भाग-4 पैदल यात्रा लमडल झील वाय गज पास (4470मीटर)
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मैं और ऋषभ नारदा अपना जरुरी सामान पीठ पर लाद कर 24अगस्त2015 को "गेरा" गांव से पैदल चल रहे थे, "लमडल झील" की तरफ........ लमडल झील और गज पर्वत से निकली गज नदी पर बने पक्के पुल को पार कर, एक कच्ची पगडंडी पर हमने चलना शुरू कर दिया और कुछ दूर ही चले थे, कि हमे हमारी यात्रा का पहला मददगार मिला....जो हमारे आगे ही पैदल चल रहा था, नाम था उनका.....श्री रोशन लाल उत्तम जी, गांव वरमेज..........वह वरमेज गांव से पैदल ही गांव रावा जा रहे थे, अपने किसी रिश्तेदार के घर हो रहे समारोह में शामिल होने के लिए.......वह बोले चलो रावा गांव तक तो मेरे साथ ही चलो और उससे आगे का रास्ता आपको दिखा दूँगा.............
गज नदी के साथ-साथ ऊपर चढ़ाई चढ़ते-चढ़ते एक और गांव आया, नाम था "वंनठू".....गांव में गज नदी के किनारे एक मंदिर में दो छोटी उमर की लड़कियों की मूर्तियाँ देख मैने इस बारे में रोशन लाल जी से पूछा, तो वह बोले यह दो सहेलियो का मंदिर हैं, जब एक सहेली किसी कारणवश गज नदी के तेज प्रवाह में बहने लगी, तो दूसरी ने अपनी अटूट मित्रता निभाते हुए उसे बचाने हेतू गज नदी में छलांग लगा दी और दोनों ही मौत की भेंट चढ़ गई.......मैने कहा तो यह मंदिर नहीं यह तो अटूट मित्रता का एक स्मारक हैं, दोस्ती का रिश्ता जीवन में बहुत बार अपने सगे-सम्बन्धियों की तुलना में ज्यादा गहरा हो जाता हैं....
वंनठू गांव से आगे गज नदी पर एक झूला पुल, जिस पर चलना भी कोई आसान काम नही था, क्योंकि चलने से ही सारा पुल झूले की तरह झूल रहा था..... पार कर हम ब्राह्मण जाति के गांव 'बरमई' में कुछ समय गांव वालों से बातें बतिया कर रावा गांव की तरफ रवाना हो लिये....... फिर आगे गज नदी पर पुराने जर्जर हो चुके पुल के साथ बने नए पुल से गुज़र कर हम रावा गांव के मक्की के खेतों में पहुंचे, तो देखा कि लोग दोपहर के समय भी मचानों पर बैठ कर फसल की रखवाली कर रहे थे.....देख कर हैरानी हुई कि दिन के समय भी फसल की रखवाली, पूछा तो रोशन लाल जी ने बताया कि जंगली भालू और बंदरों से चौबीसों घंटे मक्की की फसल को बचाना पड़ता है.....कैसा मुश्किल है पहाड़ो में खेती करना भी, मन में यह ख्याल आया कि.... देखने में यह पहाड़ कितने खूबसूरत नज़र आते हैं, परन्तु यहां रह कर जीवन का निर्वाह करना भी किसी "पहाड़" से कम नहीं है.......
अब हम "रावा" गांव में पहुंच चुके थे और रोशन लाल जी ने हमें आगे का रास्ता दिखा विदा किया, और अब फिर रास्ता पूछ-पूछ कर जाने का सिलसिला शुरू हो गया, तभी एकाएक मौसम ने करवट ली और झट से बारिश शुरू और हम फट से एक छत के नीचे...........कुछ समय बाद बारिश थमी और हम रावा गांव से बाहर निकल कर..... अब हम गज नदी से थोड़ा ऊपर की ओर चढ़ रहे थे, रावा इस तरफ का आखिरी गांव है और अब हम जंगल की तरफ बढ़ रहे थे........ और हम पहली बार रास्ता भटके, परन्तु कुछ समय बाद ही समझ आ गया फिर सही रास्ते पर वापिस आ गए...........और, फिर मेरा सामना हुआ "बिच्छू बूटी " से जिसे वहां स्थानीय भाषा में 'ऐयन' कहा जाता है, जैसे ही मेरा हाथ इस पर पड़ा...... मानो कि 440 वोल्ट वाली बिजली की तार को छू दिया हो, जीवन में बिच्छू बूटी से छूने का... यह मेरा पहला साक्षात्कार या अनुभव था, इसका असर कई घंटों तक बना रहता है, मैं ऋषभ से बोला..... भाई, ये तो पहला ही दिन है...अभी तो चार दिन इसी बिच्छू बूटी से भरे जंगल में रहना हैं हमे.......
तभी एक दम साफ हो चुके आसमान में फिर बादल उठे और एकाएक बारिश शुरू..... परन्तु इस बार बारिश से बचने के लिए कोई जगह नही, एक बिजली के खम्बे के चबुतरे पर सामान रख जल्दी से मैने अपना ट्रैकिंग रेन कवर पहना और ऋषभ को छतरी थमाई, और दोनों इक्ट्ठा हो खुले में बारिश का सामना करने लगे............हमारी इस ट्रैकिंग की मुसीबतों का अब आरम्भ हो चुका था तथा आगे खड़ी और कई मुसीबतें हमारी राह देख रही थी..........
.....................................(क्रमश:)
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मैं और ऋषभ नारदा अपना जरुरी सामान पीठ पर लाद कर 24अगस्त2015 को "गेरा" गांव से पैदल चल रहे थे, "लमडल झील" की तरफ........ लमडल झील और गज पर्वत से निकली गज नदी पर बने पक्के पुल को पार कर, एक कच्ची पगडंडी पर हमने चलना शुरू कर दिया और कुछ दूर ही चले थे, कि हमे हमारी यात्रा का पहला मददगार मिला....जो हमारे आगे ही पैदल चल रहा था, नाम था उनका.....श्री रोशन लाल उत्तम जी, गांव वरमेज..........वह वरमेज गांव से पैदल ही गांव रावा जा रहे थे, अपने किसी रिश्तेदार के घर हो रहे समारोह में शामिल होने के लिए.......वह बोले चलो रावा गांव तक तो मेरे साथ ही चलो और उससे आगे का रास्ता आपको दिखा दूँगा.............
गज नदी के साथ-साथ ऊपर चढ़ाई चढ़ते-चढ़ते एक और गांव आया, नाम था "वंनठू".....गांव में गज नदी के किनारे एक मंदिर में दो छोटी उमर की लड़कियों की मूर्तियाँ देख मैने इस बारे में रोशन लाल जी से पूछा, तो वह बोले यह दो सहेलियो का मंदिर हैं, जब एक सहेली किसी कारणवश गज नदी के तेज प्रवाह में बहने लगी, तो दूसरी ने अपनी अटूट मित्रता निभाते हुए उसे बचाने हेतू गज नदी में छलांग लगा दी और दोनों ही मौत की भेंट चढ़ गई.......मैने कहा तो यह मंदिर नहीं यह तो अटूट मित्रता का एक स्मारक हैं, दोस्ती का रिश्ता जीवन में बहुत बार अपने सगे-सम्बन्धियों की तुलना में ज्यादा गहरा हो जाता हैं....
वंनठू गांव से आगे गज नदी पर एक झूला पुल, जिस पर चलना भी कोई आसान काम नही था, क्योंकि चलने से ही सारा पुल झूले की तरह झूल रहा था..... पार कर हम ब्राह्मण जाति के गांव 'बरमई' में कुछ समय गांव वालों से बातें बतिया कर रावा गांव की तरफ रवाना हो लिये....... फिर आगे गज नदी पर पुराने जर्जर हो चुके पुल के साथ बने नए पुल से गुज़र कर हम रावा गांव के मक्की के खेतों में पहुंचे, तो देखा कि लोग दोपहर के समय भी मचानों पर बैठ कर फसल की रखवाली कर रहे थे.....देख कर हैरानी हुई कि दिन के समय भी फसल की रखवाली, पूछा तो रोशन लाल जी ने बताया कि जंगली भालू और बंदरों से चौबीसों घंटे मक्की की फसल को बचाना पड़ता है.....कैसा मुश्किल है पहाड़ो में खेती करना भी, मन में यह ख्याल आया कि.... देखने में यह पहाड़ कितने खूबसूरत नज़र आते हैं, परन्तु यहां रह कर जीवन का निर्वाह करना भी किसी "पहाड़" से कम नहीं है.......
अब हम "रावा" गांव में पहुंच चुके थे और रोशन लाल जी ने हमें आगे का रास्ता दिखा विदा किया, और अब फिर रास्ता पूछ-पूछ कर जाने का सिलसिला शुरू हो गया, तभी एकाएक मौसम ने करवट ली और झट से बारिश शुरू और हम फट से एक छत के नीचे...........कुछ समय बाद बारिश थमी और हम रावा गांव से बाहर निकल कर..... अब हम गज नदी से थोड़ा ऊपर की ओर चढ़ रहे थे, रावा इस तरफ का आखिरी गांव है और अब हम जंगल की तरफ बढ़ रहे थे........ और हम पहली बार रास्ता भटके, परन्तु कुछ समय बाद ही समझ आ गया फिर सही रास्ते पर वापिस आ गए...........और, फिर मेरा सामना हुआ "बिच्छू बूटी " से जिसे वहां स्थानीय भाषा में 'ऐयन' कहा जाता है, जैसे ही मेरा हाथ इस पर पड़ा...... मानो कि 440 वोल्ट वाली बिजली की तार को छू दिया हो, जीवन में बिच्छू बूटी से छूने का... यह मेरा पहला साक्षात्कार या अनुभव था, इसका असर कई घंटों तक बना रहता है, मैं ऋषभ से बोला..... भाई, ये तो पहला ही दिन है...अभी तो चार दिन इसी बिच्छू बूटी से भरे जंगल में रहना हैं हमे.......
तभी एक दम साफ हो चुके आसमान में फिर बादल उठे और एकाएक बारिश शुरू..... परन्तु इस बार बारिश से बचने के लिए कोई जगह नही, एक बिजली के खम्बे के चबुतरे पर सामान रख जल्दी से मैने अपना ट्रैकिंग रेन कवर पहना और ऋषभ को छतरी थमाई, और दोनों इक्ट्ठा हो खुले में बारिश का सामना करने लगे............हमारी इस ट्रैकिंग की मुसीबतों का अब आरम्भ हो चुका था तथा आगे खड़ी और कई मुसीबतें हमारी राह देख रही थी..........
.....................................(क्रमश:)
हमारी पदयात्रा के पहले मददगार राणा रोशन लाल उत्तम जी, जो हमे "रावा" गांव तक अपने साथ ले गये.... |
लमडल झील की तरफ ट्रैकिंग.... गेरा गांव में यहीं से गज नदी पर बने पक्के पुल से हम कच्चे रास्तों पर चल दिए.... |
"वनंठू" गांव में गज नदी के किनारे स्थित दो सहेलियों की अटूट मित्रता को दर्शाता..... यह स्मारकीय मंदिर |
"वनंठू" गांव से आगे रास्ते में गज नदी पर बना एक झूलता पुल..... |
गज नदी किनारे हरियाली सी पृष्ठभूमि पर ब्राह्मण समाज का एक छोटा सा गांव "बरलई"..... |
"बरलई" गांव में एक ग्रामीण बुजुर्ग से बतियातें हम लोग.... |
"रावा" गांव से पहले गज नदी पर बने एक नये पुल पर खड़े, हम तीनों हमराही.... |
रावा गांव में मक्की के खेत... और दिनदहाड़े भी फसल की जंगली भालूओं तथा बंदरों से रखवाली.... |
अपने कामों में व्यस्त रावा गांव के लोग और हम पास से गुज़र गए इनके...... |
गज नदी घाटी के आखिरी गांव "रावा" के बाद..... शुरू हो गया जंगल का रास्ता |
बारिश से बचना चाहते थे, परन्तु भाई.... क्या करते ऐसे ही खुले में कुछ बचाव किया... ( अगला भाग पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें ) |
जैसे कि मक्का हल्की ठंड में भी जूल्स जाता है और पहाड़ी क्षेत्र में तो ठंड रिकार्ड तोडती है फिर भी मक्का की खेती गजब जब चूड़धार यात्रा पर हम गए थे तो नोहराधार में भी पहाड़ी ढलान पर खेतो में लहसुन देखी थी और आश्चर्य इस बात का था कि मैदानी इलाकों में भी इतनी बड़ी कलियों वाली लहसुन की उपज हुई
जवाब देंहटाएंलोकेन्द्र जी, वैसे तो पहाड़ों मेंमक्की की खेती केवल सावन की ऋतु में होती है.... जब हम पंजाबी सावन और हाड़ ऋतु दोनों में मक्की बीजतें है जी, और हाड़ ऋतु की मक्की में झाड़ यानि फसल ज्यादा प्राप्त होती है, जी।
हटाएंएक फ़ोटो बिच्छु बूटी का भी डालें👍
जवाब देंहटाएंजरूर जी, परन्तु फोटो के लिए पोस्ट अपडेट करनी पड़ेगी जी।
हटाएंएक फ़ोटो बिच्छु बूटी का भी डालें👍
जवाब देंहटाएंबिच्छु बूटी राँसी में भी ढूंढ रहे थे हम
जवाब देंहटाएंइत्तेफाक से वापसी के दौरान बग्गा धार के चरागाह में मुझे भी बिच्छू बूटी लगी थी लेकिन भाग्यवश साबुन होने की वजह से ज़्यादा देर तक नहीं झेलना पड़ा।
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