इसी प्रकार एक शाल बेचने वाले कश्मीरी व्यापारी ने पहलगाँव के होटल में यह कह कर हमें शाल बेचे कि अपने देश के इस गरीब वासी की मदद करो और शाल खरीद लो, यही बात फिर दोबारा मुझे गुलमर्ग में सुनने को मिली... कि अपने देशवासी की मदद करो, यह खच्चर किराये पर ले लो..
मैं कन्याकुमारी तक घूमा हूँ पर यह बात मुझे किसी ने भी कहीं भी नही कही, "अपने देश के वासी की मदद करो " अरे जब तुम लोगों को हम पर्यटकों से कुछ लेना-देना होता है तो अखंड देश याद आ जाता है, नही तो मुझ से एक स्थानीय ने यहाँ तक पूछ लिया, " भारत से आए हो....!!!! "
मेरी बातें सुन विशाल जी बोले, " पर लेह-लद्दाख क्षेत्र भी तो जम्मू-कश्मीर का भाग है, वहाँ ऐसा कोई माहौल नही है और कश्मीर की असली प्राकृतिक सुंदरता तो उसी क्षेत्र में बिखरी पड़ी है विकास जी..! "
मैने जवाब दिया, " मैं अभी तक लेह नही जा पाया, भविष्य में जरूर जाऊँगा.. वैसे जम्मू क्षेत्र भी तो कश्मीर का ही भाग है, वहाँ के लोग व माहौल बेहद दोस्ताना और शांत है.. मैने अपनी कश्मीर यात्रा से यह अनुभव किया कि जैसे ही आप जम्मू क्षेत्र से पीर-पंजाल पर्वत श्रृंखला में बनी जवाहर टनल को पार कर कश्मीर क्षेत्र में पहुँचतें हैं, मौसम में ठंडक पर जज़्बातों में गर्मी आनी शुरू हो जाती है.... विशाल जी, सोने की ईंटों से सजे महल के मेहमान क्या बनना..जिसके मालिक का रवैय्या ही उखड़ा हो, उससे तो अच्छा नवनीत का यह कच्चा झोंपड़ा ही है, जो हमें पूर्ण सत्कार दे रहा है...!! " मैं हंसते-मस्कुरातें नवनीत के चेहरे की तरफ इशारा कर बोला....
और, भोजन करने के पश्चात हमने केवल से कल सुबह श्री खंड चलने का कार्यक्रम निश्चित किया, आगामी सफ़र के लिए तड़के मुँह अंधेरे 3बजे चलने का समय रखा गया.... और हम दोनों साढूं भाई करीब साढे आठ बजे अपने टैंट में आ, आधी रात 2बजे का अलार्म लगा सो गए......
.................................(क्रमश:)
ताज़े बने भोजन से उठ रही भाप तो देखो.... दोस्तों |
और, फिर उसी थाली में राजमाँह-चावल परोसे गए.... |
चूल्हे के आगे बैठ खाना खाते हम और नवनीत हमे खाना परोस रहा था.... |
नवनीत की बुआ का लड़का "केवल" जो कल हमारी बाकी बची श्री खंड यात्रा का पथप्रदर्शक बनने वाला था.... और नेपाली भारवाहक "भीम बहादुर " |
रात के समय भीमद्वारी के टैंटो में सौर-ऊर्जा से चालित दीप..... ( अगला भाग पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें ) |
माल ढोनेवाले नेपाली की हिम्मत जबरदस्त है।
जवाब देंहटाएंराजमाँ की भाप दिखा कर बढिया किया भाई... आज दोपहर को यही बनायेंगे और खायेंगे।।।
कश्मीर में सिर्फ व्यापारी ही पर्यटकों से सकारात्मक बात करता मिलेगा।
ठीक इसी प्रकार दक्षिण भारत के तमिलनाडु केरल में वही हिंदी में आपसे बात करेंगे जिनको आपसे लाभ होने के चांस हो, होटल वाले, दुकान वाले,
बाकि लोकल लोग मुश्किल से ही हिंदी में आपको जवाब देंगे,अधिकांश हमका हिंदी नहीं आता, बोल कर टाल देते है।
बेहद धन्यवाद... संदीप जी, बिल्कुल सही आपने जी...जब मैं तालिमनाडु भ्रमण के लिए चेन्नई हवाई अड्डे पर उतरा, तो "नो हिंदी" से मेरा स्वागत किया गया.... पांच-दस मिनट तो ऐसा लगा कि मैं किसी और देश में ही उतर गया हूँ.... जी
हटाएंमैसुर में भी यही हाल है संदीप
हटाएंयात्रा विवरण बहुत ही बढ़िया है एक दिन में बहादुर ने जो कर दिखाया उसे बहादुर और हिम्मती इंसान ही कर सकता है जहाँ आपको ढाई दिन लगे और उसने एक दिन में ही कर लिया अगले भाग का इंतज़ार रहेगा
जवाब देंहटाएंबेहद धन्यवाद.... लोकेन्द्र जी
हटाएंपढ़कर बहुत अच्छा लगा । अगर जम्मू की बात की जाय तो शांतिपूर्ण है पर श्रीनगर में लोगो का व्यवहार अलग ही है । मैंने भी 1 महीना जम्मू कश्मीर के पुलवामा, अनंतनाग, डोडा और जम्मू में बिताए है ।
जवाब देंहटाएंयहाँ मालूम चला हमलोग खच्चर को जितना कम आंकते है असल मे वो उतना है नही ।
ऊँचे उच्चे पहाड़ो पर जहाँ जाने के लिए सिंगल रास्ते है खच्चर से ही समान ढोना मुमकिन है ।
बिल्कुल सही कहा आपने सुजीत जी, कश्मीर वाले का तो व्यवहार ही कुछ अलग है....
हटाएंभोजन की भाप ने मुझे अपनी करेरी झील की यात्रा याद दिला दी. आपके विचारों का रैला यात्रा संस्मरण को और रोचक बनाता है.
जवाब देंहटाएंबेहद आभारी हूँ जी आपकी हौसला आफज़ाई का जी.... करेरी झील की यात्रा मेरी सबसे पहली पर्वतारोहण यात्रा है, जो अधूरी रह गई थी.... मैं और विशाल रतन जी नव वर्ष की पूर्व संध्या पर ऐसे ही मुँह उठा कर करेरी चल दिये.... और आगे बर्फ में फंस गए... सारी रात एक गुफा में आग जला कर काटी ...और बच कर सुबह नीचे उतरे....
हटाएंबहुत बढ़िया विकास जी।
जवाब देंहटाएंकिनोर कैलाश यात्रा में पोर्टर के रूप में ऐसे कई नेपाली मिकते हैं। जहां आम लोग खुद को भी घसीटते हुए केकर जाते हैं, वो नेपाली 20 25 किलो बोझ के साथ ऊपर चढ़ते है जी
बेहद धन्यवाद धरती पुत्र जी, नेपालियों के बगैर इतनी ऊँचाई पर इतना भार पहुँचना बेहद मुश्किल काम है....
हटाएंबेहद खूबसूरत यात्रा क्रम जारी,चूल्हे के सामने बैठ कर भोजन करने का एक अलग ही मजा है
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया.... महेश गौतम जी
हटाएंबचपन से ही एक फिल्मी गाना सुनता आ रहा हूँ, " यह कश्मीर है, यह कश्मीर है..!!! " इसी गाने गाने की धुन पर एक बार बासुरी बजाने के लिए कहूंगा आपसे , इंतज़ार है।
जवाब देंहटाएंAbhyanand Sinha ji.... आपकी फ़रमाइश बिल्कुल जायज़ है.... परन्तु इस गाने को अपनी बाँसुरी पर कश्मीर में जा कर उस "शांति" के भाव से ही बजाना चाहता हूँ ...जिस शांत भाव से हम यह गाना सुनतें आ रहे हैं...कृपया इस बात मुझे माफ़ करे, और दुआ करे जी कि कश्मीर शांति के माहौल में तबदील हो.... और मैं और आप डल झील के शिकारें पर बैठे हो.... मैं बाँसुरी बजाऊँ.... यह कश्मीर है, यह कश्मीर है...... और आप मस्ती में अपना सिर हिलाऐं.....जी
हटाएंभाई आटा पहुचाने वाले के लिए भावना हो रही है की कैसी हिम्मत होगी...पैसे तो बाद में वहा गरम गरम खाना मिल रहा है यह ही बहुत है
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा आपने प्रतीक जी, वहाँ गर्मागर्म खाना मिल रहा है यह ही बहुत है।
हटाएंबिल्कुल सही कहा आपने प्रतीक जी, वहाँ गर्मागर्म खाना मिल रहा है यह ही बहुत है।
हटाएंSir don't hesitate to write Kashmir problem is nothing,our own dear politicians do not want this problem should be solved, so that their bread n butter may continue. Hope for best.sir must visit leh/ladakh,unmatched beauty of nature everywhere.
जवाब देंहटाएंशुभकामनाओं के लिए बेहद धन्यवाद, गांधी साहब।
हटाएंकश्मीर न जाने का फैसला किया हुआ है मैंने ! क्योकि कश्मीर से भी बढ़िया जगह हैं हिंदुस्तान में
जवाब देंहटाएंसत्य वचन।
हटाएंआज सुबह 5 बजे से ट्रैन में हु,आपके सारे वृत्तांत फिर से पढ़ रहा सुबह से ही,यकीन मानिए लग रहा पहली बार पढ़ रहा,आज भी ताजा व जीवंत।।
जवाब देंहटाएंपता ही नही चला कब देहरादून से मेरठ पहुच गया
वाह जी वाह, धीरेन्द्र जी.....सुमधुर आभार, मुझे वक्त देने हेतू।
हटाएंBahut khoob varnan sir...
जवाब देंहटाएंबेहद धन्यवाद जी।
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