सोमवार, 3 अप्रैल 2017

भाग-6 पैदल यात्रा लमडल झील वाय गज पास.....Lamdal yatra via Gaj pass(4470mt)

भाग-6  पैदलयात्रा लमडल झील वाय गज पास (4470 मीटर)
                     
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                                    मैं और मेरा भाई ऋषभ नारदा 24अगस्त2015 के दिन पिछले 6घंटे से पैदल चल रहे थे.... धौलाधार हिमालय में भगवान शिव की सब से लम्बी व बड़ी झील लमडल की ओर...............
                       शाम के पांच बजने को थे, जंगल इतना घना व शांत, कि दिन मे ही अंधेरा सा लगने लगा  और मुझे बस मेरी रक्सक(ट्रैकिंग बैग) पर बंधी घण्टी की आवाज ही सुन रही थी.....मैं ऋषभ से कुछ आगे चल रहा था, कभी जोर से भगवान शिव के जयकारे लगाता और तो कभी, ऊंची आवाज़ में हिन्दी गाने गाता...... कि इस घने जंगल में अपनी मौजूदगी बता सकूं और ऋषभ कुछ देर बाद ही सीटी बजा कर मुझे बता रहा था कि मैं आपके पीछे-पीछे सही सलामत आ रहा हूँ..........
                       अब रास्ता ऊंचाई से नीचे उतर कर फिर से गज नदी के पास जा रहा था कि हमे एक छोटी सी वीरान बस्ती नजर आई, ये टीन के अस्थाई कुछ घर थे पर इनमे कोई नही था........ इसका मतलब कि सत्य साई बिजली परियोजना वाला स्थान आ गया है.... और परियोजना का कार्य अब गज नदी की दूसरी तरफ चल रहा था, हमे घने जंगल की वजह से दूसरी ओर की आवाजें तो सुनाई दे रही थी, परन्तु दिखाई कुछ नही दे पा रहा था, बस ऊंचाई से गिरता झरना दूर से दिखाई दे रहा था उस तरफ....... पर हमे कोई रास्ता नही मिल पा रहा था दूसरी तरफ जाने के लिए......
                        रास्ता ना मिल पाने पर हमने परियोजना पर जाने का मोह त्याग कर आगे बढ़ना ज़ारी रखा, क्योंकि मैं हर हालत में आज रात तक "बग्गा " पहुंच जाना चाहता था........ मुश्किल से सौ कदम ही आगे जाने पर आखिर कई घंटों के सफर के बाद एक महिला व पुरुष दिखे, जिन्होंने अपनी पीठ पर जलावन लद रखा था.... रास्ता फिर पूछा, "हां ठीक है...बढ़ते चलो".....कह कर वह लोग चले गए, तभी आगे एकाएक खुली जगह दिखाई दी, और एक छोटा मंदिर....... जिसे "कपरालू माता " मंदिर कहते हैं.....
                       स्थानीय वन देवी कपरालू माता का मंदिर उछलती-कूदती गज नदी के साथ ही बना है, दोनों ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड, और पहाडों से बतिया आ रहे बादल और पहाड के मध्य से निकल कर गज नदी में गिरता एक दुधिया रंग का झरना....... और इन सबके बीच समतल जगह पर बना एक छोटा सा कपरालू माता मंदिर.......... निहायत हसीन था वो मंजर, दोस्तों...
                        मंदिर प्रांगण में तीन युवकों को बैठे देख, मन में खुशी की लहर दौड़ गई और सोचा कि चलो कुछ आदमी तो दिखने शुरू हुए.......वे युवक बोले, कि हम लमडल के आधे रास्ते पर अगले सप्ताह होने वाली दो दिवसीय "नयोन " पदयात्रा के लिए लंगर आदि का सामान रख कर वापस आ रहे हैं,सुबह 8बजे से वहां से चले थे और अभी यहीं तक ही पहुंच पाए हैं.....उन्होंने कहा, कि इस स्थान और बग्गा के बीच में घना जंगल और कठिन चढाई है और हमे नही लगता कि अब इस समय आपको आगे के रास्ते में बग्गा से पहले कोई भी व्यक्ति मिले..........
                     खैर, उन्होंने मुझे बग्गा तक जाने का सब रास्ता समझाया और कहा कि अभी 5बजे हैं, यदि आप फुर्ती से चलते रहे तो रात साढे आठ बजे तक बग्गा पहुंच जाओगें............. ऋषभ ने अपनी मन की बात कहीं, कि क्यों ना आज रात हम यहीं कपरालू माता के रुक जाए, परन्तु मैने कड़ाई से उसकी बात काट कर कहा, कि हमारी आज की मंजिल बग्गा है बस..... और बढ़ गया आगे की ओर............ बेचारा ऋषभ भी पैर मलता हुए मेरे पीछे चल दिया......
                        मैने ऋषभ को समझाया, कि हमे तब तक चलते रहना है.....जब तक हम चल सकते हैं, यदि कहीं अंधेरा या रात ज्यादा हो गई और हम बग्गा तक नहीं भी पहुंच पाये, तो वहीं-कहीं रास्ते में सुरक्षित जगह देख कर "कैम्प" लगा लेंगे और सुबह होने का इंतजार करेंगे.............
                       अनजान जगह, घना जंगल और पंगड़डी भी कुछ फीकी सी होती जा रही थी, ऊपर से सूर्यअस्त का समय नजदीक आ रहा था...... बस मन मे एक अजीब से डर को लेकर दृढतापूर्वक ऋषभ को साथ लिये आगे बढ़ता जा रहा था..............

                                                            ..................................(क्रमश:)
                               
गज नदी अब काफी नीचे बह रही थी... घना जंगल और सन्नाटा,  उस सन्नाटें को तोड़ती एक आवाज़... जो मेरे ट्रैकिंग बैग पर बंधी एक घंटी की थी..... 

दिन में ही अंधेरा सा लगने लगा,  जब हम इस घने जंगल से गुजरें...क्योंकि पेड़ों ने मिलजुल कर एक छत बना रखी थी... 

रास्तें में आई एक प्राकृतिक गुफा.... और इसमें जानवरों के पैरों के निशान भी मौजूद थे... 

सत्य साई बिजली परियोजना की वीरान बस्ती और एक छोटा सा शिव मंदिर..... 

जैसे, किसी मरुस्थल में कोई हसीन नख्लिस्थान हो...ठीक ऐसी ही आभा दे रहा था,  घने जंगल में स्थित यह "कपरालू माता" मंदिर परिसर.....

कपरालू माता मंदिर परिसर में बनी सराय,  जिस पर ताला जड़ा हुआ था.... 

कपरालू माता मंदिर प्रांगण में विश्राम कर रहे,  लमडल के आधे रास्ते पर लंगर लगाने वाले तीन स्थानीय युवक... 

ये युवक अगले सप्ताह होने वाली दो दिवसीय "नयोन" पदयात्रा में श्रद्घालुओं के लिए लमडल झील के आधे रास्ते पर लंगर का सामान आदि छोड़ कर वापस आ रहे थे....


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7 टिप्‍पणियां:

  1. लमदल के रास्ते लंगर भी लगते है क्या ?

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  2. साल में सिर्फ दिन, जब स्थानीय लोग नयोन पर्व पर लमडल जाते हैं... बाकी वहां कुछ नही मिलता, बस मेरे जैसे सनकी मुँह उठा कर चल दिया करते हैं कभी-कभी।

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  3. जब हम इस सराय के पास पहुंचे तो मौसम ने करवट बदली और बारिश शुरू हो गई। कुछ ही देर में कंचों जितने बड़े ओले गिरना शुरू हो गए। आग के सहारे लगभग 2 घण्टे इसी सराय के बाहर लकड़ी की फेंसिंग वाले बरामदे में रुकना हुआ था।

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    1. बड़े-बड़े ओले की बरसात तो हमने भी रास्तें में झेली थी जी...परन्तु किस्मत अच्छी थी सिर छिपाने के लिए एक जगह मिल गई ।

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