शनिवार, 15 अप्रैल 2017

भाग-5 चलो, चलते हैं..... सर्दियों में खीरगंगा Winter trekking to Kheerganga(2960mt)

भाग-5 चलो, चलते है..... सर्दियों में "खीरगंगा "(2960मीटर) 1जनवरी 2016

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                                      पिछली किश्त में मैने आपको बताया था कि मैं और मेरे पर्वतारोही साथी विशाल रतन जी खीरगंगा के मध्य रास्ते में पड़ते एक हसीन दिलकश स्थल "रुधिरनाग" में पार्वती नदी पर बने लकड़ी के पुल को पार कर चुके थे। भूख लगने के कारण पुल के पास ही बैठ कुछ खा-पीकर,  और ज्यादा बर्फ में आने पर अपने जूतों में बर्फ को जाने से रोकने के लिए सुरक्षा कवज "गेट्रर " पहन रहे थे कि वो कालेज की कुछ लड़के-लड़कियों का झुंड, जो हमे इस पदयात्रा को शुरू करने से पहले बरषैनी गाँव में प्रेम ढाबें पर मिला था, और जिन के साथ एक स्थानीय गाइड भी था...... वही झुंड हमारे पास से वापसी के लिए रुधिरनाग की तरफ़ उतर गया। हमने सबसे बाद में आये गाइड को रोक कर पूछा, "क्या बात हुई....आप सब वापस क्यों आ गये....!"       तो, वे गाइड बोला, "ऊपर खीरगंगा जाने का सारा रास्ता ही शीशे नुमा बर्फ से जमा पड़ा है...जिसे देखकर ये सब लोग जवाब दे गये और वापस लौट आये...! "
                     उनकी बात सुन मैने सोचा कि जितने भी लोग हमसे आगे निकल कर गये थे,  वे सब के सब वापस उतर आये.....तो मैने गाइड महाशय से पूछा, "भाई क्या इतना खतरनाक है, इस समय खीरगंगा जाना ".....तो गाइड ने कहा, "देखो पत्थर की सीढ़ियों और रास्ते पर जमी बर्फ, शीशे सा फिसलनदार रुप इख्तियार कर चुकी है... यदि उस पर से खुदा-ना-खासता फिसल गये,  और अगर ना संभलें तो भाई,  नीचे पार्वती नदी बह रही है....इसलिए यह खतरा तो है ही,  परन्तु आप दोनों की साज-सज्जा देख मुझे पूर्ण यकीन है कि आप लोग पहुँच जाओगें खीरगंगा.......! "   उन गाइड महोदय की वार्ता के आखिरी वाक्य ने हमारे अंदर जोश का संचार कर दिया,  और हम दोनों फिर से नव-जोश संग ऊपर की ओर चढ़ने लगे।
                       चढ़ाई चढ़ते-चढ़ते मैने विश्लेषण कर विशाल जी से कहा कि आपने गौर किया होगा....कि हमे जितने भी लोग मिले, वे सब विद्यार्थी ही जान पड़ते हैं....मेरी सोच है कि ये सब कालेज के होस्टल वाले विद्यार्थी है और नव वर्ष मानने के लिए "कसौल" आये हुए हैं.... तो लगे हाथ ये लोग खीरगंगा की तरफ़ भी निकल लिये। विशाल जी ने मेरी इस बात पर अपनी हामी की मोहर लगा दी और कहा,  बिल्कुल सच.... इनमें से ज्यादातर विद्यार्थियों के घर वालो को भी नही पता होगा,  कि हमारे बच्चे इन कठिन परिस्थितियों में खीरगंगा जा रहे हैं।             
                       तभी,  आगे वही बात हुई..... देखा कि सारे रास्ते पर बर्फ के शीशे की सी कठोर परत चढ़ी हुई है और हम उस पर धीरे-धीरे अपने पैर और ट्रैकिंग स्टिक की नोक जमा कर आगे बढ़ने लगे,  परन्तु यह कोई आसान काम नही था.....क्योंकि हमारी पीठ पर भार भी लदा हुआ था और यह "मुसीबत " हम दोनों पर्वतारोहियों के छोटे से ट्रैकिंग जीवन में पहली बार हमारे गले आन पड़ी थी,  इससे निपटने के लिए हमारे पास कोई भी ट्रैकिंग सम्बन्धी सामान या गेयर नही था,  सो हमने हर कदम फूंक-फूंक कर रख, आगे बढ़ना जारी रखा।
                      अभी सौ कदम ही चले थे, कि ऊपर से धड़ाधड आठ-दस लड़कों का दल नीचे की ओर आता देख, हम दोनों रुक गये.... क्योंकि वे सब जमे हुए रास्ते से नीचे उतरने की बजाय पहाड से ही सीेधे ही नीचे उतर रहे थे। मैने उन्हें देख ज़ोर से शिव भोले का जयकारा लगाया,  तो उन सब के जवाबी जयकारे से घाटी गूँज गई। पूछने पर उन्होंने बताया कि वे सब शिमला से 65किलोमीटर आगे नारकण्ड़ा नामक पर्वतीय शहर से आये है और कल खीरगंगा गये थे....रात वहाँ रुके,  अब वापस घर जा रहे हैं। मैने उन्हें कहा कि मैं तो आपकी चाल देख कर ही समझ गया था, कि आप सब लोग पहाड़ी हो। तभी विशाल जी ने उनसे पूछा, "क्या आगे भी रास्ता.... इस रास्ते की तरह ही बर्फ के शीशे से ढका हुआ है"  तो उनमें से एक लड़का हंसते हुआ बोला, "यह तो ट्रेलर है, बाकी फिल्म तो आगे शुरू होगी...!"
                     उसकी बात काट कर एक समझदार सा लड़का बोला, कि कोई चिंता की बात नही है, आप आगे बढ़ते रहें, भगवान शिव आपके साथ है....बस कोशिश करें कि इस शीशा बर्फ पर कम से कम पैर आये,  यहाँ भी आपको वैकल्पिक रास्ता मिले...उसे प्राथमिकता दे आगे बढ़ते रहें। हमने उनकी इस सलाह का अति धन्यवाद कर,  पुन: भगवान शिव का जयकारा लगा आगे की ओर बढ़ना प्रारंभ कर दिया।                      कुछ चढ़ाई चढ़ने के बाद एक खुली सी जगह आई,  जिस पर पूर्णता बर्फ का साम्राज्य था और वहाँ कहीं से भी, जो पानी गिर रहा था....वह गिरने की मुद्रा में ही जम चुका था। तभी मेरी निगाह एक जल-स्रोत पर पड़ी,  जिसमें से अभी भी पानी गिर रहा था...तो मैने उस जल-स्रोत से अपनी पानी की बोतल को भरने में ही अपनी भलाई समझी,  कि जाने आगे कहीं पानी ना मिला तो...!! जिस जगह से हम गुज़र रहे थे, वहाँ अख़रोट के काफी पेड़ थे और हमें दो-चार अख़रोट बर्फ पर गिरे हुए भी मिले। हर तरफ़ का नज़ारा हमारी आँखें प्रथम बार ही निहार रही थी, सबसे बड़ा आकर्षण तो जमे हुए जल-प्रपात थे।
                        दोस्तों, एक बात कहना चाहता हूँ कि हम सबने पहाडों की यात्रा को सिर्फ अपनी गर्मियों की छुट्टियों तक ही सीमित कर रखा है, कभी जनाब इन पहाडों पर सर्दियों में तो आकर देखो कि प्रकृति का यह सफेद लिबास आपको मंत्रमुग्ध कर देगा।
                       साढे तीन बज चुके थे,  और चढ़ाई चढ़ते-चढ़ते हम ऐसी जगह पहुँचे...जो गर्मियों में अपनी सुंदरता के लिये, थकान से भरे प्रत्येक पदयात्री को कुछ समय के लिए रोक लेती होगी.......क्योंकि वहाँ एक बड़ा सा झरना,  जो ठंड के कारण पूर्णता जम कर, जाम हो चुका था और उस झरने के प्रवाह किनारे दो-तीन बंद हो चुके मौसमी ढाबें थे,  जिसमें काफी सामान जमा भी था और ऊपर एक ताला जड़ा हुआ था...... हम सांस लेने के लिए एक बंद ढाबे में पड़े लकड़ी के फट्टों पर जा बैठे,  कि तभी मुझे वहाँ गिरा हुआ एक मीनू कार्ड भी मिला..... पर अफसोस आर्डर लेने वाला वहाँ कोई नही था....मैने विशाल जी से कहा कि, " काश इस परिस्थिति में हमे यहाँ इस ढाबें पर कहीं सूप वाली मैगी खाने को मिल जाती, तो कितना मज़ा आता" विशाल जी दार्शनिकता से बोले, " कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नही मिलता......!"
                            और,  बढ़ते चले हम दोनों बर्फ में अपने पैर जमा -जमा कर ऊपर की ओर,  मुझे अब आभास हो चुका था कि जिस शीशे नुमा बर्फ पर हम हर कदम फूंकते हुए रख सावधानीपूर्वक ऊपर चढ़ रहे हैं.....वापसी पर इन्ही रास्तों पर नीचे उतरना,  बहुत ही खतरनाक सिद्ध होने वाला है, क्योंकि पहाड पर चढ़ाई के मुकाबले उतराई ज्यादा कठिन होती है और ऊपर से यदि उतराई फिसलदार हो तो.... वो घातकीय स्थिति बन जाती है,  दोस्तों।
                       ऐसा लग रहा था, कि बस हम दोनों ही अकेले खीरगंगा के रास्ते पर जा रहे है.....पर तभी पीछे से एक कुत्ते ने आ कर हमें अपना समसफ़र बना लिया और स्वाभाविक रुप में हमें भी सुरक्षा का आभास होने लगा। वह कुछ समय तक हमारे साथ चलता रहा,  परन्तु एक जगह ऐसी आई जहाँ बिल्कुल भी बर्फ नही थी..... तो वह जनाब हमे छोड़ कर तेजी से आगे बढ़ गये,  मैने पीछे से उन जनाब को आवाजें भी दी..... परन्तु वह रुका नही और मैं बोल उठा, " लो विशाल जी,  हमारी  "Z-सुरक्षा " भी आगे चली गई.........! "       विशाल जी ने हंसते हुए कहा कि , "ये Z-सुरक्षा आगे बढ़ कर हमारे रास्ते का निरीक्षण कर रही है,  विकास जी........!
                                                    .........................(क्रमश:)
रूधिर नाग का दृश्य... और पार्वती नदी 

रूधिर नाग से कुछ ऊपर... रास्ते पर पड़ी इसी शीशे नुमा बर्फ को देख, सब के सब वापस उतर गए और इसी जगह खीरगंगा से वापस आ रहे नारकण्डा के दल से हमारी भेंटवार्ता हुई... 

दोस्तो, हमेशा याद रखना... पहाड में जहाँ भी पानी मिले,  उसे भर लेना चाहिए... पता नही आगे पानी मिले या ना मिले,  इसलिए मैने इस जल-स्रोत से पानी भरने में भलाई समझी... क्योंकि उस रास्ते पर हर जगह गिर रहा पानी जम चुका था... और रास्ते में पड़े अख़रोट

जमा हुआ जल-प्रपात.... और हम दोनों 

खीरगंगा के बीच रास्ते में वह स्थान आया,  जो बहुत सुंदर था... जिस पर गर्मियों के मौसम में हर पदयात्री रुक कर अपनी थकान उतार... व कुछ खा-पी,  आगे का सफ़र तय करता होगा 

खीरगंगा के बीच रास्ते में आये उस खूबसूरत स्थान का मुख्य आकर्षण वह झरना... जो बहता हुआ ही जम चुका था 

खीरगंगा के बीच राह में आये बंद ढ़ाबे पर मिला मीनू कार्ड... 

लो विशाल जी,  हमारी "Z-सुरक्षा" हमे छोड़ कर जा रही है...!!! 

" गौर से देख लो,  इन दो सिरफिरों को........!"

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7 टिप्‍पणियां:

  1. मेनू कार्ड..साज सज्जा कई शब्द आपके लेखन में पढते है तो ऐसा लगता है की वाकई आपने एक लेखक और पाठक में रिश्ता बांध लिया है

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    1. जी हां प्रतीक जी, तो मैं अपनी कोशिश में कुछ कामयाब रहा कि मैं आप संग शब्दों का रिश्ता बना सका, बेहद आभार जी.....

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  2. सच मैं आप का लिखा पड़ कर ऐसा लगता है की हम भी आपके साथ खीरगंगा के सफ़र पर है।

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    1. बेहद धन्यवाद जी, मेरे हमसफ़र बनने के लिए जी।

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