रविवार, 17 सितंबर 2017

भाग-21 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर.... Shrikhand Mahadev yatra(5227mt)

भाग-21 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर.....
                                    "मन में दबी आस्तिकता का, दिमाग की नास्तिकता पर भारी पड़ना "

इस चित्रकथा को आरंभ से पढ़ने का यंत्र (https://vikasnarda.blogspot.com/2017/04/1-shrikhand-mahadev-yatra5227mt.html?m=1) स्पर्श करें।
                         
                                 23जुलाई, 2016.... मैं और मेरे पर्वतारोही संगी विशाल रतन जी श्री खंड महादेव कैलाश यात्रा के आखिरी पड़ाव "भीमद्वारी" (3630मीटर) में एक टैंट में कई सारे कम्बलों के बीच दुबके पड़े सो रहे थे कि एक चिरपरिचित तीव्र संगीतमय ध्वनि ने हमारी निद्रा तोड़ी,  वो मेरे मोबाइल पर लगा 2बजे का अलार्म था.... घड़ी पर उस समय टैंट के अंदर का तापमान 10डिग्री था,  और अब समय आ चला था...अपने सपने को पूर्ण करने के लिए भीमद्वारी से अंतिम चढ़ाई चढ़ने का, सो उठ कर अपनी कमर कसनी आरंभ कर दी और हमारा पथप्रदर्शक "केवल" भी अपने टैंट से बाहर से निकल आया...
                    उस समय मौसम में ठंडक तो थी पर हवा भी शायद सारा दिन चल-चल कर अब सो चुकी थी और आसमान में चन्द्रदेव मस्कुरा रहे थे...... करीब आधे घंटे भर में हम तैयार हो नवनीत की रसोई में पहुँचें तो नवनीत रात ढाई बजे हमारे लिए परौठें बना रहा था, जो हमे पैक कर साथ दिये जाने वाले थे...... नवनीत और केवल ने कहा कि हम ऐसे ही हर रोज आधी रात को उठ कर परौठें बना कर हमारे पास ठहरे यात्रियों को देते है कि वो रास्ते में अपनी भूख मिटा सकें..... मैने हंसते हुए विशाल जी से कहा कि यात्रियों की यात्रा का सारा पुण्य तो नवनीत जैसे मददगार ही कमा जाते हैं,  जिनकी वजह से इंसानी बस्ती से इतनी दूर हम जैसे यात्रियों को घर जैसी अनुभूति होती है......
                      दोस्तों,  एक बात और बताना चाहता हूँ कि 15जुलाई से 25जुलाई हर साल यात्रा के दौरान श्री खंड सेवा दल की तरफ से यात्रापथ के आखिरी पड़ाव भीमद्वारी में भी लंगर की व्यवस्था होती है,  जहाँ यात्री निशुल्क भोजन व रात्रि विश्राम भी कर सकता है.....
                      तीन बजने में अभी दस मिनट बाकी थे,  शिव भोले का जयकारा लगा अब हम तीनों अंधेरे में पगडंडी पर "प्रकाश गोले"  डाल कर उनका पीछा कर रहे थे.....आँखों में अंधेरा,  नाक में ठंडक की खुशबू और कानों में गिरते झरनों की मधुर ध्वनि सुनाई दे रही थी......आधा घंटा चलते रहने पर पार्वती झरने की मधुर ध्वनि अब शोर में बदल चुकी थी और अब तीनों अकेले नही थे पगडंडी पर हमारे आगे-पीछे अब कई आवाजे़ भी प्रकाश गोलों का पीछा करती हुई आगे बढ़ रही थी,  हमारी बैटरियों के प्रकाश गोले हमे ऊँचाई से गिर रहे पार्वती झरने के दर्शन करवाने में असमर्थ साबित हो चुके थे..... और अब सीधी चढ़ाई हमारी साँसें को उखाड़ रही थी,  वह पार्वती बाग की चढ़ाई थी.... उस चढ़ाई में हमारे पीछे कई सारे व्यक्तियों का दल चल रहा था,  जिसका नेतृत्व दो व्यक्ति कर रहे थे जिन्होंने देसी ढंग से अपनी टोपियों के बीच टार्चें फंसा उन्हें हेड लाइट का रुप दे रखा था... वे दोनों पेशावर जान पड़ते थे जो ग्रुपों को इक्ट्ठा ला कर श्री खंड ले जाते होगें..... उन दोनों में से एक व्यक्ति बार-बार ग्रुप को हिदायतें देता जा रहा था कि ऐसे करो,  वैसे करो.. अब आप सब इतनी ऊँचाई पर पहुँच चुके हो कि आपके व्यवहार में चिड़चिड़ापन आ जाएगा,  आपको गुस्सा आएगा... पार्वती बाग पहुँच कर आप सब को दो-दो गोली खानी है डिसप्रिन की, याद रखना...!!!
                        मैने उस व्यक्ति की बात सुन केवल और विशाल जी को रोक लिया कि इन महाशय और इनके अनुयायियों को आगे जाने दें, इनकी बातें सुन कर हम कहीं पथभ्रष्ट ना हो जाए...हम भी चिड़चड़े हो कर गुस्से में ना आ जाए और हमे भी दो गोली डिसप्रिन की इस ठंडे जंगल में खोजनी पड़े..... और हम उस ग्रुप को अपने आगे निकाल मस्ती की चाल चलने लगे.....
                         डेढ़ घंटे की कठिन चढ़ाई के बाद हम पार्वती बाग के पास पहुँचें तो केवल ने हमे कहा, " वो देखो भैया, ऊपर श्री खंड महादेव शिला "     और उस अंधेरे में हमें दूर पहाड के शिखर पर  श्री खंड शिला के दर्शन हुए,  पर वो दर्शन मात्र अनुमानित ही थे क्योंकि अंधेरे में सिर्फ हमें आकाश के हल्के रंग सी पृष्टभूमि पर श्री खंड शिला का गहरा रंग परछाई सा नजर आ रहा था..... और हम दोनों ने वहीं रुक कर श्री खंड भगवान को नमन किया, कुछ समय श्री खंड शिला को निहारतें रहे और फिर ऊपर की ओर चढ़ने लगे......
                           रास्ते पर कुछ टैंट आए मतलब कि पार्वती बाग आ चुका था.... केवल ने बताया कि यहाँ रेस्कयू वालों के टैंट जो यात्रा के समय तक रहता है और कुछ टैंट दुकानदारों के भी है,  कुछ वर्ष पहले तक तो भीमद्वारी की बजाय पार्वती बाग में ज्यादा टैंट लगे होते थे... परन्तु अब सरकार ने इन्हें सीमित कर दिया है,  क्योंकि इस से पार्वती बाग की प्राकृतिक सुंदरता नष्ट हो रही थी,  अभी तो अंधेरा है... जब हम श्री खंड दर्शन कर वापस आऐंगे तो देखना क्या, देखते ही रह जाओगें भैया पार्वती बाग की सुंदरता को... मान्यता है कि इस स्थल पर माता पार्वती का द्वारा लगाया बग़ीचा है,  जिसमें फूलों की कई सारी किस्में पाई जाती है......
                           भीमद्वारी से 2घंटे की लगातार चलते रहने के बाद हमने पार्वती बाग में बने माँ पार्वती के छोटे से मंदिर पर पहुँच नमन किया.... और अब "नयन सरोवर" की ओर उस रास्ते पर चढ़ रहे थे जिसमें पत्थर-चट्टानें ही थी,  आसमान कालेपन से नीलेपन में आने लग पड़ा था,  जो पौ फूटनें का संकेत दे रहा था.......
                           चलते-चलते राह किनारे उगे उस फूल को देख मेरी बांछें खिल गई,  क्योंकि वो लम्हा जीवन में पहली बार साक्षात "ब्रह्मकमल पुष्प " दर्शन का था,  कुछ ऐसा ही हाल विशाल जी का भी था.... ब्रह्मकमल पुष्प बेहद पवित्र पुष्प माना जाता है जो सामान्यतया समुद्र तट से करीब 4000मीटर की ऊँचाई पर उगता है,  वर्ष में एक बार जुलाई-अगस्त के महीने में ब्रह्मकमल खिलता है.... जैसे संसार में प्रत्येक पौधे-वृक्ष के फूल दिन के समय सूर्य की रोशनी में खिलतें हैं,  केवल ब्रह्मकमल ही ऐसा फूल है जो रात के समय खिलता है और मान्यता है कि ब्रह्मकमल को खिलते देखना अति सौभाग्य की बात है और इस दिव्य दर्शन करने वाले व्यक्ति के जीवन में शुभ ही शुभ होने वाला है.... जैसे-जैसे रात गुज़रती है इस दिव्य पुष्प की पंखूड़ियाँ भी बंद हो जाती है.....
                            परन्तु दोस्तों,  मैने ब्रह्मकमल को छुआ तक नही...बस खुशी से उसे दूर से देखता रहा,  ठीक वैसे ही जैसे हम पालने में पड़े हाथ-पाँव मार रहे नन्हें से शिशु को मंत्रमुग्ध हो देखते रहते है...!!!
                             और,  वहीं एक जगह पत्थर पर भी लिखा था कि फूल तोड़ने मना है...... अभी पिछले महीने ही "किन्नर कैलाश " यात्रा कर आया हूँ,  इस यात्रा के दौरान मुझे तीन स्थानीय लड़के मिले थे... जो किन्नर कैलाश शिला के दर्शन कर वापस आ रहे थे,  उनके हाथों में बहुत सारे ब्रह्मकमल थे जो वे पर्वत की ऊँचाइयों से तोड़ कर ला रहे थे,  मेरे मन की चंचलता भी जाग उठी,  मैने जब उन ब्रह्मकमलों के गुलदस्तों को अपने हाथों में पकड़ एक यादगारी चित्र खिंचवाया....यकीन मानना मित्रों,  इन पुष्पों से आ रही सुगन्ध ने मुझे अलौकिकता का अनुभव करवाया और वह दिव्य सुगन्ध बहुत समय तक मुझे मेरे पास से आती रही......
                              सवा पाँच बजे ही एक दम से प्रकाश होने लगा और पीछे मुड़ कर देखा तो घाटी में जैसे प्रकृति ने किसान बन ब्रह्मकमलों की खेती कर रखी हो,  बहुत अद्भुत दृश्य था इतने सारे ब्रह्मकमलों को एक साथ देखना.... ब्रह्मकमल देखने के पश्चात एकाएक मुझे जाने क्या होने लगा,  कौन सा भाव मुझ नास्तिक की आँखों में पानी भर गया.. शायद मेरे मन में दबी हुई आस्तिकता उभर कर मेरे दिमाग की नास्तिकता पर भारी पड़ रही थी और मैं जोर-जोर से जय शिव भोले चिल्लाने लगा.................... और फिर एकाएक शांत हो पुन: उन पत्थरों की ओर बढ़ने लगा जिस पर पीला रंग कर आगे बढ़ते रहने का संकेत दिया हुआ था।

                                                     .......................................(क्रमश:)
रात 2बजे अलार्म बजा,  और उठ कर घड़ी में देखा कि उस समय टैंट के अंदर का तापमान 10डिग्री था... 

और, रात ढाई बजे देखा तो नवनीत हमारे लिए परौठे बना रहा था... 

लो,  जी मैं तो तैयार हो गया..... 

भीमद्वारी से चलने के समय खींचा चित्र..... और हमारा पथप्रदर्शक केवल

उस समय शायद हवा सारा दिन चल-चल कर सो गई थी..... और आसमान में चंद्रदेव मस्कुरा रहे थे 

हमने अपने पीछे चल रहे एक दल को आगे निकाल दिया.....
आसमान का रंग अब कालेपन से नीलेपन में बदला शुरु हो रहा था.... 

पार्वती बाग से श्री खंड महादेव शिला के दूरदर्शन......


उस अंधेरे में चलते हुए..... बस चाँद ही सबसे खूबसूरत दिख रहा था,  दोस्तों 

पार्वती बाग पहुँच.... माता पार्वती मंदिर पर नमन 

चाँद की चांदनी में माता पार्वती का मंदिर.... 

पार्वती बाग से रास्ता अब पत्थरों-चट्टानों वाला शुरु हो गया.... 

सामने दिख रहा "बसार गई पर्वत" जिसपर चढ़ कर हमे श्री खंड महादेव शिला की ओर बढ़ना था... और पत्थर पर बनाई किसी अभिलाषी की भगवान शिव से नया घर प्राप्त करने की मनोकामना.... 

ब्रह्मकमल........वो दिव्य पुष्प जो रात में ही खिलता है 

ब्रह्मकमल और चाँद.... 

यह अद्भुत दृश्य देख ऐसा आभास हुआ,  कि प्रकृति ने जैसे किसान बन इन ब्रह्मकमलों की खेती कर रखी हो... 

ब्रह्मकमल देखने के उपरांत, नाजाने कौन सा भाव मुझे नास्तिक की आँखों में पानी भर गया...
शायद मेरे मन में दबी आस्तिकता,  दिमाग की नास्तिकता पर भारी पड़ रही थी और मैं जय शिव भोले चिल्लाने लगा...!! 

फिर एकाएक शांत हो इन पीले रंग से रंगे पत्थरों की ओर बढ़ने लगा, जिनपर आगे बढ़ते रहने का संकेत था...

           ( अगला भाग पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें )

(1) " चलो चलते हैं, सर्दियों में खीरगंगा " यात्रा वृतांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।
(2) " पैदल यात्रा लमडल झील वाय गज पास " यात्रा वृतांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।
(3) करेरी झील " मेरे पर्वतारोही बनने की कथा " यात्रा वृतांत की धारावाहिक चित्रकथा पढ़ने के लिए यहाँ स्पर्श करें।

                

27 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही वर्णन विकास जी, दिल गार्डन गार्डन ओह साॅरी साॅरी जी दिल बाग बाग हो गया पढ़कर, अच्छा किया जो अपने उस पुष्प को नहीं तोड़ा, और यदि तोड़ भी लेते तो क्या करते आपके घर आने तक वो सूख चुका होता, और कुछ दिन रखकर या तो फेंक देते या आलमारी में रख देते और वा कुछ समय बाद घर से बाहर चला ही जाता, ऐसी चीजों को देखने में जो आनंद की अनुभूति होती है, उसे तोड़ कर व्यर्थ करने में नहीं, वो तीन लड़के जो पुष्प तोड़कर ला रहे थे, उन लोगों बहुत से लोगों को पुष्प को देखने से वंचित कर दिया, अपनी थोड़ी सी खुशी के लिए उन्होंने कई लोगों के मनोकामना अधूरी छोड़ दी जी

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    1. अभयानंद जी .... बेहद आभारी हूँ जी आपका, आपका कथन बिल्कुल सही है....कि किन्नर कैलाश यात्रा के दौरान मिले वो लड़के ने नाजानें कितने लोगों की मनकामना को अधूरा कर दिया होगा... जिनमें मैं भी शामिल था, यदि वे लड़के मुझे ना मिलते तो, मैं ये सोचता कि मुझे किन्नक कैलाश यात्रा में श्री खंड यात्रा की तरह ब्रह्मकमल के दर्शन नही हुए.....पर किन्नर कैलाश के रास्ते में इन लड़कों से मिलने के बाद मैने रास्ते पर लगे पौधों की तरफ ध्यान दिया, जिनमें ज्यादातर पुष्पवाहीन ब्रह्मकमल ही थे, जो यात्रियों द्वारा तोड़े-मरोड़े जा चुके थे.....मैं किन्नर कैलाश के आखिर तक ब्रह्मकमल को तलाशता रहा पर दर्शन ना हो सके, वे लड़क भी इन ब्रह्मकमलों को किन्नर कैलाश के आगे जाकर किसी पहाड से तोड़ कर लाये थे.....श्री खंड यात्रा में सरकार पार्वती बाग को पहले जैसी प्राकृतिक सुंदरता देने के लिए सचेत है, इसलिए मुझे वे ब्रह्मकमल वहाँ दिख गए, क्योंकि पार्वती बाग में रेसक्यू दल भी बैठा होता है, जो चैक भी करता है कि कोई फूल ना तोड़े।

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  2. I think everything natural needs this respect! Coz the source of all living and material life is same. Only Take as much you need for your life support let the rest flourish. Can we ask this question to ourselves every time we intend to pocess something? Do I really need this?

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    1. विशाल रतन जी... आप का सवाल सोलह आने दुरूस्त है, कि प्रकृति के देन के अनुसार ही हम मनुष्य ने अपनी जरूरतें बनाई है.... और इन जरूरतों को बहुत देख, समझ कर संयम से ही धारण करना चाहिए... अब इन ब्रह्मकमलों के विषय में ही बात कर ले तो, जरुरत से ज्यादा या बगैर जरूरत के इतने सारे फूल तोड़ लाना..... गलत है, क्योंकि वे केवल फूल ही नही टूटे, इनके साथ वो कीमती बीज भी टूट गया, जो इस प्रजाति को पुन: जीवन देेने वाला था..... इस प्रकार की अंधाधुंध गलतियां हमारी आने वाली पीढियों के लिए इसी कई प्रजातियों को विलुप्त कर जाएगी, जी

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  3. डिसप्रिन वाले दल को आगे जाने दिया गया,
    यह बढिया रहा, सिरदर्द नहीं होता तो भी वो कर के ही मानते।
    कमेंट में समय ठीक करिये भाई,

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    1. संदीप जी, मैं ब्लॉग पर समय बदलने में असमर्थ साबित हो चुका हूँ, कृपया मेरा मार्गदर्शन करे जी

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    2. Blog profile बोले तो ब्लॉग डेशबोर्ड पर जाये, वहाँ settings में जाकर language and formatting पर जाये, GMT 05.30 कर दीजिए, हो जायेगा।
      हाँ save setting करना न भूले।

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    3. ढेरो-ढेर आभार व्यक्त करता हूँ संदीप जी, आपने झट से सब ठीक करवा दिया, मैने तो हथियार ही डाल दिये थे, जी

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    4. अब सब ठीक है। मैंने भी पंगे ले ले समझ लिया।
      शाम के 07.37 मेरी घडी में है कमेंट में भी लगभग यही आयेगा।

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  4. यात्रा विवरण बहुत ही बढ़िया है जय भोले नाथ
    अगले भाग की और

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  5. हमेशा की तरह शानदार यात्रा क्रम जारी .....शानदार

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  6. बहुत ही बढ़िया विवरण व सोच ।प्रकृति को बचाना हम सब का कर्तव्य है।

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  7. नास्तिकता भी आस्तिक होने का ही प्रतीक्षारत रूप है. नास्तिक सिर्फ़ ये कहता है कि मैं निज़ अनुभव को ही मानूँगा, कही सुनी नही. जब आपमे ये भाव जगा, आपका अनुभव आपको बदल गया.
    ब्रह्म केमल और सभी जंगली फूलों की यही कहानी है. सिक्किम मे जोंगरी के ट्रेक मे हमने लोगों को दुर्लभ ऑर्किड की खोज मे भटकते देखा है और उन्हे भी देखा जो इन्हे तोड़ 2500-3000 रुपये मे बेच रहे थे.
    जीतने मनुष्य उतने ही प्रकार के चित्त....

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    1. सही कहा जी आपने... परन्तु मैं तो आस्तिक से नास्तिक बना हूँ जी, 17-18वर्ष की आयु में... अब उम्र बढ़ने से कट्टरता खत्म सी हो चली है,सब कुछ जानते हुए भी भाव मन को प्रसन्न करता है कई बार, तो वो प्रसन्नता भी ले लेता हूँ जी.... अच्छा लगता है बहुत बार भावों के संग बहते चले जाना, जी

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  8. रात को ढाई बजे पराठे बनाने वाले नवनीत भाई को नमन...रात के इस सफ़र से ज्यादा सुबह के नज़ारे का इंतज़ार है...

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    1. जी हां, बस अब दिन का उजाला होने ही वाला है, प्रतीक जी

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  9. निःशब्द हूं सर आपके यात्रा वृतांत के आगे
    कृपा कर हमेशा यात्रा करते और ब्लॉग के माध्यम से हमे भी करवाते रहिये
    आपका पुनः वन्दन

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  10. Rightly said persons like Navneet OMG what should I write about them? who help everyone to complete their pious visit. No words to write n praise. Thanks Vikas to write wonderful visit.

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  11. इतने ब्रह्मकमल मानो पृथ्वी आपका हाथ जोड़कर स्वागत कर रही हो👌

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