जब मैं साँची स्तूप (मध्य प्रदेश) में टिकट ले कर अंदर जाने लगा, तो वहां स्थित एकमात्र गाइड मेरे पास आया, और अपना परिश्रम 300रुपऐ मांगे......तो मैने हंसते हुए कहा.....कि तीन सौ रुपये, लूट मचा रखी है भाई...... परन्तु वह अपना पहचानपत्र दिखा बोले, कि मैं सरकार की तरफ मान्यता प्राप्त गाइड हूँ और मेरा मेहनताना सरकार ने ही मुकर किया है....... मुझे उनका मेहनताना बहुत ज्यादा लगा.... और मैं बगैर गाइड के ही अंदर चला गया..........परन्तु देखने पर कुछ समझ नही आ रहा था, बस ऐसे ही लग रहा था कि, एक सुन्दर बाग में लगा पत्थरों और टूटी-फूटी मूर्तिओं का ढेर.......
फिर क्या था, फिर वापस बाहर आकर, गाइड को साथ लिया.................. अब साँची स्तूप का हर पत्थर, मूर्ति, दीवार मुझ से बात कर रही थी और मेरी हर बात का जवाब मिल रहा था , मुझे उस गाइड ने बोध इतिहास के बारे बहुत जानकारी दी ......और मैंने भी इसके तय मेहनताने के साथ इनाम भी दिया....
कहने का तात्पर्य यह हैं कि जब भी कभी कोई इतिहासिक इमारत देखने जाए, तो गाइड अवश्य करे.... नही तो, आप उस इमारत को एक खँडहर की तरह ही देख पाएंगें .......
फिर क्या था, फिर वापस बाहर आकर, गाइड को साथ लिया.................. अब साँची स्तूप का हर पत्थर, मूर्ति, दीवार मुझ से बात कर रही थी और मेरी हर बात का जवाब मिल रहा था , मुझे उस गाइड ने बोध इतिहास के बारे बहुत जानकारी दी ......और मैंने भी इसके तय मेहनताने के साथ इनाम भी दिया....
कहने का तात्पर्य यह हैं कि जब भी कभी कोई इतिहासिक इमारत देखने जाए, तो गाइड अवश्य करे.... नही तो, आप उस इमारत को एक खँडहर की तरह ही देख पाएंगें .......
SAHI BAAT HAI
जवाब देंहटाएं