भाग-6 श्री खंड महादेव कैलाश की ओर.....
" यात्रा के क्षणिक मिलाप, उमर भर की यादें "
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20जुलाई 2016 के दिन मैं और विशाल रतन जी, जांओं गाँव से ही मिले आशु के साथ अब वाचा गाँव से निकल सिंहगाड गाँव की ओर जा रही पगडंडी पर बढ़ रहे थे.... सिंहगाड(2015मीटर) चैल घाटी में महान हिमालय पर्वतमाला की ओर बढ़ते हुए आखिरी गाँव है और इस गाँव को ही श्री खंड यात्रा का प्रथम पड़ाव माना जाता है....
सिंहगाड से कुछ पहले सामने से भागते हुए आ रहे एक कुत्ते को रोक कर आशु हमे बताने लगा, " यह शेरू है और ये कई बार श्री खंड जा चुका है... ऐसे ही यात्रियों के साथ चल देता है " ......और जिस प्रकार से शेरू ने आशु व विशाल जी संग बड़े संयम से अपनी फोटो खिंचवाई, लगता था कि वह एक "धैर्यवान प्राणी " है... हम शहरी प्राणियों के मुकाबले.....!!
चार बज चुके थे और सिंहगाड गाँव के बाहर एक गेट फिल्मी कलाकार देवानंद की तरह सिर टेढ़ा कर कुछ-कुछ मस्कुराता हुआ, हमारे स्वागत में खड़ा था.... उस स्वागती द्वार से अंदर दाखिल हो, आशु हमे सिंहगाड में भगवान शिव के मंदिर पर ले गया, जहाँ भोले नाथ की एक सुन्दर प्रतिमा स्थापित थी...... कुछ ओर आगे बढ़े, तो एक सुडौल लम्बा-चौड़ा स्वागती द्वार फिर से हमारे " स्वागत शून्य " में श्री खंड महादेव यात्रा ट्रस्ट वालों ने खड़ा कर रखा था, जिसपर श्री खंड यात्रा सम्बन्धी नियमों व सुझावों का व्याख्यान था, कि सर्वप्रथम सिंहगाड से यात्री अपनी स्वास्थ्य जांच करवा, फिटनैस प्रमाण पत्र प्राप्त कर आगे यात्रा करे और 36 किलोमीटर एक तरफ की इस दुर्गम यात्रा में क्या करे और क्या ना करे, इन बातों पर प्रकाश डाला गया था....... और वे सब नियम पढ़-समझ, अब हम पंजीकरण व स्वास्थ्य चैक करवाने हेतू पाँच-छे लोगों की मेज के आगे खड़े थे, और शायद उन लोगों की पारखी आँखों ने ही हमारे "सुडौल स्वास्थ्य" को जांच-परख लिया, और यात्रा शुल्क लेने के बाद झट से हमे हमारा स्वास्थ्य प्रमाण पत्र मिल गया.... वहीं हमारी फोटो खींच, हमारा हमराही आशु हम से विदा ले, सिंहगाड में कहीं खो गया.......
वहीं उन लोगों ने हमसे कहा कि, अब शाम होने को है...आप लोग आज रात यहीं "श्री खंड सेवा मण्डल" की ओर से लगाये गए लंगर में रहे... और सुबह आगे की यात्रा शुरू करे, मैने तो हां में सिर हिला दिया...परन्तु विशाल जी हर बार अपने संग दिल्ली की नामुराद बीमारी "समय सीमा " लाते ही है, सो बोल पड़े... " नही, अभी सवा चार ही हुए हैं, हमारे पास कुछ घंटे है और आगे बढ़ने के लिए...क्या इसके बाद भी कोई लंगर आयेगा" तो उन्होंने हमे सलाह दी कि, तीन किलोमीटर और जाने के बाद बराहटी नाले पर एक लंगर है, वहाँ रात रुक जाना....!
प्रमाण पत्र ले सिर्फ दो कदम ही चले थे कि, आगे पकौड़ों और जलेबी के लंगर को देख हमारी आँखों ने पेट से सांठ-गांठ पर हमारे पैरों को वहीं जाम कर दिया..... और उस छोटे से लंगर पर रुक कर हम कुछ चाय-नाश्ते में मगन थे कि, एक भाई साहिब ने विशाल जी की गिरी हुई एेनक उठा कर थमाई और अंग्रेजी में पूछा कि "अभी जा रहे हो क्या".....विशाल जी उनका धन्यवाद करते हुए बोले, जी हां...... तो वह सज्जन फिर बोले कि, " भैया बेहद कठिन है यह यात्रा, मैं कैलाश मानसरोवर भी जा चुका हूँ... पर ये यात्रा उस से सौ गुणा कठिन है..!!! " उनके अंग्रेजी बोलने के अंदाज़ से मैं समझ गया कि ये सज्जन जरूर दक्षिण भारतीय हैं.... और उनके विषय में पूछने पर उन्होंने बताया, " मेरा नाम 'जय चन्द्रन' और मैं त्रिशूर केरल से यहाँ आया हूँ.... हमारा ग्रुप है, जो पीछे आ रहा है...मेरी चाल उन लोगों से तेज है... इसलिए उनसे पहले ही यहाँ तक पहुंच, अब उनका इंतजार कर रहा हूँ "
हमारे लिए यह हैरान कर देने वाली बात थी, कि यात्रा शुरू करते ही गुजराती भाई मिले और अब केरल वाले.... मेरे दिमाग़ में यह बात कौंद गई कि,
" घुमक्कड़ी पर लगे आस्था के तड़के में यात्री के लिए दूरियाँ नापना कोई मायने नही रखती " ....कहाँ भारत वर्ष के एक छोर केरल से 3000किलोमीटर की दूरी तय कर, दूसरे छोर हिमाचल पहुँचे.... जय चन्द्रन व उनके साथियों को आस्था और घुमक्कड़ी के मिश्रण ने महान हिमालय की गगनचुम्बी चोटी पर चढ़ा दिया... नही तो अपने ही घर की सीढ़ियाँ चढ़ने में साँस फूल जाती है......!!!
जय चन्द्रन जी से यात्रा सम्बन्धी शुभकामनाएं और जलेबी की मिठास मुंह में ले, हम दोनों चल पड़े अपने आज रात की मंजिल बराहटी नाले की तरफ..... और जाते हुए मैने जय चन्द्रन जी से कहा कि, मै जितना भी भारत में घूमा हूँ... मुझे आपका केरल सबसे खूबसूरत लगा, और मेरी बात सुन जय चन्द्रन जी के चेहरे पर छाई गौरवमय मुस्कान मुझे अब भी याद है.....
और, सिंहगाड के प्राचीन गिरचाडू मंदिर के प्रांगण में लगे श्री खंड सेवा मण्डल के लंगर व रात्रि-पड़ाव पर बस एक सरसरी सी नज़र डाल, आगे की ओर बढ़ गए.... परन्तु वहाँ उस पड़ाव पर ना रुकना, हमारी एक भूल थी... जो हमे इस यात्रा की समाप्ति पर बहुत ज्यादा महसूस हुई.... जिस का जिक्र मैं यात्रा के अंत में ही करूंगा, तभी आप हमारी मनोदशा समझ पायेंगे दोस्तों..... सिर्फ पांच मिनट चलने के बाद ही "मानव बसो चिन्ह" अब समाप्त हो गए थे और हम जंगल में घाटी को चीरती हुई व अंधाधुंध भाग रही कुरपन नदी के किनारे-किनारे बढ़ते जा रहे थे, कुरपन नदी का जल सफेद रंग का था, वो इसलिए कि प्रचण्ड गति से उछल व बह रहे पानी में हवा के महीन बुलबुले जो मिले हुए थे....
शाम का समय था, तो सुबह से चले व वापसी कर रहे लोग हमे निरंतर राह में मिलते जा रहे थे... और उनसे हमारा क्षणिक रिश्ता कायम हो जाता, जब हम आपस में भगवान शिव का जयकारा लगाते....हमे लग रहा था कि, शायद अब इस समय हम दोनों ही श्री खंड की ओर बढ़ रहे थे... क्योंकि जाने वाली दिशा की ओर हम दोनों थे और उसी रास्ते पर आने वाली दिशा पर निरंतर आगमन था..... रास्ता भी अब कुछ चढ़ाई का ज्यादा अाने लग पड़ा, कभी सीढ़ियाँ चढ़ कुरपन नदी से ऊपर पहाड के कंधों पर चढ़ जाते, तो फिर कभी रास्ता हमे पहाड के चरण छू रही कुरपन नदी के एक दम किनारे पर ले जाता.... एक जगह ऐसी आई कि पहाड के साथ कंक्रीट डाल रास्ता बनाया हुआ था और पहाड के साथ बनाये उस छज्जे नुमा रास्ते के नीचे नदी का प्रवाह भयानक के साथ बेहद हसीन भी लग रहा था.... भयानक इसलिए कि सोच रहा था कि, यह नदी सामान्य अवस्था में कितनी आक्रामक लग रही है...तो वर्षा ऋतु में तो इस नदी पर भरोसा किया ही नही जा सकता......
रास्ते के उतार-चढ़ाव और कई जगह तो बेहद कम चौड़े रास्ते से यह तो तय हो चुका था, कि इस पथ पर यात्रियों को अपने पैरों से चल कर ही श्री खंड महादेव जाना पड़ता है.... क्योंकि रास्ते में मुझे अब तक कहीं भी खच्चरों की लीद नही दिखाई दी और ना ही कोई पालकी आदि मुझे नज़र आई.... इस यात्रा की सबसे बड़ी कठिनाई ही यही है कि, आप चाहे जैसे भी हो अमीर-गरीब, बलवान-कमजोर, बूढ़े-जवान..... अपने खुद के कदम बढ़ा, श्री खंड महादेव चोटी तक जाना होता है......!!
हमे चलते हुए पौना घण्टा बीत चुका था.....और हम राह में आए एक और लंगर पर आ पहुँचें, लक्ष्मी नारायण मंदिर बाबडी, रामपुर बुशहर वालों का लंगर...... बाबा जी ने हमे रोका कि बच्चा चाय पी कर जाना, परन्तु हमारी आज मंजिल खन्ना (पंजाब) से श्री पंच दशनाम अखाड़ा वालों का लंगर तय था, सो बाबा जी को प्रणाम कर आगे बढ़ चले.... जिस रास्ते पर हम चल रहे थे, उसे छोड़ जहाँ तक मेरी नज़र जाती थी...सब तरफ हरा ही हरा रंग प्रकृति ने बिछा रखा था, इतनी हरियाली देख दिल्ली में रहने वाले विशाल जी को जो सुख मिल रहा था... वो मैं उनके चेहरे पर पढ़ रहा था, हांलाकि उन्होंने अनजाने में ही अपना सुख मुझ से छिपा रखा था....
उस घने जंगल में सामने से चार व्यक्ति चले रहे थे.... मैने उनके रंग-रुप देख, झट से विशाल जी से कहा..."लो ये आ रहे हैं, केरल वाले जय चन्द्रन जी के बाकी साथी"..... और आधे मिनट की भेंटवार्ता से हम उनकी स्मृति में, और वे हमारी स्मृति में सदा के लिए जुड़ गए.....
शाम का समय होने के कारण यात्रियों के दल वापसी कर रहे थे, तब हमने एक पोटर को पहली बार देखा... जिसने अपने दल के सभी सदस्यों के बैग रस्सी से बांध अपनी पीठ पर लाद रखे थे, हैरानी का विषय था कि, इतनी कठिन डगर पर इतना सारा भार ले कर चलना.... उस पोटर की फोटो खींच अभी अपने रास्ते की तरफ रुख किया ही था, कि एक महिला के संग दो लड़के चले आ रहे थे, ना जाने क्यों मुझे राह में मिल रहे यात्रियों से बात करना अच्छा लग रहा था... शायद इस कठिनाई भरी यात्रा को पूर्ण कर रहे यात्रियों के सुख व संतोष को महसूस करना मुझे आनंदित कर रहा था, जैसे ही वे भी हमारे पास से गुजरने लगे... मैने कहा कि, " लगता है भाइयों, अपनी माता जी को श्री खंड के दर्शन करवा कर आ रहे हो "...... वे युवक मस्कुराएँ और बोले, " जी हां, ये हमारी माता समान ही है, जी "
और... उनसे जूना अखाड़ा लंगर बराहटी नाला की दूरी के विषय मे पूछ, फिर से हमने उस ऊंची-नीची पगडंडी पर अपने पग अग्रसर कर दिये.......
.....................................(क्रमश:)
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" यात्रा के क्षणिक मिलाप, उमर भर की यादें "
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20जुलाई 2016 के दिन मैं और विशाल रतन जी, जांओं गाँव से ही मिले आशु के साथ अब वाचा गाँव से निकल सिंहगाड गाँव की ओर जा रही पगडंडी पर बढ़ रहे थे.... सिंहगाड(2015मीटर) चैल घाटी में महान हिमालय पर्वतमाला की ओर बढ़ते हुए आखिरी गाँव है और इस गाँव को ही श्री खंड यात्रा का प्रथम पड़ाव माना जाता है....
सिंहगाड से कुछ पहले सामने से भागते हुए आ रहे एक कुत्ते को रोक कर आशु हमे बताने लगा, " यह शेरू है और ये कई बार श्री खंड जा चुका है... ऐसे ही यात्रियों के साथ चल देता है " ......और जिस प्रकार से शेरू ने आशु व विशाल जी संग बड़े संयम से अपनी फोटो खिंचवाई, लगता था कि वह एक "धैर्यवान प्राणी " है... हम शहरी प्राणियों के मुकाबले.....!!
चार बज चुके थे और सिंहगाड गाँव के बाहर एक गेट फिल्मी कलाकार देवानंद की तरह सिर टेढ़ा कर कुछ-कुछ मस्कुराता हुआ, हमारे स्वागत में खड़ा था.... उस स्वागती द्वार से अंदर दाखिल हो, आशु हमे सिंहगाड में भगवान शिव के मंदिर पर ले गया, जहाँ भोले नाथ की एक सुन्दर प्रतिमा स्थापित थी...... कुछ ओर आगे बढ़े, तो एक सुडौल लम्बा-चौड़ा स्वागती द्वार फिर से हमारे " स्वागत शून्य " में श्री खंड महादेव यात्रा ट्रस्ट वालों ने खड़ा कर रखा था, जिसपर श्री खंड यात्रा सम्बन्धी नियमों व सुझावों का व्याख्यान था, कि सर्वप्रथम सिंहगाड से यात्री अपनी स्वास्थ्य जांच करवा, फिटनैस प्रमाण पत्र प्राप्त कर आगे यात्रा करे और 36 किलोमीटर एक तरफ की इस दुर्गम यात्रा में क्या करे और क्या ना करे, इन बातों पर प्रकाश डाला गया था....... और वे सब नियम पढ़-समझ, अब हम पंजीकरण व स्वास्थ्य चैक करवाने हेतू पाँच-छे लोगों की मेज के आगे खड़े थे, और शायद उन लोगों की पारखी आँखों ने ही हमारे "सुडौल स्वास्थ्य" को जांच-परख लिया, और यात्रा शुल्क लेने के बाद झट से हमे हमारा स्वास्थ्य प्रमाण पत्र मिल गया.... वहीं हमारी फोटो खींच, हमारा हमराही आशु हम से विदा ले, सिंहगाड में कहीं खो गया.......
वहीं उन लोगों ने हमसे कहा कि, अब शाम होने को है...आप लोग आज रात यहीं "श्री खंड सेवा मण्डल" की ओर से लगाये गए लंगर में रहे... और सुबह आगे की यात्रा शुरू करे, मैने तो हां में सिर हिला दिया...परन्तु विशाल जी हर बार अपने संग दिल्ली की नामुराद बीमारी "समय सीमा " लाते ही है, सो बोल पड़े... " नही, अभी सवा चार ही हुए हैं, हमारे पास कुछ घंटे है और आगे बढ़ने के लिए...क्या इसके बाद भी कोई लंगर आयेगा" तो उन्होंने हमे सलाह दी कि, तीन किलोमीटर और जाने के बाद बराहटी नाले पर एक लंगर है, वहाँ रात रुक जाना....!
प्रमाण पत्र ले सिर्फ दो कदम ही चले थे कि, आगे पकौड़ों और जलेबी के लंगर को देख हमारी आँखों ने पेट से सांठ-गांठ पर हमारे पैरों को वहीं जाम कर दिया..... और उस छोटे से लंगर पर रुक कर हम कुछ चाय-नाश्ते में मगन थे कि, एक भाई साहिब ने विशाल जी की गिरी हुई एेनक उठा कर थमाई और अंग्रेजी में पूछा कि "अभी जा रहे हो क्या".....विशाल जी उनका धन्यवाद करते हुए बोले, जी हां...... तो वह सज्जन फिर बोले कि, " भैया बेहद कठिन है यह यात्रा, मैं कैलाश मानसरोवर भी जा चुका हूँ... पर ये यात्रा उस से सौ गुणा कठिन है..!!! " उनके अंग्रेजी बोलने के अंदाज़ से मैं समझ गया कि ये सज्जन जरूर दक्षिण भारतीय हैं.... और उनके विषय में पूछने पर उन्होंने बताया, " मेरा नाम 'जय चन्द्रन' और मैं त्रिशूर केरल से यहाँ आया हूँ.... हमारा ग्रुप है, जो पीछे आ रहा है...मेरी चाल उन लोगों से तेज है... इसलिए उनसे पहले ही यहाँ तक पहुंच, अब उनका इंतजार कर रहा हूँ "
हमारे लिए यह हैरान कर देने वाली बात थी, कि यात्रा शुरू करते ही गुजराती भाई मिले और अब केरल वाले.... मेरे दिमाग़ में यह बात कौंद गई कि,
" घुमक्कड़ी पर लगे आस्था के तड़के में यात्री के लिए दूरियाँ नापना कोई मायने नही रखती " ....कहाँ भारत वर्ष के एक छोर केरल से 3000किलोमीटर की दूरी तय कर, दूसरे छोर हिमाचल पहुँचे.... जय चन्द्रन व उनके साथियों को आस्था और घुमक्कड़ी के मिश्रण ने महान हिमालय की गगनचुम्बी चोटी पर चढ़ा दिया... नही तो अपने ही घर की सीढ़ियाँ चढ़ने में साँस फूल जाती है......!!!
जय चन्द्रन जी से यात्रा सम्बन्धी शुभकामनाएं और जलेबी की मिठास मुंह में ले, हम दोनों चल पड़े अपने आज रात की मंजिल बराहटी नाले की तरफ..... और जाते हुए मैने जय चन्द्रन जी से कहा कि, मै जितना भी भारत में घूमा हूँ... मुझे आपका केरल सबसे खूबसूरत लगा, और मेरी बात सुन जय चन्द्रन जी के चेहरे पर छाई गौरवमय मुस्कान मुझे अब भी याद है.....
और, सिंहगाड के प्राचीन गिरचाडू मंदिर के प्रांगण में लगे श्री खंड सेवा मण्डल के लंगर व रात्रि-पड़ाव पर बस एक सरसरी सी नज़र डाल, आगे की ओर बढ़ गए.... परन्तु वहाँ उस पड़ाव पर ना रुकना, हमारी एक भूल थी... जो हमे इस यात्रा की समाप्ति पर बहुत ज्यादा महसूस हुई.... जिस का जिक्र मैं यात्रा के अंत में ही करूंगा, तभी आप हमारी मनोदशा समझ पायेंगे दोस्तों..... सिर्फ पांच मिनट चलने के बाद ही "मानव बसो चिन्ह" अब समाप्त हो गए थे और हम जंगल में घाटी को चीरती हुई व अंधाधुंध भाग रही कुरपन नदी के किनारे-किनारे बढ़ते जा रहे थे, कुरपन नदी का जल सफेद रंग का था, वो इसलिए कि प्रचण्ड गति से उछल व बह रहे पानी में हवा के महीन बुलबुले जो मिले हुए थे....
शाम का समय था, तो सुबह से चले व वापसी कर रहे लोग हमे निरंतर राह में मिलते जा रहे थे... और उनसे हमारा क्षणिक रिश्ता कायम हो जाता, जब हम आपस में भगवान शिव का जयकारा लगाते....हमे लग रहा था कि, शायद अब इस समय हम दोनों ही श्री खंड की ओर बढ़ रहे थे... क्योंकि जाने वाली दिशा की ओर हम दोनों थे और उसी रास्ते पर आने वाली दिशा पर निरंतर आगमन था..... रास्ता भी अब कुछ चढ़ाई का ज्यादा अाने लग पड़ा, कभी सीढ़ियाँ चढ़ कुरपन नदी से ऊपर पहाड के कंधों पर चढ़ जाते, तो फिर कभी रास्ता हमे पहाड के चरण छू रही कुरपन नदी के एक दम किनारे पर ले जाता.... एक जगह ऐसी आई कि पहाड के साथ कंक्रीट डाल रास्ता बनाया हुआ था और पहाड के साथ बनाये उस छज्जे नुमा रास्ते के नीचे नदी का प्रवाह भयानक के साथ बेहद हसीन भी लग रहा था.... भयानक इसलिए कि सोच रहा था कि, यह नदी सामान्य अवस्था में कितनी आक्रामक लग रही है...तो वर्षा ऋतु में तो इस नदी पर भरोसा किया ही नही जा सकता......
रास्ते के उतार-चढ़ाव और कई जगह तो बेहद कम चौड़े रास्ते से यह तो तय हो चुका था, कि इस पथ पर यात्रियों को अपने पैरों से चल कर ही श्री खंड महादेव जाना पड़ता है.... क्योंकि रास्ते में मुझे अब तक कहीं भी खच्चरों की लीद नही दिखाई दी और ना ही कोई पालकी आदि मुझे नज़र आई.... इस यात्रा की सबसे बड़ी कठिनाई ही यही है कि, आप चाहे जैसे भी हो अमीर-गरीब, बलवान-कमजोर, बूढ़े-जवान..... अपने खुद के कदम बढ़ा, श्री खंड महादेव चोटी तक जाना होता है......!!
हमे चलते हुए पौना घण्टा बीत चुका था.....और हम राह में आए एक और लंगर पर आ पहुँचें, लक्ष्मी नारायण मंदिर बाबडी, रामपुर बुशहर वालों का लंगर...... बाबा जी ने हमे रोका कि बच्चा चाय पी कर जाना, परन्तु हमारी आज मंजिल खन्ना (पंजाब) से श्री पंच दशनाम अखाड़ा वालों का लंगर तय था, सो बाबा जी को प्रणाम कर आगे बढ़ चले.... जिस रास्ते पर हम चल रहे थे, उसे छोड़ जहाँ तक मेरी नज़र जाती थी...सब तरफ हरा ही हरा रंग प्रकृति ने बिछा रखा था, इतनी हरियाली देख दिल्ली में रहने वाले विशाल जी को जो सुख मिल रहा था... वो मैं उनके चेहरे पर पढ़ रहा था, हांलाकि उन्होंने अनजाने में ही अपना सुख मुझ से छिपा रखा था....
उस घने जंगल में सामने से चार व्यक्ति चले रहे थे.... मैने उनके रंग-रुप देख, झट से विशाल जी से कहा..."लो ये आ रहे हैं, केरल वाले जय चन्द्रन जी के बाकी साथी"..... और आधे मिनट की भेंटवार्ता से हम उनकी स्मृति में, और वे हमारी स्मृति में सदा के लिए जुड़ गए.....
शाम का समय होने के कारण यात्रियों के दल वापसी कर रहे थे, तब हमने एक पोटर को पहली बार देखा... जिसने अपने दल के सभी सदस्यों के बैग रस्सी से बांध अपनी पीठ पर लाद रखे थे, हैरानी का विषय था कि, इतनी कठिन डगर पर इतना सारा भार ले कर चलना.... उस पोटर की फोटो खींच अभी अपने रास्ते की तरफ रुख किया ही था, कि एक महिला के संग दो लड़के चले आ रहे थे, ना जाने क्यों मुझे राह में मिल रहे यात्रियों से बात करना अच्छा लग रहा था... शायद इस कठिनाई भरी यात्रा को पूर्ण कर रहे यात्रियों के सुख व संतोष को महसूस करना मुझे आनंदित कर रहा था, जैसे ही वे भी हमारे पास से गुजरने लगे... मैने कहा कि, " लगता है भाइयों, अपनी माता जी को श्री खंड के दर्शन करवा कर आ रहे हो "...... वे युवक मस्कुराएँ और बोले, " जी हां, ये हमारी माता समान ही है, जी "
और... उनसे जूना अखाड़ा लंगर बराहटी नाला की दूरी के विषय मे पूछ, फिर से हमने उस ऊंची-नीची पगडंडी पर अपने पग अग्रसर कर दिये.......
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शेरू के साथ आशु और विशाल रतन जी.... |
सिंहगाड गाँव के बाहर.... देवानंद अंदाज में खड़ा स्वागती द्वार |
सिंहगाड गाँव में भगवान शिव की प्रतिमा... |
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श्री खंड यात्रा पंजीकरण व स्वास्थ्य प्रमाण पत्र हासिल करते हम दोनों.... |
आहा......जेलबी पकौड़े...!! |
केरल से आए जय चन्द्रन जी के साथ.... |
श्री खंड महादेव यात्रा के प्रथम पड़ाव सिंहगाड गाँव में श्री खंड सेवा मण्डल की ओर से चलाये जा रहे लंगर के बाहर खड़े हम दोनों.... |
यात्रा का सुख मेरे चेहरे पर साफ झलक रहा है ना, दोस्तों.. |
अब रास्ता कुरपन नदी की ओर उतर रहा था....और विशाल जी की प्रसन्नता |
अंधाधुंध भाग रही कुरपन नदी.... और मैं |
बेहद खतरनाक रास्ता..... पहाड के साथ कंक्रीट डाल छज्जा नुमा बनाया गया रास्ता पार करते हुए विशाल जी... |
इतना दुर्गम रास्ता देख कर, यह बात तो तय हो गई कि इस यात्रा पथ पर कोई सहायक सवारी नही मिलती, यात्री को अपने पैरों पर ही श्री खंड महादेव चोटी तक जाना होता है.... दोस्तों |
बच्चा, चाय पी लो.... लक्ष्मी नारायण मंदिर, बाबडी रामपुर बुशहर वालों का लंगर... परन्तु हम दोनों हाथ जोड़ कर आगे निकल गए.... |
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लो जी, आ गए केरल वाले जय चन्द्रन जी के बाकी साथी..... |
यात्रा पथ पर दिखा पहला पोटर.....जिसने कई सारे बैग इक्ट्ठा उठा रखे थे.... |
ना जानें, क्यों मुझे राह में मिल रहे यात्रियों से बात करना अच्छा लग रहा था, शायद इस कठिनाई भरी यात्रा को पूर्ण कर रहे यात्रियों के सुख व संतोष को महसूस करना मुझे आनंदित कर रहा था.....! |