भाग-12 चलो, चलते हैं...... सर्दियों में खीरगंगा(2960मीटर) 3जनवरी 2016
इस चित्रकथा को आरंभ से पढ़ने का यंत्र (http://vikasnarda.blogspot.com/2017/04/1-winter-trekking-to-kheerganga2960mt.html?m=1) स्पर्श करें।
सुबह सात बजे भी अभी अंधेरा ही था, जब मैं विशाल रतन जी को मणिकर्ण गुरुद्वारा साहिब के आगे से ही दिल्ली वापस जाने के लिए बस पर चढ़ाने के लिए गया और फिर कमरे में आकर कुछ समय के लिए लेट गया। जब उठा तो सूर्य के उजालें में अब सब कुछ जगमगा रहा था....क्योंकि हम रात के अंधेरे में गुरुद्वारा में पहुँचें थे, सो बड़ी तीव्र इच्छा हुई कि कमरे से बाहर निकल, गुरुद्वारे की ऊपरी छत पर जा कर हर तरफ की सुंदरता को निहार लूँ।
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सुबह सात बजे भी अभी अंधेरा ही था, जब मैं विशाल रतन जी को मणिकर्ण गुरुद्वारा साहिब के आगे से ही दिल्ली वापस जाने के लिए बस पर चढ़ाने के लिए गया और फिर कमरे में आकर कुछ समय के लिए लेट गया। जब उठा तो सूर्य के उजालें में अब सब कुछ जगमगा रहा था....क्योंकि हम रात के अंधेरे में गुरुद्वारा में पहुँचें थे, सो बड़ी तीव्र इच्छा हुई कि कमरे से बाहर निकल, गुरुद्वारे की ऊपरी छत पर जा कर हर तरफ की सुंदरता को निहार लूँ।
परन्तु जब मैं घूमता-घूमता गुरुद्वारे के उस हिस्से में पहुँचा, तो वहाँ की छत को फटा देख...मेरे दिमाग में उस जगह 6महीने पहली घटी एक अत्यंत दर्दनाक दुर्घटना, एक चलचित्र की भाँति घूम गई....कि अगस्त 2015 में मणिकर्ण गुरुद्वारा साहिब के पीछे गाड़गी गाँव के ऊपर पहाड में भूस्खलन होने के कारण एक बहुत बड़ी चट्टान खिसकी.....और तेज रफ्तार से गाड़वी गाँव में....राह में आये एक मकान को ध्वस्त करने के बाद गुरुद्वारे की सराय की छत पर बहुत भयंकर व तीव्र वेग से आ गिरी......और सराय की पांच मंजिलों की छतों और लगभग 15कमरों को तहस-नहस करने के उपरांत पार्वती नदी में जा गिरी।
दोपहर 1:30बजे के करीब केवल एक क्षण भर के समय में घटी इस दर्दनाक दुर्घटना ने गुरुद्वारे की सराय के एक हाल कमरे में आराम कर रहे 18नवयुवकों के दल ( जो कि पंजाब के संगरूर जिले के "रोगंला" गाँव में मणिकर्ण साहिब दर्शन के लिए आये ही थे ) को रौंद दिया, जिसमें से सात नवयुवकों का मौके पर ही दर्दनाक अंत हो गया.....और बाकी ग्यारह नवयुवक गम्भीर रुप से घायल हो गये। वहाँ खड़े जब मैने उस करुणामय व वेदनात्मक क्षण को महसूस करना चाहा, तो मेरी रूह कांप गई.....और उन परिवारों के दर्द को जीया, जिन्होंने इस दुर्घटना में अपने घरों के एकमात्र चिराग खो दिये।
दोस्तों, फिर वही बात दोहराता हूँ.... जो अक्सर कहता हूँ कि, "हे गिरिराज, तुम कितने सुंदर हो..... परन्तु सिर्फ ऊपर से..... और भीतर से उतने ही कठोर व पत्थर दिल.......!!!! "
इस दुर्घटना के बाद गुरुद्वारे की सराय की अब काफी हद तक मरम्मत कर दी गई थी, बस एक ही छत बाकी थी, जिसे मैं देख रहा था। वहाँ से ऊपरी मंजिलों की ओर चढ़ कर चारों दिशाओं में दिखने लगा, पार्वती नदी के पार बना बहुत बड़ा गर्म जल का सरोवर व पार्वती नदी पर बना गुरुद्वारे के मुख्य द्वार को आता हुआ पुल बहुत खूब नज़र आ रहा था, जिस पर लोग अपनी यादगारी फोटो खिंचवा रहे थे। गुरुद्वारे साहिब के सुनहरी रंग में रंगे गुम्बदों ने मुझे अपनी ओर आकर्षित कर लिया, वहाँ पहुँचा तो गुरुद्वारे के संग बने प्राचीन शिव मंदिर के कलश शिखर ने भी अपना आकर्षण मुझ पर छोड़ा। गुरुद्वारे और मंदिर पर सुशोभित निशान साहिब व डमरू-त्रिशूल मुझे अडिगता व स्थिरता की प्रेरणा दे रहे थे.........और, एक हवा का झोंका आया......संग लाया चावलों की खुशबू.......और मैं खींचा चला गया, जिस ओर से यह खुशबू आ रही थी। गुरुद्वारे की सराय की छत की मुंडेर से नीचे देखा, तो शिव मंदिर के पास वाले उष्ण जल के कुण्ड में पकने हेतू रखे भोजन के बड़े-बड़े बर्तनों से वह भीनी-भीनी सुगंध फैल रही थी। जो मेरी नसिका के रास्ते से उदर में घुसपैठ कर मेरी इच्छुक भूख की इंद्रियों को भड़का रही थी, परन्तु मेरा मन तो उस समय कुछ चाइनीज़ खाने को कर रहा था। सो सोचा कि जब मैं यहाँ से मणिकर्ण के बाज़ार में जाऊँगा, तो वहाँ ही कुछ चाइनीज़ नाश्ता करूगाँ।
और, फिर नीचे उतर कर गुरुद्वारे के पुल पर आ कर कुछ चित्र खींच और खिंचवा.......मैं मणिकर्ण के बाज़ार की ओर रवाना हो चला। मणिकर्ण के बाज़ार में हर किस्म की दुकानें हैं, और मैं जा रुका एक तिब्बती की दुकान पर, जहाँ मैने सिर्फ 25रूपये में भरपेट नाश्ता किया।
दोस्तों, मणिकर्ण के विषय में एक विशेष बात बताता हूँ..... कि कुल्लू-मनाली घूमने आये सैलानी जब मणिकर्ण पहुँचतें हैं, तो उनकी जेब ढीली होनी एक दम से बंद हो जाती है। कहाँ मनाली में खाया 50रुपये का पराँठा, अब मणिकर्ण आने पर बहुत सस्ता या फिर मंदिर या गुरुद्वारे में मिलने वाले लंगर (मुफ्त भोजन) में तबदील हो जाता है। कहाँ मनाली में कई हजार रुपये एक रात रहने के लिए "उड़ा" दिये जाने पड़ते हैं......और वहाँ मणिकर्ण में सैलानी गुरुद्वारे या मंदिर की सराय में आराम कर सकता है और वो भी धार्मिक व आध्यात्मिक सुकून के संग।
स्वादिष्ट नाश्ता करने के पश्चात मैं पहुँचा, श्री रघुनाथ जी महाराज के प्राचीन मंदिर में.....पर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मंदिर का अभी हाल में ही जीर्णोद्धार किया गया है। पहाड़ी शैली में बने इस छोटे से मंदिर पर बहुत सुंदर नक्काशी की हुई है, मंदिर के जालीदार कपाट तो बंद थे। द्वार से ही मुझे भगवान रघुनाथ जी की मूर्ति के दर्शन हो गये, परन्तु मुझे ऐसा वहाँ कोई भी नही मिला जो मुझे इस प्राचीन मंदिर के विषय में बता सके।
दोपहर 1:30बजे के करीब केवल एक क्षण भर के समय में घटी इस दर्दनाक दुर्घटना ने गुरुद्वारे की सराय के एक हाल कमरे में आराम कर रहे 18नवयुवकों के दल ( जो कि पंजाब के संगरूर जिले के "रोगंला" गाँव में मणिकर्ण साहिब दर्शन के लिए आये ही थे ) को रौंद दिया, जिसमें से सात नवयुवकों का मौके पर ही दर्दनाक अंत हो गया.....और बाकी ग्यारह नवयुवक गम्भीर रुप से घायल हो गये। वहाँ खड़े जब मैने उस करुणामय व वेदनात्मक क्षण को महसूस करना चाहा, तो मेरी रूह कांप गई.....और उन परिवारों के दर्द को जीया, जिन्होंने इस दुर्घटना में अपने घरों के एकमात्र चिराग खो दिये।
दोस्तों, फिर वही बात दोहराता हूँ.... जो अक्सर कहता हूँ कि, "हे गिरिराज, तुम कितने सुंदर हो..... परन्तु सिर्फ ऊपर से..... और भीतर से उतने ही कठोर व पत्थर दिल.......!!!! "
इस दुर्घटना के बाद गुरुद्वारे की सराय की अब काफी हद तक मरम्मत कर दी गई थी, बस एक ही छत बाकी थी, जिसे मैं देख रहा था। वहाँ से ऊपरी मंजिलों की ओर चढ़ कर चारों दिशाओं में दिखने लगा, पार्वती नदी के पार बना बहुत बड़ा गर्म जल का सरोवर व पार्वती नदी पर बना गुरुद्वारे के मुख्य द्वार को आता हुआ पुल बहुत खूब नज़र आ रहा था, जिस पर लोग अपनी यादगारी फोटो खिंचवा रहे थे। गुरुद्वारे साहिब के सुनहरी रंग में रंगे गुम्बदों ने मुझे अपनी ओर आकर्षित कर लिया, वहाँ पहुँचा तो गुरुद्वारे के संग बने प्राचीन शिव मंदिर के कलश शिखर ने भी अपना आकर्षण मुझ पर छोड़ा। गुरुद्वारे और मंदिर पर सुशोभित निशान साहिब व डमरू-त्रिशूल मुझे अडिगता व स्थिरता की प्रेरणा दे रहे थे.........और, एक हवा का झोंका आया......संग लाया चावलों की खुशबू.......और मैं खींचा चला गया, जिस ओर से यह खुशबू आ रही थी। गुरुद्वारे की सराय की छत की मुंडेर से नीचे देखा, तो शिव मंदिर के पास वाले उष्ण जल के कुण्ड में पकने हेतू रखे भोजन के बड़े-बड़े बर्तनों से वह भीनी-भीनी सुगंध फैल रही थी। जो मेरी नसिका के रास्ते से उदर में घुसपैठ कर मेरी इच्छुक भूख की इंद्रियों को भड़का रही थी, परन्तु मेरा मन तो उस समय कुछ चाइनीज़ खाने को कर रहा था। सो सोचा कि जब मैं यहाँ से मणिकर्ण के बाज़ार में जाऊँगा, तो वहाँ ही कुछ चाइनीज़ नाश्ता करूगाँ।
और, फिर नीचे उतर कर गुरुद्वारे के पुल पर आ कर कुछ चित्र खींच और खिंचवा.......मैं मणिकर्ण के बाज़ार की ओर रवाना हो चला। मणिकर्ण के बाज़ार में हर किस्म की दुकानें हैं, और मैं जा रुका एक तिब्बती की दुकान पर, जहाँ मैने सिर्फ 25रूपये में भरपेट नाश्ता किया।
दोस्तों, मणिकर्ण के विषय में एक विशेष बात बताता हूँ..... कि कुल्लू-मनाली घूमने आये सैलानी जब मणिकर्ण पहुँचतें हैं, तो उनकी जेब ढीली होनी एक दम से बंद हो जाती है। कहाँ मनाली में खाया 50रुपये का पराँठा, अब मणिकर्ण आने पर बहुत सस्ता या फिर मंदिर या गुरुद्वारे में मिलने वाले लंगर (मुफ्त भोजन) में तबदील हो जाता है। कहाँ मनाली में कई हजार रुपये एक रात रहने के लिए "उड़ा" दिये जाने पड़ते हैं......और वहाँ मणिकर्ण में सैलानी गुरुद्वारे या मंदिर की सराय में आराम कर सकता है और वो भी धार्मिक व आध्यात्मिक सुकून के संग।
स्वादिष्ट नाश्ता करने के पश्चात मैं पहुँचा, श्री रघुनाथ जी महाराज के प्राचीन मंदिर में.....पर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मंदिर का अभी हाल में ही जीर्णोद्धार किया गया है। पहाड़ी शैली में बने इस छोटे से मंदिर पर बहुत सुंदर नक्काशी की हुई है, मंदिर के जालीदार कपाट तो बंद थे। द्वार से ही मुझे भगवान रघुनाथ जी की मूर्ति के दर्शन हो गये, परन्तु मुझे ऐसा वहाँ कोई भी नही मिला जो मुझे इस प्राचीन मंदिर के विषय में बता सके।
अब मैं बाज़ार में ही स्थित माता नैना देवी जी के नव निर्मित बेहद ही खूबसूरत नक्काशी से सुशोभित मंदिर पर आ गया, जिसके बाहर ही गर्म जल का एक कुण्ड है। उस उबलते जल कुण्ड की दीवारों पर कुछ बुजुर्ग टेक लगाये बैठे सर्दी के मौसम में गरमाहट का आंनद लेते हुए बतिया रहे थे। वहीं उस गर्म जल कुण्ड से स्थानीय लोग रबड़ की हॉट बोतलों में भी गर्म पानी भर रहे थे, जिसे वे ठण्ड से बचने हेतू हाथ सेंकने के काम में ला रहे थे।
दोस्तों, लकड़ी से बना माता नैना देवी जी का मंदिर जितना खूबसूरत है, उतनी ही मंदिर में स्थापित माँ नैना देवी जी की मूर्ति मनमोहक है। यह वही स्थान है, यहाँ जलक्रीडा में मगन माता पार्वती के प्रिय कर्ण-आभूषण की मणि जल में गिर गई, जब भगवान शिव माता पार्वती के संग भ्रमण करते हुए, इस रमणीक स्थल की मनोहारी आभा देख यहाँ ठहरे हुए थे। समस्त शिव गण नाकाम रहे मणि ढूँढनें में, परिणामस्वरूप भगवान शिव ने अत्यंत क्रोधित हो अपना तीसरा नेत्र खोला......उस दिव्य नेत्र से एक शक्ति नैना देवी प्रकट हुई....और माता नैना देवी ने ही माता पार्वती की खोई हुई मणि का पता दिया, कि वह बहुमूल्य मणि तो पाताल लोक के स्वामी शेषनाग के अधिकार में चली गई है, तो देवताओं के आग्रह पर शेषनाग ने मणि लौटाने के लिए पाताल लोक से ही जोर का फुंकारा मारा, जिसके परिणामस्वरूप इस स्थान पर उबलते हुए गर्म जल की धारा भूमि से फूट पड़ी। वह जलधारा अपने साथ सहस्त्र मणियों के संग माता पार्वती के आभूषण की मणि भी बाहर ले आई।
तब जा कर भगवान शिव का क्रोध शांत हुआ, इसी वजह से इस स्थान का नाम मणिकर्ण पड़ा.......और मणिकर्ण की प्राकृतिक सुंदरता भगवान शिव को इतनी पंसद आई, कि उन्होंने अपनी नगरी "वाराणसी " में गंगा नदी के किनारे एक घाट का नाम "मणिकर्णिका घाट " रखा........मणिकर्ण ही वह भूमि है, जहाँ कालान्तर में अनगिनत योगियों व श्रृषि मुनियों ने तपस्या व साधना कर भगवान शिव से अलौकिक सिद्धियाँ प्राप्त की। आज भी अलग-अलग क्षेत्रों से आये नगर व ग्राम देवी-देवता अपने पूरे हार-श्रृंगार के संग डोलियों पर सवार हो मणिकर्ण तीर्थ की यात्रा कर भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त कर, पुनः लोकोपार की प्ररेणा ले वापस लौट जाते हैं।
दोस्तों, लकड़ी से बना माता नैना देवी जी का मंदिर जितना खूबसूरत है, उतनी ही मंदिर में स्थापित माँ नैना देवी जी की मूर्ति मनमोहक है। यह वही स्थान है, यहाँ जलक्रीडा में मगन माता पार्वती के प्रिय कर्ण-आभूषण की मणि जल में गिर गई, जब भगवान शिव माता पार्वती के संग भ्रमण करते हुए, इस रमणीक स्थल की मनोहारी आभा देख यहाँ ठहरे हुए थे। समस्त शिव गण नाकाम रहे मणि ढूँढनें में, परिणामस्वरूप भगवान शिव ने अत्यंत क्रोधित हो अपना तीसरा नेत्र खोला......उस दिव्य नेत्र से एक शक्ति नैना देवी प्रकट हुई....और माता नैना देवी ने ही माता पार्वती की खोई हुई मणि का पता दिया, कि वह बहुमूल्य मणि तो पाताल लोक के स्वामी शेषनाग के अधिकार में चली गई है, तो देवताओं के आग्रह पर शेषनाग ने मणि लौटाने के लिए पाताल लोक से ही जोर का फुंकारा मारा, जिसके परिणामस्वरूप इस स्थान पर उबलते हुए गर्म जल की धारा भूमि से फूट पड़ी। वह जलधारा अपने साथ सहस्त्र मणियों के संग माता पार्वती के आभूषण की मणि भी बाहर ले आई।
तब जा कर भगवान शिव का क्रोध शांत हुआ, इसी वजह से इस स्थान का नाम मणिकर्ण पड़ा.......और मणिकर्ण की प्राकृतिक सुंदरता भगवान शिव को इतनी पंसद आई, कि उन्होंने अपनी नगरी "वाराणसी " में गंगा नदी के किनारे एक घाट का नाम "मणिकर्णिका घाट " रखा........मणिकर्ण ही वह भूमि है, जहाँ कालान्तर में अनगिनत योगियों व श्रृषि मुनियों ने तपस्या व साधना कर भगवान शिव से अलौकिक सिद्धियाँ प्राप्त की। आज भी अलग-अलग क्षेत्रों से आये नगर व ग्राम देवी-देवता अपने पूरे हार-श्रृंगार के संग डोलियों पर सवार हो मणिकर्ण तीर्थ की यात्रा कर भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त कर, पुनः लोकोपार की प्ररेणा ले वापस लौट जाते हैं।
इतिहास में महाभारत सम्बधित एक मुख्य घटना भी यहीं मणिकर्ण क्षेत्र में ही घटी, भगवान शिव ने शिकारी का रुप धर सर्वश्रेष्ठ धर्नुधर अर्जुन की परीक्षा ली थी, और प्रसन्न हो अर्जुन को अपना पाशुपात अस्त्र देकर निर्भय बना दिया, क्योंकि पाशुपात अस्त्र एक अति विध्वंसक विनाशकारी अस्त्र माना जाता था। इस दिव्य अस्त्र को धारक मात्र आँख, मन, शब्द या धनुष से दाग सकता था, इस अस्त्र के प्रहार से बचना बहुत कठिन कार्य था। मैं बहुत बार सोचता हूँ दोस्तों, कि हमारे भारत वर्ष के प्राचीन इतिहास में भिन्न -भिन्न क्षेत्रों में विज्ञान ने बहुत प्रगति की हुई थी......युद्ध विज्ञान से मात्र इशारों से अग्नि अस्त्र चल पड़ते थे, आयुर्वेद में संजीवनी से मृत जीवित हो उठता था, आकाश मार्ग में विमान उड़ रहे थे, आदि-आदि .....परन्तु यह सब अविष्कार, वे सब ज्ञानी व विज्ञानी लोग अपने साथ लेकर ही मर गये, अगली पीढ़ियों यानि हमें वंचित कर गये इन सब अविष्कारों से, या यूँ भी अपनी "तुच्छ सोच" सोचता हूँ कि यह सब राजे-महाराजों के किस्से -कहानियाँ है, जो लिखारियों ने बढ़ा-चढ़ा कर लिखे....!!!
....................(क्रमश:)
लो, विशाल जी तो चल दिये.... घर वापस दिल्ली को। |
इंटरनेट से प्राप्त गुरुद्वारा मणिकर्ण चट्टान दुर्घटना के उस समय के चित्र..... और बाद के चित्र, जो मैने खींचें थे। |
गुरुद्वारा साहिब मणिकर्ण के गुम्बद व निशान साहिब ....और प्राचीन शिव मंदिर के कलश-त्रिशूल। |
प्राचीन शिव मंदिर मणिकर्ण... के प्रांगण में गर्म कुण्ड में पक रहा लंगर, जिसकी महक से मैं खिच गया, और, यह चित्र गुरुद्वारे की मुंडेर से खींचा था। |
गुरुद्वारा मणिकर्ण साहिब की छत से खींचे थे.... ये चित्र। |
गुरुद्वारा मणिकर्ण साहिब का मुख्य द्वार। |
प्राचीन शिव मंदिर.... और गुरुद्वारा साहिब मणिकर्ण। |
गुरुद्वारा मणिकर्ण के पुल पर हर सैलानी कम से कम एक फोटो तो जरूर खिंचवाता है, जी। |
प्राचीन मंदिर श्री रघुनाथ जी महाराज.... मणिकर्ण। |
माता नैना देवी का भव्य नक्काशीदार काठ मंदिर.... मणिकर्ण। |
मणिकर्ण का एक सुंदर दृश्य। ( अगला भाग पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें ) |
बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंबेहद धन्यवाद गिरि जी
हटाएंबढ़िया पोस्ट
जवाब देंहटाएंबेहद धन्यवाद प्रतीक जी।
हटाएंबेहद धन्यवाद प्रतीक जी।
हटाएंहमनें तो विकास जी मणिकर्ण को सिर्फ रात में ही देखा है जी। लेकिन अब मन कर रहा है कि इसे दिन के उजाले में देख कर ही इसकी सुंदरता को निहारा जाएं। बहुत़ ही सुंदर दृश्य प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहद धन्यवाद मित्तल साहिब, आप फिर से मणिकर्ण जब जाए तो कम से कम एक रात वहीं गुज़र कर उस स्थल को अच्छे से महसूस करें जी।
हटाएं1995 में पहली बार गई थी मणिकर्ण ओर फिरु 2019 में दोबारा गई तो पहचान ही नही स्की इस शहर का स्वरूप😀😀
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