भाग-15 पदैल यात्रा लमडल झील वाय गज पास (4470मीटर)....25अगस्त2015
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मैं और राणा चरण सिंह ओखराल माता मंदिर पर कुछ समय विश्राम के बाद फिर से गज शिखर की अोर चल दिये, अब वहां के दृश्य बदल चुके थे....... क्योंकि जब हमने गज पर्वत पर चढ़ना शुरू किया था, तो हमें ऊपर की तरफ बादल ढके होने के कारण कुछ नजर नही आ रहा था, मध्य में आए तो धुंध की वजह से बस कुछ ही दूर तक दर्शनीय हो पा रहा था........ पर मध्य से कुछ ऊपर, अब के प्रकृति दर्शन को ना तो मैं अपने शब्दों से बयान कर सकता हूँ, ना ही मैं अपने खींचे हुए चित्रों द्वारा........ मेरे देखे उन अविस्मरणीय दृष्टान्त के सटीक विवरण जो मेरे दिल-दिमाग की गहराईयों में घर कर बैठे हैं...को मेरे हाथ पकड़ी कलम उचित ढंग से बता पाने में असमर्थ हैं, क्योंकि अब जो मैं देख रहा था, वो नज़ारा मैने अपने जीवन में प्रथम बार देखा था, कि मैं बादलों से भी ऊपर खड़ा हूँ और ऊपर देखता हूँ, तो गज पर्वत का शिखर व एक दम साफ नीले आसमान में दिन के समय चांद दिखाई दे रहा था....... और नीचे देखता हूँ, तो सफेद रंग के बादलों का एक गद्देदार बिस्तर...... मैंने हंसते हुए चरण सिंह से कहा कि..... "राणा जी, यह बादल मुझे एक गद्दे की तरह प्रतीत हो रहे हैं, मेरा दिल करता है कि मैं इस गद्दे पर छलांग लगा कर लेट जाऊँ"....और चरण सिंह मेरी इस बचपनें वाली चंचलता भरी बात पर हंस दिये......
चलते-चलते आगे गज पर्वत के ओखराल पत्थर वाली तरफ से काफी नीचे की ओर मुझे भेड़ों का झुंड चरता हुआ नज़र आया, चरण सिंह ने बताया....कि ये उसके भाई की भेड़े हैं........ और वहीं से खड़े हो उन्होंने ने जोर से आवाज़ लगाई..... सुभाष..... सुभाष...... और कहीं दूर से एक जबाब तो आया, पर मुझे जबाब देना वाला सुभाष कहीं भी दिखाई नही दिया, चरण सिंह ने बताया कि वह पहाड की दूसरी तरफ है......... चरण सिंह ने सुभाष को ऊंची आवाज़ में फिर कहा कि हम लमडल जा रहे हैं, हो सकता है कि रात को तुम्हारे डेरे पर वापस आए, तुम इंतजाम रखना.... और हम आगे की ओर चढ़ने लगे, कुछ आगे जा कर चरण सिंह ने कई घंटों से उनके साथ चल रहे प्यासे व्यक्ति( यानि मैं ) की हालत देख कर कहा, कि कुछ ओर ऊपर चढ़ कर हमें एक जगह पानी मिल सकता है, परन्तु वह जगह इस रास्ते के कुछ हट कर अलग दिशा में है...... चलो उस तरफ चलते हैं, मुझे पूरी उम्मीद है कि हमें वहां सौ प्रतिशत पानी मिल जाएगा.... और अब गज शिखर भी कोई ज्यादा दूर नही रह गया है.........मुझे चरण सिंह ने ऊपर शिखर पर गज पर्वत को लाँघने हेतू लगाया एक प्रतीक चिन्ह...... सफेद रंगी झंडा भी दिखाया और कहा, उस झंडे की तरफ ही हमें ऊपर की ओर बढ़ना है.............. परन्तु जल की तृष्णा में हम रास्ता छोड़ उस स्थान की तरफ बढ़ रहे थे, जहाँ जल मिलने की पूरी आशा थी...........
और, वह स्थान आखिर आ गया.....एक पत्थर के नीचे एक छोटा सा गढ्ढा .... जिसमें पानी था...... पानी तो था, परन्तु मैं असमंजस व दुविधात्मक ढंग में खड़ा उस पानी को देख रहा था, क्योंकि उस छोटे से गढ्ढे में पानी मटमैला था... तभी चरण सिंह ने कहा, "पंडित जी, इस जल की तरफ मत देखो..... देखोगें तो पी नही पाओंगे...... चिंता मत करो, यह पानी आपको कोई नुकसान नही पहुचायेगां, जितना दिल चाहे उतना पी जाओ "............तो हिम्मत कर मैंने चरण सिंह से रक्सक में रखी खाली बोतल मांगी........ चरण सिंह ने कहा, "नही... बोतल में नही, इस गढ्ढे में यदि बोतल डाली तो सारा पानी हिल जाएगा और ऊपर का नितरा हुआ पानी नीचे बैठी हुई मिट्टी से मिल जाएगा........इस पानी को एक जानवर की तरह से पीना पड़ेगा "..............चरण सिंह की बात सुन मैंने उस समय गुरूदास मान जी के गीत के बोल दोहरायें......
" नींद ना वेखें बिस्तरा.... ते भुख ना वेखें मांस,
मौत ना वेखें उमर नू....ते इश्क़ ना वेखें जात "
.....और अपने घुटनों के बल बैठ गढ्ढे से पानी के ऊपर तैर रहे घास-पत्तों को धीरे से एक तरफ कर अपना मुँह सीधे पानी पर लगा कर जी भर कर पानी पिया और पीता रहा...... जैसे-जैसे जल मेरे निढाल हो चुके शरीर के अंदर जा रहा था, वैसे-वैसे ही एक नई स्फूर्ति जिस्म में पैदा हो रही थी........ फिर चरण सिंह ने भी ठीक वैसे ही पानी पिया और मैंने आखिर में अपनी बोतल भी धीरे-धीरे कर उस गढ्ढे से आधे के करीब भर ली......
इस पानी का उस जगह मिलना मेरे लिए खज़ाने से कम नही था उस समय........ क्योंकि पहाड की उस ऊँचाई पर हाई आल्टीचुट स्किनेस की वजह से मेरी भूख तो बिल्कुल मर चुकी थी, बस शरीर में पानी की भयंकर कमी हो रही थी..... सुबह से मैं कुछ खा भी नही पा रहा था, बस एक लीटर पानी और लस्सी.................... परन्तु हैरानी का विषय यह था कि गज शिखर के इतने करीब यहां पानी कहाँ से आ गया, क्योंकि वहाँ उस समय आसपास कहीं बर्फ का नामोनिशान भी नही था, चरण सिंह बोले..... "सब महादेव के रंग हैं पंडित जी, उसे हर एक की फिक्र है....मुझे पूरी उम्मीद थी हमें इस जगह पानी मिल जाएगा, यह जल स्रोत कभी सूखता नही है".......
उनकी बात सुन मैने सोचा कि चाहे बहुत थोड़ी मात्रा में यहाँ जल एकत्र होता है, पर इस जगह व ऐसी परिस्थितियों में इस जल का होना एक महत्वपूर्ण बात है........
दोस्तों, मैं आस्तिक तो नही पर वास्तविक सोच का व्यक्ति हूँ..... हर पल मैं यह सोचता था, कि यदि तू विकास इस ट्रैक पर अकेला चढ़ जाता, तो ऐसी-ऐसी विपदाओं से तेरा सामना होना था जो तेरी सोच से परे है.......मेरा अड़ियलपन मुझे पहाड से खाली हाथ नही उतरने देता और यही अड़ियल स्वभाव मुझे नुक्सानदेह साबित हो सकता था, परन्तु देवो के देव महादेव मुझे "न्यौता" भेजा था और राणा चरण सिंह के रुप में मेरी ढाल बन कर वे ही मुझे अपने पास ले जा रहे थे.............
...................(क्रमशः)
इस चित्रकथा को आरंभ से पढ़ने का यंत्र (http://vikasnarda.blogspot.com/2017/04/1-lamdal-yatra-via-gaj-pass-4470mt.html?m=1) स्पर्श करें।
मैं और राणा चरण सिंह ओखराल माता मंदिर पर कुछ समय विश्राम के बाद फिर से गज शिखर की अोर चल दिये, अब वहां के दृश्य बदल चुके थे....... क्योंकि जब हमने गज पर्वत पर चढ़ना शुरू किया था, तो हमें ऊपर की तरफ बादल ढके होने के कारण कुछ नजर नही आ रहा था, मध्य में आए तो धुंध की वजह से बस कुछ ही दूर तक दर्शनीय हो पा रहा था........ पर मध्य से कुछ ऊपर, अब के प्रकृति दर्शन को ना तो मैं अपने शब्दों से बयान कर सकता हूँ, ना ही मैं अपने खींचे हुए चित्रों द्वारा........ मेरे देखे उन अविस्मरणीय दृष्टान्त के सटीक विवरण जो मेरे दिल-दिमाग की गहराईयों में घर कर बैठे हैं...को मेरे हाथ पकड़ी कलम उचित ढंग से बता पाने में असमर्थ हैं, क्योंकि अब जो मैं देख रहा था, वो नज़ारा मैने अपने जीवन में प्रथम बार देखा था, कि मैं बादलों से भी ऊपर खड़ा हूँ और ऊपर देखता हूँ, तो गज पर्वत का शिखर व एक दम साफ नीले आसमान में दिन के समय चांद दिखाई दे रहा था....... और नीचे देखता हूँ, तो सफेद रंग के बादलों का एक गद्देदार बिस्तर...... मैंने हंसते हुए चरण सिंह से कहा कि..... "राणा जी, यह बादल मुझे एक गद्दे की तरह प्रतीत हो रहे हैं, मेरा दिल करता है कि मैं इस गद्दे पर छलांग लगा कर लेट जाऊँ"....और चरण सिंह मेरी इस बचपनें वाली चंचलता भरी बात पर हंस दिये......
चलते-चलते आगे गज पर्वत के ओखराल पत्थर वाली तरफ से काफी नीचे की ओर मुझे भेड़ों का झुंड चरता हुआ नज़र आया, चरण सिंह ने बताया....कि ये उसके भाई की भेड़े हैं........ और वहीं से खड़े हो उन्होंने ने जोर से आवाज़ लगाई..... सुभाष..... सुभाष...... और कहीं दूर से एक जबाब तो आया, पर मुझे जबाब देना वाला सुभाष कहीं भी दिखाई नही दिया, चरण सिंह ने बताया कि वह पहाड की दूसरी तरफ है......... चरण सिंह ने सुभाष को ऊंची आवाज़ में फिर कहा कि हम लमडल जा रहे हैं, हो सकता है कि रात को तुम्हारे डेरे पर वापस आए, तुम इंतजाम रखना.... और हम आगे की ओर चढ़ने लगे, कुछ आगे जा कर चरण सिंह ने कई घंटों से उनके साथ चल रहे प्यासे व्यक्ति( यानि मैं ) की हालत देख कर कहा, कि कुछ ओर ऊपर चढ़ कर हमें एक जगह पानी मिल सकता है, परन्तु वह जगह इस रास्ते के कुछ हट कर अलग दिशा में है...... चलो उस तरफ चलते हैं, मुझे पूरी उम्मीद है कि हमें वहां सौ प्रतिशत पानी मिल जाएगा.... और अब गज शिखर भी कोई ज्यादा दूर नही रह गया है.........मुझे चरण सिंह ने ऊपर शिखर पर गज पर्वत को लाँघने हेतू लगाया एक प्रतीक चिन्ह...... सफेद रंगी झंडा भी दिखाया और कहा, उस झंडे की तरफ ही हमें ऊपर की ओर बढ़ना है.............. परन्तु जल की तृष्णा में हम रास्ता छोड़ उस स्थान की तरफ बढ़ रहे थे, जहाँ जल मिलने की पूरी आशा थी...........
और, वह स्थान आखिर आ गया.....एक पत्थर के नीचे एक छोटा सा गढ्ढा .... जिसमें पानी था...... पानी तो था, परन्तु मैं असमंजस व दुविधात्मक ढंग में खड़ा उस पानी को देख रहा था, क्योंकि उस छोटे से गढ्ढे में पानी मटमैला था... तभी चरण सिंह ने कहा, "पंडित जी, इस जल की तरफ मत देखो..... देखोगें तो पी नही पाओंगे...... चिंता मत करो, यह पानी आपको कोई नुकसान नही पहुचायेगां, जितना दिल चाहे उतना पी जाओ "............तो हिम्मत कर मैंने चरण सिंह से रक्सक में रखी खाली बोतल मांगी........ चरण सिंह ने कहा, "नही... बोतल में नही, इस गढ्ढे में यदि बोतल डाली तो सारा पानी हिल जाएगा और ऊपर का नितरा हुआ पानी नीचे बैठी हुई मिट्टी से मिल जाएगा........इस पानी को एक जानवर की तरह से पीना पड़ेगा "..............चरण सिंह की बात सुन मैंने उस समय गुरूदास मान जी के गीत के बोल दोहरायें......
" नींद ना वेखें बिस्तरा.... ते भुख ना वेखें मांस,
मौत ना वेखें उमर नू....ते इश्क़ ना वेखें जात "
.....और अपने घुटनों के बल बैठ गढ्ढे से पानी के ऊपर तैर रहे घास-पत्तों को धीरे से एक तरफ कर अपना मुँह सीधे पानी पर लगा कर जी भर कर पानी पिया और पीता रहा...... जैसे-जैसे जल मेरे निढाल हो चुके शरीर के अंदर जा रहा था, वैसे-वैसे ही एक नई स्फूर्ति जिस्म में पैदा हो रही थी........ फिर चरण सिंह ने भी ठीक वैसे ही पानी पिया और मैंने आखिर में अपनी बोतल भी धीरे-धीरे कर उस गढ्ढे से आधे के करीब भर ली......
इस पानी का उस जगह मिलना मेरे लिए खज़ाने से कम नही था उस समय........ क्योंकि पहाड की उस ऊँचाई पर हाई आल्टीचुट स्किनेस की वजह से मेरी भूख तो बिल्कुल मर चुकी थी, बस शरीर में पानी की भयंकर कमी हो रही थी..... सुबह से मैं कुछ खा भी नही पा रहा था, बस एक लीटर पानी और लस्सी.................... परन्तु हैरानी का विषय यह था कि गज शिखर के इतने करीब यहां पानी कहाँ से आ गया, क्योंकि वहाँ उस समय आसपास कहीं बर्फ का नामोनिशान भी नही था, चरण सिंह बोले..... "सब महादेव के रंग हैं पंडित जी, उसे हर एक की फिक्र है....मुझे पूरी उम्मीद थी हमें इस जगह पानी मिल जाएगा, यह जल स्रोत कभी सूखता नही है".......
उनकी बात सुन मैने सोचा कि चाहे बहुत थोड़ी मात्रा में यहाँ जल एकत्र होता है, पर इस जगह व ऐसी परिस्थितियों में इस जल का होना एक महत्वपूर्ण बात है........
दोस्तों, मैं आस्तिक तो नही पर वास्तविक सोच का व्यक्ति हूँ..... हर पल मैं यह सोचता था, कि यदि तू विकास इस ट्रैक पर अकेला चढ़ जाता, तो ऐसी-ऐसी विपदाओं से तेरा सामना होना था जो तेरी सोच से परे है.......मेरा अड़ियलपन मुझे पहाड से खाली हाथ नही उतरने देता और यही अड़ियल स्वभाव मुझे नुक्सानदेह साबित हो सकता था, परन्तु देवो के देव महादेव मुझे "न्यौता" भेजा था और राणा चरण सिंह के रुप में मेरी ढाल बन कर वे ही मुझे अपने पास ले जा रहे थे.............
...................(क्रमशः)
"मैं... बादलों से भी ऊपर" यह अद्भुत नज़ारा मैं जीवन में पहली बार देख रहा था... |
आखिर.... प्यास के आगे घुटने टेक ही दिये |
और..... एक जानवर की भाँति इस गड्डे से खूब जल पिया.... |
यह नज़ारा देख मैं चरण सिंह से बोला...."ये बादल नही, ये तो सफेद रंगी मखमली गद्दा है.. जिस पर मैं छलांग लगा कर लेट जाना चाहता हूँ " |
गज पर्वत की एक कलात्मक शिला और चन्द्रमा, जो दिन के उजाले में भी चमक रहा था.... |
राणा चरण सिंह के भाई सुभाष की भेड़े..... |
वो, दूर देखो... गज शिखर पर लगा सफेद झंडा, हमे उस ओर ही जाना है... |
आखिर मैने उस गड्डे से धीरे-धीरे...अपनी बोतल को आधे के करीब भर ही लिया... |
गज शिखर... ( अगला भाग पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें ) |
गजब नजारे
जवाब देंहटाएंजी हां, बेहद धन्यवाद जी।
हटाएंवाह विकासजी बहुत बढ़िया विवरण , सच में पानी की कीमत ऐसे समय ही पता चलती है, वैसे तो ये अनमोल हे लेकिन विषम परिस्थितियों में ये अमृत समान हैं।
जवाब देंहटाएंसत्य वचन मनोज जी।
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जवाब देंहटाएंमुझे लगा पानी नही मिलेगा आज लेकिन भगवान ने पानी पिला ही दिया...
जवाब देंहटाएंसब चरण सिंह और भोलेनाथ की माया है जी।
हटाएंशानदार लेखन
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