रविवार, 28 मई 2017

भाग-6 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर....Shrikhand Mahadev yatra(5227mt)

भाग-6  श्री खंड महादेव कैलाश की ओर.....
                                      " यात्रा के क्षणिक मिलाप, उमर भर की यादें "

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                                           20जुलाई 2016 के दिन मैं और विशाल रतन जी,  जांओं गाँव से ही मिले आशु के साथ अब वाचा गाँव से निकल सिंहगाड गाँव की ओर जा रही पगडंडी पर बढ़ रहे थे.... सिंहगाड(2015मीटर) चैल घाटी में महान हिमालय पर्वतमाला की ओर बढ़ते हुए आखिरी गाँव है और इस गाँव को ही श्री खंड यात्रा का प्रथम पड़ाव माना जाता है....
                       सिंहगाड से कुछ पहले सामने से भागते हुए आ रहे एक कुत्ते को रोक कर आशु हमे बताने लगा, " यह शेरू है और ये कई बार श्री खंड जा चुका है... ऐसे ही यात्रियों के साथ चल देता है " ......और जिस प्रकार से शेरू ने आशु व विशाल जी संग बड़े संयम से अपनी फोटो खिंचवाई,  लगता था कि वह एक "धैर्यवान प्राणी " है... हम शहरी प्राणियों के मुकाबले.....!!
                        चार बज चुके थे और सिंहगाड गाँव के बाहर एक गेट फिल्मी कलाकार देवानंद की तरह सिर टेढ़ा कर कुछ-कुछ मस्कुराता हुआ,  हमारे स्वागत में खड़ा था.... उस स्वागती द्वार से अंदर दाखिल हो,  आशु हमे सिंहगाड में भगवान शिव के मंदिर पर ले गया, जहाँ भोले नाथ की एक सुन्दर प्रतिमा स्थापित थी...... कुछ ओर आगे बढ़े,  तो एक सुडौल लम्बा-चौड़ा स्वागती द्वार फिर से हमारे " स्वागत शून्य " में श्री खंड महादेव यात्रा ट्रस्ट वालों ने खड़ा कर रखा था,  जिसपर श्री खंड यात्रा सम्बन्धी नियमों व सुझावों का व्याख्यान था,  कि सर्वप्रथम सिंहगाड से यात्री अपनी स्वास्थ्य जांच करवा,  फिटनैस प्रमाण पत्र प्राप्त कर आगे यात्रा करे और 36 किलोमीटर एक तरफ की इस दुर्गम यात्रा में क्या करे और क्या ना करे,  इन बातों पर प्रकाश डाला गया था....... और वे सब नियम पढ़-समझ, अब हम पंजीकरण व स्वास्थ्य चैक करवाने हेतू पाँच-छे लोगों की मेज के आगे खड़े थे,  और शायद उन लोगों की पारखी आँखों ने ही हमारे "सुडौल स्वास्थ्य" को जांच-परख लिया,  और यात्रा शुल्क लेने के बाद झट से हमे हमारा स्वास्थ्य प्रमाण पत्र मिल गया.... वहीं हमारी फोटो खींच, हमारा हमराही आशु हम से विदा ले,  सिंहगाड में कहीं खो गया.......
                         वहीं उन लोगों ने हमसे कहा कि,  अब शाम होने को है...आप लोग आज रात यहीं "श्री खंड सेवा मण्डल" की ओर से लगाये गए लंगर में रहे... और सुबह आगे की यात्रा शुरू करे,  मैने तो हां में सिर हिला दिया...परन्तु विशाल जी हर बार अपने संग दिल्ली की नामुराद बीमारी "समय सीमा " लाते ही है,  सो बोल पड़े... " नही,  अभी सवा चार ही हुए हैं, हमारे पास कुछ घंटे है और आगे बढ़ने के लिए...क्या इसके बाद भी कोई लंगर आयेगा"    तो उन्होंने हमे सलाह दी कि,  तीन किलोमीटर और जाने के बाद बराहटी नाले पर एक लंगर है,  वहाँ रात रुक जाना....!
                          प्रमाण पत्र ले सिर्फ दो कदम ही चले थे कि,  आगे पकौड़ों और जलेबी के लंगर को देख हमारी आँखों ने पेट से सांठ-गांठ पर हमारे पैरों को वहीं जाम कर दिया..... और उस छोटे से लंगर पर रुक कर हम कुछ चाय-नाश्ते में मगन थे कि,  एक भाई साहिब ने विशाल जी की गिरी हुई एेनक उठा कर थमाई और अंग्रेजी में पूछा कि "अभी जा रहे हो क्या".....विशाल जी उनका धन्यवाद करते हुए बोले, जी हां...... तो वह सज्जन फिर बोले कि, " भैया बेहद कठिन है यह यात्रा,  मैं कैलाश मानसरोवर भी जा चुका हूँ... पर ये यात्रा उस से सौ गुणा कठिन है..!!! "        उनके अंग्रेजी बोलने के अंदाज़ से मैं समझ गया कि ये सज्जन जरूर दक्षिण भारतीय हैं.... और उनके विषय में पूछने पर उन्होंने बताया, " मेरा नाम 'जय चन्द्रन' और मैं त्रिशूर केरल से यहाँ आया हूँ.... हमारा ग्रुप है,  जो पीछे आ रहा है...मेरी चाल उन लोगों से तेज है... इसलिए उनसे पहले ही यहाँ तक पहुंच,  अब उनका इंतजार कर रहा हूँ "
                           हमारे लिए यह हैरान कर देने वाली बात थी,  कि यात्रा शुरू करते ही गुजराती भाई मिले और अब केरल वाले.... मेरे दिमाग़ में यह बात कौंद गई कि,
  " घुमक्कड़ी पर लगे आस्था के तड़के में यात्री के लिए दूरियाँ नापना कोई मायने नही रखती " ....कहाँ भारत वर्ष के एक छोर केरल से 3000किलोमीटर की दूरी तय कर,  दूसरे छोर हिमाचल पहुँचे.... जय चन्द्रन व उनके साथियों को आस्था और घुमक्कड़ी के मिश्रण ने महान हिमालय की गगनचुम्बी चोटी पर चढ़ा दिया... नही तो अपने ही घर की सीढ़ियाँ चढ़ने में साँस फूल जाती है......!!!
                            जय चन्द्रन जी से यात्रा सम्बन्धी शुभकामनाएं और जलेबी की मिठास मुंह में ले,  हम दोनों चल पड़े अपने आज रात की मंजिल बराहटी नाले की तरफ..... और जाते हुए मैने जय चन्द्रन जी से कहा कि,  मै जितना भी भारत में घूमा हूँ... मुझे आपका केरल सबसे खूबसूरत लगा,  और मेरी बात सुन जय चन्द्रन जी के चेहरे पर छाई गौरवमय मुस्कान मुझे अब भी याद है.....
                              और,  सिंहगाड के प्राचीन गिरचाडू मंदिर के प्रांगण में लगे श्री खंड सेवा मण्डल के लंगर व रात्रि-पड़ाव पर बस एक सरसरी सी नज़र डाल, आगे की ओर बढ़ गए.... परन्तु वहाँ उस पड़ाव पर ना रुकना,  हमारी एक भूल थी... जो हमे इस यात्रा की समाप्ति पर बहुत ज्यादा महसूस हुई.... जिस का जिक्र मैं यात्रा के अंत में ही करूंगा,  तभी आप हमारी मनोदशा समझ पायेंगे दोस्तों..... सिर्फ पांच मिनट चलने के बाद ही "मानव बसो चिन्ह" अब समाप्त हो गए थे और हम जंगल में घाटी को चीरती हुई व अंधाधुंध भाग रही कुरपन नदी के किनारे-किनारे बढ़ते जा रहे थे, कुरपन नदी का जल सफेद रंग का था,  वो इसलिए कि प्रचण्ड गति से उछल व बह रहे पानी में हवा के महीन बुलबुले जो मिले हुए थे....
                              शाम का समय था, तो सुबह से चले व वापसी कर रहे लोग हमे निरंतर राह में मिलते जा रहे थे... और उनसे हमारा क्षणिक रिश्ता कायम हो जाता,  जब हम आपस में भगवान शिव का जयकारा लगाते....हमे लग रहा था कि, शायद अब इस समय हम दोनों ही श्री खंड की ओर बढ़ रहे थे... क्योंकि जाने वाली दिशा की ओर हम दोनों थे और उसी रास्ते पर आने वाली दिशा पर निरंतर आगमन था..... रास्ता भी अब कुछ चढ़ाई का ज्यादा अाने लग पड़ा,  कभी सीढ़ियाँ चढ़ कुरपन नदी से ऊपर पहाड के कंधों पर चढ़ जाते,  तो फिर कभी रास्ता हमे पहाड के चरण छू रही कुरपन नदी के एक दम किनारे पर ले जाता.... एक जगह ऐसी आई कि पहाड के साथ कंक्रीट डाल रास्ता बनाया हुआ था और पहाड के साथ बनाये उस छज्जे नुमा रास्ते के नीचे नदी का प्रवाह भयानक के साथ बेहद हसीन भी लग रहा था.... भयानक इसलिए कि सोच रहा था कि,  यह नदी सामान्य अवस्था में कितनी आक्रामक लग रही है...तो वर्षा ऋतु में तो इस नदी पर भरोसा किया ही नही जा सकता......
                               रास्ते के उतार-चढ़ाव और कई जगह तो बेहद कम चौड़े रास्ते से यह तो तय हो चुका था, कि इस पथ पर यात्रियों को अपने पैरों से चल कर ही श्री खंड महादेव जाना पड़ता है.... क्योंकि रास्ते में मुझे अब तक कहीं भी खच्चरों की लीद नही दिखाई दी और ना ही कोई पालकी आदि मुझे नज़र आई.... इस यात्रा की सबसे बड़ी कठिनाई ही यही है कि,  आप चाहे जैसे भी हो अमीर-गरीब,  बलवान-कमजोर,  बूढ़े-जवान..... अपने खुद के कदम बढ़ा, श्री खंड महादेव चोटी तक जाना होता है......!!
                                हमे चलते हुए पौना घण्टा बीत चुका था.....और हम राह में आए एक और लंगर पर आ पहुँचें,  लक्ष्मी नारायण मंदिर बाबडी, रामपुर बुशहर वालों का लंगर...... बाबा जी ने हमे रोका कि बच्चा चाय पी कर जाना,  परन्तु हमारी आज मंजिल खन्ना (पंजाब) से श्री पंच दशनाम अखाड़ा वालों का लंगर तय था,  सो बाबा जी को प्रणाम कर आगे बढ़ चले.... जिस रास्ते पर हम चल रहे थे,  उसे छोड़ जहाँ तक मेरी नज़र जाती थी...सब तरफ हरा ही हरा रंग प्रकृति ने बिछा रखा था,  इतनी हरियाली देख दिल्ली में रहने वाले विशाल जी को जो सुख मिल रहा था... वो मैं उनके चेहरे पर पढ़ रहा था,  हांलाकि उन्होंने अनजाने में ही अपना सुख मुझ से छिपा रखा था....
                                उस घने जंगल में सामने से चार व्यक्ति चले रहे थे.... मैने उनके रंग-रुप देख,  झट से विशाल जी से कहा..."लो ये आ रहे हैं, केरल वाले जय चन्द्रन जी के बाकी साथी"..... और आधे मिनट की भेंटवार्ता से हम उनकी स्मृति में,  और वे हमारी स्मृति में सदा के लिए जुड़ गए.....
                                 शाम का समय होने के कारण यात्रियों के दल वापसी कर रहे थे,  तब हमने एक पोटर को पहली बार देखा... जिसने अपने दल के सभी सदस्यों के बैग रस्सी से बांध अपनी पीठ पर लाद रखे थे,  हैरानी का विषय था कि,  इतनी कठिन डगर पर इतना सारा भार ले कर चलना.... उस पोटर की फोटो खींच अभी अपने रास्ते की तरफ रुख किया ही था,  कि एक महिला के संग दो लड़के चले आ रहे थे, ना जाने क्यों मुझे राह में मिल रहे यात्रियों से बात करना अच्छा लग रहा था... शायद इस कठिनाई भरी यात्रा को पूर्ण कर रहे यात्रियों के सुख व संतोष को महसूस करना मुझे आनंदित कर रहा था,  जैसे ही वे भी हमारे पास से गुजरने लगे... मैने कहा कि, " लगता है भाइयों,  अपनी माता जी को श्री खंड के दर्शन करवा कर आ रहे हो "...... वे युवक मस्कुराएँ और बोले, " जी हां,  ये हमारी माता समान ही है, जी "
                                  और... उनसे जूना अखाड़ा लंगर बराहटी नाला की दूरी के विषय मे पूछ,  फिर से हमने उस ऊंची-नीची पगडंडी पर अपने पग अग्रसर कर दिये.......

                                                           .....................................(क्रमश:)
 शेरू के साथ आशु और विशाल रतन जी.... 

सिंहगाड गाँव के बाहर.... देवानंद अंदाज में खड़ा स्वागती द्वार 

सिंहगाड गाँव में भगवान शिव की प्रतिमा... 

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श्री खंड यात्रा पंजीकरण व स्वास्थ्य प्रमाण पत्र हासिल करते हम दोनों.... 

आहा......जेलबी पकौड़े...!! 

केरल से आए जय चन्द्रन जी के साथ.... 

श्री खंड महादेव यात्रा के प्रथम पड़ाव सिंहगाड गाँव में श्री खंड सेवा मण्डल की ओर से चलाये जा रहे लंगर के बाहर खड़े हम दोनों.... 

यात्रा का सुख मेरे चेहरे पर साफ झलक रहा है ना, दोस्तों.. 

अब रास्ता कुरपन नदी की ओर उतर रहा था....और विशाल जी की प्रसन्नता  

अंधाधुंध भाग रही कुरपन नदी.... और मैं 

बेहद खतरनाक रास्ता..... पहाड के साथ कंक्रीट डाल छज्जा नुमा बनाया गया रास्ता पार करते हुए विशाल जी... 

इतना दुर्गम रास्ता देख कर,  यह बात तो तय हो गई कि इस यात्रा पथ पर कोई सहायक सवारी नही मिलती,  यात्री को अपने पैरों पर ही श्री खंड महादेव चोटी तक जाना होता है.... दोस्तों 

बच्चा, चाय पी लो.... लक्ष्मी नारायण मंदिर, बाबडी रामपुर बुशहर वालों का लंगर... परन्तु हम दोनों हाथ जोड़ कर आगे निकल गए.... 

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लो जी,  आ गए केरल वाले जय चन्द्रन जी के बाकी साथी..... 

यात्रा पथ पर दिखा पहला पोटर.....जिसने कई सारे बैग इक्ट्ठा उठा रखे थे....

ना जानें, क्यों मुझे राह में मिल रहे यात्रियों से बात करना अच्छा लग रहा था, शायद इस कठिनाई भरी यात्रा को पूर्ण कर रहे यात्रियों के सुख व संतोष को महसूस करना मुझे आनंदित कर रहा था.....! 
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रविवार, 21 मई 2017

भाग-5 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर....Shrikhand Mahadev yatra(5227mt)

भाग-5  श्री खंड महादेव कैलाश की ओर.....
                                     " एक निर्दोष सांप "

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                                        पिछली किश्त में मैने आपको बताया था कि,  20जुलाई 2016 को जांओं गाँव से श्री खंड महादेव पदयात्रा शुरू करने के कुछ समय बाद रास्ते में हमे एक स्थानीय लड़का "आशु" मिला.... वह सिंहगाड गाँव में यात्रा के प्रथम पड़ाव पर श्री खंड सेवा दल लंगर के सामने लगाई अपनी दुकान पर जा रहा था... और मैने अपने कदम आशु के संग मिलने शुरू कर दिये....और उस पर अपने सवालों का भार देने लगा,  कि उस घाटी,  नदी,  पर्वत,  गाँव,  पेड़,  पौधों के क्या-क्या नाम है,  और मुझे संतोषजनक उत्तर भी मिलते रहे......
                 फिर अाशु ने बताया कि यहीं अगले मोड़ से ही श्री खंड महादेव शिला के दर्शन भी हो जाते हैं,  जो जहाँ से 35किलोमीटर की दूरी पर है.... परन्तु मौसम साफ नही है,  शायद ही आपको उस अगले मोड़ से श्री खंड महादेव के दर्शन हो सके...... ठीक वैसे ही हुआ, मौसम हमारे हक में नही था.....
                 सामने से एक साधु बाबा आ रहे थे,  जो नंगे पैर थे... मैने उनके नंगे पैर देख कहा, " बम-बम भोले... बाबा नंगे पैर ही मिल आए क्या भोलेनाथ से...! "     उन्होंनें गर्व से कहा, " हाँ, मैं नंगे पैर ही गया था श्री खंड...!! "
उन बाबा के जाते ही मैने विशाल रतन जी से प्रश्न पूछा, " जैसे ये साधु बाबा नंगे पैर 72किलोमीटर लम्बी कठिन व पथरीली डगर पर चल कर अपने ईष्ट से मिल आये.... मैं इसका निंदक नही प्रशंसक हूँ,  परन्तु यह कहाँ तक उचित है या किस पौराणिक ग्रंथ में यह लिखा है कि,  भगवान अपने भक्त से चाहते है कि वह मेरे पास अपने शरीर को यातना देते हुए आये....!!! "
                   विशाल जी बोले, "भगवान की राह पर कोई भी अवस्था चाहे वो नंगे पैर, घुटनों के बल,  दण्डवत लेट कर या नाच-गा कर.......प्रतिक्रियाएँ भक्त के सच्चेपन व विश्वास को दर्शाती है,  और भक्त को एक ऐसी अलौकिक स्थिति में ले जाती है.. जहाँ पहुंच वह अपने होश व अस्तित्व को ही भुला देता है और अपनी अंतरात्मा संग एक हो जाता है,  उस अंतरात्मा संग जो सांसारिक गुलामी की ज़ंज़ीरों में जकडी हुई है,  यह कष्ट-क्रम उसकी आत्मा की शुद्धिकरण करते हैं.. उसके अर्तमन व आत्मा पर पड़े 'भार' को हल्का करते हैं........!!!"
                     विशाल जी का जवाब सुन मैने कहा, "आध्यात्मिकता से देखे तो आपकी कही इस बात का असर मेरे दिलो-दिमाग पर गहराई से छा रहा है,  कि शारीरिक श्रम व कष्ट से आत्मा को पवित्र करने की कोशिश द्वारा परमात्मा की अनुभूति पाना... परन्तु इस अलौकिक अवस्था या नज़ारे को वही देख व महसूस कर सकता है,  जो यह श्रम या अभ्यास कर रहा है...हम साधारण जन तो बस इस कर्म में मात्र तमाशबीन ही साबित होते है,  मेरा मत यह भी है कि कष्टकारी अवस्था में तीर्थ करना,  परिणाम है... कि उस भक्त को जीवन में क्या चोट लगी,  कि उसके आराध्य ने उसे उस चोट से उबारा हो..यह आस्था,  समर्पण,  शुक्राना व हठ का विषय है.. यह एक अनथक लगन की अद्भुत अनुभूति है,  जिसे वह ही पा रहा है, हम नही.... मुझे इन सब में विशाल जी,  एक बात ही बेहद अच्छी लगती है...वह है भक्त की देवता या देवी के प्रति आस्था की कोमल भावनाएँ,  कि सौ प्रतिशत भक्त अपने आराध्य के लिए समर्पित है.. और कोई भी ऐसा विषय इस संसार में नही है,  जिसमें मनुष्य अपना सौ प्रतिशत समर्पण दे..बस इस भावना की मैं कदर करता हूँ.....!!! "
                    हमारी यह वार्ता हमारा हमराही आशु बहुत ध्यान से सुन रहा था... और तभी सामने से एक तीर्थयात्री वापिस उतर रहे थे, जिन के हाथों में धातु का बना एक बहुत बड़ा दण्ड था... जिसके ऊपरी छोर पर घुघँरू बांध रखे थे और उस घुँघरू से बंधे दण्ड को हिला-हिला कर शिव के जयकारे लगा रहे थे... मैने उनको रोक कर पूछा कि जनाब यह आपने क्या उठा रखा है,  तो उन्होंने बताया कि, " यह शौगी गाँव के हनुमान मंदिर का झंडा है,  इसे श्री खंड माथा टिका कर ला रहा हूँ"..... इस यात्रा पर चलते हुए अभी पहला ही घण्टा चल रहा था,  इतने कम समय में ही हमे राह में मिलने वाले व्यक्तियों से की हुई छोटी सी मुलाकातें भी महत्वपूर्ण लग रही थी,  क्योंकि यही तो यात्राओं का असली आनंद होता है,  कि आपको पता नही कौन आपसे मिलने वाला है... जिंदगी और यात्रा की राह में पहली बार ही मिला कोई अजनबी आपको तमाम उमर याद रहता है और उस अजनबी को आप......!!
                    आशु से मेरी बातचीत निरंतर चल रही थी..... वडिगचा गाँव के बाद हम वाचा गाँव तक पहुंच चुके थे और इन गांवों के खेतों में राजमाँह, सब्जियां और मक्की की फसल लहलहा रही थी... वाचा गाँव में पगडंडी किनारे काफी मात्रा में लगी एक जानी-पहचानी सी फसल को देख मैने आशु से उस फसल का नाम पूछा,  तो उसने कहा कि इसे विथू बूटी करते हैं और यह बहुत कीमती है.... उस समय तो मैने अपने दिमाग पर बहुत जोर दिया कि, इस फसल को हमारे पंजाब में क्या कहा जाता है.. पर मुझे याद नही आ रहा था,  मतलब यह है कि बढ़ रही समुद्र तट से ऊँचाई  का असर कहीं ना कहीं मेरी यादाश्त पर होने लगा था... दो दिन बाद याद आया कि वो विथू बूटी "ग्वार फली" थी,  जिसके बीज काफी मंहगें होते हैं.......
                     तभी एक छोटा सा बालक अपनी माँ और दादी के आगे भागता हुआ सीढ़ियाँ उतर रहा था... और फोटो खींचने के लिए अपनी तरफ तन चुकी मेरी बांह को देख,  जाने क्यों वो सहम सा गया... उसके माथे पर लगा त्रिशूली टीका और सहम कर मुंह में डाली अंगुलियाँ उस बालक की मासुमियत पर चार चांद लगा रही थी.... यात्रा में हर पल बदलती दृश्यावली और राह में मिल रहे लोग जाने क्यूँ अपने से लग रहे थे......
                       मैं कभी उस बूढ़ी अम्मा का चित्र खींच रहा था, जो उमर के उस पड़ाव पर भी घरेलू जिम्मेवारी में पूरी शिद्दत से अपना योगदान दे रही थी,  उसकी पीठ पर ढेर सारा हरा चारा लदा था..... और कभी गाँव की गलियों में बुजुर्ग को रोक उन संग आज्ञा ले खुद चित्र खिंचवाता......
                        वाचा गाँव में छोटे से पक्के बने रास्ते पर से गुज़रते हुए एकाएक सामने खड़े गाँव के दो-तीन  बुजुर्ग हमें आवाजें दे कर अपने पास बुलाने लगे.... "सांप-सांप, जल्दी आओं... सांप...! "
                          उनके पास पहुंचतें ही उन्होंने कहा,  " तुम लोग जवान हो,  जल्दी से डंडा ले...इस सांप मार दो,  जो इस घर के आँगन में घूम रहा है..... आशु ने झट से ना में सिर हिला दिया, उस घर का आँगन जिसमें सांप इधर-उधर मारा-मारा घूम रहा था,  उस रास्ते के बायें तरफ नीचे की ओर था...... और हम सब उसे कुछ ऊंची जगह पर खड़े देख रहे थे...
                              "सांप-सांप,  मारो-मारो" की आवाजें सुन उस घर के अंदर से एक लड़की भी बाहर आ गई.... और वह सांप रेंगता हुआ,  घर की एक तरफ बने हुए स्नानघर की ओर,  उस दीवार के साथ-साथ रेंगने लगा... जिस पर हम सब खड़े थे,  और मैने झट से ठान लिया कि,  मैं इस " निर्दोष सांप " की यूँ ही जल्दबाजी में इन लोगों के हाथों हत्या नही होने दूँगा.... और वहीं दीवार पर खड़ा हो अपनी ट्रैकिंग स्टिक की मदद से उस सांप का रुख मोड़ने लगा....परन्तु उसी समय सांप ने अपना रुख बदल.... आँगन में खड़ी उस लड़की की तरफ कर लिया,  और उस लड़की ने मुझे ऐसे घूर कर देखा... जैसे सारा ही दोष मेरा है और मुझे "ओए" सम्बोधन कर जोर-जोर से चीखने लगी, "ओए,  ये क्या कर रहा है तू....!! "
                           और,  मैं उसी क्षण उस दीवार से छलाँग लगा,  सांप और लड़की के मध्य खड़ा हो गया... और अपनी ट्रैकिंग स्टिक की मदद से उस सांप को घर के आँगन से बाहर खेतों की तरफ उछाल दिया.......
                           यह सब घटना-क्रम केवल दस-बीस क्षणों के भीतर ही घट गया,  नीचे आँगन में खड़े-खड़े  मैने विशाल जी की तरफ देखा,  तो वह सुन्न से खड़े मुझे देख रहे थे.... मैने कहा कि,  मेरी कोई फोटो भी खींची क्या आपने... तो उन्होंने कहा कि,  सब कुछ इतनी जल्दी हो गया... मुझे कुछ सुझा ही नही...!!
                            ऊपर रास्ते पर वापस आ,  मैने विशाल जी से तर्क दे कहा, " विशाल जी,  हम भगवान शिव की यात्रा पर जा रहे हैं और उनके संगी सांप का कैसे वध करने देता, मैं.....!!! "

                                             .....................................(क्रमश:)
हमारा हमराही........आशु

हां, मैं नंगे पैर ही गया था..... श्री खंड 

 शौगी गाँव के हनुमान मंदिर के झंडे का माथा टिका कर वापस आ रहा हूँ..... 

कुरपन नदी के साथ-साथ... 

देखो मित्रों....इस हसीन वादी में,  वडिगचा गाँव के कुछ घर.... 

सेब, सब्जियां और राजमाँह की खेती.... 

विथू बूटी...... जिसे हम पंजाब में ग्वारा या ग्वार फली कहते हैं....

वाचा गाँव की ओर..... 

एकाएक अपनी ओर.....फोटो खींचने के लिए उठी मेरी बांह को देख कर घबरा से गए थे,  ये जनाब.. 

उमर के इस पड़ाव पर भी घरेलू जिम्मेवारी के निर्वाह में बूढ़ी अम्मा..... 

यात्रा में प्रसन्नता के भाव..... जब आप अनजान लोगों संग फोटो खिंचवानें लगते हैं... 

निर्दोष सांप......भगवान शिव की यात्रा पर जाते हुए,  मैं शिव के संगी सांप की हत्या कैसे करने देता.... दोस्तों 
           
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शनिवार, 13 मई 2017

भाग-4 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर....Shrikhand Mahadev yatra(5227mt)

भाग-4 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर....
                                          " ख्वाब में राग "

इस चित्रकथा को आरंभ से पढ़ने का यंत्र (https://vikasnarda.blogspot.com/2017/04/1-shrikhand-mahadev-yatra5227mt.html?m=1) स्पर्श करें।
                                               
                                          मैं और विशाल रतन जी अब श्री खंड महादेव यात्रा के लिए निरमण्ड नामक पहाड़ी गाँव की ओर बढ़ रहे थे...रास्ते में सड़क किनारे फौज द्वारा पत्थरों को गाढ कर लगाये पर्वतों के नमूने बहुत सुंदर थे,  ये माडल तिब्बत, लद्दाख व हिमाचल  प्रदेश को जोड़ते "माऊट गया"(6795मीटर) से सम्बन्धित थे...
                       समय दो पहर यानि 12बज चुके थे.... और दूर पहाडों की गोद में खेलता हुआ गाँव निरमण्ड नज़र आने लगा,  सड़क अब सेबों के बागों से हो गुज़र रही थी,  दोस्तों पेड़ों पर पत्ते कम और सेब ज्यादा नज़र आ रहे थे.. सच कहूँ तो पेडों पर इतने सारे सेबों के गुच्छों को इक्ट्ठा देख मेरी तो आँखें ही फट गई.... अलग-अलग नस्ल के सेब के पेड़,  यहाँ तक कि मैने विशाल जी को एक पेड़ ऐसा भी दिखाया,  जिस पर दो अलग-अलग किस्म के सेब,यानि आधे हरे रंग के गोल्डन जाति के सेब और गहरे लाल रंग के रॉयल रेड डिलिशियस जाति के सेब लगे थे.....और कहा, " देखो यह है कृषि विज्ञान का कमाल".........वह सारा इलाका ही फलदार पेड़ों से भरा पड़ा था...अख़रोट, बब्बूगोशें, आडू आदि के पेड़ों के बीच में से निकल कर हमारी गाड़ी निरमण्ड(1450मीटर) में जा पहुँची.....एक व्यस्त बाज़ार की तंग सड़क से निकल कर हमारी दौड़ जारी रही,  क्योंकि हमे हमारा लक्ष्य यानि "जांओं" गाँव (यहाँ से श्री खंड महादेव की पैदल यात्रा आरम्भ होती है) कहीं भी रुकने नही दे रहा था,  हांलाकि निरमण्ड कोई साधारण गाँव नही.... यह गाँव हिमाचल प्रदेश का दूसरा बडा गाँव है,  जिसे हिमालय की काशी नाम प्राप्त है,  जो भगवान परशुराम मंदिर,  माता अम्बिका मंदिर व दख्णी महादेव मंदिर के कारण प्रसिद्ध है..... जबकि हिमाचल प्रदेश का सबसे बड़ा गाँव "देहला"(जिला- ऊना) है,  जो मेरे शहर गढ़शंकर (पंजाब)  से मात्र 35किलोमीटर की दूरी पर है....
                           बस एक मशीनी मानव की तरह बेदिल सा बन,  रास्ते में खड़ी हर सुंदर "रुकावट" को लांघता हुआ आगे ही आगे बढ़ता जा रहा था,  क्योंकि जब भी मैं और विशाल जी इक्ट्ठा चल देते हैं इन पहाडों की ओर.... तो विशाल जी अपने संग "समय सीमा" नामक "नामुराद बीमारी" दिल्ली से ही ले आते हैं,  क्योंकि वे एक नौकरीपेशा सज्जन है और वो भी दिल्ली की अत्यंत निष्ठुर जीवनशैली की व्यस्तता में...... जबकि मैं अपने काम का खुद सरदार हूँ और अपने बड़े सरदार यानि मेरे पिता जी के दम पर बहुत लम्बी-लम्बी छलांगें लगा जाता हूँ.......... सो, मुझे विशाल जी की छुट्टियों को देख कर ही " समय सीमा" नामक फ़रमान का आदर करना होता है....
                           और,  दोपहर एक बजे के करीब "बागीपुल" नामक स्थान से मात्र 6किलोमीटर रह गए जांओं गाँव की ओर गाड़ी चढ़ा दी..... एक छोटी सी नई बनी सड़क पर एक पहाड के कंधे से उतर दूसरे पहाड के कंधे पर चढ़ रही थी मेरी गाड़ी..... लाख कोशिश के बाद भी मशीनी मानव बने मेरे शरीर का बाया पैर विद्रोह कर जाता... और गाड़ी के ब्रेक पैडल को दबा देता था,  ताकि राह में निरंतर आती जा रही खूबसूरत रुकावटों को निहार सके,  कभी झरने की सुरम्यता गाड़ी के ब्रेक पैडल पर भारी पड़ती, तो कभी राह में आई गद्दियों की भेड़े....आखिर उस जगह से गुज़रा,  जहाँ उस छोटी सी सड़क के किनारे कई सारी गाड़ियाँ खड़ी थी,  यह बात सिद्ध कर रही थी कि हमारी मंजिल यानि जांओं गाँव(2000मीटर)आ चुका है..... परन्तु गाड़ी खड़ी करने की कोई भी खुली जगह कहीं नही थी... मैने सड़क के किनारे-किनारे दो किलोमीटर आगे जा कर भी देखा,  परन्तु कोई खुली जगह नही मिली.... सो वापस वही आकर खाई की दूसरी तरफ पहाड की ओर एक जगह ढूँढ कर गाड़ी को सटा कर खड़ा कर दिया....सुना है दोस्तों कि जांओं गाँव ऋषि जमदग्नि की तपस्थली रहा है......
                           और,  अपना यात्रा सम्बन्धी सामान इक्ट्ठा करने में व्यस्त हो गए...अपने कपड़े बदल पहले से ही तैयार कर रखे सामान की रक्सक मैने गाड़ी से निकाल बाहर सड़क किनारे पत्थर पर रख दिया,  जबकि विशाल जी अपनी तैयारी में मगन थे....मैने कुछ समय पहले ही इस यात्रा सम्बन्धी अपडेट अपनी फेसबुक प्रोफ़ाइल पर डाला था,  तो मेरे एक फेसबुक मित्र ने हमे उस पोस्ट पर सलाह दी,  वे अभी दो सप्ताह पहले ही इस यात्रा पर गए थे... कि विकास जी,  कोई भी फालतू सामान इस यात्रा पर साथ ले कर मत जाना,  सब कुछ आपको इस यात्रा के दौरान मिलता रहेगा.. खाने व रहने के पूरे इंतजाम है इस पूरी यात्रा पर,  जितना हो सके कम से कम भार अपने साथ उठा के ले जाना जनाब...!
                            समझदार को इशारा ही बहुत...मैं जहाँ विशाल जी की बात कर रहा हूँ और उन्होंने मेरे मुख से यह बात सुनतें ही अपने सारे सामान से बेहद जरुरी सामान छांट लिया और मैने भी टैंट व स्लीपिंग मैट अपनी रक्सक से निकाल गाड़ी में रख दिया.... जहाँ तक कि विशाल जी ने अपनी "कमर पेटी" यानि बैल्ट भी यह कह कर उतार गाड़ी में फेंक दी,  कि छोड़ों विकास जी इसका भी वजन बगैर मतलब के क्यों ढोना है...मुझे उस समय तो समझ नही आ रहा था, कि विशाल जी की इस कारगुज़ारी को समझदारी कहूँ या नही... पर मैने अपनी कमर पर बंधी बैल्ट को और कस कर बांध लिया,  कि वर्षो से जिस ख्वाब को मैं देखता आ रहा हूँ... आज उस ख्वाब की असलियत में चलने का समय आ गया है, उस ख्वाब में "राग" गाने का वक्त आ चुका है.... और उस उल्लासी राग के बोल थे "जय शिव भोले,  बम बम भोले "
यह उद्घोष लगा,  हमने 3बजे अपनी 36 किलोमीटर लम्बी श्री खंड महादेव कैलाश पदयात्रा को प्रथम कदम दिया....
                            और,  पक्की सड़क से चैल घाटी में उतर कर कुरपन नदी की ओर चलना शुरू कर दिया,  ट्रैक शुरू होने वाली जगह पर ही लंगर व कुछ यात्रा सम्बन्धी कच्ची दुकाने थी, हमारी रक्सकों पर बंधी घंटियों की आवाज़ और हमारा पहरावा हमे बाकी यात्रियों से अलग कर रहा था... इस वजह से उस छोटे से बाज़ार में हमे कई लोगों ने भगवान शिव जयकारें लगा,  उत्साहित कर आगे की ओर भेजा.... कुछ उतराई उतरे तो सामने से वापस आ रहे दो पदयात्रियों ने हमे देख जोर से शिव भोले का जयकारा लगाया,  उनके पास आने पर मैने पूछा, "भक्तों दर्शन कर आए "...तो वे बोले, "हां हमारी यात्रा सफल हो गई... परन्तु बहुत कठिन है भाई यह यात्रा,  आज सातवें दिन वापस पहुँचें है....! "
मैने फिर से पूछा कि आप लोग कहाँ से हो... तो जवाब सुन हमारी हैरानी की सीमा नही रही कि वे दोनों दोस्त अहमदाबाद गुजरात से श्री खंड महादेव यात्रा के लिए आए थे,  मैं सोच में पड़ गया कि आस्तिकता में इसे भगवान शिव का बुलावा ही कहेंगें.... और हम जैसे पर्वत प्रेमियों को तो बस बहाना चाहिए पर्वत पर चढ़ने के लिए....
                                     विशाल जी ने उनसे आगे के रास्ते के बारे में सलाह- मशवरा करना शुरू कर दिया, तो उन्होंने हमे सलाह दी, कि आज आप लोग श्री खंड यात्रा के प्रथम पड़ाव "सिंहगाड़" जो जहाँ से तीन किलोमीटर दूर है,  पर पहुंच कर श्री खंड महादेव सेवा दल के द्वारा चलाये जा रहे लंगर में रात्रि विश्राम करे,  वहाँ से सुबह और यात्रियों के साथ ही यात्रा के अगले दिन के रात्रि पड़ाव "थाचडू" के लिए चल देना.....सिंहगाड़ लंगर पर पहुंच कर लंगर कमेटी के मुख्य प्रबंधक से मिल लेना,  वह बहुत सहयोगी सज्जन है और यात्रियों की सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहते है......
                                     अभी कुछ कदम ही चले थे कि,  आवाज़ आई..."भक्तों पूरी-छौले"...यह शुरुआत साबित कर रही थी कि यात्रा में भोजन की कमी नही होगी और उस छोटे से लंगर में प्रबंधकों ने राति विश्राम हेतू कम्बल आदि भी रखे हुए थे, परन्तु हम उन आवाज़ देने वाले सज्जन को हाथ जोड़ कर यात्रा प्रथम चढ़ाई चढ़ने लगे... ऊपर की ओर चढ़ कर दूसरी तरफ देखा तो, चैल घाटी में बह रही कुरपन नदी की तीव्र धारा पर्वतों के चरण धोती हुई बह रही थी और दूर सामने पहाड केे सीने पर बसा छोटा सा रंग-बिरंगा गाँव मस्कुरा रहा था... कि मेरे पीछे एक लड़का आ बोला, " सर ट्रेकरस् का ग्रुप जा रहा है श्री खंड " ......तो मैने कहा नही भाई,  हम दोनों ही आजाद पंरिदें जा रहे है श्री खंड महादेव यात्रा पर...
                                     और,  जो भी मुझे रास्ते में मिल जाता है...मैं उस का साथ नही छोड़ता दोस्तों,   क्योंकि इसमें मेरा स्वार्थ छिपा होता है कि उस शख्स से अपने सवालों के जवाब और जानकारियाँ हासिल करनी होती है... और उस लड़के ने अपना नाम बताया... "आशु" और गाँव थरला......

                                                              ........................................(क्रमश:)
तिब्बत,लद्दाख व हिमाचल की संयुक्त सीमा पर स्थित पर्वतों के माडल... जो एक सैन्य छावनी के बाहर लगे हुए थे 

निरमण्ड......दो किलोमीटर से कुछ मीटर कम 

इस इलाके की सुंदरता को चार चांद लगते ये फलों से लदे हुए पेड़... 

दोस्तो, सच बताना... पेड़ पर लगे हुए सेब ज्यादा सुंदर दिखतें है या फिर किसी दुकान में फलों की टोकरियों में...! 

निरमण्ड गाँव को देख.... मेरा कैमरा भी मस्कुरा दिया,  और यह हसीन दिलकश यादगार मुझे भेट की 

खूबसूरत रुकावटे...!!!

निरमण्ड से आगे बागी पुल की ओर..... 

बागी पुल गाँव के सुंदर दर्शन.... 

मित्रों...सोचों कि हमारी जगह आप लोग इस हसीन वादी में जा रही सड़क पर गाड़ी में जा रहे हैं, और यह सुंदर रुकावट आप के सामने खड़ी है....!!! 

कभी आगे देखूँ, तो कभी पीछे....हे प्रकृति,तेरी सुंदरता मन को मोह रही थी.... 

जांओं पहुंच...सड़क के किनारे गाड़ी को लावारिस ही छोड़ दिया... 

मैने झट से अपना रक्सक गाड़ी से निकाल... बाहर पत्थर पर रख दिया,  जबकि विशाल जी अपना बेहद जरुरी सामान चुनने में व्यस्त थे... 

लो जी,  तैयार हो गए हम.... "दो पर्वतारोही "

यही रास्ता श्री खंड महादेव जाता है,  सड़क से नीचे उतर कर.... 

लो जी, सड़क छोड़ कच्चे रास्ते पर पहुंच गए.... दोनों पर्वतारोही 

अहमदाबाद(गुजरात) से आए श्री खंड यात्रियों के संग.... 


भक्तों....छोले-भूटरे


श्री खंड महादेव की ओर....प्रथम सीढ़ियाँ चढ़ते हम दोनों...

कुछ ऊपर चढ़ कर देखा कि... चैल घाटी में कुरपन नदी पर्वतों के चरण धोती हुई बह रही थी.... 

और, सामने पर्वत के सीने पर बसा गाँव मस्कुरा रहा था... 

इस शक्स को तो आप लोग आसानी से पहचान लो गे ना,  दोस्तों....!  
सर, ट्रेकरस् का ग्रुप जा रहा है श्री खंड.......मेरे पीछे चढ़ रहे आशु ने पूछा....